लाभ और हानि के बीच खड़ा भारतीय मीडिया
- डॉ शरद सिंह
मीडिया आज एक जाना पहचाना शब्द है। यह शब्द ‘मीडियम’ का बहुवचन है। अतः इसका शाब्दिक अर्थ कहा जा सकता है ‘अनेक माध्यम’। यह सच भी है क्योंकि मीडिया अनेक माध्यमों से सूचनाएं एकत्र करता है तथा उसे आमजनता तक पहुंचाता है। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में मीडिया शब्द सूचना तंत्र अथवा सूचना तंत्रा का सूचक बन कर तेजी से उभरा और स्थपित हो गया। देखा जाए तो मीडिया मनुष्य की सूचना के प्रति रुझान का विस्तार है। मनुष्य अपनी अधिकाधिक इन्द्रियों से सूचनाएं इकट्ठी करने के लिए उत्सुक रहता है। मनुष्य की इसी प्रवृति ने दृश्य, श्रव्य तथा दृश्य-श्रव्य माध्यम को विस्तार दिया। मीडिया को लोकतंत्रा में ‘चतुर्थ स्तम्भ’ कहा जाता है। बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में भारतीय मीडिया पर वैश्विक बाजारवाद का गहरा प्रभाव पड़ा। जिससे भारतीय मीडिया में पश्चिमी मीडिया की भांति नए-नए सरोकारों का उदय हुआ। भारतीय मीडिया में ऐसी नई प्रवृतियों ने जन्म लिया जिन्होंने इससे पहले चले आ रहे तमाम पुराने मानकों को एक झटके में ध्वस्त कर दिया। भारत में भी प्रिंट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और साईबर मीडिया ने अपनी अच्छी-खासी जगह बना ली है। इसीलिए विश्व परिदृश्य में भारतीय मीडिया को आज ‘एशियाई मीडिया हब’ कहा जाने लगा है।
मीडिया ने आज अपने जाल एवं संजाल के द्वारा अधिक से अधिक लोगों को अपने-आप से जोड़ लिया है। भारत में लोगों का आर्थिक स्तर निम्न है, साक्षरता का प्रतिशत कम है तथा जागरूकता के प्रति रुझान में भी भारी कमी है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी मीडिया अर्थात् विभिन्न संचार माध्यम गांव-देहातों, गली-मोहल्लों, अल्प साक्षर एवं निरक्षरों तक अपनी घुसपैठ बनाते जा रहे हैं। जहां अख़बार नहीं है वहां टेलीविजन है, जहां टेलीविजन नहीं वहां अखबार और रेडियो है, जहां अख़बार और टेलीविजन नहीं है वहां रेडियो है। अर्थात् मीडिया का सतत विस्तार हो रहा है। मीडिया के इस आयाम को सकारात्मक कहा जा सकता है किन्तु उसके तेजी से बदलते स्वरूप और बाज़ारवादी होती प्रवृतियों को समय-समय पर जांचना भी जरूरी है क्योंकि आम भारतीय मानस अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि वह उद्वेलित करने वाले समाचारों अथवा सूचनाओं से संयम के तत्वों का विश्लेषण कर सके। वस्तुतः इस आलेख का मूल उद्देश्य भारतीय मीडिया की वर्तमान प्रवृतियों पर चिन्तन करना है तथा प्रमुख प्रवृतियों को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में आंका जा सकता है -
गलाकाट स्पर्द्धा - आज विभिन्न संचार माध्यमों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता सिर चढ़ कर बोल रही है। इसका सीधा-सा कारण है लाभ की प्रवृति। प्रत्येक माध्यम आज अधिक से अधिक आर्थिक लाभ कमाना चाहता है और इसके लिए वह हर संभव उपायों से ऐसी-ऐसी सूचनाएं एकत्रा करता है तथा उन सूचनाओं को ऐसे अनूठे और अलग ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है कि वह अधिक से अधिक पाठक, श्रोता अथवा दर्शक जुटा सके। इस संदर्भ में एकदम सरल गणित है कि अधिक दर्शक = अधिक विज्ञापन = अधिक मुनाफ़ा ।
मुनाफ़ा के गणित में उलझ कर सभी संचार माध्यम एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगाए रहते हैं। इस होड़ के कारण कई बार सूचनाओं की मौलिकता अथवा सच्चाई आकर्षण पैदा करने वाले आवरण के नीचे दब कर रह जाती है। कई बार स्थिति अमानवीयता के स्तर तक जा पहुंचती है। एक-दूसरे से आगे बढ़ने तथा त्वरित गति बनाए रखने के चक्कर में मानवीय भावना एवं संवेदना को क्षति पहुंचती है। किसी दुर्घटना स्थल पर जब एक ख़बरनवीस मात्रा ख़बरनवीस बन कर रह जाए और उसे घायलों अथवा मरणासन्न व्यक्तियों की पीड़ा से कोई सरोकार न रहे तथा वह उनकी सहायता भी न करे तो इसे गलाकाट स्पर्द्धा कर कुपरिणाम ही कहना होगा।
ब्रेकिंग न्यूज़ - विशेषरूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ का चलन बढ़ा है। यह भी ताज़ा सूचना को शीघ्रातिशीघ्र आम जनता तक पहुंचा कर वाहवाही लूटने की हड़बड़ी रहती है। ब्रेकिंग न्यूज़ के बाद उस समाचार विशेष से जुड़ी तमाम घटनाओं एवं सूचनाओं की जानकारी देते रहने की निरन्तरता कई बार स्थल-कार्यों में बाधा भी डालती है। उससे भी अधिक ध्यान देने योग्य पक्ष यह है कि ब्रेकिंग न्यूज़ की प्रकृति सनसनी फैलाने वाली होती है। उसी सूचना को ब्रेकिंग न्यूज़ का विषय बनाया जाता है जिसके बारे में यह विश्वास हो कि उस सूचना को पा कर आम जनता में सनसनी दौेड़ जाएगी। इसके साथ ही एक और विचारधारा काम करती है कि अपने प्रतिस्पर्द्धी माध्यम से पहले वह सूचना जनता के सामने लाना है।
एक्सक्लूसिव - इसे भी ब्रेकिंग न्यूज़ की भांति ध्यानाकषणर््ा की एक शैली कहा जा सकता है। सूचना की तह तक जाने का प्रयास तथा सूचना से संबंधित तमाम जानकारियों पर चर्चा का आयोजन एक्सक्लूसिव का अहम पक्ष होता है। इसके अंतर्गत भी उन्हीं समाचारों अथवा सूचनाओं को चुना जाता है जिनके प्रति विश्वास हो कि वह सुनने, पढ़ने या देखने वाले के मन-मस्तिष्क में सनसनी दौड़ा सकेगी। इस चक्कर में कई बार ऐसी सूचनाएं भी एक्सक्लूसिव ख़बर बन कर छाई रहती है जिससे आम जनता को कोई लेना-देना नहीं होता है।
प्राईम टाईम में अपराध समाचार -बीसवीं सदी के अंतिम दशकों से समाचारपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में अपराध समाचारों का प्रतिशत बढ़ा है। समाचारपत्रों में चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार, मार-पीट, छीना-झपटी आदि के समाचार अन्य समाचारों की तुलना में अधिक स्थान पाने लगे हैं। यह सच है कि ऐसे समाचार समाज और कानून की वास्तविक दशा से परिचित कराते रहते हैं किन्तु इस प्रकार के समाचारों की अधिकता होने से अन्य प्रकार के समाचारों एवं सूचनाओं में कटौती हो जाती है तथा इस प्रकार के समाचार आम जनता के मन में आतंक एवं भय उत्पन्न करते हैं। वारदात, अपराधी कौन?, जुर्म जैसे कार्यक्रम सनसनी फैलाने वाली शैली में प्रस्तुत किए जाते हैं। अधिकंाश समाचार चैनलों के ‘प्राइम टाईम’ इसी प्रकार के अपराध समाचार वाले कार्यक्रमों से भरे रहते हैं। विशेषरूप से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में आपराधिक घटनाओं का जिस प्रकार नाटकीयकरण किया जाता है वह अपराध की गहनता व्यक्त करने से कहीं अधिक किस प्रकार अपराध कारित किया जाए इसकी शिक्षा देता हुआ प्रतीत होता है। अपराध समाचारों को इस तरह प्रस्तुत किया जाता चिन्ताजनक है क्यों कि जहां अल्प साक्षर, निरक्षर अथवा अवयस्क अपराध वाली फ़िल्मों (सिनेमा) से अपराध करने की प्रेरणा ले कर अपराध कारित कर डालता है वहंा प्रति रात अपराध और हिंसा के समाचारों की नाटकीय प्रस्तुति अपना दुष्प्रभाव कैसे नहीं छोड़ेगी? फिर रात्रि 8-9 से 12 बजे का समय इसलिए प्राईम टाईम की श्रेणी में रखा गया क्योंकि इस समयावधि में अधिकाधिक श्रोता एवं दर्शक संचार माध्यम से जुड़ते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण समय में सकारात्मक विचारों के बदले नकारात्मक विचारों को परोसे जाने का औचित्य विज्ञापनों के जरिए आर्थिक लाभ का मामला भले ही हो किन्तु सूचना-संस्कार के लाभ के प्रति संदेह पैदा करता है।
स्टिंग ऑपरेशन - भारतीय मीडिया में स्टिंग ऑपरेशन का चलन इलेक्ट्रॉनिक साधनों की उपलब्धता के साथ ही तेजी से उभरा। ‘स्टिंग’ का शब्दिक अर्थ है - डंक मारना, डंसना, जलाना या दुख पहुचाना। लेकिन मीडिया में इस शब्द का प्रयोग योजना बना कर किसी व्यक्ति को अपराध करते हुए रंगे हाथों पकड़ने के अर्थ में किया जाता है। मिनी, माइक्रो कैमरों एवं माइक्रोफ़ोनों के प्रयोग ने इस प्रकार के अभियानों को और अधिक बल दिया। स्टिंग ऑपरेशन का व्यावहारिक रूप होता है अपराध या अनैतिकता का रहस्योद्घाटन। मीडिया में स्टिंग ऑपरेशन के चलन ने जहां अपराधों को उजागर किया वहीं भारतीय राजनीतिक पटल पर हलचल मचा दी। जिसके कारण इस प्रकार के अभियानों की गति धीमी करने के लिए संवैधानिक सहारा लिया गया।
पेजथ्री पत्राकारिता -भारतीय पत्राकारिता में पेजथ्री पत्राकारिता का चलन बढ़ने से उन लोगों को सीधा-सीधा लाभ पहुंचा है जो मीडिया में हर संभव तरीके से बने रहना चाहते हैं। इसने पत्राकारिता में ग्लैमर से जुड़े हुए वास्तविक, अवास्तविक तथ्यों को तेजी से समाहित किया है। इस प्रकार की पत्राकारिता गॅासिप, प्रोपेगंेडा या मेक्ड प्रोफाईल पर निर्भर रहती है। इसमें तड़क-भड़क अधिक होती है और वास्तविक सूचनाएं कम। सिनेमा, व्यापार जगत्, राजनीति से जुड़े बाज़ार में स्वयं को स्थापित करने के लिए भी पेजथ्री पत्राकारिता का लाभ उठाया जाता है। बात फिर वहीं जा ठहरती है कि भारत की जनता के लिए पेजथ्री का कितना महत्व है तथा पेजथ्री को विश्लेषित करने का उसके भीतर कितना विवेक है क्योंकि पेजथ्री के तहत प्रत्येक सूचना ग्लैमराईज़ कर के सामने रखी जाती है और उसमें से ‘सार-सार गहना’ कई बार संभव ही नहीं होता है।
वर्चुअल स्पेस - साईबर क्रांति और इंटरनेट ने भारत में भी वर्चुअल स्पेस दिया है। इस वर्चुअल स्पेस ने सबसे अधिक प्रभावित किया है युवा वर्ग को। विशेष रूप से युवाओं का वह वर्ग जो आंग्ल भाषा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहा है तथा ग्लोबलाईजेशन के लाभों को पाने के लिए सबसे अधिक उत्सुक है।
लाभ और हानि का गणित - भारतीय पत्राकारिता आज जिस दौर से गुज़र रही है उसमें सूचनाओं से लाभ और हानि का प्रतिशत उतार-चढ़ाव भरा है। इसे अंग्रेजी के एक शब्द ‘फ्लक्चुएशन’ से भी व्यक्त किया जा सकता है। मीडिया की वैश्विक प्रवृतियां कभी सूचनाओं का भरपूर लाभ देती हैं तो कभी भय और आतंक का संचार कर के रह जाती हैं। स्पष्ट है कि जब तक देश के अधिकांश नागरिकों में वैश्विक ढंग से परोसी जाने वाली सूचनाओं को समझने, विश्लेषित करने और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की समझ विकसित नहीं होगी तब तक सूचना के विस्तार का या मीडिया रिवोल्यूशन कदम-कदम पर जोखिम पैदा करता रहेगा।
Bharatiya patrakarita jagat ke bare men behatar aur bebak lekh, shubhakamanayen.
ReplyDeleteS.N.Shukla
पेजथ्री पत्राकारिता का चलन बढ़ने से उन लोगों को सीधा-सीधा लाभ पहुंचा है जो मीडिया में हर संभव तरीके से बने रहना चाहते हैं। मीडिया रिवोल्यूशन जोखिम पैदा करता रहेगा।
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ReplyDeleteapaki pichale panne ki katha samaj ko nai disha de raha hai.
ReplyDeleteSir me bhi kavita likhe hai kaise bheje
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