Wednesday, November 5, 2025

चर्चा प्लस | सड़क दुर्घटनाएं, यातायात व्यवस्था और हम | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

(दैनिक, सागर दिनकर में 05.11.2025 को प्रकाशित)  
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चर्चा प्लस
सड़क दुर्घटनाएं, यातायात व्यवस्था और हम 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
      सड़कों पर गाड़ियां बढ़ी हैं और साथ ही सड़क दुर्घटनाएं भी। विशेष रूप से मंझोले शहरों में स्थिति भयावह है क्योंकि वहां गाड़ियों की भरमार तो है लेकिन चालकों में ट्रैफिकसेंस नहीं है और यातायात व्यवस्था चरमराई रहती है। नाबालिग बच्चों को भी बाईक और स्कूटी चलाते देखा जा सकता है। कमाल हैं वे माता-पिता भी जिन्हें अपने नाबालिग बच्चों को बाईक सौंपते हुए डर नहीं लगता है। यातायात का सबसे बुनियादी स्लोगन है ‘‘कभी नहीं से देर भली’’। लेकिन आज चालकों को देख कर लगता है कि वे सोचते हैं-‘‘देरी से कभी नहीं भली’’। क्या यह रवैया उचित है?  

अभी कल ही की बात है, मैं सिविल लाइन्स से मकरोनिया लौट रही थी। अपनी स्कूटी से। इतने में जोर का हाॅर्न सुनाई देने लगा। पीछे से कोई बाईकर लगातार हाॅर्न बजाता हुआ पीछे से तेजी से चला आ रहा था। पल भर बाद ही वह मेरे बाजू से गुज़रा। इतनी स्पीड से कि मेरे बहुत किनारे होने पर भी मुझे उसके गुज़रने से हवा का झोंका-सा लगा। मेरे आगे बाईक पर जा रहे दो युवाओं में से एक ने तो बौखला कर चिल्ला कर उसे गाली भी दे डाली। परन्तु वह तो हवा-हवाई हो गया था। उसकी स्पीड ऐसी थी मानो किसी रेसिंग ट्रेक पर बाईक दौड़ा रहा हो और उसे गोल्ड मेडल जीतना हो। जबकि उस रोड पर अच्छा-खासा ट्रैफिक रहता है। उसकी स्पीड इतनी अधिक थी कि यदि उसे इमर्जेंसी ब्रेक लगाना पड़ता तो सिर के बल पलटना तय था। बेशक उसने हैलमेट लगा रखा था लेकिन पूरे जोर से सिर के बल गिरने पर सिर फूटने से भले बचता लेकिन गरदन तो टूटती ही। उसकी उस स्पीड से दूसरे चालक घबरा गए थे, चैंक गए थे। मैं भी। घर आ कर मैंने सोचा कि उसे इतनी जल्दी कहां थी जाने की जो वह अपनी हाई स्पीड की परवाह नहीं कर रहा था। सच पूछा जाए तो उसे कहीं जल्दी नहीं पहुंचना रहा होगा। बस, आजकल युवा बाईकर्स में जो शोआॅफ का चलन है उसी को वह फालो कर रहा था। अपनी जान जोखिम डाल कर। न सिर्फ खुद की बल्कि उनकी भी जो उसकी बाईक की चपेट में आ सकते थे। कहां था उस समय गति नियंत्रक? नहीं, सागर जैसे छोटे शहर में गति मापक शहर के अंदर की सड़कों पर नहीं हैं। केवल निर्देश हैं जिन्हें देखने की आदत चालकों को नहीं है। 
यूं भी सुबह-सवेरे जब अखबार उठा कर शीर्षक पढ़ो तो कई बार राजनीति से भी अधिक सड़क दुर्घटनाओं की ख़बरें रहती हैं। कहीं कोई अनियंत्रित वाहन किसी पर चढ़ गया तो कहीं कोई वाहन चालक ओवरटेक करते हुए किसी भारी वाहन के तले आ कर कुचल गया। इतना ही नहीं, सड़क पर खेलते बच्चे और आवारा पशु भी दुर्घटनाओं को दावत देते रहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर घंटे औसतन 55 सड़क हादसे हो रहे हैं, जिसमें 20 लोगों की मौत होती है। इस आधार पर भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु दर लगभग 17 प्रति 100,000 व्यक्तियों पर थी। एनसीआरबी के 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारतीय रेलवे में 17,993 दुर्घटनाएँ हुईं, जो वर्ष 2020 की तुलना में 38 प्रतिशत की वृद्धि है, जिसमें सबसे अधिक दुर्घटनाएँ महाराष्ट्र में हुईं। वर्ष 2025 में अब तक यह संख्या और अधिक बढ़ चुकी है। वर्ष 2025 में अब तक हुईं 13,000 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं, लगभग 7,700 मौतें दर्ज हो चुकी हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में इस साल 1 जनवरी से 20 मई के बीच सड़क हादसों की संख्या 13,000 से ज्यादा रही, जिनमें लगभग 7,700 लोगों की जान चली गई। ये आंकड़े बेहद चैंकाने वाले हैं और राज्य में सड़क सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ाते हैं। अगर पिछले वर्षों से तुलना करें तो 2024 में कुल 46,052 सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें 24,118 मौतें और 34,665 लोग घायल हुए थे। वहीं 2023 में ये संख्या थोड़ी कम थी। जब 44,534 हादसों में 23,652 लोगों की मौत हुई थी और 31,098 लोग घायल हुए थे।
मध्य प्रदेश 2023 में सड़क दुर्घटनाओं में देश के सबसे खतरनाक राज्यों में से एक रहा, जहां छब्त्ठ रिपोर्ट के अनुसार 14,098 मौतें दर्ज हुईं, जो देश की कुल मौतों का 9।8ः है। 54,763 दुर्घटनाओं में 5।4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पुलिस ट्रेनिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीटीआरआई) के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2024 में 14 हजार 791 लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटनाओं में हुई है, जबकि 2023 से 13 हजार 798 लोगों की जान चली गई थी।ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों पर हुई मौतों की संख्या शहरी क्षेत्र की तुलना में दोगुना से भी अधिक है। ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों पर दुर्घटनाओं से लगभग नौ हजार लोगों की मौत हुई है। पिछले चार वर्ष से यह संख्या आठ हजार से नौ हजार के बीच है। इसका कारण यह है कि भीड़ नहीं होने के कारण लोग तेज गति से वाहन चलाते हैं। दूसरा यह की सड़कों पर संरक्षा (सेफ्टी) मापदंडों का पालन भी ठीक से नहीं हो पाता।
मध्य प्रदेश में सड़क दुर्घटना की वजह से हर साल करीब 14 हजार लोगों की जान चली जाती है। इसमें 53 प्रतिशत मौत दो पहिया वाहन चालकों की होती है। जिसका बड़ा कारण टू व्हीलर चालकों का हेलमेट नहीं पहनना है। एमपी में होने वाले रोड एक्सीडेंट को लेकर आईआईटी मद्रास ने रिसर्च किया है। जिसमें सामने आया कि दो पहिया वाहन चालकों की 75 प्रतिशत मृत्यु का कारण हेलमेट नहीं पहनना है। मध्य प्रदेश में होने वाले रोड एक्सीडेंट को लेकर आईआईटी मद्रास ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बताया गया है कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण प्रदेश को हर साल 14,308 करोड़ से लेकर 38,055 करोड़ रुपए तक का नुकसान होने का अनुमान है। वहीं साल 2023 की बात करें तो रोड एक्सीडेंट के मामले में मध्य प्रदेश देश का चैथा राज्य था। जहां सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती है। मध्य प्रदेश में साल 2023 में रोड एक्सीडेंट से 13,798 लोगों की मौत हुई है।

प्रदेश में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौत में 15 प्रतिशत भागीदारी महिलाओं की है। साल 2023 में रोड एक्सीडेंट की वजह से 2165 महिलाओं की मौत हुई। जबकि 84।4 प्रतिशत यानि 11,633 पुरुष सड़क दुर्घटना का शिकार हुए। वहीं इस दौरान नेशनल हाइवे पर एक्सीडेंट से 32 प्रतिशत यानि 4,476 लोगों की मृत्यु हुई। इसी तरह स्टेट हाइवे में 22 प्रतिशत यानि 2,960 लोगों की मौत हुई। जबकि 6,362 लोगों की मौत अन्य सड़कों पर हुई।
सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले 75 प्रतिशत लोग 18 से 45 वर्ष की आयु के होते हैं। साल 2023 में सड़क दुर्घटना से 24 प्रतिशत मौत 18 से 25 वर्ष की आयु के लोगों की हुई। जबकि रोड एक्सीडेंट में जान गंवाने वाने 20 प्रतिशत लोग 25 से 35 वर्ष के रहे। वहीं 35 से 45 वर्ष वाले 22 प्रतिशत लोगों की जान एक्सीडेंट से हुई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले 87 प्रतिशत लोग वर्किंग एज ग्रुप के हैं।
दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या का एक कारण यह भी है कि मध्य प्रदेश में ट्रैफिक पुलिस का अमला मात्र साढ़े तीन हजार है, जबकि जिस तरह से वाहनों की संख्या बढ़ रही है उससे इसका दोगुना पुलिस बल चाहिए।
मध्य प्रदेश में ब्लैक स्पाट यानी दुर्घटना संभावित क्षेत्रों की संख्या घटने की जगह बढ़ रही है। इनकी संख्या 400 से अधिक है। स्थायी तौर पर इस समस्या को हल करने के लिए जिम्मेदार एजेंसिया रुचि नहीं ले रही हैं।
पुलिस की चेकिंग के दौरान चालान की कार्रवाई में सबसे अधिक ध्यान हेलमेट और सीट बेल्ट नहीं लगाने वालों पर रहता है। दोनों को मिला लें तो प्रतिवर्ष आंकड़ा औसत 10 लाख के ऊपर रहता है, जबकि तेज गति से वाहन चलाने वालों में 50 हजार के विरुद्ध भी कार्रवाई नहीं होती।
लेकिन अपनी लापरवाही का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ कर मुक्त नहीं हुआ जा सकता है। हर नागरिक को साचना होगा कि वह अपनी जान की कितनी परवाह करता है? या फिर उसके सड़क दुर्घटना में मारे जाने पर उसके परिजन पर क्या बीतेगी? वही बाईकर युवक जिसका मैंने आरंभ में उल्लेख किया, संभवतः मित्रों से मिलने की जल्दबाजी में रेस कर रहा था। हर गाड़ी को ओवरटेक करता हुआ गाड़ी भगा रहा था। ईश्वर न करे, किन्तु उसे रास्ते में कुछ हो जाए तो उसके मित्र हमेशा उसकी प्रतीक्षा करते रह जाएंगे। उसकी बहन राखी बांधने को भाई की कलाई के लिए तरसेगी और माता-पिता अपने घर के चिराग के बुझने पर कैसा महसूस करेंगे यह बयान कर पाना लगभग असंभव है। इस प्रकार की कल्पना करने पर बात कठोर है किन्तु इस निर्मम सत्य को ठुकराया भी नहीं जा सकता है। क्या अक्ष्छा नहीं होगा कि जब कोई अपना वाहन ले कर सड़क पर निकले तो स्वयं की सुरक्षा और अपने परिजन की भावनाओं ध्यान में रखे। साथ चलते दूसरे राहगीरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखे। सड़क आखिर सड़क होती है, कोई रेसिंग का मैदान नहीं जहां असीमित रफ्तार से गाड़ी दौड़ाई जा सकती हो। 
यह भी शर्म की बात है कि यातायात सुरक्षा सप्ताह मना कर याद दिलाने का प्रयास करना पड़ता है कि सड़क पर सुरक्षा के क्या नियम-कायदे है। सड़क दुर्घटनाओं के लिए जितनी जिम्मेदार यातायात व्यवस्था है उतनी ही जिम्मेदार वे लोग हैं जो अनियंत्रित गति से वाहन दौड़ाते हैं या फिर शराब पी कर वाहन चलाते हैं। यदि उन्हें कोई पकड़ नहीं रहा है, उनका कोई चालान नहीं काट रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि नियमों का उल्लंघन कर के अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालें। वह स्लोगन है न कि ‘‘सावधानी में ही सुरक्षा है।’’ सो कोई भी गाड़ी चलाते समय दो बातें दिमाग में हमेशा रखनी चाहिए कि कभी नहीं से देर भली और सावधानी में सुरक्षा है। वरना सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े इसी तरह बढ़ते रहेंगे और सैकड़ों परिवारों का जीवन से सुख उजड़ता रहेगा।                     
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