Dr (Miss) Sharad Singh |
आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व
- डॉ. शरद सिंह
जीवन में पर्व और उत्सव उत्साह का संचार करते हैं और भावी कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। ठीक इसी प्रकार लोकतांत्रिक जीवन में मतदान दिवस सबसे बड़ा पर्व होता है। यह प्रत्येक नागरिक को अहसास कराता है कि वह एक स्वतंत्र और मौलिक अधिकारों से परिपूर्ण राजनीतिक वातावरण में सांस ले रहा है, जहां वह अपने मनचाहे उम्मीदवार का चुनाव कर इच्छानुसार शासन को स्वरूप प्रदान कर सकता है। दरअसल, मतदान का अधिकार हर नागरिक को उसके सशक्त होने का स्मरण कराता है। तो आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व यानी मध्यप्रदेश का मतदान दिवस।
चर्चा प्लस .. आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व - डॉ. शरद सिंह , Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Daily Sagar Dinkar News Paper |
मध्यप्रदेश उन भाग्यशाली राज्यों में से एक है जिसकी देश के स्वतंत्र होने के लगभग ढाई वर्ष बाद ही मध्यप्रदेश के नवीन स्वरूप की प्रक्रिया आरम्भ हो गई थी। सन् 1950 में सर्वप्रथम मध्यप्रांत और बरार को छत्तीसगढ़ की रियासतों के साथ मिलकर मध्यभारत का गठन किया गया। तब इसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। इसके बाद 1 नवंबर 1956 को मध्य भारत, विंध्य प्रदेश तथा भोपाल राज्यों को (विदर्भ क्षेत्र को छोड़ कर) मिला कर मध्यप्रदेश का गठन हुआ। जानकारों के अनुसार पहले जबलपुर को राज्य की राजधानी के रूप में चिन्हित किया जा रहा था, परन्तु अंतिम क्षणों में इस निर्णय को बदलकर भोपाल को राज्य की नवीन राजधानी घोषित किया गया। एक बार फिर अर्थात् 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ, और छत्त्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत का 26 वां राज्य बन गया। इसके पूर्व मध्य प्रदेश 1 नवंबर, 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के साथ ही मध्यप्रदेश के 14 जिले इससे अलग छत्तीसगढ़ राज्य के अंग बन गए। वैसे मध्य प्रदेश की सीमाएं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। वर्तमान में मध्य प्रदेश 52 जिले हैं जिनमें टीकमगढ़ जिले को विभाजित कर 1 अक्टूबर 2018 को निवाड़ी को प्रदेश का 52 वां जिला घोषित किया गया।
मध्यप्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा का धनी है। विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की पर्वतश्रृंखलाओं तथा नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि नदियों से भरा-पूरा मध्यप्रदेश विशिष्ट लोकसंस्कृतियों की जन्मस्थली है। यहां मुख्यरूप से पांच सांस्कृतिक क्षेत्र हैं - बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड, निमाड़, मालवा और चंबल। मध्यप्रदेश वह भू-भाग है जिसे प्रागैतिहासिक काल में भी मनुष्य ने अपने जीवनयापन के स्थान के रूप में चुना था। आबचंद (सागर), भीमबैठका (भोपाल) और रायसेन जिले के भित्तिचित्र इसके सबूत हैं। प्रदेश के तीन स्थलों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है- सन् 1986 में खजुराहो के मंदिर, सन् 1989 में सांची के स्तूप और सन् 2003 में भीमबेटका की रॉक शेल्टर। प्रदेश के अजयगढ़, अमरकंटक, असीरगढ़, बांधवगढ़, बावनगजा, भोपाल, विदिशा, चंदेरी, चित्रकूट, धार, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, बुरहानपुर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मांडू, ओंकारेश्वर, ओरछा, पचमढ़ी, शिवपुरी, सोनागिरि, मण्डला, उज्जैन, तुमैन आदि में धर्म, स्थापत्य एवं प्रकृति के आकर्षक स्थल हैं। मध्य प्रदेश में अपनी शास्त्रीय और लोक संगीत के लिए विख्यात है। विख्यात हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों में मध्य प्रदेश के मैहर घराने, ग्वालियर घराने और सेनिया घराने शामिल हैं। संगीत सम्राट कहे जाने वाले संगीतकार तानसेन और बैजू बावरा वर्तमान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास जन्मे थे। प्रसिद्ध ध्रुपद गायक अमीनुद्दीन डागर इंदौर में, गुंदेचा ब्रदर्स और उदय भवालकर उज्जैन में जन्मे थे। पार्श्व गायक किशोर कुमार का खंडवा और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का इंदौर जन्मस्थान है। मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक संपदा आज भी फल-फूल रही है।
इतिहास और संस्कृति के सुसम्पन्न राज्य में गौरवशाली राजनीतिक परम्पराएं भी रही हैं। यहां चाहे विधानसभा चुनाव हो या संसदीय चुनाव माहौल में कभी इतनी कड़वाहट नहीं आई कि चुनाव के बाद उम्मींदवार एक-दूसरे के प्रति बदले की भावना ले कर घूमें। हिन्दी भाषी अन्य राज्यों की अपेक्षा मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल शांत और सौहार्द भरा ही रहा है। मध्यप्रदेश की शांतिप्रिय जनता मतदान के अपने कर्त्तव्य को भी एक उत्सव की तरह उत्साहपूर्वक मनाती आई है।
चुनाव आयोग के अनुसार 31 जुलाई 2018 को प्रारंभिक मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या चार करोड़ 94 लाख 99 हजार 897 थी, जो 27 सितंबर 2018 को पांच करोड़ तीन लाख 94 हजार 86 हो गई। अर्थात् सन् 2013 विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार आठ प्रतिशत (लगभग 38 लाख) मतदाता बढ़े हैं। चुनाव आयोग ने सूची में 36 लाख 13 हजार नए नाम जोड़े हैं तो 35 लाख 71 हजार अपात्रों के नाम हटाए भी गए। इसमें साढ़े सात लाख मतदाता वे थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। चुनाव आयोग के अनुसार, सबसे ज्यादा मतदाता इंदौर में है। यहां की पांच विधानसभा में तीन लाख 67 हजार 979 मतदाता हैं। जबकि सबसे कम मतदाता अनूपपुर की कोतमा विधानसभा क्षेत्र में दर्ज हैं। यहां कुल एक लाख 49 हजार 589 मतदाता हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, पुरुष मतदाताओं की संख्या में तीन लाख छह हजार 31 की वृद्धि हुई है। तो महिलाओं मतदाताओं में यह बढ़ोतरी पांच लाख 88 हजार 34 रही। जबकि थर्ड जेंडर मतदाता भी 124 बढ़े हैं।
मध्यप्रदेश का मतदाता भी यह भली-भांति जानते हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदान अत्यंत आवश्यक है। यह जरूरी है कि समस्त योग्य नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकृत हों तथा समझदारी व नैतिक आधार पर बिना किसी लालच व प्रलोभन के अपने मताधिकार का प्रयोग करें तभी लोकतंत्र सुरक्षित रहता है। इसीलिए लोकतांत्रिक देश में मत का प्रयोग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के साथ संवैधानिक अधिकार माना गया है। इसलिए मत का प्रयोग करना प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। मतदान में किसी प्रकार के पक्षपात का भय नहीं रहता है। चुनाव के दौरान मतदाता मतदान का महत्व समझते हुए अपने मत का प्रयोग करना लोकतंत्र को मजबूत बनाने में स्पष्ट जनभागीदारी होती है। यदि अतीत में झांक कर देखें तो मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां नागरिकों द्वारा बिना किसी भेदभाव के थर्ड जेंडर के उम्मीदवार को भी अपने प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न राजनीतिक पदों के चुना जा चुका है। अर्थात् यहां का मतदाता समझदार और स्व-विवेकी है।
इस बार चुनाव आयोग और शासन-प्रशासन की ओर से भी चुनाव को उत्सवी बनाने में कोई कसर नहीं रखी गई। निर्वाचक नामावली एवं मतदान केंद्रों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पूरा ध्यान दिया गया। ईवीएम तथा वीवीपैट, स्वीप अभियान तथा विभिन्न प्रशिक्षण, निर्वाचन व्यय निगरानी, आदर्श आचरण संहिता का क्रियान्वयन तथा पालन, कानून-व्यवस्था तथा सुरक्षा प्रबंधों की जिलेवार समीक्षा की जाती रही है। मतदाताओं को जागरूक करने के लिए चलाए जा रहे स्वीप अभियान पर केंद्रित कॉफी टेबल बुक का प्रकाशन और विमोचन भी किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि मतदान केन्द्रों में बिजली सप्लाई बाधित न हो। केन्द्रों में पंखों की भी व्यवस्था की जाए। बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता पर्ची वितरित करें और जिले के मतदाताओं को पीले चावल भेंटकर मतदान के लिये आमंत्रित करें। महिला मतदाताओं के लिए अलग से मतदान केन्द्र भी बनाए गए हैं। निःशक्तजन के लिए विशेष व्यवस्थाएं रखी गई हैं ताकि वे आराम से मतदान कर सकें।
मध्यप्रदेश में आज 28 नवम्बर 2018 को हो रहे मतदान रूपी लोकतांत्रिक पर्व में प्रत्येक मतदाता पूरे उत्साह से भागीदार बन रहा है और मतदान समय समाप्त होने के बाद से प्रतीक्षा रहेगी परिणामों की। दिसम्बर 2018 की 11 तारीख चुनाव परिणाम और मतदाताओं के निर्णय के रूप में इस लोकतांत्रिक पर्व में एक अध्याय और जोड़ेगी।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 28.11.2018)
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