Wednesday, September 3, 2025

चर्चा प्लस | राजनीति को इतना भी न गिराएं कि मां अपमानित हो | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

दैनिक, सागर दिनकर में 03.09.2025 को प्रकाशित  
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चर्चा प्लस 
राजनीति को इतना भी न गिराएं कि मां अपमानित हो
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
                                                             
     हर प्राणी अपनी मां की कोख से ही जन्म लेता है। पिता की पहचान पर एक बार संशय हो सकता है किन्तु मां की पहचान सुनिश्चित रहती है। फिर हम एक मातृदेश के नागरिक हैं। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति इस बात की कभी अनुमति नहीं देती है कि मां का अपमान किया जाए। पुत्र प्रेम में स्वार्थी बनी मां कैकयी को भी श्रीराम ने मान दिया था तथा राजसत्ता के अवसर को त्याग कर उनकी इच्छानुसार चौदह वर्ष के वनवास में चले गए थे। महाभारत काल में कर्ण ने मां कुंती के अपराध को जानते हुए भी उनके पांच पुत्रों के जीवन का वचन दिया था। अब इतनी गिरावट क्यों आती जा रही है कि राजनीति के मैदान में एक मां को अपशब्द कहे जा रहे हैं?  
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। 
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रपा।। 
अर्थात मां के समान कोई छाया नहीं, मां के समान कोई आश्रय नहीं, मां के समान कोई रक्षा नहीं और मां के समान कोई जीवन देने वाला नहीं है। 
ऐसी मां के प्रति राजनीतिक लाभ के लिए अपशब्द बोला जाना हमारे सांस्कृतिक पतन का परिचायक है। प्रश्न यह नहीं है कि किस पक्ष ने किस पक्ष को निशाना बनाया, प्रश्न यह है कि एक बेटे ने एक मां को अपशब्द कहने का साहस कैसे किया? मां सबकी एक समान होती है। वह अपनी संतान के प्रति अपना सर्वस्व निछावर कर देती है। नौ माह गर्भ में पालित-पोषित करने के उपरांत अपने प्राणों को दांव पर लगा कर शिशु को जन्म देती है। रात-रात भर जाग कर शिशु का पालन करती है। शिशु की गंदगी भी प्रसन्नतापूर्वक साफ करती है। वह अपनी संतान को अच्छे संस्कार देती है। हर मां यही करती है, चाहे मित्र की मां हो या शत्रु की मां। इसीलिए मां के प्रति अपशब्द कहे जाने का अधिकार किसी को नहीं है। किन्तु कहीं न कहीं जाने अनजाने राजनीतिक स्वार्थ को उस सीमा तक पहुंचा दिया है जहां सभ्यवर्ग और मां-बहन की गाली देने वाले ‘टपोरी’ वर्ग में अंतर मिटता जा रहा है। 

‘‘माता गुरुतरा भूमेः।’’ 
- अर्थात माता इस पृथ्वी से भी कहीं अधिक भारी और श्रेष्ठ होती है।
ऐसी मां के प्रति हल्के शब्द कैसे कहे जा सकते हैं? लेकिन समाज का एक बड़ा तबका अपनी दादागिरी जताने के लिए मां-बहन की गाली देता है। ऐसी गालियां जिन्हें सुन कर कान के पर्दे झनझना जाते हैं लेकिन अनेक औरतें प्रति दिन अपने शराबी पतियों के हाथों पिटती हुईं मां-बहन की गालियां सुनती हैं। उनके बच्चे भी अपने पिता का अनुकरण करते हुए उन गालियों को कंठस्थ कर लेते हैं, दोहराते हैं जबकि उन्हें उन गालियों का अर्थ भी पता नहीं होता है। हम अपने समाज से उन गालियों को तो नहीं मिटा पाए हैं लेकिन उन गालियों के एक नए संस्करण को विस्तार दे दिया जो राजनीतिक हलके में कुछ समय पहले से चलन में आ चुका है। जब कोई बुराई चलन में शामिल होती है तो उसे और अधिक विकृत होते देर नहीं लगती है। इसका उदाहरण प्रधानमंत्री की दिवंगत मां के लिए कहे गए अपशब्द के रूप में सामने आया है। यह आपत्तिजनक है। इसलिए नहीं कि यह प्रधानमंत्री की मां के लिए कहे गए अपितु इसलिए कि एक मां के लिए कहे गए। मां चाहे किसी की भी हो, वह जीवित हो या दिवंगत, उसका सम्मान यथावत एवं यथोचित ही रहना चाहिए। 

हम उस देश के नागरिक हैं जिसे मातृदेश कहा जाता है। अतः जब एक मां को गाली दी जाती है तो वह देश को भी गाली देने के समान है। मां किसकी है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि जिसे अपशब्द कहे गए वह एक मां (दिवंगत ही सही) है। यूं भी माना जाता है कि मां कभी मरती नहीं है। वह दैहिक रूप से भले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए किन्तु उसका अंश रक्त और मज्जा के रूप में उसकी संतानों में सदैव रहता है। उसका आशीष सदा संतानों के सिर पर रहता है। फिर हम तो उस देश के नागरिक हैं जहां श्रीराम जैसे पुत्र हुए। माता कैकयी ने अपने पुत्र भरत को लाभ पहुंचाने के स्वार्थ में पड़ कर राजा दशरथ के द्वारा श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिला दिया। श्रीराम चाहते तो सबसे बड़े पुत्र होने के नाते राजगद्दी पर अपने अधिकार का दावा करते हुए वनवास में जाने से मना कर सकते थे। किन्तु उन्होंने पिता के वचन और सौतेली माता की इच्छा को शिरोधार्य माना और चौदह वर्ष के वनवास पर सहर्ष चले गए।
स्त्री की अवमानना का सबसे धृणित उदाहरण जिस महाभारतकाल में मिलता है, भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण के रूप में, उस काल में भी माता का अपमान नहीं किया गया। माता कुंती की आज्ञा मानते हुए द्रौपदी ने पांच भाइयों की पत्नी बनना स्वीकार किया। वही कुंती माता जब अपने त्यागे गए पुत्र कर्ण के पास अर्जुन के प्राणों की भिक्षा मांगने पहुंचती हैं तो कर्ण सब कुछ जाने हुए भी कि मां के एक कमजोर निर्णय ने उसे आजीवन सूतपुत्र बन कर जीने को विवश किया, मां को निराश नहीं करता है। वह यही कहता है कि मां आपके पांच पुत्र जीवित रहेंगे, यह मैं आपको वचन देता हूंै।’’ वह जानता था कि उसके और अर्जुन के बीच युद्ध अवश्यमभावी है अतः उसमें और अर्जुन दोनों में से जो जीवित रहेगा वह मां के पांच पुत्रों की संख्या को बनाए रखेगा। कर्ण ने भी माता कुंती को अपशब्द नहीं कहा था।  
  
28 अगस्त, 2025 को भाजपा ने बिहार में विपक्षी दलों की ‘‘वोटर अधिकार यात्रा’’ को लेकर को निशाना साधते हुए उनपर गंभीर आरोप लगाए। पार्टी ने दावा किया कि बिहार चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी स्वर्गीया मां हीराबेन मोदी के खिलाफ बेहद अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव के पोस्टर लगे थे। भाजपा ने सोशल मीडिया ‘‘एक्स’’ पर पोस्ट करते हुए विपक्षी नेताओं पर राजनीति में निम्न स्तर पर गिरने का आरोप लगाया। भाजपा ने कहा, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वर्गीय मां के लिए बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। भाजपा ने यह भी कहा कि राजनीति में ऐसी अभद्रता पहले कभी नहीं देखी गई। यह यात्रा अपमान, घृणा और स्तरहीनता की सारी हदें पार कर चुकी है।
भाजपा ने ‘‘एक्स’’ में पोस्ट में आगे लिखा, ‘‘तेजस्वी और राहुल ने पहले बिहार के लोगों का अपमान करने वाले स्टालिन और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं को अपनी यात्रा में बुलाकर बिहारवासियों को अपमानित कराया। अब उनकी हताशा की स्थिति यह है कि वे प्रधानमंत्री मोदी की स्वर्गीय मां को गाली दिलवा रहे हैं।’’
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस के एक स्थानीय नेता नौशाद के नेतृत्व में कांग्रेस और आरजेडी कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया और पार्टी के झंडे लहराए। हालांकि कांग्रेस ने वीडियो और अभद्र भाषा के आरोपों से खुद को अलग कर लिया था। किन्तु भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘‘राहुल गांधी की यात्रा विफल हो रही है, इसलिए इसके लिए उन्होंने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को फोन करना शुरू कर दिया है। तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने बिहारियों को गाली दी थी तो उन्हें फोन करके वह बिहार के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं?’’
इसके बाद एक कदम और आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री की दिवंगत मां को अपशब्द कहे गए। इस घटना ने सभी को विचलित कर दिया है। यदि चुनाव विशेषज्ञों का मानें तो इस घटना का चुनाव के परिणामों पर सीधा असर पड़ेगा। इससे उपजी सहानुभूति की लहर विपक्ष को डुबो सकती है। 
इस घटना पर सभी नैतिक मूल्यों की दुहाई दे रहे हैं लेकिन यह भूलने की बात नहीं है कि इसकी शुरुआत पिछले कुछ वर्षों में हो चुकी है। मां चाहे देशी हो या विदेशी, उसकी संतान चाहे योग्य हो या अयोग्य, उसके प्रति भी निरादर का भाव नहीं होना चाहिए। जोकि पिछले कुछ वर्षों में बार-बार छलक कर बाहर आया है। यह सच है कि पलटवार में सीमाएं लांघी गई हैं और किसी भी मां के मातृत्व पर अपशब्द नहीं कहे जाने चाहिए। पुलिस सक्रिय है। जांच जारी है। जांच में परिणाम जो भी सामने आए किन्तु यह तो तय करना ही होगा कि राजनीतिक लाभ की बिसात पर मां की गरिमा को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। इस प्रकार के आचरण से कोई एक प्रदेश मात्र नहीं, वरन पूरा देश, पूरा समाज एवं पूरी संस्कृति लांछित होती है। जब एक प्रधानमंत्री की दिवंगत मां को सार्वजनिक स्थान पर अपशब्द कहा जा सकता है तो आम नागरिक की मां की प्रतिष्ठा को कहां तक सुरक्षित माना जाए? राजनीति की ओर से ऐसी मिसालें स्थापित किया जाना सर्वथा अनुचित है। भारतीय राजनीति से इस प्रकार के आचरण को विलोपित किए जाने पर गंभीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है।
यह स्मरण रखना आवश्यक है कि -
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत।
 - अर्थात माता का स्थान सभी तीर्थों से भी ऊपर होता है और पिता का स्थान सभी देवताओं के भी ऊपर होता है इसीलिए हर मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता का सदा सम्मान करे। 
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Tuesday, September 2, 2025

पुस्तक समीक्षा | गोपी गीता : उद्धव प्रसंग पर भक्तिरस का सुंदर प्रवाह | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


 'आचरण' में प्रकाशित पुस्तक समीक्षा 


पुस्तक समीक्षा
गोपी गीता : उद्धव प्रसंग पर भक्तिरस का सुंदर प्रवाह
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - गोपी गीता
कवि        - डाॅ. अवध किशोर जड़िया
प्रकाशक     - शशिभूषण जड़िया, विनायक जड़िया, हरपालपुर, छतरपुर, म.प्र.- 471111
मूल्य        - 80/
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     कृष्ण कथा के सबसे महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है उद्धव प्रसंग। कृष्ण गोपियों को छोड़ कर जा चुके हैं किन्तु उन्हें गोपियों की विरह वेदना का अहसास है। कृष्ण अपने मित्र उद्धव से कहते हैं कि आप जाइए और गोपियों को समझाइए। उद्धव को पहलेे यह बात विचित्र लगती है। वे सोचते हैं कि यह वियोग का दुख कोई स्थाई दुख नहीं है, कुछ दिन में ही गोपियां कृष्ण को भूल कर अपने जीवन में व्यवस्थित हो जाएंगी। किन्तु कृष्ण के निवेदन करने पर वे गोपियों से मिलने जाने को तैयार हो जाते हैं। गोपियों से मिलने के बाद ही उन्हें प्रेम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो पाता है। इस प्रसंग का स्मरण करते ही सबसे पहले कवि सूरदास की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं जिनमें गोपियां उद्धव से कहती हैं कि -
ऊधौ मन ना भये दस-बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस।।
अर्थात हे उद्धव तुम्हारी ज्ञान की बातें सुनने और मानने के लिए अब हमारे पास दूसरा मन नहीं है, एक मन था जो श्याम के साथ चला गया है। अब दूसरे ईश्वर को मानने के लिए दूसरा मन कहां से लाएं?
इसी उद्धव प्रसंग को बुंदेलखंड के पद्मश्री सम्मानित कवि डाॅ. अवधकिशोेर जड़िया ने ‘‘गोपी गीता’’ के नाम से पुस्तक के रूप में अपनी शैली में लिखा है। कुल 112 पृष्ठ की यह पुस्तक वस्तुतः एक खंडकाव्य है जिसमें उद्धव प्रसंग को वर्णित किया गया है। कवि ने से ‘‘ऊधव शतक’’ कहा है। इस खंडकाव्य के आरंभिक पन्नों में सर्वप्रथम डॉ. सुरेश पराग द्वारा इस पुस्तक के कलेवर के संबंध में विस्तृत विचार हैं। वे ‘‘गोपी गीता: पढ़ने से पहले’’ शीर्षक के अंतर्गत लिखते हैं कि -‘‘गोपी गीता में गोपियाँ अपनी धुन से अपने उपास्य में ब्रह्मानंद प्राप्त करती है तो ऊधव भी अपनी योग साधना के द्वारा उसी ब्रह्मानंद में अवस्थित रहते हैं. दोनों ही परिस्थितियाँ सच्ची लगन के चलते सिद्ध और सत्य है, किन्तु जब दोनों एक दूसरे के साधनों का परीक्षण करना चाहते हैं, तब विसंगति की स्थिति निर्मित हो जाती है।’’ डाॅ. सुरेश पराग चाहते हैं कि इस संग्रह के पदों को पढ़ने से पूर्व पाठक भारतीय वांग्मय में षट्दर्शन को समझें और फिर डाॅ. जड़िया लिखित पदों का आनन्द लें।
आशीष वचन के रूप में हरपालपुर के मनीषी शिवरतन दिहुलिया ‘शारदेय’ ने ‘‘‘किशोर’ कवि की काव्य कला के प्रति हृदयोद्गार’’ को कुछ इन शब्दों में प्रकट किया है-‘‘दिव्य नव्य भाव भव्य झंकृत अलंकृत हैं, /छन्द ज्यों गयन्द मत्त गति में मरोर के, /श्लेष अनुप्रास रस सरस विलास युत यमक चमक चंचला के चित्तचोर के,/गूढ़ता गढ़े हैं मणिजड़िया जड़े हैं नग शारदा श्रृंगार अंग अंग पोर पोर के,/ वित्त से विशाल नित्य नूतन अमल शुचि चित्त हर कवित्त हैं, अवध किशोर के।’’
पी.डी. मिश्र, अपर पंजीयक सहकारिता ने ‘‘गोपी-गीता’’ को ‘‘विश्व कोष का नया संस्करण’’ कहा है। वे लिखते हैं कि-‘‘डॉ. जड़िया ‘सरस’ के एक सौ ग्यारह छंदों की नव गोपी-गीता पढ़ने से पहले यही प्रश्न उठेगा कि सूर और रत्नाकर के शिखरों का आज की जोड़-तोड़ वाली भाषा का भला कोई कवि तोड़ कर सकता है। अर्थात् ऐसी सारी चेष्टाओं वाले कवि के प्रति यही धारणा स्वभावतः बनेगी कि ‘चहतवारि पर भीत उठावा।’ किन्तु इसे पढ़कर कवि के साहस और क्षमता की दाद दिए बिना कोई रह ही नहीं सकता।’’
जहां तक स्वयं कवि अवधकिशोर जड़िया का प्रश्न है तो उन्होंनेे ‘‘गोपी गीता’’ के जन्म के संबंध में रोचक प्रसंग उद्धृत किया है। वे अपने प्राक्कथन में लिखते हैं-‘‘गोपी गीता (ऊघव शतक) की रचना उस समय हुई जब मुझे मंचीय कवि सम्मेलनों में जाते-जाते लगभग सात-आठ वर्ष हो चुके थे, मंचों पर यह मेरा उल्लेखनीय कालखण्ड भी था। उसी दौरान दिल्ली की कवयित्री सुश्री नूतन कपूर जी दो-चार ऊधव के छंद पढ़ा करती थीं, काफी उत्कृष्ट छंद हुआ करते थे, परन्तु मेरी बुंदेली संस्कृति के अन्तर्मन ने उन छंदों में भाषा के स्तर पर असुविधा महसूस की और अतिरिक्त शब्द शालीनता की अपेक्षा कर ली, फलतः प्रतिस्पर्धा में उन दिनों मैंने भी दो चार ऊघव प्रसंग के छंद घनाक्षरी में ही लिखे, समय चलता रहा और फिर अन्य परिप्रेक्ष्यों को छोड़ते हुए मैंने स्वतंत्र रूप से ऊधव प्रसंग का प्रयास किया।’’ वे आगे लिखते हैं कि ‘‘मैं पूर्व से ही महाकवि पं. जगन्नाथ प्रसाद ‘रत्नाकर’ के ऊघव शतक से काफी प्रभावित रहा, उनके यमक, श्लेष और रूपकों की चमत्कार चारुता मुझे प्रायः आनंदित करती रहती थी, इस हेतु अब मैंने इन छंदों की रचना प्रक्रिया के मध्य यह भी प्रयास किया कि महाकवि के अनुचर के रूप में रहूं और यह भी सावधानी रखी कि उनका कोई भी यमकीय या श्लेषीय शब्द मेरे द्वारा पुनरावृत न हो जावें।’’
डाॅ. अवध किशोर जड़िया अपने इस उद्देश्य में सफल रहे हैं कि रत्नाकर अथवा सूरदास के उद्धव प्रसंग से इतर उद्धव प्रसंग लिखा जाए। कवि ने इस प्रसंग को प्रभु वंदना से आरंभ किया है-
सिद्ध मुनि सेवि देवि दीजिए अमृत बुंद,
सुत पै पसीजिएगा और लीजिए सरण।
करण गुहार गहि, करन सँवारौ काव्य,
बरन बरन छवि-धारि प्रगटै बरण।
ऐसे मनहरण समस्त दुःख के हरण,
करन अनंत सुख चारु कंज से चरण।
राधा मातु-मंगला से विनती यही है बस,
मंगलाचरण हेतु धरें मंगला चरण।
इस मंगलाचरण के बाद कवि मूल प्रसंग पर आए हैं। यह प्रसंग वहां से आरम्भ होता है जब श्रीकृष्ण अपने सखा उद्धव से निवेदन करते हैं कि वे जा कर गोपियों को समझाएं। तब प्रेम के वास्तविक मर्म को न जानने वाले उद्धव कृष्ण को समझाने लगते हैं कि आप पुरानी बातें भूल कर राजधर्म पर ध्यान दीजिए। आप सुविज्ञ हैं अतः आपको इस प्रकार गोपियों की चिंता करना शोभा नहीं देता है-
ए हो मित्र कृष्ण, आप मथुरा अधीश बने
शोभा नहीं देता अब गोपियों का रंग-संग।
राजोचित सकल कलाप आप कीजिएगा,
मन से निकाल दीजिए अतीत के प्रसंग।
किन्तु श्रीकृष्ण हठ करते हैं कि उनके निवेदन का मान रखते हुए कम से कम एक बार उन्हें गोपियों के पास जाना चाहिए और उन्हें मेरा संदेश देते हुए अपनी ओर से समझाना चाहिए। अंततः उद्धव श्रीकृष्ण का निवेदन मान लेेते हैं और ब्रज के लिए चल पड़ते हैं। कवि ने ‘‘ऊधव प्रस्थान’’ प्रसंग के अंतर्गत लिखा है-
पीत, रक्त रंग के वितान फैलने लगे हैं,
व्योम में, विराम करने को रवि जा रहे।
केश बिखराने लगी साँवली सलौनी साँझ
गोकुल के जीव लौटि गोकुल को आरहे।
उद्धव ब्रज पहुंचते हैं तथा सभी गोपियों से मिलने की अभिलाषा प्रकट करते हैं। इस पर गोपियां भी आपस में कानाफूसी करती हैं कि ये कौन हैं? क्यों आए है? कह तो रहे हैं कि इन्हें हमारी कुशलक्षेम जानने के लिए कृष्ण ने भेजा है। यह कैसा मजाक है? क्या सूर्य के बिना प्रभात हो सकता है जो हम कृष्ण के बिना कुशल होंगी?  ‘‘गोपियों की अंतरंग वार्ता’’ के रूप में कवि डाॅ. जड़िया ने लिखा है-
पाती एक ल्याये औ प्रबोधन को आये,
कारे कृष्ण के पठाये या में दीखत है घात जू।
हो गई है रात जू, बनै न कछू कात जू,
परै पतौ न बात जू, बिना भये प्रभात जू।
तभी उद्धव गोपियों से कहते हैं कि क्े कृष्ण का पत्र लाए हैं उन लोगों के लिए-
कृष्ण का संदेश पढ़ लीजिएगा आप सब,
राजनी पूरी गहराई से लगा के मन सखियो ।
उद्धव पत्र भी सौंपते हैं और गोपियों को ज्ञानमार्ग की शिक्षा भी देते हैं। इस पर गोपियां कहती हैं-
प्रेम की प्रपुष्ट इष्ट-पूर्ण तृप्तियों से पूर्ण,
कैसे आपका गरिष्ट ज्ञान ये पचायें हम।
चारों ओर वरण किया सनेह आवरण
कैसे अपने को महामोद से लचायें हम ।
संग्रह में पूरा विवरण है कृष्ण और उद्धव तथा गोपियों और उद्धव के संवाद का। अंत में कवि ने उस प्रभाव का भी वर्णन किया है जिसमें प्रेममार्ग ज्ञानमार्ग पर भारी पड़ता है-
नेह के नगर को प्रणाम् प्रगटाने लगे,
खुद ऊधौ प्रेम के तराने गाने लगे हैं।
कवि अवध किशोर जड़िया ने भाषा के स्तर को सहज, सरल एवं बोधगम्य रखा है। श्लेष और यमक अलंकारों का बहुतायत प्रयोग है। उपमा, रूपक, वक्रोक्ति, व्यंग्योक्ति, संदेह, विरोधाभास तथा अनुप्रासालंकार में वृत्त, छेका, लाटानुप्रास का भी प्रयोग किया गया है। साथ ही, हिन्दी के साथ उर्दू, फारसी, बुंदेली और ब्रजभाषा के शब्दों का भी उपयोग किया है। शब्दालंकार एवं अर्थालंकार का प्रयोग करते हुए कवि ने पदों की गेयता को साधा है। डाॅ जड़िया का यह खंड काव्य आधुनिक भाषा-विन्यास में उद्धव प्रसंग की एक सुंदर एवं भक्तिमय प्रस्तुति है जो लगभग सभी पाठकों के लिए रुचिकर है।
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(02.09.2025 )
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