- डॉ. शरद सिंह
(साभार-‘दैनिक नई दुनिया’,03अप्रैल2011 में प्रकाशित मेरा लेख)
गर्मी का मौसम आते ही पानी की किल्लत सिर चढ़कर बोलने लगती है। पानी और औरत तो मानों एक-दूसरे की पर्याय है। ग्रामीण क्षेत्र हो या महानगर की मलिन बस्तियां, पानी भरने का काम महिलाओं के जिम्मे ही होता है। घर के लिए काम में आने वाला तमाम पानी मसलन वह चाहे नहाने या कपड़े धोने के लिए हो या फिर पीने के लिए हो, प्रबंध महिलाओं को ही करना पड़ता है। चाहे पालिका के नल पर लंबी कतार में खड़े हो कर पानी भरना हो या फिर पांच-सात किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके अपने सिर पर पानी ढोकर लाना पड़ता हो यह जिम्मा महिलाओं का ही होता है कि वे अपने परिवार को पानी मुहैया कराएं। कच्ची उम्र से ही यह दायित्व उनके हिस्से में आ जाता है, परंपरागत ढंग से। कोमल बाहों वाली, नाजुक गर्दन वाली ग्रामीण महिलाएं तीन-तीन घड़े एक साथ अपने-अपने सिर पर रखकर कई किलोमीटरों का रास्ता तय करती हैं।
नारीवादी आंदोलन शहरी क्षेत्रों में पानी की कितनी भी अलख जगा लें किंतु ग्रामीण औरतों की बुनियादी पीड़ाओं को दूर कर पाने का मसला अभी भी दायरे से बाहर खड़ा दिखाई देता है। वैवाहिक जीवन में स्त्री के अधिकार, राजनीतिक जीवन में स्त्री के अधिकार, आर्थिक धरातल पर स्त्री के अधिकार जैसे विषय निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं किंतु उतने ही महत्वपूर्ण हैं वे विषय जो औरतों के जीवन से बुनियादी स्तर पर जुड़े हुए हैं। इनमें से एक ज्वलंत विषय है पानी की आपूर्ति का।
जिन ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के स्रोत कम होते हैं तथा जल स्तर गिर जाता है, उन क्षेत्रों की औरतों को कई किलोमीटर पैदल चल कर अपने परिवार के लिए पीने का पानी जुटाना पड़ता है। छोटी बालिकाओं से लेकर प्रौढ़ाओं तक को पानी ढोते देखा जा सकता है। स्कूली आयु की अनेक बालिकाएं अपनी साइकिल के कैरियर तथा हैंडल पर प्लास्टिक के ‘कुप्पे’ (पानी भरने के लिए काम में लाए जाने वाले डिब्बे) की कई खेप जलास्रोत से अपने घर तक ढोती, पहुंचाती हैं। अवयस्क आयु मे आरंभ होने वाला यह क्रम पानी ढोने की शारीरिक क्षमता रहते तक अनवरत चलता है। गोया पेयजल जुटाना भी खालिस औरताना काम हो।
देश में पेयजल का संकट अनेक रूप में देखने को मिल जाता है। दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मंगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से।
देश में पेयजल का संकट अनेक रूप में देखने को मिल जाता है। दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मंगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से।
स्थिति इसी तरह बिगड़ती गई तो गर्मी, पानी और औरतों के त्रिकोण का एक कोण यानी औरत का पक्ष सबसे कमजोर पड़ जाएगा। आखिर वह अपने परिवार के लिए पेयजल कहां से जुटाएगी?
(साभार-‘दैनिक नई दुनिया’,03अप्रैल2011 में प्रकाशित मेरा लेख)