चर्चा प्लस
पेपरलीक का भस्मासुर और युवाओं का भविष्य
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
चाहे अधिकारी हों, नेता हों, शिक्षक या पत्रकार हों, अभिभावक हों अथवा नीति निर्धारक हों, सभी को अपने उन दिनों को याद करना चाहिए जब वे स्वयं विद्यार्थी थे। एक विद्यार्थी के लिए किसी भी परीक्षा का महत्व कितना अधिक होता है और उसके लिए उसे कितनी अधिक मेहनत करनी पड़ती है यह विद्यार्थी ही समझ सकता है। हम सभी विद्यार्थी जीवन के उसे दूर से गुजरें हैं। पेपर लीक होना यानी विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी फिरना। यह ठीक उसी तरह है जैसे सीढ़ियां चढ़ चुके किसी इंसान को अचानक धक्का देकर नीचे गिरा दिया जाए और उससे कहा जाए कि एक बार फिर चढ़ो! क्या वह इंसान उसी ऊर्जा से दोबारा सीढ़ियां चढ़ सकेगा? दरअसल पेपर लीक का भस्मासुर युवाओं की ऊर्जा को और भविष्य को लील रहा है। उस पर त्रासदी यह कि ये घटनाएं बार-बार घट रही हैं।
देशभर में पेपर लीक को लेकर हो रहे प्रदर्शन के बीच 21 जून 2024 की देर रात को केंद्र सरकार ने एंट्री पेपर लीक कानून लागू कर दिया है। इसका अधिनियम भी जारी कर दिया गया है। इसके अनुसार पेपर लीक करने या आंसर शीट के साथ छेड़छाड़ करने पर कम से कम 3 साल की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस कानून को लागू करने का मुख्य उद्देश्य परीक्षाओं में हो रही गड़बड़ी को रोकना है। इस अधिनियम ने लागू होने में कुछ महीनों का सफर तय किया है। दरअसल, प्रतियोगी परीक्षाओं में हो रही गड़बड़ियों को रोकने के लिए केंद्र सरकार लोक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 को 5 फरवरी को लोकसभा में पेश किया था। वहां ये बिल 6 फरवरी को पास हो गया था। उसके बाद इसे राज्यसभा में पेश किया गया जहां पर इसे 9 फरवरी को पास करवा लिया गया था। दोनों सदनों से पास होने के बाद इस विधेयक को 13 फरवरी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी थी। फरवरी में मंजूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार ने इस एंटी पेपर लीक कानून को 21 जून 2024 की रात से देशभर में लागू कर दिया।
इस नए एंटी पेपर लीक कानून यानी की लोक परीक्षा कानून के दायरे में यूपीएससी, एसएससी, जेईई, नीट, सीयूईटी, रेलवे, बैंकिंग भर्ती परीक्षाएं और एनटीए की तरफ से आयोजित सभी परीक्षाएं आएंगी। अगर अब इन परीक्षाओं में कोई भी किसी भी तरह की गड़बड़ी करता पाया जाएगा। उसके खिलाफ एंटी पेपर लीक कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस कानून के तहत पेपर लीक करने या अनुचित साधन का इस्तेमाल करने पर कम से कम तीन साल की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसके साथ ही परीक्षा संचालन के लिए नियुक्त सर्विस प्रोवाइडर के दोषी पाए जाने पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
जब संसद में इस बिल पेश किया गया था तो उस वक्त केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि इस कानून का उद्देश्य केवल धांधली करके युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों को रोकना है। परीक्षार्थियों को इस एंटी पेपर लीक कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। यह उचित भी है क्योंकि परीक्षार्थी प्रतियोगिता के अतिदबाव के कारण ऐसे गलत कामों में शामिल होते हैं। अतः प्रयास यह होना चाहिए कि यह अतिदबाव वाली स्थिति बदली जा सके। इसी दबाव के कारण अनेक छात्र-छात्राएं आत्महत्या तक कर लेते हैं। हर छात्र कौंसलर के पास नहीं पहुंच सकता है। हमारे देश में मात्र मनोदशा सुणारने के लिए कौंसलिंग का इतना चलन भी नहीं है। ऐसे में प्रतियोगी परीक्षाओं एवं प्रवेश परीक्षाओं के सिस्टम में सुधार किए जाने की जरूरत है। यदि दबाव कम होगा तो इससे जुड़े अपराध भी कम होंगे। यह दबाव ही था जिसने घोटाले की हद को डार्कनेट तक पहुंचा दिया।
एनटीए द्वारा 18 जून को आयोजित की गई इस परीक्षा में लगभग 9 लाख छात्रों ने भाग लिया था। जांच में पता चला कि लीक हुआ प्रश्नपत्र डार्कनेट पर दिखाई दिया और मूल प्रश्नपत्र से मेल खाता था। इस खोज के बाद छात्रों के हितों की रक्षा के लिए परीक्षा को तत्काल रद्द कर दिया गया।
क्या है डार्कनेट? वस्तुतः इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट्स हैं जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउजिंग के दायरे से परे होती हैं। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है। यह केवल टीओआर यानी दी ओनियन राऊटर अथवा आईटूपी अर्थात इनविजिबल इंरनेट प्रोजेक्ट जैसे विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग करने वाली इंटरनेट की एक परत है। डार्कनेट अनेक आपत्तिजनक सामग्रियां उपलब्ध रहती हैं। यद्यपि डार्कनेट की सर्फिंग करना खतरे से खाली नहीं होता है क्योंकि यह सुरक्षा कवच से परे होते हैं।
आज की गला काट प्रतियोगिता के चलते हर युवा प्रवेश परीक्षा में सफलता पाना चाहता है। कट ऑफ का हाई रेट युवाओं में घबराहट पैदा करता है। जैसे नीट परीक्षा में अर्हता के अलग-अलग मापदंड इस प्रकार हैं - नीट 2024 परीक्षा के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए आवश्यक न्यूनतम अंक यानी सामान्य श्रेणी के लिए कट ऑफ 720-164 है, एससी/एसटी/ओबीसी के लिए यह 163-129 है, सामान्य-पीएच के लिए यह 163-146 है, और एससी/ओबीसी- पीएच के लिए यह 145-129 है। इसीलिए स्थिति यह है कि अनेक युवा अपनी योग्यता पर भरोसा नहीं कर पाते हैं और तब उन्हें लगता है कि कहीं से उन्हें कोई ऐसा सूत्र मिल जाए जो उन्हें आसानी से प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण करवा दे। जालसाज युवाओं की इसी घबराहट का फायदा उठाते हैं। वे चंद भ्रष्टाचारियों की मदद से वास्तविक प्रश्न पत्र प्राप्त कर लेते हैं और प्रतियोगी युवाओं में बेचकर लाखों रुपए कमाते हैं। 22 वर्षीय अनुराग यादव ने परीक्षा से एक दिन पहले अपने चाचा सिकंदर प्रसाद यादवेंदु से परीक्षा सामग्री प्राप्त करने की बात स्वीकार की। इस घटना के कारण गिरफ्तारियां हुई हैं और परीक्षा की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठे। जब इस तरह के पेपरलीक होने का कांड उजागर होता है तो परीक्षाएं रद्द कर दी जाती हैं जिसे जहां एक और प्रतिभावान विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी फिर जाता है, वहीं प्रश्न पत्र खरीदने वाले प्रतियोगियों का पैसा मिट्टी में मिल जाता है। वहीं युवाओं के समय का भी नुकसान होता है।
आखिर कहां चूक हो रही है जो बार-बार पेपरलीक हो रहें हैं? विगत 5 साल में 15 राज्यों में 41 भर्ती परीक्षाओं में धांधली के मामले उजागर हुए। नीट और नेट परीक्षा कराने वाली केंद्रीय एंजेंसी एनटीए यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी पर भी सवाल उठने लगे। नीट जेईई जैसी परीक्षाओं में शामिल होने वाली प्रतियोगी अब झुंझलाने लगे हैं वह इस बात से तंग आ गए हैं कि कितनी बार वे परीक्षा दें? एक बार पूरे दमखम से तैयारी करके वे परीक्षा में शामिल होते हैं और फिर पता चलता है कि धांधली के कारण परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं जिससे वे हतोत्साहित हो जाते हैं। इससे उनके मनोबल पर भी बुरा असर पड़ता है।
प्रवेश परीक्षा में धांधली के एक नहीं अनेक दुष्परिणाम होते हैं। व्यापमं घोटाला तो सभी को याद ही होगा। 2013 में भारत के मध्य प्रदेश में भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा परीक्षा घोटाला यानी व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) सामने आया था। परीक्षा में किसी की जगह दूसरे को बैठाना, नकल कराना और अन्य तरह की धांधलियों आदि के कारण से इस घोटाले में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस घोटाले का दुखद पक्ष यह रहा कि घोटाले से जुड़े संदिग्धों की एक के बाद एक मौत होने लगी। इन लोगों की मौत के कारणों में दिल का दौरा और सीने में दर्द से लेकर सड़क दुर्घटनाएं और आत्महत्याएं शामिल थीं। जांच अधिकारियों ने पाया कि ये सभी मौतें असामयिक और रहस्यमयी थीं। मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि घोटाले से जुड़े 40 से अधिक लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी।
चाहे अधिकारी हों, नेता हों, शिक्षक या पत्रकार हों, अभिभावक हों अथवा नीति निर्धारक हों, सभी को अपने उन दिनों को याद करना चाहिए जब वे स्वयं विद्यार्थी थे। एक विद्यार्थी के लिए प्रवेश परीक्षा का महत्व कितना अधिक होता है और उसके लिए उसे कितनी अधिक मेहनत करनी पड़ती है यह विद्यार्थी ही समझ सकता है। हम सभी विद्यार्थी जीवन के उसे दूर से गुजरें हैं। पेपर लीक होना यानी विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी फिरना। यह ठीक उसी तरह है जैसे सीढ़ियां चढ़ चुके किसी इंसान को अचानक धक्का देकर नीचे गिरा दिया जाए और उससे कहा जाए कि एक बार फिर चढ़ो! क्या वह इंसान उसी ऊर्जा से दोबारा सीढ़ियां चढ़ सकेगा?
प्रशासन के नाक के नीचे परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसियों के जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत ठीक भस्मासुर के समान है। जैसे एक असुर ने शिव की तपस्या की और शिव ने प्रसन्न होकर उसे अपना एक कंगन वरदान स्वरुप दे दिया कि वह जिसके सिर पर कंगन रखेगा वह व्यक्ति भस्म हो जाएगा। उस असुर ने सबसे पहले वह कंगन शिव के सिर पर ही रखने का प्रयास किया। शिव अपने ही द्वारा दिए गए वरदान के शिकार हो जाते यदि विष्णु अप्सरा के रूप में भस्मासुर को मोहित करके उसी के सिर पर कंगन वाला उसका हाथ न रखवा देते। इसी तरह सरकार के द्वारा नियुक्त अधिकारी कर्मचारी ही जलसा जो से मिली भगत करके सरकार की छवि को ही नुकसान पहुंचाते हैं तथा युवाओं की जीवन और भविष्य से खिलवाड़ करते हैं। दरअसल पेपर लीक का भस्मासुर युवाओं की ऊर्जा को और भविष्य को लील रहा है। अब देखना यह है कि एंट्री पेपर लीक कानून कितना कारगर सिद्ध होता है क्योंकि देश में कानून तो अनेक है किंतु उनका क्रियान्वयन सही तरीके से अक्सर नहीं होता है। अच्छा तो यही होगा कि पेपर लीक के मुद्दे को हल्के से न लिया जाए क्यों कि यह भावी देश निर्माताओं यानी युवाओं के भविष्य का सवाल है।
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