Thursday, October 30, 2014

‘साईको’ होते समाज के विरुद्ध

मित्रो, ‘इंडिया इन साइड’ के Oct 2014 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....
पढ़ें, विचार दें और शेयर करें....
आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......
-------------0-----------------------
वामा (प्रकाशित लेख...Article Text....)

‘साईको’ होते समाज के विरुद्ध

- डॅा. (सुश्री) शरद सिंह

भारतीय रेलवे का बीना जंक्शन प्रशासनिक तौर पर एक छोटा-सा तहसीली इलाका है। इसी बीना शहर में एक नग्न युवती पेड़ों के पीछे छिपी हुई थी। इंसानों की उस पर दृष्टि पड़ी तो उसके इर्द-गिर्द भीड़ लगाने लगे। वह घबरा कर भागी। वह घबराई हुई युवती बदहवासी में बिजली के हाईटेंशन टाॅवर पर चढ़ती चली गई और लगभग 70 फुट की ऊंचाई पर पहुंच कर वह अपना संतुलन खो बैठी और गिर गई। 70 फुट की ऊंचाई से नीचे गिरते ही उसकी मौत हो गई। यह हृदयविदारक घटना घटी उस युवती के साथ जिसने अपना जीवन अभी ठीक से शुरू भी नहीं किया था। मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के एक छोटे से गंाव की आदिवासी लड़की अपने और अपने परिवार के सपने को सच करने के लिए नौकरी का साक्षात्कार देने जबलपुर गई। फिर जबलपुर से इन्दौर गई। इन्दौर में चार युवकों ने उसे सहायता देने का झांसा दे कर उसके साथ बलात्कार किया। इसके बाद एक युवक उसे इन्दौर से बीना पहुंचा कर रेलवे स्टेशन पर छोड़ गया। बीना में भी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। दिन के उजाले में उस निर्वस्त्र युवती को भीड़ ने घेर लिया। वह आतंकित युवती भीड़ से भयाक्रांत हो कर आत्मघाती कदम उठा बैठी।
क्या यह मामूली-सी घटना है जिसके रोज घटित होने पर भी हम अख़बार का पन्ना पलट कर यह सोचते हुए आगे की ख़बर पर जा टिकते हैं कि यह हमारे परिवार की बेटी के साथ नहीं हुआ है और न ही कभी हो सकता है। कितनी अच्छी खुशफहमी में जीने लगे हैं हम? जो आज दूसरे के साथ घटा है वह हमारे परिजनों के साथ नहीं घट सकता है, इसकी क्या गारंटी? मानवता को लज्जित करने वाली इस घटना से ऐसा प्रतीत होने लगा है गोया समाज साइको हो चला है। बलात्कार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दिल्ली, मुंबई, बदायुं, बीना और न जाने कितने शहर। लगभग हर शहर, कस्बे या गंाव से लगभग प्रतिदिन बलात्कार की एक न एक घटना पढ़ने को मिल जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जब अंधेरा बढ़ रहा हो उसी समय आशा की किरण भी फूटती दिखाई देती है। यह किरण दिखाई दी बीना के इस जघन्य बलात्कार कांड के बाद। पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक दम्पति ने पुलिस के हील-हवाले के बावजूद खुलासा किया कि युवती के साथ बलात्कार किया गया था। पोस्टमार्टम करने वाली चिकित्सक डाॅ. मंजू कैथोरिया ने कहा कि ‘मैं भी एक मां हूं, मेरे बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। एक लड़की जो मौत के बाद भी मासूम लग रही थी। उसका शव हमारे सामने पड़ा थां शरीर पर जगी-जगी पर घाव थे। एकाएक ऐसा लगने लगा कि हमारे सामने ही उस युवती के सामथ कोई दुष्कर्म कर रहा हो। सारी हृदयविदारक घटना अंाखों के सामने झूलने लगी। जो उस लड़की के साथ हुआ, वह और किसी के साथ नहीं होना चाहिए। ऐसी घटनाएं हमें अन्दर तक हिला देती हैं। ऐसा करने वालों को हर हाल में सजा मिले।‘
जिसने भी इस घटना को सुना वह सचमुच भीतर तक हिल गया। लेकिन प्रतिरोध सामाजिक से अधिक राजनीतिक स्तर पर सामने आया। प्रदेश में भाजपा सरकार होने के कारण कांग्रेस ने हल्लाबोल किया। ऐसा लग रहा था कि मामला राजनीतिक हो कर रह जाएगा लेकिन उसी दौरान बीना शहर के अधिवक्ताओं ने वह कदम उठाया जो दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों के अधिवक्ताओं ने भी नहीं उठाया था। आतंक फैलाने की नीयत से भारत आए कसाब की ओर से लड़ने के लिए वकील उपलब्ध हो गया। निर्भया के बलात्कारियों को बचाने के लिए एक वकील ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। किन्तु बीना शहर के अधिवक्ताओं ने बलात्कारियों की पैरवी करने से मना कर दिया। उन्होंने एक स्वर से यही कहा कि -‘जो कृत्य इन सभी ने किया, उसके लिए पैरवी करना अपराधी का साथ देने के समान होगा।’
काश! यह जज़्बा, यह मानसिकता सकल समाज की बन जाए। यदि समाज अपराध सिद्ध बलात्कारियों का बहिष्कार करना शुरू कर दे, उन्हें बचाने के लिए आगे न आए तो बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओं पर अंकुश लग सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का भी कहना है कि बलात्कार से पीडि़त महिला बलात्कार के बाद स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती है, और जीवनभर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है, जिसे उसने नहीं किया। चिन्ता का विषय यह है कि हर वर्ष बलात्कार के मामलों में बढ़ोतरी होती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। बहुत सारे मामलों की रिपोर्ट ही नहीं हो पाती। कभी पीडि़ता के परिवारवाले बदनामी के डर से पीछे हट जाने हैं, तो कभी रसूखवालों का दबाव उन्हें पीछे हटने को विवश कर देता है और कभी थाने में रिपोर्ट लिखने में कोताही बरती जाती है।
बलात्कार के अपराध को हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता है किन्तु दुख है कि समाज की मानसिक प्रवृत्ति इसे रोजमर्रा की मामूली घटना के रूप में लेने की बनती जा रही है। यदि राजनीतिक विरोध या प्रतिरोध सामने न आए तो शायद सामाजिक प्रतिरोध कहीं दिखाई ही नहीं देगा। यह स्थिति अत्यंत चिन्ताजनक है। इस बिगड़ रही मानसिकता में सबसे ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि बलात्कार को घिनौना अपराध मानने की बजाए समाज के प्रतिनिधि इसके बेहूदे विश्लेषण जुट जाते हैं। कोई लड़की के पहनावे को दोषी ठहराता है तो कोई उसके अकेले घर से बाहर निकलने के प्रति उंगली उठाता है। इस पर भी तसल्ली नहीं होती है तो ‘‘लड़कों से भूल हो जाती है’’ जैसा बयान दे दिया जाता है।
निर्भया कांड के अपराधियों की सजा के संबंध में सुझाव देने के लिए गठित की गई जस्टिस जे.एस. वर्मा समिति ने यह महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया था कि बेतुके बयान देने वाले जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल खत्म कर दी जानी चाहिए। समिति के इस सुझाव पर अमल नहीं किया गया। न ही समाज के सोच में भी कोई बदलाव नहीं आया। दुर्भाग्य है कि निर्भया कांड के बाद आई जागरूकता मानो शीत निष्क्रियता में चली गई। बलात्कार की दर थमने की बजाए बढ़ती ही गई है। यदि बलत्कृत होती है तो यह भी लड़की का दोष है या फिर बलात्कारी चूंकि बेटा है इसीलिए उसे हर हाल में दण्ड से बचाना ही है। इस सोच को मानसिक रुग्गणता ही कहा जाएगा। इसी दूषित मानसिकता के चलते बलात्कार की प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी तो होगी ही। समाज को अपनी ही साइको (रुग्गण) मानसिकता के विरुद्ध खड़ा होना ही होगा तभी स्त्री के विरुद्ध बढ़ते जा रहे जघन्य अपराध थम सकेंगे।

India Inside, October 2014

Monday, October 20, 2014

कबीर और सहजसमाधि परम्परा .....




रायपुर, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित नारी का संबल पत्रिका में प्रकाशित मेरा लेख....







'Kabir aur Sahajsamadhi Parampara' by Dr Sharad Singh

'Kabir aur Sahajsamadhi Parampara' by Dr Sharad Singh

'Kabir aur Sahajsamadhi Parampara' by Dr Sharad Singh