कुछ दाग़ कभी अच्छे नहीं होते
- डाॅ. शरद सिंह
हैदराबाद में 27 वर्षीय वेटरेनरी डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने कहा है कि इसमें शामिल लोगों की लिंचिंग (पीट-पीटकर मार डालना चाहिए) होनी चाहिए। ये एक सांसद या राजनेता के नहीं वरन् एक स्त्री के दिल से निकले उद्गार थे। देश के माथे पर लगा हैदराबाद की घटना का दाग़ देश के सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों को सदा कुरेदता रहेगा। चाहे निर्भया कांड का दिल्ली का दाग़ हो या हैदराबाद की घटना का यह दाग़, पुरुषों के प्रति आधी दुनिया को हमेशा सशंकित रखेगा और देश के माहौल को असुरक्षा की भावना से जकड़ा रखेगा। इस प्रकार की वहशीपना पर रोक लगनी जरूरी है जिसके लिए कानून और समाज को एकजुट खड़ा होना होगा।
मानवता को शर्मसार कर देने वाली हैदराबाद गैंग रेप की घटना को लेकर इन दिनों देश में बेहद गुस्से और आक्रोश का माहौल बना हुआ है। सोशल मीडिया में कैंपेन चल रहे हैं, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। दोषियों को मौत की सजा देने की मांग उठ रही है। ऐसे में, अगर देश में होने वाले रेप की वारदातों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कड़े कानूनों के बावजूद बलात्कार की वारदातें कम नहीं हो रही हैं। ये आंकड़े मखौल उड़ाते हैं कानून का, और महिला सुरक्षा को लेकर किये जाने वाले तमाम दावों की पोल भी खोलते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। इस प्रकार देश भर में प्रति घंटे दो महिलाएं बलात्कारियों के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती हैं, लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई बयां नहीं करती। बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट ही नहीं हो पाती।
महिला अधिकारों के मुद्दों पर बॉलीवुड की पूर्व अभिनेत्री और सांसद जया बच्चन काफी मुखर रही हैं और सांसदों के साथ उन्होंने पीड़िता के लिए इंसाफ की मांग की। उन्होंने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि यह समय है जब जनता सरकार से उचित और निश्चित जवाब मांग रही है।’’
तमिलनाडु से आने वाली सांसद विजिला सत्यानंद ने कहा कि देश महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है, उन्होंने मांग की कि ‘‘अपराध करने वाले चारों लोगों को 31 दिसंबर से पहले फांसी दी जाए। न्याय में देरी होना न्याय से वंचित होना है।’’
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह हरकत पूरे देश के लिए एक शर्म की बात है जिसने सबको दुख दिया है और उन्होंने कहा कि इस घटना की निंदा करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद जो नए कानून बनाए गए थे उसके बाद से उम्मीद थी कि महिलाओं के खिलाफ अपराध कम होंगे हालांकि ऐसा हुआ नहीं। राजनाथ सिंह ने कहा, ‘‘महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मुद्दों पर बात करने के लिए सरकार तैयार है और इस तरह की घटनाओं के लिए कड़े क़ानून बनाने के बारे में सोच सकती है।’’
इस घटना के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों के साथ-साथ संसद में भी देखने को मिला। कई सांसदों ने सरकार से पूछा कि वो महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है? क्या कानून का होना सुरक्षा दे सकता है जबकि निर्भया के हत्यारों को सज़ा मिलने में वर्षों लग जाते हों? हालात इतने बिगड़ चले हैं कि अब मामला विश्वास-अविश्वास का हो चला है। एक युवती किस पर विश्वास करे, किस पर नहीं? हैदराबाद की घटना से जुड़ी वो बातें जो अपराध की शिकार युवती की बहन ने बताईं, सामाजिक वातावरण की ओर भयावह संकेत करती हैं। पीड़ित युवती ने फोन पर अपनी बहन को बताया कि उन्हें अकेले सड़क पर खड़ा होने में डर लग रहा है, अचानक से कुछ लोग दिख रहे हैं, कुछ लोग उन्हें स्कूटी ठीक करने की बात भी बोल रहे हैं। युवती ने फोन पर ही अपनी बहन को बताया था कि एक ट्रक ड्राइवर उनके पास रुका और उसने स्कूटी ठीक करने की बात कही। जब युवती ने ट्रक ड्राइवर से स्कूटी ठीक करवाने से इनकार कर दिया तो उसके बाद भी वह ट्रक ड्राइवर उनका पीछा करता रहा। बहन ने उन्हें सलाह दी कि वह टोल प्लाजा के पास ही खड़ी हो जाएं, इस पर युवती राजी नहीं हुई और उन्होंने बताया कि सभी लोग उन्हें घूर रहे हैं जिससे उन्हें डर लग रहा है। इसके बाद युवती ने अपनी बहन को थोड़ी देर में फोन करने की बात कही, लेकिन इसके बाद उनका फोन स्विच ऑफ हो गया....और उसके बाद अगली सुबह उनका जला हुआ शव मिला।
उस रात के उस आखिरी फोन कॉल को याद करती हुए वो कहती हैं ‘‘मेरी बहन ने मुझे कहा भी कि वो डरी हुई है. लेकिन मैं ही नहीं समझ पायी कि सबकुछ इतना गंभीर है। अब मैं ये समझ पा रही हूं कि इस तरह की बात को किसी भी सूरत में हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इस बात का कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता है कि अगले ही पल किसके साथ क्या हो जाए।’’ दुख प्रकट करती हुई वो कहती हैं ‘‘मैं अपनी बहन को बचा सकती थी, अगर मैंने मौके की नजाक़त को उतनी ही गंभीरता से लिया होता तो...किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए भले ही वो कोई जानने वाला ही क्यों ना हो। मैं समझ रही हूं मुझे ये सबकुछ नहीं कहना चाहिए।’’
प्रतिदिन हज़ारों-लाखों हर उम्र की महिलाएं काम पर घर से बाहर जाती हैं। उन्हें कभी न कभी दूसरों की मदद की जरूरत पड़ती ही है। जिस समाज को स्त्री और पुरुष मिल कर बनाते हैं उसी समाज में यदि हर स्त्री को हर पुरुष के प्रति शंका भरी दृष्टि से देखना पड़े तो उस समाज की संरचना ही ध्वस्त हो जाएगी। आज जब न छोटी बच्चियां सुरक्षित दिखती हैं और न उम्रदराज़ महिलाएं, न अनपढ़ मज़दूर महिलाएं और न पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा युवतियां, ऐसे वातावरण में कौन चाहेगा बेटियों को जन्म देना? ‘‘बेटी बचाओ’’ का दायरा कोख में ही बेटी को बचाने से नहीं वरन् जीवन भर बेटी को सुरक्षित माहौल देना होना चाहिए। यह सरकारी नारा नहीं सामाजिक दायित्व बनना चाहिए।
जिस युवती ने दरिंदगी को झेलते हुए दम तोड़ा उसकी पीड़ा को उसके परिवार को पूरे जीवन भर टीसती रहेगी। क्या उसकी बहन कभी चैन की नींद सो सकेगी? कभी नहीं। प्रत्यक्षतः दरिंदगी किसी युवती के साथ होती है लेकिन अप्रत्यक्षरूप से वह उसके परिवार के हर सदस्य के साथ होती है। ऐसा परिवार फिर कभी सामान्य जीवन नहीं जी पाता है। चाहे निर्भया कांड का दिल्ली का दाग़ हो या हैदराबाद की घटना का यह दाग़, पुरुषों के प्रति आधी दुनिया को हमेशा सशंकित रखेगा और देश के माहौल को असुरक्षा की भावना से जकड़ा रखेगा। इस प्रकार की वहशीपना पर रोक लगनी जरूरी है जिसके लिए कानून और समाज को एकजुट खड़ा होना होगा। एक भी बेटी असुरक्षित दिखे तो चार रक्षक उसके पास आ खड़े हों, तभी दरिंदों के हौसले पस्त होंगे। जो संवेदनाएं घटना के बाद हाथ में मोमबत्तियां ले कर एक स्थान पर आ खड़ी होती हैं, उन संवेदनाओं को घटना से पहले एक साथ होना होगा ताकि ऐसी घटनाएं बार-बार न घटें।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 04.12. 2019)
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