आज 18.02.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित -
पुस्तक समीक्षा
सामाजिक गौरव को रेखांकित करने वाली शोधपरक पुस्तक
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - भारत की महान कायस्थ विभूतियाँ
लेखक - डाॅ. महेन्द्र खरे
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, 4268-बी/3, अंसारी रोड, दरियागंज नयी दिल्ली-110 002
मूल्य - 450/-
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जब कोई व्यक्ति समाज के प्रति अपने विशिष्ट कार्यों के कारण इतिहास एवं समाज में विशेष स्थान प्राप्त कर लेता है तो वह किसी एक समाज अथवा समुदाय का न हो कर समस्त समाज का हो जाता है। समय के साथ उसकी समाज विशेष से जुड़ी जातीयता भी विस्मृत हो जाती है और वह एक व्यक्तित्व के रूप में सकल समाज का हो जाता है। आज किसे याद है कि चाणक्य के परामर्श पर चंद्रगुप्त के शासन के महामात्य का पदभार सम्हालने वाले महानंद के महामंत्री मुद्राराक्षस कायस्थ थे अथवा इतिहास प्रसिद्ध राजा टोडरमल कायस्थ थे। अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जिन्हें स्वामी श्री भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है। वे भक्तिसिद्धान्त ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे जिन्होंने इनको अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। उन्होंने इस्कॉन (इस्कॉन) की स्थापना की और कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन और संपादन स्वयं किया। उनका नाम अभयचरण डे था और उनका जन्म कोलकाता में बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। सन् 1959 में संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमद्भागवत पुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया। आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद सन् 1965 में अपने गुरुदेव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे 70 वर्ष की आयु में बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका जाने के लिए सन् 1966 में उन्होंने ‘‘अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ’’ की स्थापना की। स्वामी श्री भक्तिवेदांत प्रभुपाद ने जब सन्यास ग्रहण किया तभी वे सकल समाज के व्यक्ति हो गए। इसी तरह सुभाष चंद्र बोस का किसी समाज विशेष का होना मायने नहीं रखता है क्योंकि वे समूचे देश के व्यक्ति थे, वे उन सभी के प्रतिनिधि थे जो देश की स्वतंत्रता में विश्वास रखते हैं। फिर इस प्रकार की पुस्तक का औचित्य क्या है जो इतिहास प्रसिद्ध एवं समाज के प्रति अपना विशेष योगदान देने वाले महानुभावों के इस पक्ष को रेखांकित करती है कि वे किस समाज विशेष में जन्में थे? तो इसका उत्तर यही है कि ऐसी पुस्तक समाज विशेष में परिस्थितिजन्य नैराश्य को दूर करने में सहायक होती है। ऐसी पुस्तक जातीय गौरव को जगा कर समाज के प्रति कुछ सार्थक कार्य करने की प्रेरणा देती है। ऐसी पुस्तक इस बात की भी प्रेरणा देती है कि संबंधित समाज विशेष का सकल समाज के प्रति महत्वपूर्ण दायित्व होता है जिसे समाज के महानुभावों निष्पक्ष हो कर निभाया तथा मानवता के हित में हरसंभव कार्य किया। विशेषरूप से युवाओं में उत्साह एवं जागृति का संचार करने के लिए ऐसी पुस्तकें प्रेरणा का कार्य करती हैं। इस प्रकार की पुस्तकें समाज के एक विशेष पक्ष को तो उत्साहित करती ही हैं, साथ ही समाज के दूसरे पक्षों को भी आत्मावलोकन एवं अपने अतीत के गौरव से जुड़ने को प्रेरित करती है।
‘‘भारत की महान कायस्थ विभूतियां’’ के लेखक डाॅ. महेन्द्र खरे ने अपनी ‘‘आत्माभिव्यक्ति’’ में लिखा है कि - ‘‘लगभग 400 ई. पूर्व मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल राज्य की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका रखने वाले कायस्थ वंशी मुद्राराक्षस का तथा मुगलकाल में शेरशाह और अकबर के साम्राज्य के कुशल मंत्री राजा टोडरमल से लेकर भारत की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले अनेक चित्रांशों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इसी प्रकार साहित्य, कला, विज्ञान एवं धर्म के क्षेत्र में अनेक कायस्थों ने अपना परचम फहराया है। इन सबसे बढ़कर ऐसे देशभक्त एवं क्रांतिकारी भी हुए हैं जिन्होंने अपनी वीरता और साहस के बल पर देश एवं समाज को गौरवान्वित किया है। वर्तमान में भी अनेक चित्रांश देश की राजनीति व सरकार में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं तथा कुछ साहित्यकार, पत्रकार एवं कवि के रूप में आज भी सक्रिय हैं और समाज एवं देश के मान-सम्मान को बढ़ा रहे हैं।’’
वास्तव में सागर मध्यप्रदेश निवासी कवि एवं लेखक डाॅ. महेन्द्र खरे में एक बड़ा और महत्वपूर्ण शोधकार्य किया है। यूं भी जब किसी समाज अथवा समुदाय विशेष से संबंधित कोई लेखन कार्य किया जाता है तो उसमें पर्याप्त शोधकार्य आवश्यक होता है। सभी तथ्य ठोंक-बजा कर, पूरी तरह तस्दीक कर के ही प्रस्तुत किए जाते हैं अन्यथा आधा-अधूरा ज्ञान एवं आधा-अधूरा कार्य पूर्व स्थापित गौरव को भी ठेस पहुंचा सकता है। इस प्रकार के लेखन में संदर्भ, साक्ष्य आवश्यक होते हैं। इसमें अनुमान से काम नहीं चलता। डाॅ. महेन्द्र खरे ने निश्चित रूप से इतिहास को खंगाला है, प्र्रत्येक संदर्भ को परखा है और तब इस पुस्तक को आकार दिया है।
प्रोफेसर सुरेश आचार्य, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, डॉ. सर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ने डाॅ महेन्द्र खरे के शोध-श्रम के संबंध में टिप्पणी करते हुए कायस्थों के समाज के प्रति योगदान के संबंध में रोचक टिप्पणी करते हुए लिखा है कि - ‘‘संपूर्ण भारतीय वंश परंपरा को स्मरण करने वाला यह अदभुत और प्रामाणिक शोधकार्य है। डॉ. महेन्द्र खरे ने एतदर्थ अत्यंत कठोर परिश्रम किया है। स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद और डॉ. चतुर्भुज सहाय जैसे महानुभावों के अलावा भारतीय लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और चर्चित प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जैसे यशस्वी महामानव, भारत की कायस्थ परंपरा से आते हैं। भारतीय साहित्य संस्कृति और धर्म में इस वंश का बड़ा योगदान है, किन्तु यदि पटवारी परंपरा न होती तो जमीन की लूट मच जाती। इसकी पैमाइश के नियम बनाने के लिए अकबर के प्रमुख सलाहकार श्री टोडरमल हमारी कृतज्ञता के पात्र हैं। श्री हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला अमर साहित्यिक कृतियों में अपना स्थान रखती है तो उनके पुत्र अभिनेता अमिताभ बच्चन भारतीय फिल्मों के महानायक कहे जाते हैं। डॉ. महेन्द्र खरे उत्तम शोधकर्ता हैं।’’
इस पुस्तक के प्रेरणास्रोत के रूप में लेखक ने अपने पिता स्वर्गीय श्री बद्रीप्रसाद खरे का उल्लेख किया है। लेखक ने यह भी माना है कि यह विषय अत्यंत विस्तृत है अतः संभव है कि कुछ लोगों का परिचय इसमें शामिल होने से छूट गया हो। इस संबंध में लेखक ने विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया है कि -‘‘उपर्युक्त क्षेत्रों में महान कार्य करने वाली कायस्थ विभूतियों के प्रेरक प्रसंगों का संकलन एवं संपादन सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी कई महान कायस्थों का विवरण प्राप्त न हो पाने के कारण वे इस पुस्तक में स्थान नहीं पा सके। इस स्वभाविक भूल के लिए मैं खेद व्यक्त करते हुए सुधीजन पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि यदि ऐसे कोई महान चरित्र यदि छूट गये हों तो कृपया उनका विवरण एक या दो पृष्ठों में मेरे पास तक ईमेल या वाट्सएप के माध्यम से पहुँचाने का कष्ट करें। उसे पुस्तक के अगले संस्करण में छपवाने हेतु प्रयासरत रहूँगा। या भाग-2 में प्रकाशित करूंगा।’’
स्वाभाविक है कि व्यक्ति कितना भी प्रयास करे किन्तु कई बार कुछ जानकारियां उसे भी प्राप्त नहीं हो पाती हैं। फिर भी डाॅ महेन्द्र खरे ने जो शोध कार्य किया है वह प्रशंसनीय एवं अतुलनीय है। इस पुस्तक के रूप में लेखक के भीतर की इस अभिलाषा को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है कि वह अपने जातीय गौरव को सहेज कर आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करना चाहता है तथा सकल समाज के प्रति अपने सामाजिक समुदाय के महानुभावों के योगदान को रेखांकित करना चाहता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लेखक अपने प्रयास में सफल रहा है।
लेखक डाॅ महेन्द्र खरे ने अतीत से ले कर वर्तमान तक कायस्त कुल के जिन विशिष्ट व्यक्तियों को अपनी पुस्तक ‘‘भारत की महान कायस्थ विभूतियाँ’’ में स्थान दिया है वे हैं- मुद्राराक्षस, राजा टोडरमल, संत धरनी दास, सुवंत राय, वंशीधर, अक्षर अनन्य कायस्थ, बख्शी हंसराज, ठाकुर कवि, माइकल मधुसूदन दत्त, वृंदावन दास, मुंशी काली प्रसाद कुलभास्कर, मुंशी देवी प्रसाद, दीवान जयप्रकाश लाल, मथुरादास लंकेश, नृसिंहदास कायस्थ, रमेशचन्द्र दत्त, लाला परमानन्द प्रधान, लाला बल्देव प्रसाद, चैधरी बाबू महादेव प्रसाद, जगदीश चन्द्र बसु, बाबू हरगोविन्द दयाल, प्रफुल्लचंद्र राय, स्वामी विवेकानन्द, हरिदास कायस्थ, लाला भगवानदीन, यदुनाथ सरकार, महर्षि अरविन्द घोष, सरोजनी नायडू, बारीन्द्र नाथ घोष, मुंशी प्रेमचंद, भूपेन्द्रनाथ दत्त, डॉ. विधान चंद्र राय, चतुर्भुज सहाय, ज्योतिषचंद्र घोष, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लाला हरदयाल, रासबिहारी बोस, विनय कुमार सरकार, खुदीराम बोस, वृंदावनलाल वर्मा, संपूर्णानंद, गणेश शंकर विद्यार्थी, परमानंद खरे, शिवपूजन सहाय, शांतिस्वरूप भटनागर, सत्येन्द्र नाथ बोस, ज्ञानचंद्र घोष, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव, लाला पंचम सिंह, फिराक गोरखपुरी, स्वामी प्रभुपाद, सुभाषचंद्र बोस, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, रामानुज लाल श्रीवास्तव, माणिक्य लाल वर्मा, डॉ. बी.पी. सिन्हा, श्यामनंदन सहाय, के. बी. सहाय, जयप्रकाश नारायण, भगवती चरण वर्मा, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. रामकुमार वर्मा, अम्बिका प्रसाद दिव्य, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव शेखर, नर्मदा प्रसाद खरे, सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, श्रीपत राय, बीजू पटनायक, डॉ. चंद्रप्रकाश वर्मा, जगदीशचंद्र माथुर, महर्षि महेश योगी, नारायण दास खरे, डॉ. बालाप्रसाद खरे, तारारानी श्रीवास्तव, लोकनाथ श्रीवास्तव, मन्ना डे, भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा, गिरिजा कुमार माथुर, जगमोहन लाल सिन्हा, सत्यजीत राय, डॉ. रमेश श्रीवास्तव, मुकेशचंद्र माथुर, अमृत राय, गोपालदास सक्सेना (नीरज), कृष्णनंदन सहाय, बालासाहेब ठाकरे, शिवचरण माथुर, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, शिवकुमार श्रीवास्तव, निर्मल वर्मा, रघुवीर सहाय, डॉ. अगम प्रसाद माथुर, श्रीकान्त वर्मा, कमलेश्वर, कैलाश नारायण सारंग, राजेन्द्र माथुर, प्रोफेसर रामेश्वर दयाल श्रीवास्तव,डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव, यशवंत सिन्हा, नरेश सक्सेना, विष्णु खरे, डॉ. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव (पद्मश्री), रविनंदन सहाय, अमिताभ बच्चन, शत्रुघन सिन्हा, अवधेश कवि, अंजन श्रीवास्तव, जगदीश किंजल्क, प्रेम बिहारी सक्सेना (संविधान लेखक), गुरू सक्सेना, रविन्द्र किशोर सिन्हा, रणधीर प्रसाद वर्मा, अम्बाप्रसाद श्रीवास्तव, चैधरी जितेन्द्रनाथ सिंह, रविशंकर प्रसाद, डॉ. विष्णु सक्सेना (कवि), डॉ. अरविंद श्रीवास्तव असीम, मनोज सिन्हा, श्याम श्रीवास्तव सनम, राजू श्रीवास्तव, प्रोफेसर बी. के. श्रीवास्तव, बिहार निर्माता डॉ. सच्विदानंद सिन्हा, फेथ सारंग, सोनू निगम, रंजना श्रीवास्तव, कु. रश्मि राय, हिमांशु श्रीवास्तव, शहीद मेजर आलोक माथुर, जीवनलाल वर्मा विद्रोही, गौरीशंकर श्रीवास्तव, अलका भटनागर, महेश श्रीवास्तव, नरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव उत्सुक, सुंदरदास कायस्थ, कृष्णकांत बख्शी, स्वामी सच्चिदानंद तथा ज्योति बसु।
निःसंदेह पुस्तक में दिए गए कायस्थ कुल के जिन महानुभावों का परिचय एवं उनके योगदान का उल्लेख किया गया है उनमें से कई लोगों के बारे में आमपाठकों को ज्ञात ही नहीं होगा अथवा विस्मृत हो गया होगा कि वे कायस्थ कुल के थे। जैसे -संत धरनी दास, बालासाहेब ठाकरे, बीजू पटनायक, मन्ना डे आदि। क्योंकि ये सभी अपने विशिष्ट कार्यों से मानव समाज की धरोहर बन गए। फिर भी सामजिक गौरव का स्मरण बनाए रखने की दिशा में यह आवश्यक है कि इस बात को याद दिलाया जाए के समाज विशेष के लोगों ने समस्त समाज के प्रति किस निष्ठा एवं लगन से कार्य कर के अपने समाज का गौरव बढ़ाया।
पुस्तक के अंत में संदर्भ सूची दी गई है जिससे कोई भी व्यक्ति पुस्तक के तथ्यों को जांच-परख सकता है। इस शोधात्मक एवं श्रमसाध्य कार्य के लिए ‘‘भारत की महान कायस्थ विभूतियाँ’’ के लेखक महेन्द्र खरे प्रशंसा के पात्र हैं। यह पुस्तक प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले युवाओं की ज्ञानवृद्धि में भी सहयोगी सिद्ध होगी।
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सुंदर समीक्षा, कायस्थों के योगदान ने वाक़ई समाज को नयी दिशा दिखाई है
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