Wednesday, December 18, 2019

चर्चा प्लस ...अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसम्बर) और नागरिकता संशोधन कानून 2019 - डाॅ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ...अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसम्बर) और नागरिकता संशोधन कानून 2019
         - डाॅ. शरद सिंह                                                                                        
     आज अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को मनाया जा रहा है। यह दिवस प्रति वर्ष 18 दिसंबर 1992 से सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा, उनकी भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि की सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर यह विचार करना जरूरी है कि आखिर क्या है नागरिकता (संशोधन) कानून 2019? इसकी राह में आने वाले अवरोध का मूल कारण क्या है? कहीं दफ़्तरों की लापरवाही भरी कार्यप्रणाली तो नहीं है भय का मूल कारण? जिसे पूर्वोंत्तर ने झेला है।
चर्चा प्लस ...अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसम्बर) और नागरिकता संशोधन कानून 2019  - डाॅ. शरद सिंह

आज जब देश में दिल्ली से लेकर असम तक, उत्तर प्रदेश से लेकर बेंगलुरु-मुंबई तक हर जगह नए नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है। देश का अल्पसंख्यक समुदाय भी चिंतित हो उठा है। आज अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को मनाया जा रहा है। यह दिवस प्रति वर्ष 18 दिसंबर 1992 से सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा, उनकी भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि की सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु मनाया जाता है। अल्पसंख्यक किसे माना जाना चाहिए? संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष प्रतिवेदक फ्रेंसिस्को कॉपोटोर्टी ने एक वैश्विक परिभाषा दी, जिसके अनुसार- “किसी राष्ट्र-राज्य में रहने वाले ऐसे समुदाय जो संख्या में कम हों और सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हों एवं जिनकी प्रजाति, धर्म, भाषा आदि बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र के निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय भाषा को बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हों, तो ऐसे समुदायों को उस राष्ट्र-राज्य में अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए।”
अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस की शुरुआत 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक घोषणा से हुई थी। भारत में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। भारत के संविधान में अल्पसंख्यक होने का आधार धर्म और भाषा को माना गया है। भारत के अल्पसंख्यक समुदायों में मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी शामिल हैं। बहाई और यहूदी अल्पसंख्यक तो हैं, लेकिन इन्हें संबंधित संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं। भारत सरकार ने अल्पसंख्यक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 1978 में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया था। इसे बाद में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 के तहत कानून के रूप में 1992 में पारित किया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को वर्ष 2006 जनवरी में यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अधीन कर दिए। इसे वे सारे संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, जो दीवानी अदालतों को हैं। इस आयोग का गठन भारत के लिए इसलिए भी महत्व रखता है, क्योंकि पूरे यूरोप के किसी भी राष्ट्र में ऐसा कोई आयोग नहीं है। आज भारत के कई अन्य राज्यों में भी राज्य अल्पसंख्यक आयोग हैं।

अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर यह विचार करना जरूरी है कि आखिर क्या है नागरिकता (संशोधन) कानून 2019? अविभाजित भारत में रहने वाले लाखों लोग अलग धर्म को मानते हुए आजादी के वक्त से साल 1947 से पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे थे। इसके साथ ही अफगानिस्तान भी मुस्लिम राष्ट्र है और इन देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं। नागरिकता कानून 1955 के अनुसार, किसी अवैध अप्रवासी नागरिक को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती। सरकार ने इस कानून में संशोधन के जरिए अब नागरिकता कानून 2019 के हिसाब से अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता आसानी से देने का फैसला किया है। बिल की विशेषता यह है कि इसमें भारत की नागरिकता पाने के लिए भारत में कम से कम 12 साल रहने की आवश्यक शर्त को कम करके सात साल कर दिया गया है।
इसमें सरकार का पक्ष है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक पद्धति, उसके पालन और आस्था रखने में बाधा आती है। इनमें से बहुत से लोग भारत में शरण के लिए आए और वे अब यहीं रहना चाहते हैं। इन लोगों के वीजा या पासपोर्ट की अवधि भी समाप्त हो चुकी है। कुछ लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं है, लेकिन अगर वे भारत को अपना देश मानकर यहां रहना चाहते हैं तो सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है।

वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि विधेयक मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है, जिन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है। इस हिसाब से यह संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। केंद्र सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र हैं, वहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इस वजह से उन्हें धर्म के आधार पर उत्पीड़न का शिकार नहीं माना जा सकता। केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि सरकार दूसरे समुदायों की प्रार्थना पत्रों पर अलग-अलग मामले में गौर करेगी।

जहां तक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए सरकार द्वारा अनेक सहायता योजनाएं हैं। विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में देखा जाए तो मानव संसाधन विकास केंद्र की शैक्षिक योजनाओं के तहत शैक्षिक रुप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए एरिया इंटेनसिव प्रोग्राम है। इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य उन भागों में जहां शिक्षा में पिछड़े हुए अल्पसंख्यक भारी संख्या में रहते हैं, वहां शिक्षा के लिए सुविधा मुहैया कराना। मदरसा शिक्षा को माडर्न बनाने के लिए वित्तीय सहायता, फारसी और अरबी भाषा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को वित्तीय सहायता, अल्पसंख्यकों को प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करने के लिए कोचिंग क्लासों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वित्तीय सहायता, केंद्रीय वक्फ परिषद तकनीकि संस्थानों तथा वोकेशनल कोर्स करने वालों को वजीफा तथा वित्तीय सहायता देती है। इसके साथ ही मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता योजना है जो पूरी तरह स्वैच्छिक है। इसको वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त है। इस योजना को ग्रहण करना मदरसों की इच्छा पर निर्भर करता है। इसका उद्देश्य प्राचीन संस्थानों जैसे मकतबा, मदरसों में आधुनिक शिक्षा को बढावा देने के लिए वित्तीय सहायता देना है।

सरकार कोई भी हो भारत में सभी अल्पसंख्यकों के हितों एवं अधिकारों का पूरा ध्यान रखा जाता है। बेशक इसके साथ कार्यालयों की लचर व्यवस्था को सुधारे जाने की जरूरत है जिनके चलते अल्पसंख्यकों को अपनी नागरिकता के अधिकारों को सिद्ध करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसका उदाहरण असम आदि पूर्वोंत्तर क्षेत्रों में देखा जा चुका है, जहां नागरिकता सूची बनाने में भयंकर लापरवाही बरती गई थी। वस्तुतः नागरिकता बिल को ले कर उद्वेलित होने का मूल कारण भी यही है। ऐसी लापरवाहियों को दूर किया किया जाना पहले जरूरी है।
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