बुंदेली कॉलम | 'प्रवीण प्रभात' में
------------------------
बतकाव बिन्ना की
बाप-मताई तनक अपनों सोई खयाल राखियो !
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘रामधई बिन्ना, जो का होन लगो आजकाल?’’ भैया मोय देखतई साथ बोल परे।
‘‘का हो गओ भैयाजी?’’ मैंने पूछी।
‘‘अब का बताए तुमें? खबरें पढ़-पढ़ के तो हमाओ करेजा मों को आ रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भओ का? कछू तो बताओ आप!’’ अब मोए भैयाजी की चिंता-सी होन लगी। तभई उते भौजी आ गईं, सो मैंने उनसे पूछी,‘‘काए भौजी? जे भैयाजी खों का हो गओ? आज अजब-सी बातें कर रए?’’
‘‘अरे इनकी ने कओ! बाकी हमाओ सोई जी खराब हो रओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘मनो, ऐसो हो का गओ? अब आप ओरें बुझव्वल ने बुझाओ, जल्दी बताओ के का हो गओ?’’ अब मोए औरई चिंता होन लगी।
‘‘बिन्ना, अपन ओरे लरकोरे से पढ़त आ रए के बाप-मताई देवी-देवता घांई होत आएं। सो, उनकी सेवा करो चाहिए। अपने इते तो मुतकी किसां आएं ई टाईप की जीमें चाए बेटा हो, चाए बेटी होय चाए बहू होय, सबई बाप-मताई की सेवा करत्ते औ उनको कैना मानत्ते।’’ भौयाजी बोले।
‘‘हऔ बा सरवन कुमार नोईं रओ जोन के बाप-माई अंधरा हते, औ बे तीरथ के लाने जाओ चात्ते। सो, सरवन कुमार ने दोई जनों खों टुकनिया में बिठा के कांवर घांई अपने कंधा पे लाद के तीरथ यात्रा कराई हती। बा तो राजा दशरथ ने सरवन कुमार खों तीर ने मारो होतो तो बा अपने बाप-मताई की औरई सेवा करतो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, सरवन कुमार खों मारबेई के कारण तो ऊके बाप-मताई ने राजा दशरथ खों शाप दे दओ रओ के तुमने हम अंधरन को मोड़ा मार डारो, सो तुमे सोई अपने सबसे लाड़ले बेटा की जुदाई झेलने परहे। जेई से तो रामजी खों बनवास जाने परो औ दशरथ खों उने याद कर-कर के अपने प्रान त्यागने परे।’’ भैयाजी ने अपने स्टाईल में आगे की किसां सुना दई।
‘‘हऔ सो, रामजी सोई इत्ते आज्ञाकारी हते के उन्ने बिगैर कोनऊं बहस करे बनवास एक्सेप्ट कर लओ हतो। जो आजकाल को कोनऊं मोड़ा होतो तो जेई कैतो, के हारे जाने तो तुम ओरें जाओ, हम तो इतई राज करबी। ऊंसई आप ओरन को रियाटरमेंट को समै आ गओ आए।’’ भौजी बोलीं।
भौजी की किसां सुनाबे की स्टाईल पे मोय हंसी आ गई।
‘‘तुमे हंसी आ रई? तुमाई भौजी सांची कै रईं। जो आजकाल के मोड़ा होंय तो घर से निकरबे की कैने पे मताई-बाप खों लुघरिया छुबा दें। औ ऊपे बहू बोलहे के पैले हमाओ हींसा दे देओ फेर हम ओरें तो ख्ुादई चले जाबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का, सीता मैया घांई थोड़े, के बिगैर कछू बोले मूंड़ झुकाए रामजी के संगे महल से कढ़ गईं। जै हो सीता मैया की!’’ भौजी अपने दोई हाथ जोरत भई बोलीं।
‘‘जे आप ओरें आज कोन टाईप की बतकाव कर रए? मोय तो जेई समझ ने आ रई के सरवन कुमार औ रामजी के बनवास से आप ओरन के टेंशन को का लेबो-देबो?’’ मैंने दोई से पूछी।
‘‘अरे तुमने अखबार में पढ़ी नईं का, के आजकाल कित्ती खबरे जेई टाईप की आ रईं के कऊं मोड़ा ने बाप-मताई खों लठिया मार डारो, सो कऊं बहू ने दोई खों कैद कर दओ। को जाने कोन सो जमानो आ गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, जे सोचो के पैले तो जेई होत्तो की कोनऊं दारूखोर मोड़ा अपने बाप खों, ने तो मताई खों कूटत-पीटत्तो, वा बी दारू के पइसा के लाने। पर बे सबरे अनपढ़ गंवार दारूखोर होत्ते। अब देखो, अब तो अच्छे पढ़े-लिखे मोड़ा, बहू अपने बाप-मताई औ सास-ससुर के लाने जमराज बने जा रए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, मैं समझ गई के आप बा लुगाई के बारे में कै रई न जोन ने अपने सास-ससुर के कमरा के आगे दीवार बनवा दई। जींसे कोऊं ने उनसे मिल सके औ ने बे कऊं निकर सकें। औ बा लुगाई अच्छी पढ़ी-लिखी आए। अपनो स्कूल सोई चलात आए। अब तनक सोचो के ऊके स्कूल में मोड़ा-मोड़ी का सीख-पढ़ रए हुइएं?’’ मैंने कई। काए से के बा खबर मैंने सोई पढ़ी रई। बा तो सासबाई ने कैसऊं बी कर के मोबाईल पे अपनो वीडियो बनाके रिस्तेदारन खों भेज दओ। सो रिस्तेदारन ने कलेक्टर से शिकायत करी औ कलेक्टर ने उन ओरन की खोज-खबर लई।
‘‘देख तो बिन्ना, जेई तो मोय लगो के बा कैसी लुगाई हती? औ चलो मान लओ के बा बुरई लुगाई हती, मनो ऊको बेटा भले बाहरे रैत्तो, पर का ऊको अपने बाप-मताई की तनकऊं सुध ने हती? औ बा उन ओरन को पोता? बा सोई अपनी मताई के करम ने देख पा रओ हतो? औ बा दीवार जादू की छड़ी घुमाए से तो ने बन गई हुइए? ऊको बनत में कछू तो टेम लगो हुइए। औ बने के बाद का ऊने ने देखो? का जाने कोन टाईप के लोग आएं बे?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, औ दूसरे दिनां एक खबर पढी के पइसा के लाने मोड़ा ने अपनी बुड्ढी मताई खों लठिया से पीट-पीट के मार डारो। तीसरे दिना फेर जेई टाईप की एक औ खबर पढ़ी। रामधई मोरो तो जी घबड़ान लगो आए के जो हो का रओ? का मोड़ा-मोड़ी खों अपने बाप-मताई से तनकऊ मोह ने बचो?’’ भैयाजी उदास होत भए बोले।
‘‘अपनो जी छोटो ने करो भैयाजी! सबरे मोड़ा ऐसे नईं होत आएं। कोनऊं-कोनऊं ऐसे राच्छस होत आएं, ने तो बाकी तो अपने बाप-मताई की खूब सेवा करत आएं।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘काय की सेवा? बे अपनो कैरियर बनाबे में जुटे रैत आएं। बस, इत्तो रैत आए के पैले उनके लाने बाप-मताई पइसा भेजत रैत आएं औ बाद में बे ओरें अपने बाप-मताई के लाने पइसा भेजत आएं। संगे रै के सेवा को कर रओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का! संगे रैने की का, संगे राखत लौं नईयां। हंा, बाकी ब्याओ हो जाए औ डिलेवरी होबे वाली रए सो मताई की, ने तो सासूबाई कों संगे राखबे की जरूरत पर जात आए। औ बच्चा जो तनक आया के पालबे जोग हो जात आए सो मताई खों दूध की मक्खी घांई मेंक दओ जात आए।’’ भौजी बोलीं।
‘अब सबई इत्ते निठुर नईं रैत आएं।’’ मैंने कई। बाकी भौजी औ भैयाजी की बात में दम तो हती। सो मैंने आगे कई, ‘‘भौजी, जेई से तो सरकार ने मताई-बाप के लाने कानून बनाए आएं, के जो चाए मोड़ा होय, चाए बहू होए, जो कोनऊं बाप-मताई खों ठीक से ने राखे तो थाना से ले के कचहरी लौं खटखटाओ जा सकत आए। मनो, होत का आए के बाप-मताई जेई से डरात रैत आएं के जो हम अपनईं बच्चा हरों की शिकायत ले के कऊं जैहें तो उनके बच्चा हरों की समाज में बदनामी हुइए। अरे, जे सोचो चाइए के जोन बच्चा हरों की बे इत्ती फिकर कर रए, बेई उनके प्रान लेबे खों उधारे फिर रए। मैं सब की नईं कै रई। मनो जोन के इते ऐसी समस्या होय, सो ऊको समाज से, थाना, कचहरी से मदद मांगबे में देर नईं करो चाइए। बा सासू बाई ने सई करी, के अपने रिस्तेदारन खों बताओ के उनकी बहू ने उने कैद कर दओ आए। ने तो बे उतई पिड़े-पिड़े देाई रामजी के इते चले जाते औ कोनऊं खों खबरई ने होती।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! अब तो बाप-मताई से जेई कैबो को जी करत आए के ‘बाप-मताई तनक अपनों सोई खयाल राखियोे!’ बच्चों की फिकर करबो ठीक आए, पर अपने बुढ़ापा की फिकर सोई कर लेओ। जो आंगू चल के बच्चा हरों ने संगे ने राखो तो रहबे-खाबे को अपनो इंतजाम सो होनो चाइए। काय सई कई के नईं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘आपने बिलकुल सई कई भैयाजी! जो बाप-मताई अपने लाने कछू इंतजाम कर के राखहें तो उनकी जिनगी में उनके काम आहे औ उनके बाद उनके मोड़ा-मोड़ी खों तो बा मिलई जैहे। औ जो बाप-मताई बच्चन पे ने लदहें तो बे ओरें कछू ज्यादई खयाल राखहें। मोय तो जेई लगत आए।’’मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना जमानो खराब चल रओ। बाप-मताई खों सोई जमाना के हिसाब से चलो चाइए।’’ भौजी बोलीं।
मनो आप ओरें कोनऊं बेफालतू की चिंता में ने परियो, काय से के सबई बच्चा बुरे नईं होत आएं। हां, सावधानी राखें में कोनऊं हरजा नोंईं। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
-----------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat