बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
जे छुल्ला घांई बदरा हरों की सोई बन आई
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘अब लगन लगो के कछू दिनां में मौसम बदल जैहे। काए से के अब कछू बदरा दिखान लगे। भले बरसे बिगैर कढ़ गए। मनो दिखाए तो।’’ भौजी अपनो पसीना पोंछत भई बोलीं।
‘‘हऔ, अपने बुंदेलखंड में तो नोंई, पर दूसरी जांगा कऊं-कऊं पानी गिरो आए।’’ मैंने सोई अपनी मुंड़िया हिलात भई कई।
‘‘तुम ओरन खों अकेले मौसम दिखा रओ, मनो हमें तो भौत कछू बदलो दिखा रओ।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘औ का दिखा रओ?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘ई दार को चुनाव को रिजल्ट ने देखो का?’’ भैयाजी फेर मुस्का के बोले।
‘‘हऔ, देखो! सो ऊमें का? एक तनक नीचे आ गओ, एक तनक ऊपरे पौंच गओ। जा सब तो चुनाव में चलत रैत आए। ईमें नऔ का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘नऔ जे के पूरे देस में दो राज्य ऐसे रए जिनने दिखा दओ के बे सबसे अलगई आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कौन से दो राज्य?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘एक तो उत्तर प्रदेश। जां रामजी की प्रतिष्ठा करी गई, उतई झाडूं सो फिर गओ। औ दूसरो अपनो मध्यप्रदेश। जे तो ऊंसई ‘अजब आए, गजब आए’। पूरी की पूरी सीटें छप्पन भोग घांईं थाली में सजा के परोस दई गईं।’’ भैयाजी कोनऊं टीवी चैनल के सब्जेक्ट एक्सपर्ट घांई सयानपन से बोले।
‘‘अब ऐसो आए भैयाजी, के उत्तर प्रदेश वारों की सो बे जानें, मनों अपने इते अब दो काम भओ चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘कौन से दो काम?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘एक तो जा के अपने इते के सबई सांसद खों अपने क्षेत्र के विकास के लाने सबरे काम केन्द्र से करा लेने चाइए। ऐसो अच्छो मौको फेर ने मिलहे। जे सब जानत आएं के इते की सीटें बड़े काम की रईं। जो इते की सीटें नाएं से माएं हो जातीं तो लेबे के देबे पर जाते। सो इन ओरन खों केन्द्र से मांगबे को पूरो हक बनत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जा तो सांची कई। मनो दूसरो कोन सो काम, जो भओ जानो चाइए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘दूसरो काम कांग्रेस के लाने आए। के उने अपने उन सीनियर नेता हरों खों घरे बिठा देने चाइए जोन अपनी सीटें लों नई बचा पा रए। आपई सोचो के जो खुदई उघारे फिर रए, बे दूसरों को हुन्ना-लत्ता कां से लाहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, तुमाई जे बात सोई सई आए। अब इन ओरन को जमानो गओ। सो इने खुदई सन्यास लेबे की बात कर लेनी चाइए। मनो जे ऐसो करहें नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ने करें, काल को इनई की जग हंसाई हुइए। वैसे सच कई जाए तो मोय तो बे ओरें बी नईं पोसात जोन के पास अच्छो-खासो पइसा होत भए, रिटायरमेंट के बाद बी नौकरी करन लगत आएं। अरे, तुमने कमा लओ, घर बना लओ, मोड़ा-मोड़ी पढा के अपने-अपने ठिकाने लगा दए, अब काय कर रए नौकरी? अरे, तुम तो कोनऊ जवान बेरोजगार को हक मार रए। जो कऊं ऊको नौकरी मिल जाए, सो कओ ऊको घर बस जाए। कओ बा अपने मताई-बाप को सहारो बन जाए। जेई राजनीति को हाल आए। अब ऊम्मर हो गई सो घरे बैठ के सलाहें देओ, रास्ता बताओ। जे का के जवान नेता हरों को ठेंगा दिखात रओ?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कए तो सई रईं, मनों तुमाई बात कर्री आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो होन देओ कर्री! मैं कोन कोऊ से डरात आऊं।’’ मैंने सोई भैयाजी से कई।
‘‘औ का, सच्ची बात कैबे में डर काय को?’’ भौजी ने कई। फेर बोलीं, ‘‘बाकी हमें जा बात पे बीरबल की एक किसां याद आ गई। कओ तो सुनाएं।’’
‘‘हऔ, सुनाओ!’’ मैं औ भैयाजी, दोई संगे बोल परे।
‘‘का भओ के एक दार अकबर अपने दरबार में बैठे हते। उनें कछू बी सूझत रैत्तो। सो बे अपने दरबारियन से पूछन लगे के मोय तुम ओरें जे बताओ के हमाए राज्य में सबसे बड़ो अंधरा को आए? दरबारियन ने सोच-सोच के सबरे अंधरन को नावं गिना डारो। बीरबल ने कछू नई कओ। सो अकबर ने बीरबल से पूछी के तुम काए चुप आओ। तुमें तो सब कछू पतो रैत आए, अब हमाए ई सवाल को बी जवाब देओ। बीरबल बोलो के जबाव तो हम दे दें, बाकी जवाब सुन के आप हमें हाथी से कुचरवा दैहो। अकबर बोले के नईं, ऐसो ने हुइए। तुम तो बिगैर डरे बोलो। चलो, हमने तुमाई जान बख्शी। सो बीरबल ने कई के बदशाह, सबसे बड़े अंधरा तो आप हो। जा सुन के अकबर सनाका खा गओ। भरे दरबार में ऊको सबसे बड़ो अंधरा कै दओ गओ। जी में तो आओ के बीरबल खों कुचरवा दओ जाए। मनो, ऊने जान बख्सी रई। सो, ऊने बीरबल से कई के जा जो तुम कै रए, ई साबित कर के बताओ। बीरबल बोलो के आप कल हमाए घरे पधारियो सो हम उतई बताहें। दूसरे दिनां अकबर अपने दरबारियन के संगे बीरबल के घरे पौंचों। बीरबल अपने अंगना में एक खटिया बुन रए हते। अकबर ने देखी तो बे हंसत भए पूछ बैठे के, बीरबल तुम जे का कर रए? बीरबल बोलो के जेई आप को उत्तर आए मालिक! आप अपने राज्य के सबसे बड़े आओ औ आप देख रए के हम का कर रए, फेर भी पूछ रए के हम का कर रए? सो आप सबसे बड़े अंधरा आओ के नईं? जा सुन के अकबर समझ गओ के बीरबल से जीतो नईं जा सकत आए। मनो ऊने पूछी के काय बीरबल तुमें हमें अंधरा कैबे में डर नई लगो? सो बीरबल ने कई के सांची बोलबे में डर काय को? सो जा हती बीरबल की किसां।’’भौजी ने पूरी किसां सुना डारी।
‘‘औ का भौजी, सई कए में काय को डर? अपन कोन कोनऊं के दुआरे अपने लाने कछू मांगबे जात आएं। जो कछू कभऊं मांगत आएं, सो सबई के लाने। आपई सोचो के जो इते अपने सागरे में हवाई अड्डा बन जाए, सो मुतके लोग इते आ के व्यापार करन लगहें। काय से आजकाल बड़े-बड़े लोगन के पास इत्तो टेम नई रैत के बे पैले जबलपुर, नें तो भोपाल पौंचें औ फेर उते से रेल से, नें तो गाड़ी कर के सागरे पौंचे। जो इते से चीलगाड़ी उड़न लगे सो इते आईटी पार्क के लाने दोरे खुल जैंहें। मनो अब देखो के आगे का होत आए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, जे तो नए वारे सांसदों पे आए के बे अपने-अपने क्षेत्र के लाने कोन सो काम बना पात आएं। ने तो न जाने कित्ते आए औ गए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘बिन्ना! बाकी हमें तो जे चुनाव औ तपा में दोई एक से दिखाने। इते चुनाव कढ़े औ उते तपा कढ़ो। रई पानी बरसबे और मानसून आबे की, सो जा तो बदरन पे डिपेंड आए के बे कां बरसहें, औ कां नईं। अबई देख लेओ, ओर जांगा प्री मानसून की बारिश होन लगी, मनो अपने इते बादरा मों चिढ़ा के भगे जा रएं। जे आजकाल के बदरा सोई जीती भईं छोटी पार्टी घांई आएं। उने जां फायदा दिखाहें, उतई बरसहें।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘खूब कई आपने।’’ भैयाजी की बात सुन के मोय सोई हंसी आ गई।
‘‘सई तो कई इन्ने। जे बदरा हरों की सोई बन आई। सबई चा रए के जे हमाए इते आएं औ बरसें। जोन के इते जे पौंचहें उनके भाग खुलने। औ जोन के भाग खुलहें, उनके भाग के कपाट बंद करबे के लाने जोड़-तोड़ चलत रैहे।’’ भौजी ने सोई अपनी एक्सपर्ट राय दई।
‘‘आपने सोई खूब कई भौजी। जब घने बदरा रैत आएं सो ऊ टेम पे छोटे-मोटे बदरा खों कोन पूछत आए। पर जोन टेम पे लंबो तपा झेलो होय, ऊ टेम पे छुल्ला घांईं बदरा लों काम के लगत आएं।’’ मैंने भौजी से कई।
सो, अब तो देखने जो आए केे आगे का हुइए और पानी कबे लो बरसहे। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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