Tuesday, November 6, 2018

चर्चा प्लस … लोकतंत्र की रोशनी के लिए एक दीपक वोट का - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस …
लोकतंत्र की रोशनी के लिए एक दीपक वोट का
 - डॉ. शरद सिंह
        दीपावली और जगमगाते दीपकों का परस्पर सीधा संबंध हैं। दीपकों की रोशनी के बिना दीपावली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। ठीक इसी तरह जनमत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया मतदान के बिना लोकतंत्र की कल्पना संभव नहीं है। जिस प्रकार दीपक की रोशनी अंधेरे को दूर कर के ज्ञात-अज्ञात भय से मुक्ति दिलाती है, ठीक उसी प्रकार एक वोट राजनीतिक विषमताओं एवं नीतिगत समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है। अपने मताधिकार का प्रयोग करके प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छानुसार उम्मीदवार को चुन सकता है और देश की राजनीतिक स्वरूप का निर्णायक बन सकता है। यही तो है लोकतंत्र की शक्ति और मतदाता जागरूकता, दीपक की तरह जगमगाती हुई।   
Charcha Plus a column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar, Daily, Sagar M.P.
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पावली और राजनीति का का संबंध प्रत्यक्षतरूप में भले ही न हो किन्तु प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराम जब लंका विजय कर के अयोध्या लौटे तो अयोध्या की जनता ने विजयी श्रीराम के स्वागत के लिए समूची अयोध्या को दीपकों की रोशनी से जगमगा दिया था। उसी समय से दीपावली मनाए जाने की परम्परा आरम्भ हुई। दीपावली के पर्व को असत पर सत् के विजय यानी बुराई पर अच्छी की विजय पर खुशी मनाने का त्योहार माना जाता है। हम भारतवासियों ने राजनीति में लोकतंत्र को अपनाया और अपने मूल्यों और अधिकारों की रक्षा के लिए डटे रहने का संकल्प लिया। लोकतंत्र का मूल आधार है- चुनाव और मतदान। हम अपनी इच्छानुसार अपना राजनीतिक प्रतिनिधि चुन सकते हैं और यदि वह सही ढंग से काम न कर रहा हो तो अपने मताधिकार का प्रयोग कर के उसे बदल भी सकते हैं। इतिहास गवाह है कि अपने मताधिकार का प्रयोग कर के हमने इस तरह के बदलाव किए भी हैं। हमारे देश में राजनीति और लोकतंत्र का गठबंधन बहुत पुराना है। रामराज्य में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखा गया था। उस समय भले ही राजतंत्र था किन्तु राजा जनता के विचारों के अनुरूपनिर्णय लेता था। भले ही वह लोकतंत्र का एक आदर्श स्वरूप नहीं था फिर भी आमजनता के विचारों का मान रखा जाना अपने आप में लोकतंत्र का एक विशिष्ट रूप सामने रखता है। दुनिया में आज भी ऐसे अनेक देश हैं जहां आमजनता को खुल कर अपने विचार रखने का भी अधिकार नहीं है। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि भारत दुनिया में एकमात्र राष्ट्र हैं जिसने हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता पहले दिन से ही मतदान का अधिकार दिया है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़े लोकतंत्र है, उसने भी स्वतंत्रता के लगभग 150 से वर्षों बाद इस अधिकार को अपने नागरिकों को दिया था। ‘लोकतंत्र’ बड़ा लुभावना शब्द है। इसकी ललक उन लोगों से पूछा जाना चाहिए जो तानाशाही की चक्की में पिसते रहते हैं। दुनिया के जिस भी देश में तानाशाही है वहां आमजनता का सबसे पहला स्वप्न होता है लोकतंत्र। भला अपने अधिकार कौन नहीं चाहता है? हर व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपना जीवन अपने ढंग से जीना चाहता है। इसीलिए जब आमजनता को लोकतंत्र नामक अधिकार मिल जाए जो कि उसके सभी अधिकारों का मूल है तो आमजनता का दायित्व बढ़ जाता है। यह एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है। अधिकार मिलना और उस अधिकार की रक्षा तभी संभव है जबकि अधिकारों का सदुपयोग किया जाए। सन् 2018 का नवंबर माह में होने वाले चुनाव के जरिए लोकतंत्र अपने अधिकारियों अर्थात् मतदाताओं से यही अपेक्षा कर रहा है कि प्रत्येक मताधिकार प्राप्त व्यक्ति, वह चाहे किसी भी आयुवर्ग का हो, किसी भी धर्म, जाति, लिंग का हो, किसी भी शारीरिक अवस्था का हो, उसे मतदान अवश्य करना चाहिए।   

हम भारतीय सौभाग्यशाली हैं कि हमारे देश के इतिहास के कुछ काले कालखण्ड छोड़ दिए जाएं तो यहां लोकतंत्र की राजनीतिक परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का आरंभ पूर्व वैदिक काल से ही हो गया था। प्राचीनकाल में भारत में सुदृढ़ लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान थी। इसके साक्ष्य हमें प्राचीन साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों से प्राप्त होते हैं। विदेशी यात्रियों एवं विद्वानों के वर्णन में भी इस बात के प्रमाण हैं। वर्तमान संसद की तरह ही प्राचीन समय में परिषदों का निर्माण किया गया था, जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलती-जुलती थी। गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था। इसके सदस्यों की संख्या विशाल थी। उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7,707 सदस्य थे वहीं यौधेय की केंद्रीय परिषद के 5,000 सदस्य थे। वर्तमान संसदीय सत्र की तरह ही परिषदों के अधिवेशन नियमित रूप से होते थे। प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था में आजकल की तरह ही शासक एवं शासन के अन्य पदाधिकारियों के लिए निर्वाचन प्रणाली थी। यह एक विशेषता थी कि राजतंत्र और लोकतंत्र एक साथ विद्यमान था। योग्यता एवं गुणों के आधार पर इनके चुनाव की प्रक्रिया आज के दौर से थोड़ी भिन्न जरूर थी। सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था। किन्तु आज प्रत्येक भारतीय नागरिक को मताधिकार प्राप्त है। मतदान, वह भी बिना किसी दबाव के। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यह संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
देखा जाए तो ’लोकतंत्र’ राजनीति की महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो अपनी बहुआयामी अर्थों के कारण समाज और मनुष्य के जीवन के बहुत से सिद्धांतों को प्रभावित करता है। ’लोकतंत्र’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय ’डेमोक्रेसी’ है जिसकी उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द ’डेमोस’ से हुई है। डेमोस का अर्थ होता है- ’जन साधारण’ और इस शब्द में ’क्रेसी’ शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ ’शासन’ होता है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने लोकतंत्र की विशेषताओं की व्याख्या करते हुए उसे शासन से भी आगे जीवनपद्धति ठहराते हुए कहा था कि ’लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं।’
जब कोई राजनीतिक विचार जीवनपद्धति की तरह अपना लिया जाए तो उस जीवनपद्धति को दोषमुक्त रखना भी प्रत्येक नागरिक का कर्त्त्ाव्य हो जाता है। सही उम्मीदवार का चयन, उचित विचारधारा का चयन और एक स्वस्थ और जनहित वाली सरकार बनाना भी नागरिक कर्त्तव्य बन जाता है। आज लोकतंत्र को चोट पहुंचाने वाले अपराध बढ़ रहे हैं। लोकतंत्र में जनता के प्रति चाहे वह अपराधी ही क्यों न हो, नरमी बरती जाती है। मृत्युदंड दिए जाने का प्रावधान लगभग समाप्त कर दिया गया था किन्तु अफ़सोस की बात है कि एक बलात्कारमय हत्या के प्रकरण से मृत्युदंड के प्रावधान को पुनजाग्रत करना पड़ा था। सन् 1978 का ‘रंगा-बिल्ला केस’। भारतीय नौ सेना के कैप्टन मदन मोहन चोपड़ा की 17 वर्षीया बेटी गीता चोपड़ा जो कॉलेज की सेकेंड ईयर की छात्रा थी और बेटा संजय चोपड़ा जो दसवीं का छात्र था, 26 अगस्त 1978 को रंगा और बिल्ला नामक दो अपराधी युवकों की दरिंदगी के शिकार हो गए। चोरी की कार में सवार इन दोनों अपराधियों ने गीता के साथ बलात्कार किया और उसके नन्हें भाई के द्वारा अपनी बहन को बचाने का प्रयास करने पर भाई-बहन दोनों को मोत के घाट उतार दिया था। अपराधियों के पकड़े जाने पर दिल्ली के एडिशनल सेसन जज ने फांसी की सजा सुनाई। दुखद है कि इस सजा के विरुद्ध अपील की गई। किन्तु दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे 1979 में नामंजूर कर दिया। केस को एक झटका फिर लगा जब ख्यातिप्राप्त वकील आर.के. गर्ग ने रंगा और बिल्ला की वकालत की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये पेशेवर हत्यारे हैं और इनके प्रति दया नहीं दिखाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय खंडपीठ ने फांसी की सजा को बहाल रखा। कुलदीप सिंह उर्फ रंगा और जसवीर सिंह उर्फ बिल्ला को 1982 में फांसी पर लटका दिया गया था। स्मरण रहे कि सन् 1978 में भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 16 से कम आयु के बच्चों के लिए दो वीरता पुरस्कार संजय चोपड़ा पुरस्कार और गीता चोपड़ा पुरस्कार की घोषणा की जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के साथ हर साल दिया जाता है। अपराध और अपराधी लोकतंत्र को कठोर होने को विवश करते हैं अतः लोकतंत्र पर घिरते अपराध के अंधकार को दूर करने के लिए एक वोट रूपी दीपक का प्रयोग करते हुए हमें अपने मज़बूत लोकतांत्रिक इरादों को स्थापित करना ही चाहिए। ताकि अपराधों पर अंकुश लग सके और लोकतंत्र को कठोर बनने के लिए मजबूर न होना पड़े। यूं भी दीपावली और जगमगाते दीपकों का परस्पर सीधा संबंध हैं। दीपकों की रोशनी के बिना दीपावली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। ठीक इसी तरह जनमत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया मतदान के बिना लोकतंत्र की कल्पना संभव नहीं है। जिस प्रकार दीपक की रोशनी अंधेरे को दूर कर के ज्ञात-अज्ञात भय से मुक्ति दिलाती है, ठीक उसी प्रकार एक वोट राजनीतिक विषमताओं एवं नीतिगत समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है। अपने मताधिकार का प्रयोग करके प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छानुसार उम्मीदवार को चुन सकता है और देश की राजनीतिक स्वरूप का निर्णायक बन सकता है। यही तो है लोकतंत्र की शक्ति और मतदाता जागरूकता, दीपक की तरह जगमगाती हुई।
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( सागर दिनकर, 06.11.2018)
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