Dr (Miss) Sharad Singh |
आइये ! मिल कर मनाएं सार्थक दीपावली !
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
भारतीय संस्कृति उत्सव प्रधान है। उत्सवों में भी दीपावली का विशेष महत्व है। इस पर्व को अनादिकाल से परम्परागत उत्साह के साथ हम सभी मनाते आये हैं। मगर बदलते सामाजिक परिवेश में इस पर्व को सार्थकता प्रदान करना आज जरुरी हो गया है। आज अनेक परिवार ऐसे हैं जिनके पास दीपावली का उत्सव मनाने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है। ऐसे परिवार में बच्चों के लिए पटाखे-फुलझड़ी तो क्या, मिठाई के चार टुकड़े खरीदना भी कठिन होता है। वे लोग जो विभिन्न कारणों से बेघर हो चुके हैं या अनाथलयों में हैं, अथवा वे लोग जो अपने परिवार से दूर वृद्धाश्रमों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इन सबका भी तो सब के साथ मिल कर खुशियां मनाने का मन करता है। ज़रा सोचिए, कितना अच्छा हो कि हम किसी ऐसे बच्चे के हाथ में फुलझड़ी का एक डिब्बा थमा दें जो दूर कोने में खड़ा हो कर सूनी, निराश आंखों से टुकुर-टुकुर देख रहा हो दूसरे बच्चों को फुलझड़ी जलाते हुए। कितना अच्छा हो कि हम अनाथालय पहुंच कर कम से कम एक दिन के लिए उन मासूम अनाथ बच्चों के परिवार की कमी पूरी कर दें जो परिवार के सुख से वंचित हैं। उनके पास जाएं और उनके साथ मनाएं दीपावली । कितना अच्छा हो कि हम किसी वृद्धाश्रम में जाएं और बन जाएं उनका परिवार। कितना अच्छा हो कि आने वाली कड़कड़ाती ठंड के लिए किसी ज़रूरतमंद को कंबल और गरम कपड़े दे दें। कितना अच्छा हो....जी हां, अच्छाई की सूची बहुत लंबी हो सकती है बस, दिल में तमन्ना हो कुछ अच्छा करने की, कुछ सार्थक करने की।
हम अकसर दीप पर्व दीपावली अपने घर-परिवार तक सीमित होकर मनाते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि अपने आसपास, अपने मोहल्ले, अपने शहर में यदि एक भी अभावग्रस्त परिवार है तो उसकी खुशियों का भी ध्यान रखा जाये... और यह भी तो हमारा कर्त्तव्य है। अपने लिये दीपक, मिठाई, पटाखे और वस्त्र खरीद कर लाते हैं तो एक अभावग्रस्त परिवार के लिये भी यही नया सामान अपनी सामर्थ्य के अनुरूप लाएं और उन्हें दे कर उनके चेहरों पर मुस्कान लाएं और स्वयं की खुशियों को भी दोगुना कर लें। कहते हैं न कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं। किसी व्यक्ति को मुट्ठीभर खुशी देने से बढ़ कर और कोई खुशी नहीं होती।
दरअसल, किसी ज़रूरतमंद को कुछ देने का आनंद, दीपक और बल्बों की रोशनी से जगमगाते प्रकाश पर्व के आनंद को एक अनूठे आत्मिक आनंद से भी प्रकाशित कर देता है। अपने घर के साथ कम से कम एक ऐसे घर को भी दीपक, मिठाई, नए कपड़ों का उपहार दे कर रोशन करें जिस घर में बच्चों को फुलझड़ी के लिए तरसना पड़ता हो। यही तो है सार्थक दीपावली। संस्कारों के सबसे जीवंत संवाहक होते हैं बच्चे। सार्थक दीपावली का संस्कार यदि बच्चों को दिया जाए तो वे इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे ले जाएंगे और तब किसी भी घर में दीपावली की रात को अंधेरा नहीं रहेगा। इसीलिए जब किसी आश्रम, किसी अनाथालय, किसी परिवार अथवा किसी व्यक्ति को हम दीपावली का उपहार दें तो उस समय अपने बच्चों को भी एस अवसर पर सहभागी बनाएं। ऐसे संवेदनशील पल में बच्चों से ये उत्साह भरी पंक्तियां कह सकते हैं-
So let's celebrate joy of giving
Make our life
Happy and cheering !
मानव समाज एक परिवार है, इस पुनीत भावना से दीपावली को सार्थकता प्रदान करें। इससे सामाजिक समरसता को नई चेतना मिलेगी। तो आइए ठान लें कि -
वंचित न खुशियों से कोई रहेगा।
अभावों को कोई भी अब न सहेगा।
हर इक घर में दीपक जलाएंगे हम,
सार्थक दीपावली यूं मनाएंगे हम।
---------------
No comments:
Post a Comment