Thursday, November 20, 2025

बतकाव बिन्ना की | इत्तो ने भगाओ के ऊपरई पौंच जाओ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की          
इत्तो ने भगाओ के ऊपरई पौंच जाओ                             
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

“काय भौजी का हो गओ? आपको मूड ठीक सो नईं दिखा रओ।” मैंने भौजी से पूछी।
“मूड कां से ठीक हुइए मरत-मरत बचे।’’ भौजी ने कई। जेई के संगे लगो के उनके सरीर में मनो फुरूरी सी दौर गई।
“काए का हो गओ? कऊं रपट परीं का?” मैंने भौजी से पूंछी।
“रपटें हमाएं दुस्मन!’’ भौजी भुनभुनात भई बोलीं।
‘‘हो का गओ?’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘अरे का बताएं, एक ठठरी के बंधे से पाला पर गओ। नास मिटे ऊकी।’’ भौजी बोलीं। बे बड़े गुस्से में दिखानीं।
‘‘को आ मिल गओ?’’ मैंने पूछा।
‘‘अरे का बताएं हम बजारे से लौट रए हते सो पांछू से एक मोड़ा सर्र दइयां निकरो औ बाजू से कढ़ गओ। इत्ते नजीक से कढ़ां के हमाए जे दांए बाजू से टकरात भओ गओ।’’ भौजी अपनो बाजू दिखात भईं बोलीं।
‘‘अरे का ज्यादा लग गई?’’ मैंने पूछी। ऊपरे से तो कछू नई दिखा रओ हतो, मनो मुंदी चोट रई हुइए।
‘‘ज्यादा तो नई लगी मनो झटका खा के जी सो घबड़ा गओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई, झटका सो लगत आए।’’ मैंने कई।
‘‘औ का हमने सोई चिल्ला के ऊको बोलों के इत्तो ने भगो के ऊपरई पौंच जाओ। बाकी बो कां सुनबे वालो हतो? बा तो ये जा, बो जा। एक पल में इते तो दूसरई पल में उते। को जाने काए की जल्दी रैत आए इन ओरन खों। अरे, तनक देरी में पौंच जाहो सो कोन ऊं पहाड़ ने टूट परहे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई में भौजी! जेई बात तो मोए समझ नईं परत के ऐसई कोन सी जल्दी रैत आए? मोड़ा हरों को तो एक बाईक भर मिल जाए, बस, फेर बे तो आसमान में उड़न लगत आएं। अभई कछू दिनां पैले मोरे संगे सोई ऐसई भओ रओ। मैं सिविल लेन से लौट रई हती। अपनी स्कूटी पे हती। इत्ते में मोरे पांछू से एक मोड़ा अपनी बाईक को हार्न टिटियांत सो कढ़ गओ। ऊकी स्पीड कओ 120 की रई होय। काय से के ऊकी बाईक सोई स्पोर्ट बाईक हती। बा मोरे बाजू से कढ़ो औ रामधईं ऐसो लगो के कोनऊं झोंका सो चलो होए। न जाने कोन खों दिखाओ चा ऊत आएं अपनी हिरोगिरी? ऐसई में तो बे खुद क ऊं जा के भिड़त आएं औ दूसरों की जान के लाने सोई मुसीबत बनत आएं।’’ मैंने कई।
‘‘औ का! उने कोई रोकट-टोंकत बी नइयां। जबके अबे चार दिनां पैले तुमाए भैयाजी सौदा लाबे के लाने गए हते औ उन्ने जो अपनी बाईक ठाढ़ी करी सो जेई गलती भई के ऊको पछिलो चका रोड पे रओ। बस, उत्तई में बे पुलिस वारे आए औ उन्ने गाड़ी में तारो डार दओ।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘फेर?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर का? तुमाए भैयाजी ने फाईन भरो औ अपनी गाड़ी से तारो खुलवाओ। मनो जे जो गाड़ी भगाउत फिरत आएं उनके लाने कछू नियम-कायदो नइयां का?’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई में भौजी। अबे एक भौतई बड़ी दुर्घटना भई। का रओ के चार-पांच मोड़ा ग्वालियर से जनमदिन की पार्टी मनाबे खों झांसी पौंचे। देर तक उन्ने पार्टी करी औ फेर बे झांसी से ग्वालियर के लाने लौट परे। अब आजकाल के मोड़ा घर से इत्ती दूर जा के पार्टी करहें सो कछू पी-पुवा लओ हुइए। बाकी अखबार में सार्ह वारे में कछू ने रओ। मनो ापई सोचों के उनकी गार पूरी फुल स्पीड पे रेती की टिराली के नैंचे घुस गई। ऊके झटसे टिराली पलट गई औ पूरी रेत उनईं ओरन के ऊपरे गिरी। बे ओरें उतई दब के मर गए। अब कैबे खों तो उनके घरवारे कैत रए के जा सब ऊ टिराली वारे को दोष रओ, के बा अवैध रेत ढोउत फिर रओ हतो। अब आपई सोचो के जो बा अवैध रेत ढो गी रओ हतो तो बे ओरें से पांछू से घुसे, बा बी 120 की रफ्तार से। अब बोलो के कोन खों दोस दओ जाए?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘दोस तो घुसबेई वारो को कहाओ। बाकी नुकसान तो उनके घरवारों को भओ। जो कोनऊं खों ज्वान-जहान मोड़ा चलो जाए तो ईसे बढ़ के उनके लाने औ का दुख हो सकत आए? जे ऐसे मोड़ा हरें हैं बे अपने बाप-मताई के बारे में बी नईं सोचत आएं। उनके बाप-मताई की उनसे कित्ती उमींदें रैत आएं। कां तो बे सोचत आएं के मोउ़ा बड़ो हो हमाओ सहारा बनहे औ जो मोड़ा बड़ो भओ औ हात में कोनऊं बी गाड़ी आई, सो फेर ऊको रेस करबे से कोऊं ने रोक सकत। फेर चाए सूनी रोड होए, चाए भरी-भराई। ने उने अपनी फिकर, ने दूसरों की फिकर।’’ भौजी बोलीं।
‘‘आप बड़े होबे वारों की कै रईं? आजकाल सो लोहरे-लोहरे लड़का-बच्चा गाड़ियां दौड़ात रैत आएं। अभई दो दिनां पैले की बात आए के मैं राधा तिगड्डा के इते हती। उते बड़ो खतरनाक टिरेफिक रैत आए। मैंने ब्रेक लगाई, काए से सामने से एक चार पहिया चली आ रई हती। इत्ते में एक स्कूटी मोरी स्कूटी औ बा चार पहिया के बी से कढ़ गई। ऊपे चार मोड़िया सवार हतीं। चारों लोहरी हतीं। अबे तो उनको लाईसेंस बी ने बनो हुइए। बा चार पहिया वारो जो तुरतईं ब्रेक ने मारतो तो ऊको टकराबो तै हतो। गलती ऊकी ने होबे पर बी ऊकई कैलाती औ कओ जातो के ऊने मोड़ियन पे गाड़ी चढ़ा दई। जा कोनऊं न देखतो के बे मोड़ियां कम उम्मर की हतीं औ एकऊं ने हेलमेट लौं ने पैहनो तो। को जाने उनके बाप-मताई उने कैसे गाड़ी चलाबे देत आएं?’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘जेई तो बात आए बिन्ना के ने तो बाप-मताई को फिकर आए औ ने खुद मोड़ा-मोड़ियन खों औ ने पुलिस वारन खों। अब तो रोडन पे औ चैराहा पे कैमरे सोई लगे। सबई गाड़ियन की खच्च दीनां फोटू खिंच जात आए। बोई फोटू से गाड़ी के नंबर जांच के उनके बाप-मताई की खबर लई जानी चाइए के बे अपने लोहरे बच्चा हरों खों गाड़ी कैसे चलाउन देत आएं?’’ भौजी बोलीं।
‘‘सांची कै रई आप। ऐसोई होन चाइए। जब तक लौं कानून ने कसो जैहे तब तक लौं जे मोड़ा-मोड़ी ऐसई गाडी भगात रैहें।’’ मैंने कई।
‘‘औ का हो रओ? तुम ओरे का बतकाव कर रईं?’’ भैयाजी घर में घुसत भए बोले। बे कऊं कोनऊं से मिलबे के लाने गए रए।
‘‘कछू नईं हम ओरें जे गाड़ियां दौड़ाबे वारे मोड़ा-मोड़ियन की कै रए हते।’’ मैंने कई।
‘‘सुनो! आज एक मोड़ा ने हमाए बाजू में धक्का मार दओ। बा हमाए बाजू से ऐसो फर्राटे से कढ़ो के हमाए बाजू में धक्का लग गओ।’’ भौजीे ने अपनो बाजू दिखात भई भैयाजी खों बताई।
‘‘को आ हतो? तुमने उतई ऊको थपड़िया नईं दओ? सकल सुदर जाती।’’ भैयाजी बोले।
‘‘थपड़ियाबे की तो तब हो पाती जब बो ठैरतो। बा तो पलक झपकत में फुर्र हो गओ, ने तो हम ऊकी खपड़िया तोड़ देते।’’ भौजी भुनभुनात भई बोलीं।
‘‘जेई तो सल्ल आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चलो छोड़ो, आप बताओ आपके भनेज मिले के नईं?’’ भौजी भैयाजी से पूछन लगीं।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के रोडन पे चलबो सेफ कैसे हो सकत आए?
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