-डॉ. शरद सिंह
मैं उन सभी की आभारी हूं जिन्होंने वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे के ज्वलंत मसले पर अपने अमूल्य विचार व्यक्त किए।
अपनी पिछली पोस्ट में मैंने सांसद प्रिया दत्त की इस मांग पर कि जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, ‘वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे पर कुछ प्रश्न’ प्रबुद्ध ब्लॉगर-समाज के सामने रखे थे। विभिन्न विचारों के रूप में मेरे प्रश्नों के उत्तर मुझे भिन्न-भिन्न शब्दों में प्राप्त हुए। कुछ ने प्रिया दत्त की इस मांग से असहमति जताई तो कुछ ने व्यंगात्मक सहमति।
सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ ने स्पष्ट कहा कि ‘सांसद प्रिया दत्त की बात से कतई सहमत नहीं हुआ जा सकता। किसी सामाजिक बुराई को समाप्त करने की जगह उसे कानूनी मान्यता दे देना, भारतीय समाज के लिए आत्मघाती ही साबित होगा ।’ साथ ही उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया कि ‘इस धंधे से जुड़े लोगों के जीवनयापन के लिए कोई दूसरी सम्मानजनक व्यवस्था सरकारें करें। इन्हें इस धंधे की भयानकता से अवगत कराकर जागरूक किया जाये।’ अमरेन्द्र ‘अमर’ ने सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ की बात का समर्थन किया। दिलबाग विर्क ने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों के लिए उस वातावरण को तैयार किए जाने का आह्वान किया जो ऐसी औरतों का जीवन बदल सके। उनके अनुसार, ‘दुर्भाग्यवश इज्जतदार लोगों का बिकना कोई नहीं देखता ..... जो मजबूरी के चलते जिस्म बेचते हैं उनकी मजबूरियां दूर होनी चाहिए ताकि वे मुख्य धारा में लौट सकें।’ कुंवर कुसुमेश ने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों की विवशता पर बहुत मार्मिक शेर उद्धृत किया-
उसने तो जिस्म को ही बेचा है, एक फाकें को टालने के लिए।
लोग ईमान बेच देते हैं, अपना मतलब निकलने के लिए।
मनोज कुमार, रचना दीक्षित, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ एवं विजय माथुर ने ‘वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे पर कुछ प्रश्न’ उठाए जाना को सकारात्मक माना।
राज भाटिय़ा ने प्रिया दत्त की इस मांग के प्रति सहमति जताने वालों पर कटाक्ष करते हुए बड़ी खरी बात कही कि -‘सांसद प्रिया दत्त की बात से कतई सहमत नहीं हूं ,और जो भी इसे कानूनी मान्यता देने के हक में है वो एक बार इन वेश्याओं से तो पूछे कि यह किस नर्क में रह रही है , इन्हें जबर्दस्ती से धकेला जाता है इस दलदल में, हां जो अपनी मर्जी से बिकना चाहे उस के लिये लाईसेंस या कानूनी मान्यता हो, उस में किसी दलाल का काम ना हो, क्योंकि जो जान बूझ कर दल दल में जाना चाहे जाये... वै से हमारे सांसद कोई अच्छा रास्ता क्यों नही सोचते ? अगर यह सांसद इन लोगो की भलाई के लिये ही काम करना चाहते हैं तो अपने बेटों की शादी इन से कर दें, ये कम से कम इज्जत से तो रह पायेंगी।’
उसने तो जिस्म को ही बेचा है, एक फाकें को टालने के लिए।
लोग ईमान बेच देते हैं, अपना मतलब निकलने के लिए।
मनोज कुमार, रचना दीक्षित, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ एवं विजय माथुर ने ‘वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे पर कुछ प्रश्न’ उठाए जाना को सकारात्मक माना।
राज भाटिय़ा ने प्रिया दत्त की इस मांग के प्रति सहमति जताने वालों पर कटाक्ष करते हुए बड़ी खरी बात कही कि -‘सांसद प्रिया दत्त की बात से कतई सहमत नहीं हूं ,और जो भी इसे कानूनी मान्यता देने के हक में है वो एक बार इन वेश्याओं से तो पूछे कि यह किस नर्क में रह रही है , इन्हें जबर्दस्ती से धकेला जाता है इस दलदल में, हां जो अपनी मर्जी से बिकना चाहे उस के लिये लाईसेंस या कानूनी मान्यता हो, उस में किसी दलाल का काम ना हो, क्योंकि जो जान बूझ कर दल दल में जाना चाहे जाये... वै से हमारे सांसद कोई अच्छा रास्ता क्यों नही सोचते ? अगर यह सांसद इन लोगो की भलाई के लिये ही काम करना चाहते हैं तो अपने बेटों की शादी इन से कर दें, ये कम से कम इज्जत से तो रह पायेंगी।’
संजय कुमार चौरसिया ने जहां एक ओर देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों की विवशता को उनके भरण-पोषण की विवशता के रूप में रेखांकित किया वहीं साथ ही उन्होंने सम्पन्न घरों की उन औरतों का भी स्मण कराया जो सुविधाभोगी होने के लिए देह व्यापार में लिप्त हो जाती हैं।
गिरीश पंकज ने प्रिया दत्त की इस मांग पर व्यंगात्मक सहमति जताते हुए टिप्पणी की, कि -‘ जिस्मफरोशी को मान्यता देने में कोई बुराई नहीं है। कोई अब उतारू हो ही जाये कि ये धंधा करना है तो करे। जी भर कर कर ले. लोग देह को सीढ़ी बना कर कहाँ से कहाँ पहुँच रहे है(या पहुँच रही हैं) तो फिर बेचारी वे मजबूर औरते क्या गलत कर रही है, जो केवल जिस्म को कमाई का साधन बनाना चाहती है। बैठे-ठाले जब तगड़ी कमाई हो सकती है, तो यह कुटीर उद्योग जैसा धंधा (भले ही लोग गन्दा समझे,) बुरा नहीं है, जो इस धंधे को बुरा मानते है, वे अपनी जगह बने रहे, मगर जो पैसे वाले स्त्री-देह को देख कर कुत्ते की तरह जीभ लपलपाते रहते हैं, उनका दोहन खूब होना ही चाहिये.. बहुत हराम की कमाई है सेठों और लम्पटों के पास। जिस्मफरोशी को मान्यता मिल जायेगी तो ये दौलत भी बहार आयेगी। ये और बात है, की तब निकल पड़ेगी पुलिस वालों की, गुंडों की, नेताओं की. क्या-क्या होगा, यह अलग से कभी लिखा जायेगा। फिलहाल जिस्मफरोशी को मान्यता देने की बात है। वह दे दी जाये, चोरी-छिपे कुकर्म करने से अच्छा है, लाइसेंस ही दे दो न, सब सुखी रहे। समलैंगिकों को मान्यता देने की बात हो रही है...लिव्इनरिलेशनशिप को मान्यता मिल रही है। इसलिए प्रियादत्त गलत नहीं कह रही, वह देख रही है इस समय को।’
संगीता स्वरुप ने एक बुनियादी चिन्ता की ओर संकेत करते हुए कहा कि ‘क़ानून बनते हैं पर पालन नहीं होता ..गिरीश पंकज जी की बात में दम है ...लेकिन फिर भी क्या ऐसी स्त्रियों को उनका पूरा हक मिल पाएगा ? ’
वहीं, राजेश कुमार ‘नचिकेता’ ने बहुत ही समीक्षात्मक विचार प्रकट किए कि -‘ इस काम के वैधानिक करने या ना करने दोनों पक्षों के पक्ष और उलटे में तर्क हैं....वैधानिक होने में बुरी नहीं है अगर सही तरह से कानून बनाया जाए। अगर शराब बिक सकती है ये कह के कि समझदार लोग नहीं पीयेंगे। तो फिर इसमें क्या प्रॉब्लम है....जिनको वहाँ जाना है वो जायेंगे ही लीगल हो या न हो । लीगल होने से पुलिस की आमदनी बंद हो जायेगी थोड़ी। अगर ना हो और उन्मूलन हो जाए तो सब से अच्छा.....वैधानिक न होने की जरूरत पड़े तो अच्छा.....लेकिन देह व्यापार से जुड़े स्त्री-पुरुष के लिए कदम उठाना जरूरी है। ’
संगीता स्वरुप ने एक बुनियादी चिन्ता की ओर संकेत करते हुए कहा कि ‘क़ानून बनते हैं पर पालन नहीं होता ..गिरीश पंकज जी की बात में दम है ...लेकिन फिर भी क्या ऐसी स्त्रियों को उनका पूरा हक मिल पाएगा ? ’
वहीं, राजेश कुमार ‘नचिकेता’ ने बहुत ही समीक्षात्मक विचार प्रकट किए कि -‘ इस काम के वैधानिक करने या ना करने दोनों पक्षों के पक्ष और उलटे में तर्क हैं....वैधानिक होने में बुरी नहीं है अगर सही तरह से कानून बनाया जाए। अगर शराब बिक सकती है ये कह के कि समझदार लोग नहीं पीयेंगे। तो फिर इसमें क्या प्रॉब्लम है....जिनको वहाँ जाना है वो जायेंगे ही लीगल हो या न हो । लीगल होने से पुलिस की आमदनी बंद हो जायेगी थोड़ी। अगर ना हो और उन्मूलन हो जाए तो सब से अच्छा.....वैधानिक न होने की जरूरत पड़े तो अच्छा.....लेकिन देह व्यापार से जुड़े स्त्री-पुरुष के लिए कदम उठाना जरूरी है। ’
इस सार्थक चर्चा के बाद भी मुझे लग रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अभी भी विचारणीय हैं जिन्हें मैं यहां विनम्रतापूर्वक आप सबके समक्ष रख रही हूं -
1.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक रूप से चलने दिया जाएगा तो वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, उस स्थिति में वेश्यागामी पुरुषों की पत्नियों और बच्चों का जीवन क्या सामान्य रह सकेगा ?
2.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दे दिया जाए तो जिस्मफरोशी करने वाली औरतों, उनके बच्चों और उनके परिवार की (विशेषरूप से) महिला सदस्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?
1.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक रूप से चलने दिया जाएगा तो वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, उस स्थिति में वेश्यागामी पुरुषों की पत्नियों और बच्चों का जीवन क्या सामान्य रह सकेगा ?
2.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दे दिया जाए तो जिस्मफरोशी करने वाली औरतों, उनके बच्चों और उनके परिवार की (विशेषरूप से) महिला सदस्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?
3.- क्या स्त्री की देह को सेठों की तिजोरियों से धन निकालने का साधन बनने देना न्यायसंगत और मानवीय होगा ? क्या कोई पुरुष अपने परिवार की महिलाओं को ऐसा साधन बनाने का साहस करेगा ? तब क्या पुरुष की सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा कायम रह सकेगी ?
4.- विवशता भरे धंधे जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा देने के मुद्दे को क्या ऐच्छिक प्रवृति वाले सम्बंधों जैसे समलैंगिकों को मान्यता अथवा लिव्इनरिलेशनशिप को मान्यता की भांति देखा जाना उचित होगा ?
5.-भावी पीढ़ी के उन्मुक्तता भरे जीवन को ऐसे कानून से स्वस्थ वातावरण मिलेगा या अस्वस्थ वातारण मिलेगा ?