- डॉ. शरद सिंह
आंधी-तूफान के बाद खिलने वाली सुनहरी धूप की भांति दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता एक लंबे गृहयुद्ध के बाद हासिल हुई है। गृहयुद्ध के दौरान पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बड़ी संख्या में हताहत हुए। इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला स्त्रियों ने। अपनों के मारे जाने का दुख और शेष रह गए जीवितों के प्रति जिम्मेदारी का संघर्ष। इन सबके बीच अनेक स्त्रियों को बलात्कार जैसी मर्मांतक पीड़ा से भी गुजरना पड़ा।
छत्तीस वर्षीया जेसिका फोनी ने अपने अभी तक के जीवन में आठ बार प्रसव पीड़ा सहन की है और सुविधा के अभाव में अपने दो बच्चों को मौत के मुंह में जाते देखा है। जेसिका को जब इस बात का पता चला कि उसकी जन्मभूमि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर स्थापित होने जा रही है तो वह स्वयं को रोक नहीं सकी। जेसिका की आंतरिक प्रसन्नता और अपने स्वतंत्र राष्ट्र से जुड़ी हुई आशा और दक्षिणी सूडान की राजधानी खींच लाई जहां देश की स्वतंत्रता की विधिवत घोषणा की जाने वाली थी। सुदूर ग्रामीण क्षेत्र से आई जेसिका ने उत्सव का जी भर कर आनंद लिया।
आंधी-तूफान के बाद खिलने वाली सुनहरी धूप की भांति दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता एक लंबे गृहयुद्ध के बाद हासिल हुई है। गृहयुद्ध के दौरान पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बड़ी संख्या में हताहत हुए। इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला स्त्रियों ने। अपनों के मारे जाने का दुख और शेष रह गए जीवितों के प्रति जिम्मेदारी का संघर्ष। इन सबके बीच अनेक स्त्रियों को बलात्कार जैसी मर्मांतक पीड़ा से भी गुजरना पड़ा। वह दक्षिणी सूडान के इतिहास का एक अंधकारमय समय था किंतु जैसा कि अंधेरा छंटता है और सूरज दिखाई देने लगता है, दक्षिणी सूडान में भी स्वतंत्रता का सूरज उग ही गया।
जेसिका फोनी के लिए देश की स्वतंत्रता का एक अर्थ है कि अब उसके सुदूर गांव जैसे ग्रामीण अंचलों में प्रसूति से जुड़ी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी। उसे आशा है कि अब उसकी तरह किसी और मां को चिकित्सा सुविधा के अभाव में अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए नहीं देखना पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडों के अनुसार दक्षिणी सूडान में मातृ-शिशु मृत्यु दर विश्व में सर्वाधिक है। वहां अब तक प्रत्येक एक लाख प्रसव के दौरान लगभग २०५४ स्त्रियों की मृत्यु हो जाती है। ऐसी विकट स्थिति में जेसिका के सुरक्षित मातृत्व का सपना देश की स्वतंत्रता का पर्याय है।
जेम्मा नुनू कुंबा |
जेसिका फोनी के सपने को सच होने की संभावना तक लाने का श्रेय उन स्त्रियों को है जो स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर सशस्त्र लड़ाई लड़ती रहीं। सूडान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की गर्ल्स बटालियन ने द्वितीय गृह युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सूडान में दो प्रमुख गृहयुद्ध हुए। पहला सन् १९४३ से १९७२ तक और दूसरा १९८३ से आरंभ हुआ और देश को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने तक चला। गर्ल्स बटालियन की कमांडर अगिएर अगुम ने जिस साहस और दृढ़ता के साथ बटालियन का संचालन किया था वह गृहयुद्ध को सकारात्मक परिणाम में बदलने में एक अहम निर्णायक पक्ष रहा। कमांडर अगिएर अगुम ने सहायता शिविरों के लिए भी काम किया था।
अगिएर अगुम की भांति जेम्मा नुनू कुंबा ने भी दक्षिणी सूडान के स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। यह जानते हुए भी कि इस संघर्ष में किसी भी पल वे किसी गोली या बम का शिकार हो सकती थीं। जेम्मा नुनू कुंबा का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य में स्वतंत्रता की भावना प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। जेम्मा ने स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होने के लिए विश्वविद्यालय की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। जेम्मा का जन्म अन्या-न्या में उस समय हुआ था जब प्रथम गृह युद्ध शुरू हो चुका था। देश में अस्थिरता का वातावरण था। इसीलिए जेम्मा के भीतर देश की स्वतंत्रता की भावना उम्र बढ़ने के साथ-साथ बलवती होती गई। जेम्मा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष को उचित ठहराती हैं। उनके अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के वातावरण में सांस लेना चाहता है और स्वतंत्रता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः यदि स्वतंत्रता पाने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो वह जीवन संघर्ष की भांति उचित है। "
अगिएर अगुम की भांति जेम्मा नुनू कुंबा ने भी दक्षिणी सूडान के स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। यह जानते हुए भी कि इस संघर्ष में किसी भी पल वे किसी गोली या बम का शिकार हो सकती थीं। जेम्मा नुनू कुंबा का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य में स्वतंत्रता की भावना प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। जेम्मा ने स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होने के लिए विश्वविद्यालय की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। जेम्मा का जन्म अन्या-न्या में उस समय हुआ था जब प्रथम गृह युद्ध शुरू हो चुका था। देश में अस्थिरता का वातावरण था। इसीलिए जेम्मा के भीतर देश की स्वतंत्रता की भावना उम्र बढ़ने के साथ-साथ बलवती होती गई। जेम्मा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष को उचित ठहराती हैं। उनके अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के वातावरण में सांस लेना चाहता है और स्वतंत्रता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः यदि स्वतंत्रता पाने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो वह जीवन संघर्ष की भांति उचित है। "
स्वतंत्र दक्षिणी सूडान में जेम्मा नुनू कुंबा पर जिम्मेदारी है जेसिका फोनी जैसी हजारों स्त्रियों के सपनों को पूरा करने की। वे स्वतंत्र दक्षिणी सूडान की प्रथम महिला गवर्नर होने का गौरव पाने के साथ ही देश के प्रथम राष्ट्रपति साल्वा कीर मयार्दित सरकार में हाउसिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर मंत्री हैं। जेम्मा को अरूबा का सपना भी पूरा करना है जो एक शिक्षिका है और जिसने अपने स्कूल के बच्चों को कठिनतम समय में भी पढ़ाई से जोड़े रखा। अरूबा के स्कूल में न तो फर्नीचर है और न ब्लैक बोर्ड। दाने-दाने के लिए जूझने वाले बच्चों के पास किताबें होने का तो प्रश्न ही नहीं था। फिर भी अरूबा ने हिम्मत नहीं हारी और अपने ज्ञान को मौखिक रूप से बच्चों को देती रहीं ताकि वे जीवन के आवश्यक ज्ञान से वंचित न रह जाएं। अरूबा को कुछ समय भूमिगत भी रहना पड़ा क्योंकि उसके क्षेत्र के सैन्य अधिकारी को संदेह हो गया था कि वह पढ़ाने के साथ-साथ उन लोगों की सहायता करती है जो स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं।
दक्षिणी सूडान |
जेम्मा नुनू कुंबा, अगिएर अगुम, अरूबा, साफिया इश्क आदि अनेक स्त्रियों ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दक्षिणी सूडान को स्वतंत्रता दिलाई है और अब यही स्त्री शक्ति एक सुदृढ़ देश का ताना-बाना रचेगी।
(साभार- दैनिक ‘नईदुनिया’ में 17.07.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)