Friday, May 24, 2019

बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
 
समाचारपत्र नवभारत में प्रकाशित मेरा लेख "बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट" प्रकाशित हुआ है, इसे आप भी पढ़ें....
हार्दिक धन्यवाद नवभारत !!!


- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

वन, वन्यपशु और वनोपज का धनी बुंदेलखंड आज जैव विविधता(बायोडायवर्सिटी) पर गहराते संकट के दौर से गुज़र रहा है। प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता संरक्षण दिवस मनाए जाने के दौरान समूचे विश्व में जैव विविधता के आकलन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। विगत वर्ष यह तथ्य सामने आया था कि भारत में 450 प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर हैं। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्ति-सूची में दर्ज़ हो चुकी हैं। सन् 2018 में ही यह भयावह सत्यता भी सामने आई कि विगत 10 वर्ष में बुंदेलखंड का तापमान औसत से डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है जोकि बुंदेलखंड की जैव विविधता के लिए संकट का सूचक है। वैसे यह तापमान अपने-आप नहीं बढ़ा है, इसके लिए जिम्मेदार स्वयं बुंदेलखंड के निवासी हैं जो प्रकृति को हानि पहुंचते देख कर भी मौन रहते आए हैं।
बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित Navbharat - Bundelkhand Ki Jaiv Vividhta Pr Gahrata Sankat - Dr Sharad Singh,
         बुंदेलखंड में नदियों से रेत का बेतहाशा अवैध खनन जैव विविधता को चोट पहुंचाने का एक सबसे बड़ा कारण है। कानून को धता बता कर मशीनों द्वारा जिस तरह रेत खनन किया जाता है उससे बेतवा, केन और यमुना में रहने वाले जीव-जंतुओं की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही हैं। जबकि एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) की साफ गाईड लाइन है कि मशीनों से खनन नहीं किया जाएगा। फिर भी इस गाईड लाईन की अवहेलना की जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बुंदेलखंड में केन और बेतवा और यमुना बड़ी नदियों में एक हैं और इनमें कुल 15 किस्म की मछलियों की 35 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कई प्रजातियां मिलना दूभर है लेकिन अवैध खनन से ये प्रजातियां संकट में पड़ गई हैं। बड़ी मशीनों से रेत निकालने से सबसे अधिक हानि जैव विविधता की होती है। इससे जलीय जीव-जंतु मारे जाते हैं। इनमें से कई अब विलुप्त होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अवैध खनन के कारण केन नदी में मछलियों की 35 प्रजातियों में कई विलुप्त हो चुकी हैं। केन और बेतवा में पाई जाने वाली निमेकाइलस, रीटी गोगरा, सिराइनस, रीबा आदि मछलियां लुप्त प्राय हैं।

मेरा स्वयं का एक दिलचस्प अनुभव है। मेरी कॉलोनी में एक भवन निर्माण के लिए डम्पर से रेत लाई गई। दूसरे दिन अचानक मुझे अपने घर में एक विचित्र जीव दिखाई पड़ा जिसकी चाल और आकृति सर्प की भांति थी किन्तु उसके चार पैर थे। ऐसा अजीब रेप्टाईल उससे पहले मैंने कभी नहीं देखा था। मैंने हिम्मत कर के उसे घर से बाहर भगाने का प्रयास किया किंतु ग़ज़ब का फुर्तीला वह जीव घर से निकलने का नाम नहीं ले रहा था। अंततः मुझे भवन निर्माण स्थल में काम करने वाले मज़दूरों को बुलाना पड़ा। उन लोगों ने उस जीव को देख कर मुझे बताया कि वह नदी की रेत में रहने वाला जीव है जिसे बुंदेलखंड में ‘चौगोड़ा’ (उसके चार पैरों के कारण) कहते हैं। वह डम्पर की रेत के साथ वहां आ पहुंचा था। चूंकि मेरा घर रेत के निकट था और घर में लगे पेड़ पौधों की ठंडक से आकर्षित हो कर वह घर में आ छिपा था। उन मजदूरों ने उसे पलक झपकते मार दिया। इससे मुझे बहुत दुख हुआ। मैं उसे मारना नहीं चाहती थी। वह तो स्वयं विस्थापित था। हम मनुष्यों के द्वारा उसे अपने प्राकृतिक आवास से अलग होना पड़ा था। वह इस प्रकार की मृत्यु का हकदार कतई नहीं था। उसके मारे जाने से मुझे अहसास हुआ कि आए दिन न जाने कितने जलजीव इसी तरह काल का ग्रास बन रहे हैं।

जितना संकट जलजीवों पर है उतना ही वनों की अवैध कटाई के कारण वन्य जीवों पर संकट है। जनपद महोबा में 5.45 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां तेंदुआ, भेड़िया, बाज विलुप्त होने की कगार पर हैं। कहा जाता है कि वहां पहले काला हिरन भी पाया जाता था जो कि अब दिखाई नहीं देता है। महोबा के निकट के वनों में पाई जाने वाली सफेद मूसली, सतावर, ब्राम्ही, गुड़मार, हरसिंगार, पिपली आदि वन्य औषधियां भी विलुप्ति की कगार में जा पहुंची हैं।

राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू-भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए किंतु बांदा जनपद में आज कुल वन क्षेत्र 1.21 प्रतिशत ही बचा है। यहां विलुप्त होने वाले जीवां में चील, गिद्ध, गौरेया व तेंदुआ है। वर्ष 2009 में दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन की संख्या जनपद बांदा में लगभग 59 थी। जनपद चित्रकूट में 21.8 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां का रानीपुर वन्य जीवन विहार 263.2283 वर्ग किमी के बीहड़ व जंगली परिक्षेत्र में फैला है जिसे कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर की देखरेख में रखा गया है। इसीलिए वर्ष 2009 की गणना के अनुसार यहां काले व अन्य हिरनों की कुल संख्या 1409 थी। संरक्षित क्षेत्र होने के कारण यहां पाई जाने वाली अतिमहत्वपूर्ण वन औषधियां गुलमार, मरोड़फली, कोरैया, मुसली, वन प्याज, सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और निर्गुड़ी भी अभी सुरक्षित हैं।

जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिशत ही वन क्षेत्र शेष हैं यहां भालू, चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेड़िया, गिद्ध जैसे वन्य जीव आज शिकारियों के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। दुर्लभ प्रजाति का काला हिरन यहां के मौदहा कस्बे के कुनेहटा के जंगलों में ही पाया जाता है। इनकी संख्या अत्यंत सीमित है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां पर काले हिरन अब नज़र नहीं आते हैं। झांसी जनपद की भी लगभग यही स्थिति है कि शहर फैल रहे हैं और वनक्षेत्र सिकुड़ रहे हैं।


वन, वनोपज और वन्यजीवों की दृष्टि से पन्ना नेशनल पार्क के वनक्षेत्र की दशा संतोषजनक है। यहां संरक्षित वातावरण में जैव विविधता बनी हुई है। इसी प्रकार सागर जिले के नौरादेही अभ्यारण्य में वनक्षेत्र सुरक्षित है। जहां संरक्षित क्षेत्र हैं वहीं जैव विवधिता अभी शेष है। किंतु क्या वनों और जैवविविधता की रक्षा करना सिर्फ कानून और दण्ड का दायित्व है? आम नागरिकों का भी तो यह दायित्व बनता है कि वे कम से कम उस जैव विविधता को बचाए रखने के लिए सजग रहें जो पृथ्वी पर मानव जीवन के भविष्य के लिए जरूरी है। मानवीय लापरवाहियों एवं अवैध कार्यों के कारण गिरते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए तापमान, घटते हुए वन के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन जीवों का विलुप्त होना और पहाड़ों के खनन से उनका विस्थापन जैव विविधता के लिए संकट सूचक है।

---------------------

( नवभारत, 24.05.2019 )


Wednesday, May 22, 2019

छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल - - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh, Author

दैनिक जागरण (सभी संस्करण) 21.05.2019 के 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित मेरा लेख ‘छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल’ ...
 

💗 हार्दिक धन्यवाद दैनिक-जागरण 🙏

इस लिंक पर जा कर आप मेरा लेख पढ़ सकते हैं..

छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल - - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित
 छोटे क़दम बड़ी मंज़िल                            
              - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

हर व्यक्ति, हर प्रयास का अपना महत्व होता है। कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है। महत्व परिणाम का होता है। यदि परिणाम कल्याणकारी है तो छोटी से छोटी वस्तु भी बड़ा महत्व रखती है। ठीक यही बात लागू होती है सफलता पर। आज के उपभोक्तावादी समय में हर व्यक्ति जल्दी से जल्दी सफलता की सीढ़ियां चढ़ जाना चाहता है। उसे लगता है कि यदि उसने रात में जिस सफलता को पाने की इच्छा की है वह उसे सुबह आंख खोलते ही मिल जानी चाहिए। इस हड़बड़ी में व्यक्ति से अनेक गड़बड़ियां हो जाती हैं। जैसे उसे उचित-अनुचित का ध्यान नहीं रहता है। वह शार्टकट अपना कर जल्दी सफलता पा लेने को उद्यत हो उठता है। शार्टकट और जल्दबाजी दोनों का एक ही हश्र होता है। इनके द्वारा प्राप्त सफलता स्थाई नहीं होती है। जैसे पंचतंत्र में दो पक्षियों की कथा है।
एक जंगल में दो पक्षी रहते थे। उस जंगल के दूसरे छोर पर एक वृक्ष था जिसमें वर्ष में एक बार स्वादिष्ट फल आया करते थे। जब फलों का मौसम आया तो दोनों पक्षियों ने वहां जाने की योजना बनाई।
‘वह वृक्ष यहां से बहुत दूर है अतः मैं तो आराम से धीरे-धीरे वहां पहुंचूंगा। अभी फलों का मौसम दो माह रहेगा।’ पहले पक्षी ने दूसरे से कहा।
‘नहीं मित्र, मुझसे तो रहा नहीं जा रहा है। उन स्वादिष्ट फलों के बारे में सोच कर ही मेरे मुंह में पानी आ रहा है अतः मैं तो एक ही उड़ान में वहां जा पहुंचूंगा और छांट-छांट कर मीठे फल खा लूंगा।’ दूसरे पक्षी ने अतिउत्साहित होते हुए कहा। उसके मन में यह खोट भी आ गई थी कि वह पहले पहुंच कर सारे अच्छे फल खा सकता है।
दूसरे दिन दोनों पक्षी अपने घोसलों से निकल कर उस वृक्ष की ओर उड़ चले। कुछ दूर जाने पर पहले पक्षी को थकान होने लगी तो वह सुस्ताने के लिए एक वृक्ष की टहनी पर ठहर गया। वहीं, दूसरा पक्षी उसे ठहरा हुआ देख कर मुस्कुराया और तेजी से फलों की ओर उड़ने लगा। जबकि वह भी थकान का अनुभव करने लगा था। मगर उसे तो फलों को खाने की जल्दी जो थी अतः वह बिना रुके उड़ता गया, उड़ता गया, उड़ता गया। उसे फलों वाला वृक्ष दिखाई देने लगा। फलों की सुगंध भी उसे आने लगी। उसे लगा कि बस, अब तो वह पहुंच ही गया है कि तभी उसके पंख लड़खड़ाए। वह बुरी तरह थक चुका था। उसके पंखों ने जवाब दे दिया और वह वहीं आसमान से ज़मीन पर जा गिरा। उसके पंख टूट गए और वह उन फलों तक कभी नहीं पहुंच सका। जबकि पहला पक्षी जो रुक-रुक कर आ रहा था वह फलों तक आराम से पहुंच गया और उसने जी भर कर स्वादिष्ट फल खाए।
कदम कदम चल कर ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उछल कूद करने वाले लोग मुंह के बल गिरते हैं और चोट खाते हैं। यह तो हम सब जानते हैं कि ना तो हिमालय का निर्माण एक दिन में हुआ था और न ही वानर सेना ने एक विशाल चट्टान से सेतु बनाया था। अनेक छोटे-छोटे पत्थरों से ही सेतु का निर्माण हुआ था। प्रत्येक सेना में अनेक सिपाही होते हैं जिनके बल पर बड़ी से बड़ी विजय प्राप्त की जाती है। एक-एक ईंट को कुशलता पूर्वक रखकर और जोड़कर ही किसी श्रेष्ठ भवन का निर्माण किया जाता है। एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही किसी भवन के ऊपर की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। इतना ही नहीं अपितु हमारा विश्व भी तो छोटे-छोटे कणों द्वारा निर्मित है। जिस नैनो पार्टिकल्स ने आज जीवन में क्रांति ला दी है, वह अणु, परमाणु से ले कर ब्रह्मांड तक का निर्माता है। हमारे प्राचीन ग्रंथ ‘श्वेताश्वतरोपनिषद्’ में ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे कण के माप का वर्णन मिलता है-

केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः।
जीवः सूक्ष्मस्वरूपोयं संख्यातीतो हि चित्कणः।।
- अर्थात् यदि केश के अग्रभाग को सौ भागों में विभाजित किया जाए और प्रत्येक भाग को और सौ भागों में विभाजित किया जाए, तब शेष बचा हुआ भाग ब्रह्माण्ड का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होगा। यही तो है नैनोपार्टिकल्स जो लघुतम होते हुए भी ब्रह्मांड की रचना करने में सक्षम हैं। अतः जो लोग छोटे-छोटे कार्यों की उपेक्षा करके महत्वाकांक्षाओं को सार्थक करने का स्वप्न देखते हैं, वे भूल जाते हैं कि छोटी-छोटी सफलताएं प्राप्त करते हुए चलने से जीवन में सफलताएं प्राप्त होती हैं। जो व्यक्ति छोटी-छोटी सफलताओं में जीवन को महत्व नहीं देते वह बड़ी सफलता से भी वंचित रह जाते हैं। महान व्यक्तियों की जीवनगाथा यह तथ्य उजागर करती हैं कि छोटे छोटे कर्तव्य पालन में उचित और अनुचित का विवेक रखकर ही वे महान बन सके हैं। महात्मा बुद्ध यह कहते थे -’तुम्हारे सामने जो कार्य है उसको पूरे उत्साह एवं पूरी शक्ति के साथ करो। छोटा समझ कर किसी कार्य की उपेक्षा मत करो।’
हम अपने लक्ष्य के प्रति बढ़ते हुए यह याद रखें कि बारह महीनों को मिलाकर ही एक वर्ष बनता है एक भी माह छूट जाने पर वर्ष पूर्ण नहीं होगा। अतः हमारा प्रत्येक कदम लक्ष्य की प्राप्ति का सूचक है इसलिए छोटे-छोटे कदमों की अवहेलना ना करते हुए उन्हीं को आत्मसात करना चाहिए और स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए। वास्तव में हमें अपने बड़े लक्ष्य के लिए छोटे-छोटे प्रयास ही निर्धारित करने चाहिए। यदि दस छोटे प्रयासों में पांच प्रयास असफल हो कर हमें हतोत्साहित करते हैं तो वे पांच प्रयास जो सफल हो गए हैं, हमें उत्साहित भी करते हैं। किन्तु किसी भी काम को करने में जल्दबाजी करना भी घातक सिद्ध होता है-
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
- अर्थात् जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्यूंकि बिना सोचे-समझे किया गया कार्य विपत्तियों को आमंत्रण देता हैं। जो व्यक्ति सहजता से सोच समझ कर आराम से विचार करके अपना काम करते हैं सफलता रूपी लक्ष्मी स्वयं ही उन्हें चुन लेती है।
सफलता पाने के लिए सबसे बड़ी आवश्कता होती है इच्छाशक्ति और प्रयास की। यह ‘प्रयास’ बड़ा ही संवेदनशील शब्द है। प्रयास करने की इच्छा जाग्रत होते ही उर्त्तीण अथवा अनुत्तीर्ण होने का चिंतन भी जाग उठता है। यही चिंतन प्रेरक भी बनता है और घातक भी। उत्तीर्ण होने की इच्छा का होना स्वाभाविक है लेकिन अनुत्तीर्ण होने से भी घबराना नहीं चाहिए। अनुत्तीर्ण होना इस बात का सूचक होता है कि अभी और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। बस, मन में दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। इस बात को बाल्यावस्था के प्रयासों से जोड़ कर देखा जाए तो सब कुछ सहज ही स्पष्ट हो जाएगा। एक बालक जब गतिशील होना आरम्भ करता है तो वह पहले बैठने का प्रयास करता है। फिर आगे झुकने का अभ्यास करता है। इसके बाद वह घुटनों के बल चलने लगता है। जब उसे घुटनों के बल चलना आ जाता है तो वह खड़े होने का प्रयास आरम्भ कर देता है। किसी न किसी वस्तु का सहारा ले कर वह खड़ा होने लगता है और फिर डगमगाते कदमों से आगे बढ़ता है। खड़े हो कर चलने के इस प्रयास में वह कई-कई बार गिरता है। उसे चोट लगती है। वह रोता है। किन्तु हार नहीं मानता है। फिर वह दिन भी आता है जब वह अपने दम पर खड़े होकर न केवल चलने लगता है अपितु दौड़ने भी लगता है। कहने का आशय यही है कि प्रत्येक उस व्यक्ति को जो अपने जीवन में सफलता पाना चाहता है उसे गिरने से डरे बिना, छोटे-छोटे कदम बढ़ाते हुए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इसके बाद उसे जो सफलता मिलेगी, स्थाई होगी क्योंकि इसमें उसका आत्मविश्वास, उसका सतत प्रयास और उसके अनुभव शामिल रहेंगे जो उसे जीवन के हर मोड़ पर प्रेरणा देते रहेंगे।
                 ------------------------   

World Biodiversity Day 2019 : यही हाल रहा तो 2050 तक खो देंगे एक तिहाई से ज्यादा जैव विविधता - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh, Author, Editor and Columnist
आज अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर Patrika.com ने मेरे लेख को प्रकाशित कर जो डिज़िटल प्लेटफार्म दिया है उसके लिए मै Patrika.com की हृदय से आभारी हूं।

Thank You Patrika.com !!!

इस लिंक पर जा कर आप मेरा लेख पढ़ सकते हैं......(22.05.2019)

चर्चा प्लस ..22 मई विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस पर विशेष : हम तेजी से खो रहे हैं अपनी जैव विविधता - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ..22 मई विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस पर विशेष :

हम तेजी से खो रहे हैं अपनी जैव विविधता
- डॉ. शरद सिंह


जब देश के सबसे बड़े गणतंत्र के चुनावों के पहले परिणाम घोषित होने की घड़ी करीब आ गई हो तो भला किसे याद रहेगा विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस? शायद चंद प्रकृतिविद एवं पर्यावरणचिंतकों को ही यह दिवस याद रहेगा। जबकि जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी का वह महत्वपूर्ण पक्ष है जो पृथ्वी को जीवन के योग्य बनाए हुए है। भारत में 450 प्रजातियां संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर हैं। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्ति-सूची में दर्ज़ हो चुकी हैं। ये आंकड़े जैव विविधता पर मंडराते संकट को दिखाते हैं। यह हमें समझना ही होगा कि इस जैव विविधता को बचाना मानव जीवन को बचाने के लिए जरूरी है। 

 
चर्चा प्लस ..22 मई विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस पर विशेष : हम तेजी से खो रहे हैं अपनी जैव विविधता - डॉ. शरद सिंह  Charcha Plus -  Hum Teji Se Kho Rahe Hain Apni Jaiv Vividhta -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh

       बड़ी विचित्र-सी बात लगती है न कि मुंबई के बाहरी इलाके में नई बसाई गई बस्तियों में रात को तेंदुआ घूमता है। पर यह सच है। इसकी स्वयं नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी की टीम ने वीडियोग्राफी की। जंगलों के निकट बसे गांवों और शहरों में वन्यपशुओं के घुस आने की अनेक घटनाएं आए दिन सामने आती हैं। अभी हाल ही में यानी इसी मई माह के पहले सप्ताह में कालेमुंह के वानरों का एक पूरा झुंड सागर जिला मुख्यालय के मकरोनिया उपनगर में उन कॉलोनियों से हो कर गुज़रा जहां कभी वानरों का प्रकोप नहीं रहा। चूंकि आधुनिक कॉलोनियों में फलदारवृक्षों का अभाव रहता है तथा छत या अांगन में भी खाने-पीने की वस्तुएं नहीं मिल पाती हैं अतः वह वानर-झुंड कॉलोनी के इलाके में रुका नहीं। छतों पर से होता हुआ आगे कहीं चला गया। निःसंदेह इस झुंड की यात्रा वहां जा कर थमी होगी जहां इन्हें खाना-पानी मिला होगा। उनका इस तरह शहर के भीड़ भरे इलाके से हो कर गुजरना इस बात का सबूत था कि उन वानरों का निवास या तो जंगल काटे जाने से उजड़ गया है या फिर उनके इलाके में उनके लिए भोजन और पानी समाप्त हो चुका है। मूल समस्या यह है कि शहरों में इनके लिए कोई जगह नहीं है और ये अपने प्राकृतिक आवास को खोते जा रहे हैं। इस प्रकार ये वानर कब तक जीवन संघर्ष में सफल होते रहेंगे? यदि वानर अथवा कोई भी वन्य पशु अथ्वा पक्षी विलुप्ति की कगार पर पहुंचता है तो यह मानना चाहिए कि पृथ्वी पर जीवन की एक कड़ी टूट कर नष्ट हो जाती है। कल्पना करिए कि पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीव एवं वनस्पतियां मोती की माला के मोती हैं तो मानव उस माला का लॉकेट है। माला के टूटने और मोतियों के बिखरने से लॉकेट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा।
धरती पर मौजूद जंतुओ और पौधों के बीच के संतुलन को बनाए रखने के लिए अतंर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 22 मई को मनाया जाता है। इसे ’विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस’ भी कहते है। प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विश्व में 22 मई’ को मनाया जाता है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ किया था। इस वर्ष की थीम रखी गई है-‘अवर बायोडायवर्सिटी, अवर फूड, अवर हेल्थ’। जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता को कहा जाता है। 1992 में ब्राज़ील के रियो डि जेनेरियो में हुए जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार जैव विविधता की परिभाषा इस प्रकार है- ‘‘धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित अथवा उससे संबंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच विभिन्नता जैवविविधता है।’’
प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। नैरोबी में 29 दिसंबर, 1992 को हुए जैव विविधता सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था, किंतु कई देशों द्वारा व्यावहारिक कठिनाइयां जाहिर करने के कारण इस दिन को 29 मई की बजाय 22 मई को मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है।
जैव विविधता का संरक्षण और उसका टिकाऊ उपयोग, पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ विकास के लिये महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार के जीवों की अपनी अलग-अलग भूमिका है, जो प्रकृति को संतुलित रखने तथा हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने, तथा सतत् विकास के लिये संसाधन प्रदान करने में अपना योगदान करती है। जैव विविधता का वाणिज्यिक महत्व, भोजन, औषधियां, ईंधन, औद्योगिक कच्चा माल, रेशम, चमडा, ऊन आदि से हम सब परिचित हैं। इसके पारिस्थितिकी महत्व के रूप में खाद्य श्रृंखला, मृदा की उर्वरता को बनाये रखना, जैविक रूप से सड़ी-गली चीजों का निपटान, भू-क्षरण को रोकने, रेगिस्तान का प्रसार रोकने, प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाने एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने में के रूप में देखा जा सकता है। इसके अलावा जैव विविधता का सामाजिक, नैतिक तथा अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष महत्व है, जो हमारे लिये महत्वपूर्ण है।
वैश्विक नेताओं ने भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को एक जीवित ग्रह सुनिश्चित करते हुए वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए ’सतत विकास’ की एक व्यापक रणनीति पर सहमति व्यक्त की थी। 193 सरकारों ने इस पर हस्ताक्षर किए गए थे। अतंरराष्ट्रीय जैव-विविधता संरक्षण का उद्देश्य ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान कर सके। जैव विविधता का तात्पर्य विभिन्न प्रकार के जीव−जंतु और पेड़-पौधों का अस्तित्व धरती पर एक साथ बनाए रखने से होता है। इसकी कमी से बाढ़, सूखा और तूफान आदि जैसी प्राकृतिक आपदा का खतरा बढ़ जाता है। पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखने तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में भी जैव विविधता की अहम भूमिका होती है। इसलिए हमे प्रकृति से उपहार के रूप में मिले पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर, समुद्र, नदिया आदि का संरक्षण करना चाहिए।
पृथ्वी पर लाखों प्रजाति के जीव व वनस्पति उप्लब्ध हैं। इन सबकी विशेषता एवं आवास विविध हैं, फिर भी यह आपस मे प्राकृतिक कड़ियों से जुड़े हैं। संक्षेप में हम इसे वैश्विक जैव विविधता मान सकते हैं। मानव के कारण पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण इनकी कड़ियां टूट रही हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी सम्मिलित है, जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता विद्यमान है। अन्य 16 देश हैं- ऑस्ट्रेलिया, कांगो, मेडागास्कर, दक्षिण अफ़्रीका, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, ब्राज़ील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, मेक्सिको, पेरू, अमेरिका और वेनेजुएला। संपूर्ण विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही भारत में है, लेकिन यहां विश्व के ज्ञात जीव जंतुओं का लगभग 5 प्रतिशत भाग निवास करता है। ’भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण’ एवं ’भारतीय प्राणी सर्वेक्षण’ द्वारा किये गये सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में लगभग 49,000 वनस्पति प्रजातियां एवं 89,000 प्राणी प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत विश्व में वनस्पति-विविधता के आधार पर दसवें, क्षेत्र सीमित प्रजातियों के आधार पर ग्यारहवें और फसलों के उद्भव तथा विविधता के आधार पर छठवें स्थान पर है। वैसे भारत जैव विविधता संरक्षण का प्रबल पक्षकार है।

विश्व के कुल 25 जैव विविधता के सक्रिय केन्द्रों में से दो क्षेत्र पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट, भारत में है। जैव विविधता के सक्रिय क्षेत्र वह हैं, जहां विभिन्न प्रजातियों की समृद्धता है और ये प्रजातियां उस क्षेत्र तक सीमित हैं। भारत में 450 प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर दर्ज किया गया है। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। ये आंकड़े जैव विविधता पर निरंतर बढ़ते खतरे की ओर संकेत करते हैं। यदि यही दर बनी रही तो वर्ष 2050 तक हम एक तिहाई से ज्यादा जैव विविधता खो सकते हैं। जैव विविधता को कई कारणों से नुकसान हो रहा है। इसमें मुख्य है, आवास की कमी, आवास विखंडन एवं प्रदूषण, प्राकृतिक एवं मानवजन्य आपदायें, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक खेती, जनसंख्या वृद्धि, शिकार और उद्योग एवं शहरों का फैलाव। अन्य कारणों में सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव, भू-उपयोग परिवर्तन, खाद्य श्रृंखला में हो रहे परिवर्तन, तथा जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी इत्यादि है। जैव विविधता का संरक्षण करना मानवजीवन के अस्तित्व के लिये आवश्यक है। भारत को विश्व के उन 12 देशों मे शमिल किया जाता है जो सर्वाधिक जैव विविधता वाले देश हैं। पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है।
गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। 1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार लोग मारे गए। तब स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण ऐसा हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण भी काफ़ी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा पूंजीवादी और प्रगतिशील देश चमगादड़ों को संरक्षित करने का हर संभव उपाय कर रहा है। यदि हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं तो हमारी यह सोच गलत है क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता खाते हैं और मनुष्य को मच्छरों से होने वाली अनेक बीमारियों से बचाते हैं।

यदि जंगल नहीं होगा तो वन्यपशु-पक्षी नहीं होंगे, पशु-पक्षी नहीं होंगे तो हानिकारक कीटाणु हमें क्षति पहुंचाते रहेंगे। जंगल नहीं रहेगा तो पानी भी समाप्त होता जाएगा और यदि नन्हें पक्षी नहीं रहेंगे तो जंगलों की संतति थमने लगेगी। सभी एक-दूसरे से परस्पर पूरक के समान जुड़े हुए हैं। इसीलिए जल, थल, वायु कभी स्थानों के जीवों का अपने-अपने स्थान पर होना आवश्यक है। इसे सरल शब्दों यही कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर मानव जीवन के भविष्य के लिए हर एक जीव जरूरी है और इसके लिए जरूरी है जैव विविधता का बना रहना।
----------------------
(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 22.05.2019)
#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily#SharadSingh #Biodiversity #जैवविविधता

Friday, May 17, 2019

संकट में है बुंदेलखंड की चित्रकला ‘बुंदेली कलम - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
समाचार पत्र नवभारत में बुंदेलखंड की चित्रकला बुंदेली कलम पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है... इसे आप भी पढ़िए...
🙏हार्दिक आभार #नवभारत 🙏


बुंदेलखंड कला और संस्कृति का धनी है। जिस प्रकार राजस्थान में चित्रकला की राजस्थानी कलम का विकास हुआ, उत्तराखंड में पहाड़ी कलम का विकास हुआ ठीक उसी प्रकार बुंदेलखंड में बुंदेली कलम विकसित हुई। यह दुर्भाग्य है कि जितनी ख्याति एवं बढ़ावा राजस्थानी कलम या पहाड़ी कलम को मिला उतनी प्रसिद्धि बुंदेली कलम को नहीं मिली। इसका सबसे बड़ा कारण बुंदेलखंड की राजनीति स्थितियां हैं। देश की स्वतंत्रता के पूर्व बुंदेलखंड याद्धाओं की कर्मभूमि बना रहा जिससे राजनीतिक अस्थिरता व्याप्त रही। वहीं, देश की स्वतंत्रता के पश्चात् राजनीतिक नेतृत्व में कला के प्रति उदासीनता ने बुंदेली कलम को ख्याति अर्जित करने का वतावरण उपलब्ध नहीं कराया। किन्तु आज भी ओरछा एवं दतिया में बुंदेली कलम के उत्कृष्ट उदाहरण अपनी स्वर्णिम गाथा कह रहे हैं।
बुंदेलखंड में चित्रकला की अपनी विशेषताएं पाई जाती है जिसके कारण कलाविशेषज्ञों ने इसे एक अलग शैली अर्थात् ‘बुंदेली कलम’ के रूप में स्वीकार किया। इसे बुंदेली स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से भी पुकारा जाता है। अपनी कलात्मक सुंदरता एवं विशिष्ट रंग संयोजन के कारण बुंदेली कलम अन्य भारतीय चित्रकला से स्वतंत्रा अस्तित्व रखती है। बुंदेली चित्रकला में रंगों का उत्साह एवं ब्रश स्ट्रोक्स की गतिशीलता की अलग ही छटा दिखती है। लाल, गेरू, नीले, हरे, पीले और भूरे रंगों के माध्यम से चित्रों में जीवन्तता उंडेली गई है। इन चित्रों में धार्मिक अथवा पौराणिक कथाओं को विशेष स्थान दिया गया है। विशेष रूप से राम और कृष्ण की जीवन कथाओं को इसमें सहेजा गया है। रामकथा के अंतर्गत सीता स्वयंवर, ताड़का-वध, श्रीराम के राज्याभिषेक, परशुराम की चुनौती, राम एवं सीता का वनगमन, सीता-हरण, शूर्पणखा, मारीचि, जटायु, सुग्रीव और बाली की कहानियों को स्थान दिया गया है। इनमें राम और लक्ष्मण द्वारा मारे जाने वाले राक्षसों के साथ ही राम-रावण युद्ध का भी चित्रण है। 
 Navbharat - Sankat Me Hai Bundelkhand  Ki Chitrakala Bundeli Kalam .. - Dr Sharad Singh
         कृष्ण कथा के अंतर्गत माखन चोरी, पूतना वध, बकासुर वध, अघासुर वध, कलिया मर्दन आदि का घटनाओं के साथ ही रासलीला का सुंदर चित्रण भी इन हचत्रों में किया गया है। शेषनाग पर विष्णु, ,गणेश ब्रह्मा, देवी लक्ष्मी आदि के चित्र भी दीवारों एवं छतों पर चित्रित किए गए हैं। यह सारे चित्र मुख्य रूप से ओरछा के राज प्रसाद तथा लक्ष्मी मंदिर में बनाए गए हैं। उल्लेखनीय है की ओरछा में भगवान राम को एक राजा की तरह स्वीकार किया गया और इसीलिए उनका मंदिर रामराजा का मंदिर कहलाता है। रामराजा मंदिर में एक विशेष परंपरा रही है जिसके अंतर्गत भक्तों को पान का बीड़ा प्रसाद के रूप में दिया जाता रहा है। ओरछा के लक्ष्मी मंदिर में छत पर बहुत सुंदर चित्रकारी की गई है। इसमें राजा और सामंतों को भी चित्रित किया गया है। वहीं शिव और पार्वती के कथाचित्र मौजूद हैं। ओरछा में राय प्रवीण महल में दरबारी नृत्य दृश्यों का सुंदर अंकन किया गया है। ये चित्र बुंदेलखंड के रीतिकालीन काव्य को बखूबी परिलक्षित करते हैं। अभिसारिकाओं की पेंटिंग्स अपना विशेष प्रभाव छोड़ती है। ओरछा के कवि केशवदास ‘रसिकप्रिया’ एवं ‘कवि प्रिया’ तथा मतिराम की ‘रसराज’ प आधारित चित्र भी बनाए गए हैं। ओरछा के अतिरिक्त दतिया महल में बुंदेली कलम के चित्र हैं जिनमें राजकुमारों द्वारा शिकार दृश्यों की सुंदर पेंटिंग है।
बुंदेली कलम में ग्रामीण जीवन को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है। सहां तक कि कृष्ण को भी साधारण कपड़ों तथा मनके वाली ग्रामीण मालाओं से सुसज्जित दिखाया गया है, जैसा कि आमतौर पर बुंदेलखंड के ग्वाले अथवा पशुपालक पहना करते हैं।
सन् 1857 के विद्रोह से उत्पन्न भावनाओं को भी कहीं सीधे तो कहीं प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है। ओरछा के लक्ष्मी मंदिर में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन को प्रदर्शित करने वाले चित्रों की श्रृंखला है। इन चित्रों में मराठा सैनिकों को किले के भीतर अपने अस्त्र-शस्त्र सहित दिखाया गया है, जिसमें वे किले की प्राचीर पर तोप चलाते हुए भी चित्रित हैं। वहीं किले के बाहर ब्रिटिश सैनिकों को अपनी विशेष पोशाक में घोड़ों पर सवार होकर तोपों के साथ किले की ओर बढ़ते हुए चित्रित किया गया है। यह चित्र अपने आप में बुंदेलखंड की इतिहास-कथा कहता है।
बुंदेली कलम में पौराणिक एवं महाकाव्यकालीन कथाओं को प्रमुखता दी गई है। एक पेंटिंग में भरत को बैठे हुए तथा हनुमान को आकाश में उड़ते दिखाया गया है जिसमें हनुमान के हाथ में संजीवनी पर्वत है। यह हनुमान-कथा का बहुत ही सुंदर चित्रण है। वाराह और नरसिंह अवतार के चित्र भी हैं। नरसिंह अवतार के चित्र में नरसिंह को एक स्तंभ से प्रकट होते हुए दिखाया गया है। इसमें नरसिंह ने हिरण्यकश्यपु को अपनी गोद में लिटा कर उसके पेट को चीरते हुए दिखाया गया है। कथा के अनुसार हिरण्यकश्यपु को पशु अथवा मानव के द्वारा नहीं मारा जा सकता था, न उसे घर के भीतर मारा जा सकता था और न बाहर, न दिन में न रात में और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र से उसका वध किया जा सकता था। अतः विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु का वध किया। पेंटिंग के दाहिनी ओर वाराह अवतार है। जहां विष्णु के रूप में वाराह को एक राक्षस के साथ-साथ पृथ्वी को उठाते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार प्रतीकात्मक रूप से उसे बुराई से पृथ्वी के उद्धार करता के रूप में दर्शाया गया है। यह चित्र भी ओरछा के राज महल में मौजूद है। महल में गणेश का भी सुंदर चित्र है जिसमें गणेश को एक से आसन पर विराजमान दिखाया गया है। इसमें गणेश के पास में चंवरधारी स्त्रियां है तथा एक महिला पूजा की सामग्री का पात्र लेकर सम्मुख खड़ी है। देवी-देवताओं के चित्रों के अतिरिक्त पशु-पक्षियों का भी चित्रण बुंदेली कलम में रुचि पूर्वक किया गया है। जैसे हाथी, शेर, घोड़ और मोरा आदि। कुछ पशु आकृतियां काल्पनिक है जो विविध कथाओं पर आधारित है। जैसे, हाथी के सिर और शेर के शरीर वाला पशु विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कलात्मकता का यह सर्वोच्च उदाहरण छतरपुर जिले के धुबेला में रानी कमलापति की समाधि के द्वार पर भी चित्रित है। हरे और लाल रंग में पुष्प और लताओं का पैटर्न मुगल कला की याद दिलाता है।
बुंदेली कलम को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने की दिशा में झांसी में कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं किन्तु मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड क्षेत्र में बुंदेली कलम संकटग्रस्त है। युवापीढ़ी को इस गौरवशाली चित्रकला परम्परा से जोड़ने के लिए सरकार और कलाप्रेमियों को संयुक्त पहल करनी होगी।
---------------------
( नवभारत, 17.05.2019 )
नवभारत शरदसिंह बुंदेलखंड #बुंदेलीकलम #चित्रकला #Drawing #BundeliKalam #Navbharat #SharadSingh #Bundelkhand

Thursday, May 16, 2019

चर्चा प्लस ... भावनाओं और कर्त्तव्यों की ब्रांडिंग के समय में हम - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... 

भावनाओं और कर्त्तव्यों की ब्रांडिंग के समय में हम 
 - डॉ. शरद सिंह
 

यदि राज्य एक ब्रांड है, बेटी बचाओ एक ब्रांड है, स्वच्छता मिशन एक ब्रांड है, शौचालय का उपयोग एक ब्रांड है, निर्मलजल एक ब्रांड है और अतुल्य भारत अभियान एक ब्रांड है तो हम अपने युवाओं से राष्ट्रप्रेम की आशा रखें अथवा बाज़ारवाद की? हमने अपने सुरक्षा बलों को भी ब्रांड बना दिया और उनके लिए ब्रांड एम्बेसडर भी अनुबंधित कर लिए गए। जैसे- सीआरपीएफ की ब्रांड एम्बेसडर है पी. वी. सिन्धु तो बीएसएफ के ब्रांड एम्बेसडर है विराट कोहली। यदि राष्ट्र और मानवता के प्रति भावनाएं एवं कर्त्तव्य भी ब्रांड बन कर प्रचारित होने का समय हमने ओढ़ लिया है जो भारतीय विचार संस्कृति के मानक पर यह ब्रांडिंग कहां सही बैठती है, यह विचारणीय है। 
 
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily News Paper चर्चा प्लस ... भावनाओं और कर्त्तव्यों की ब्रांडिंग के समय में हम - डॉ. शरद सिंह

     हम आज ब्रांडिग के समय में जी रहे हैं। हमारे शौच की व्यवस्था से ले कर राज्य, कर्त्तव्य और संवेदनाओं की भी ब्रांंडग होने लगी है। ब्रांड क्या है? ब्रांड उत्पाद वस्तु की बाजार में एक विशेष पहचान होती है जो उत्पाद की क्वालिटी को सुनिश्चित करती है, उसके प्रति उपभोक्ताओं में विश्वास पैदा करती है। क्यों कि उत्पाद की बिक्री की दशा ही उत्पादक कंपनी के नफे-नुकसान की निर्णायक बनती है। कंपनियां अपने ब्रांड को बेचने के लिए और अपने ब्रांड के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए ‘ब्रांड एम्बेसडर’ अनुबंधित करती हैं। यह एक पूर्णरुपेण बाज़ारवादी आर्थिक प्रक्रिया है। कमाल की बात यह है कि ब्रांडिग हमारे जीवन में गहराई तक जड़ें जमाता जा रहा है। इसी लिए नागरिक कर्त्तव्यों, संवेदनाओं एवं दायित्वों की भी ब्रांडिंग की जाने लगी है, गोया ये सब भी उत्पाद वस्तु हों।
आजकल राज्यों के भी ब्रांड एम्बेसडर होते हैं। जबकि राज्य एक ऐसा भू भाग होता है जहां भाषा एवं संस्कृति के आधार पर नागरिकों का समूह निवास करता है। - यह एक अत्यंत सीधी-सादी परिभाषा है। यूं तो राजनीतिशास्त्रियों ने एवं समाजवेत्ताओं ने राज्य की अपने-अपने ढंग से अलग-अलग परिभाषाएं दी है। ये परिभाषाएं विभिन्न सिद्धांतों पर आधारित हैं। राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। जैसे भारत के प्रदेशों को ’राज्य’ कहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र कारण शक्ति है। इसके अलावा युद्ध को राज्य की उत्पत्ति का कारण यह सिद्धांत मानता है जैसा कि वाल्टेयर ने कहा है प्रथम राजा एक भाग्यशाली योद्धा था। इस सिद्धांत के अनुसार शक्ति राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र आधार है शक्ति का आशय भौतिक और सैनिक शक्ति से है। प्रभुत्व की लालसा और आक्रमकता मानव स्वभाव का अनिवार्य घटक है। प्रत्येक राज्य में अल्पसंख्यक शक्तिशाली शासन करते हैं और बहुसंख्यक शक्तिहीन अनुकरण करते हैं। वर्तमान राज्यों का अस्तित्व शक्ति पर ही केंद्रित है।
राज्य को परिभाषित करते सामाजिक समझौता सिद्धांत को मानने वालों में थॉमस हाब्स, जॉन लॉक, जीन जैक, रूसो आदि का प्रमुख योगदान रहा। इन विचारकों के अनुसार आदिम अवस्था को छोड़कर नागरिकों ने विभिन्न समझौते किए और समझौतों के परिणाम स्वरुप राज्य की उत्पत्ति हुई। वहीं विकासवादी सिद्धांत मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय प्रमाणों पर आधारित है। इसके अनुसार राज्य न कृत्रिम संस्था है, न ही देवीय संस्था है। यह सामाजिक जीवन का धीरे-धीरे किया गया विकास है इसके अनुसार राज्य के विकास में कई तत्व जैसे कि रक्त संबंध धर्म शक्ति राजनीतिक चेतना आर्थिक आधार का योगदान है पर आज सबके हित साधन के रूप में विकसित हुआ। ऐसा राज्य क्या कोई उत्पाद वस्तु हो सकता है? जिसके विकास के लिए ब्रांडिंग की जाए?

शौचालय, और स्वच्छता की ब्राडिंग किया जाना और इसके लिए ब्रांड एम्बेसडर्स को अनुबंधित किया जाना बाजारवाद का ही एक नया रूप है। बाज़ारवाद वह मत या विचारधारा है जिसमें जीवन से संबंधित हर वस्तु का मूल्यांकन केवल व्यक्तिगत लाभ या मुनाफ़े की दृष्टि से ही किया जाता है, मुनाफ़ा केंद्रित तंत्र को स्थापित करने वाली विचारधारा, हर वस्तु या विचार को उत्पाद समझकर बिकाऊ बना देने की विचारधारा। बाजारवाद में व्यक्ति उपभोक्ता बनकर रह जाता है, पैसे के लिए पागल बन बैठता है, बाजारवाद समाज को भी नियंत्रण में कर लेता है, सामाजिक मूल्य टूट जाते हैं। बाजारवाद एक सांस्कृतिक पैकेज होता है। जो उपभोक्ता टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करता है, वह एयर कंडीशनर में ही सोना पसन्द करता है, एसी कोच में यात्रा करता है और बोतलबंद पानी साथ लेकर चलता है। इस संस्कृति के चलते लौह उत्खनन से लेकर बिजली, कांच और ट्रांसपोर्ट की जरूरत पड़ती है। यूरोप और अमेरिका में लाखों लोग केवल टॉयलेट पेपर के उद्योग में रोजगार पाते हैं। यह सच है कि बाजारवाद परंपरागत सामाजिक मूल्यों को भी तोड़ता है।


जीवनस्तर में परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रत्येक व्यक्ति भौतिक सुखों के पीछे भागता है। उसकी इसी प्रवृत्ति को बाज़ार अपना हथियार बनाता है। यदि बाजार का स्वच्छता से नुकसान हो रहा है तो वह स्वच्छता को क्यों बढ़ने देगा? पीने का पानी गंदा मिलेगा तो इंसान वाटर प्यूरी फायर लेगा, हवा प्रदूषित मिलेगी तो वह एयर प्यूरी फायर लेगा। इस तरह प्यूरी फायर्स का बाज़ार फलेगा-फूलेगा। इस बाजार में बेशक नौकरियां भी मिलेंगी लेकिन बदले में प्रदूषित वातावरण बना रहेगा और सेहत पर निरंतर चोट करता रहेगा तो इसका खामियाजा भी तो हमें ही भुगतना होगा।

स्वच्छता बनाए रखना एक नागरिक कर्त्तव्य है और एक इंसानी पहचान है। यदि इसके लिए भी ब्रांडिंग की जरूरत पड़े तो वह कर्त्तव्य या पहचान कहां रह जाता है? वह तो एक उत्पाद वस्तु है और जिसके पास धन है वह उसे प्राप्त कर सकता है, जिसके पास धन की कमी है वह स्वच्छता मिशन के बड़े-बड़े होर्डिंग्स के नीचे भी सोने-बैठने की जगह हासिल नहीं कर पाता है। 

भ्रूण हत्या एवं बेटी बचाओ का सीधा संबंध हमारी मानवीयता एवं संवेदनशीलता से है। यह भावना हमारे भीतर स्वतः जागनी चाहिए अथवा सरकार जो इन अभियानों की दिशा में प्रोत्साहनकारी कार्य करती है उन्हें संचालित होते रहना चाहिए। जब बात आती है इन विषयों के ब्रांड एम्बेसडर्स की तो फिर प्रश्न उठता है कि क्या बेटियां उपभोक्ता उत्पाद वस्तु हैं या फिर भ्रूण की सुरक्षा के प्रति हमारी संवेदनाएं महज विज्ञापन हैं। आज जो देश में आए दिन आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं तथा संवेदना का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि जाने-अनजाने हमारी तमाम कोमल संवेदनाएं बाजार के हाथों गिरवी होती जा रही हैं।
बात उत्पादन की बिक्री की हो तो उचित है किन्तु बाजार से हो कर गुजरने वाले कर्त्तव्यों में दिखावा अधिक होगा और सच्चाई कम। ब्रांड एम्बेसडर अनुबंधित करने के पीछे यही धारणा काम करती है कि जितना बड़ा अभिनेता या लोकप्रिय ब्रांड एम्बेसडर होगा उतना ही कम्पनी को आय कमाने में मदद मिलती है क्योंकि लोग वो सामान खरीदते है। अमूमन जितना बड़ा ब्रांड होता है उतना ही महंगा या उतना ही लोकप्रिय व्यक्ति ब्रांड एम्बेसडर बनाया जाता है क्योंकि बड़ा ब्रांड अधिक पैसे दे सकता है जबकि छोटा ब्रांड कम और ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो ब्रांड का प्रतिनिधित्व करता है, उसकी फीस करोड़ों में होती है। एक तो अगर जनता उस व्यक्ति को अगर रोल मॉडल मानती है तो ऐसे में लोगो के दिलों में जगह बनाना आसान हो जाता है। 


सड़क सुरक्षा अभियान के ब्रांड एम्बेसडर है अक्षय कुमार, फिट इंडिया अभियान के ब्रांड एम्बेसडर है सोनू सूद, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास के ब्रांड एम्बेसडर है एम, सी, मैरीकॉम, असम राज्य के ब्रांड एम्बेसडर है हिमा दास, अरुणाचल प्रदेश राज्य के ब्रांड एम्बेसडर है जॉन अब्राहम, हरियाणा (योग और आयुर्वेद) के ब्रांड एम्बेसडर है, बाबा रामदेव, तेलंगाना राज्य के ब्रांड एम्बेसडर है सानिया मिर्जा और महेश बाबू। इसी प्रकार सिक्किम राज्य के ब्रांड एम्बेसडर है ए. आर. रहमान, गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स (जीएसटी) के ब्रांड एम्बेसडर है अमिताभ बच्चन, हरियाणा के स्वास्थ्य कार्यक्रम के ब्रांड एम्बेसडर है गौरी शोरान, स्वच्छ आदत, स्वच्छ भारत के ब्रांड एम्बेसडर है काजोल, स्वच्छ आंध्र मिशन के ब्रांड एम्बेसडर है पी. वी. सिंधु, स्वच्छ भारत मिशन की ब्रांड एम्बेसडर है शिल्पा शेट्टी, स्वच्छ भारत मिशन उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के ब्रांड एम्बेसडर है अक्षय कुमार, भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट) की ब्रांड एम्बेसडर है दीया मिर्जा, असम राज्य पर्यटन की ब्रांड एम्बेसडर है प्रियंका चोपड़ा, स्किल इंडिया अभियान की भी ब्रांड एम्बेसडर है प्रियंका चोपड़ा, ‘माँ’ अभियान की ब्रांड एम्बेसडर है माधुरी दीक्षित, हेपेटाइटिस-बी उन्मूलन के ब्रांड एम्बेसडर है अमिताभ बच्चन, अतुल्य भारत अभियान के ब्रांड एम्बेसडर है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भारत के पशुपालन बोर्ड के ब्रांड एम्बेसडर है अभिनेता रजनीकांत, किसान चैनल के ब्रांड एम्बेसडर है अमिताभ बच्चन, स्वच्छ साथी कार्यक्रम की ब्रांड एम्बेसडर है दीया मिर्जा, निर्मल भारत अभियान की ब्रांड एम्बेसडर है विद्या बालन, डिजिटल भारत की ब्रांड एम्बेसडर है कृति तिवारी, उत्तर प्रदेश के समाजवादी किसान बीमा योजना के ब्रांड एम्बेसडर है अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दकी।

ब्रांडिग का क्रम यही थम जाता तो भी गनीमत था। गोया हमने अपने सुरक्षा बलों को भी ब्रांड बना दिया और उनके लिए ब्रांड एम्बेसडर भी अनुबंधित कर लिए गए। जैसे- सीआरपीएफ की ब्रांड एम्बेसडर है पी. वी. सिन्धु और बीएसएफ के ब्रांड एम्बेसडर है विराट कोहली। यदि हमने सुरक्षा बलों के लिए सिर्फ एम्बेसडर यानी राजदूत रखा होता तो बात थी लेकिन हमने तो ब्रांड एम्बेसडर रखा।

यदि राज्य एक ब्रांड है, बेटी बचाओ एक ब्रांड है, स्वच्छता मिशन एक ब्रांड है, शौचालय का उपयोग एक ब्रांड है, निर्मलजल एक ब्रांड है और अतुल्य भारत अभियान एक ब्रांड है तो हम अपने युवाओं से राष्ट्रप्रेम की आशा रखें अथवा बाज़ारवाद की? यदि राष्ट्र और मानवता के प्रति भावनाएं एवं कर्त्तव्य भी ब्रांड बन कर प्रचारित होने का समय हमने ओढ़ लिया है जो भारतीय विचार संस्कृति के मानक पर यह ब्रांडिंग कहां सही बैठती है, यह विचारणीय है।
--------------------------
(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 15.05.2019)
#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily #SharadSingh #Brand #BrandAmbassador #ब्रांड_एंबेसडर #ब्रांड #Branding

बुंदेलखंड के विलुप्त होते खेलों का आर्त्तनाद - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
प्रतिष्ठित समाचार पत्र "नवभारत" में बुंदेलखंड के विलुप्त होते खेलों पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है... इसे आपभी पढ़िए... 🙏हार्दिक आभार "नवभारत" 🙏
 

बुंदेलखंड में आज से पच्चीस-तीस वर्ष पहले तक विद्यालयों में ग्रीष्मावकाश होना बच्चों के लिए किसी महा-उत्सव से कम नहीं होता था। वार्षिक परीक्षा के दौरान भी एक उत्साह मन में कुलबुलाता रहता था कि इस बार छुट्टियों में कहां जाना है और कितना खेलना है। एक मई से 30 जून तक होने वाले ग्रीष्मावकाश में खेलों की बाढ़ आ जाती थी। जिनको घर से बाहर निकल कर खेलने की अनुमति रहती वे गिल्ली-डंडा, पिट्टू जैसे खेल खेलते। जिन्हें घर के भीतर रह कर खेलने को मिल पाता वे चपेटा, काना दुआ, सोलह गोटी, बग्गा, लंगड़ी धप्पा जैसे खेल खेलते। इन खेलों को खेलने के लिए उन्हें कहीं जा कर प्रशिक्षण प्राप्त नहीं करना पड़ता था। वे सहज प्रवृति से इन खेलों को खेलते। इन खेलों के दौरान बच्चों के बीच परस्पर प्रेम भी बढ़ता और कभी-कभी छोटे-मोटे झगड़े भी होते जो दूसरे दिन तक स्वयं ही समाप्त हो जाते। अब स्थितियां बदल चुकी हैं। अब बच्चों के परीक्षा परिणाम मेरिट के ‘कटऑफ’ पर टिके होते हैं। गरमी की छुट्टियां बाद में होती हैं, अगली कक्षा में दाखिला पहले हो जाता है। जिससे उनकी छुट्टियां पढ़ाई के बोझ से मुक्त नहीं हो पाती हैं। उस पर ‘समर कैम्प’ और ‘स्किल डेव्हलपमेंट क्लासेस’, ‘ग्रूमिंग क्लासेस’ ‘काम्पिटीशन क्रैश कोर्स’ आदि नाना प्रकार के शैक्षणिक कैम्प तथा कोर्स रहते हैं जिनमें शिक्षा ग्रहण करते हुए बच्चा ‘क्लासरूम इफैक्ट’ से मुक्त नहीं हो पाते हैं। वे पाश्चात्य ज्ञान भले ही अर्जित कर लें किन्तु अपनी परम्पराओं का ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाता है और न ही स्वतः करने की उनकी स्किल का विकास हो पाता है। जबकि पारंपरिक खेल बच्चों द्वारा ही ईजाद किए जाते रहे हैं और उनमें संशोधन, परिवर्द्धन भी बच्चों द्वारा ही किया जाता रहा।
Navbharat - Bundelkhand  Ke Vilupt Hote Khelon ka Artnaad .. - Dr Sharad Singh
बुन्देली लोकसंस्कृति भी जीवन के अनुरुप मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने में सक्षम रही है। इस तथ्य का एक उदाहरण उन खेलों को के रूप में देखा जा सकता है जिन्हें बालिकाएं सहज भाव से बड़ी रूचि के साथ खेलती बुन्देली बालिकाएं जिन खेलों को खेलती हैं उन पर बारीकी से ध्यान दिया जाए तो उन खेलों की उपादेयता का पता चलता है। ये खेल अंतः क्रीड़ा (इनडोर गेम) तथा बर्हिक्रीड़ा (आउटडोर गेम) दोनों तरह के होते थे। जिन खेलों को कमरे, आन्तरिक आंगन, छज्जे, अटारी अथवा छत पर खेला जा सकता है वे इनडोर गेम की श्रेणी में आते थे। इसके विपरीत जिन खेलों को बाहरी आंगन, मैदानों, खलिहान के परिसर में खेला जाता था वे आउटडोर गेम कहलाते। 

बुन्देलखण्ड बालिकाओं में जो खेल अधिक लोकप्रिय हैं तथा परम्परागत रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होते आ रहे हैं, वे हैं- चपेटा, काना दुआ, सोलह गोटी, बग्गा, लंगड़ी धप्पा अथवा गपई समुद्र, गुंइयां बट्ट, घोर-घोर रानी, घोड़ा पादाम साईं, रस्सी-कूद, अंगुल-बित्ता, रोटी-पन्ना, पुतरा-पुतरियां, छिल-छिलाव, आंख-मिंचउव्वल, लंगड़ी छुआउल, छुक-छुक दाना आदि। देश की स्वतंत्रता के पूर्व सुरक्षा की दृष्टि से बुंदेलखंड में बालिकाओं को घर से बाहर कम ही जाने दिया जाता था तथा देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी बुन्देलखण्ड में विकास की दर अपेक्षाकृत धीमी रही। ऐसी स्थिति में स्वप्रेरित खेलों ने उनके जीवन को मनोरंजन के साथ-साथ सुदृढ़ता प्रदान की। 

बुंदेली खेलों में चपेटा, काना दुआ, सोलह गोटी, बग्गा जैसे खेल संकटों को दूर कर के उन पर विजय पाने का साहस और कौशल बढ़ाते तो वहीं लंगड़ी धप्पा अथवा गपई समुद्र, घोड़ा पादाम साईं, रस्सी-कूद, अंगुल-बित्ता, छिल-छिलाव, आंख-मिंचउव्वल, लंगड़ी छुआउल जैसे खेल शारीरिक संतुलन के साथ-साथ व्यायाम और आपसी सामंजस्य की शिक्षा देते। घोर-घोर रानी जैसे खेल अन्याय का विरोध करना सिखाते। वहीं छुक-छुक दाना जैसे खेल छल-कपट के प्रति सचेत रहने की चेतना जगाते। रोटी-पन्ना, पुतरा-पुतरियां जैसे खेल गृहस्थ जीवन, पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्थाओं के प्रति सम्वेदनशील बनाते। इस प्रकार बुन्देली बालिकाओं के जीवन में पारम्परिक खेल जीवन के पाठ की भूमिका निभाते हैं।
बालको में गिल्ली-डंडा, कबड्डी, कुश्ती लोकप्रिय रही। लेकिन आज बालक-बालिकाओं दोनों के हाथों में मनोरंजन के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आ जाने से उन पारंपरिक खेलों से वे दूर होते जा रहे हैं जो उनमें शारीरिक क्षमता का विकास करते तथा आपसी सहयोग भावना को बढ़ाते। अब तो हाथों में झेंगाबॉक्स का रिमोट अथवा मोबाईल का स्क्रीन होता है और होता है अकेले रहने का जुनून। इस जुनून को पबजी जैसे खेल बढ़ावा दे कर मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं। बुंदेलखंड के बच्चे तो अब अपने पारम्परिक खेलों को ठीक से जानते ही नहीं हैं। यह दशा शहरों में ही नहीं गांवों में भी हो चली है। गिल्ली-डंडा की जगह क्रिकेट ने ले रखा है। अब कंचे कोई नहीं खेलता। लड़कियां भी चपेटा खेलने के बदले चैटिंग करने में रमी रहती हैं। यही कारण है कि जहां एक ओर पारंपरिक खेल दम तोड़ रहे हैं वहीं बच्चों की स्वाभाविकता, मासूमियत और खिलंदड़ापन गुम होता जा रहा है। 

फिर भी कुछ लोग हैं जो बुंदेलखंड के पारम्परिक खेलों को बचाने का उल्लेखनीय प्रयास कर रहे हैं। छतरपुर जिले के ग्राम बसारी में डॉ. बहादुर सिंह परमार के अथक प्रयासों से विगत 22 वर्ष से लगातार बुंदेली उत्सव का आयोजन किया रहा है। खजुराहो के निकट होने के कारण इस उत्सव का आनंद लेने न केवल स्वदेशी अपितु विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं। बुंदेली खेलों को सहेजने की दिशा में इस उत्सव में बुंदेली खेल प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। ऐसा ही एक बुंदेली उत्सव दमोह जिले की हटा तहसील में भी होता है। इस उत्सव में भी बुंदेली खेलकूद प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। इस वर्ष डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित गौर गौरव उत्सव में बुंदेली खेल आयोजित किए गए थे। ये खेल थे-गिल्ली-डंडा, पिट्टू, काना-दुआ, कुश्ती, कबड्डी, गिप्पी आदि। इस तरह के प्रयास देख कर अवश्य लगता है कि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो विलुप्त होते बुंदेली खेलों के आर्त्तनाद को सुन रहे हैं और उसके अस्तित्व को बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। किन्तु खेलों का सीधा संबंध बच्चों से होता है और जब तक बच्चों को इन खेलों से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक इन खेलों की दीर्घजीविता खतरे में रहेगी।
---------------------
( नवभारत, 11.05.2019 )
#नवभारत #शरदसिंह #बुंदेलखंड #बुंदेलीखेल #BundeliSports #Navbharat #SharadSingh #Bundelkhand

Sunday, May 12, 2019

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में मैं भी ...

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मैंने भी वोट किया... News 18 MP/Chhattisgarh ... 2019 का महाभारत और लोकतंत्र में आधी आबादी .... में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह