चर्चा प्लस
पूर्वजों ने छोड़ा है खजुराहो की मूर्तिकला में जैव विविधता के साक्ष्य
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
हमारे पूर्वज जैवविविधता को ले कर कितने जागरूक थे यह पौराणिक ग्रंथों से ले कर खजुराहो की मूर्तिकला तक में देखा जा सकता है। खजुराहो की मंदिर मित्तियों पर पशु, पक्षी, पुष्प, लताएं, पत्ते और वृक्ष मात्र सुंदरता के लिए नहीं उकेरे गए हैं, वरन उनकी महत्ता स्थापित करने तथा मनुष्य का अन्य जीवों से अंतर्संबंध बताने के लिए इन जैविक तत्वों का अंकन किया गया है। अन्यथा तत्कालीन कलाकार अप्सराओं और देवी-देवताओं भर का उत्खचन कर के रह जाते, प्रकृति के अन्य तत्वों को उसमें स्थान क्यों देते? खजुराहो की मूर्तियों में सांप, बिच्छू जैसे विषैले जन्तुओं को भी स्थान दिया गया है क्यों कि वे भी जैवश्रृंखला के अभिन्न अंग हैं।
आज जब हम पर्यावरण और जैव विविधता की बातें करते हैं तो हमें लगता है कि जैव विविधता को लेकर हमारे भीतर ही जागरूकता उत्पन्न हुई है हमसे पहले अर्थात् हमारे पूर्वजों का ध्यान इस ओर गया ही नहीं था यह हमारा भ्रम है क्योंकि वेदों की ऋचाओं से लेकर खजुराहो की मूर्तियों तक जैव विविधता का विशेष उल्लेख एवं प्रदर्शन है। विशेष इस अर्थ में कि हमने प्रकृति और उसके तत्वों को मात्र जैव अथवा अजैव घटकों के रूप में देखा है जबकि हमारे पूर्वजों ने उन्हें जीवन के अभिन्न अंग के रूप में सम्मानित स्थान दिया, उन्हें देवत्व प्रदान किया और देवत्व प्रदान करते हुए संरक्षण का एक मजबूत धरातल दिया। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों के समय न तो बेतहाशा जंगल काटे गए और न प्रकृति के प्रति निर्ममता का व्यवहार किया गया।
हमारे पूर्वज जैवविविधता को ले कर कितने जागरूक थे यह पौराणिक ग्रंथों से ले कर खजुराहो की मूर्तिकला तक में देखा जा सकता है। खजुराहो की मंदिर मित्तियों पर पशु, पक्षी, पुष्प, लताएं, पत्ते और वृक्ष मात्र सुंदरता के लिए नहीं उकेरे गए हैं, वरन उनकी महत्ता स्थापित करने तथा मनुष्य का अन्य जीवों से अंतर्संबंध बताने के लिए इन जैविक तत्वों का अंकन किया गया है। अन्यथा तत्कालीन कलाकार अप्सराओं और देवी-देवताओं भर का उत्खचन कर के रह जाते, प्रकृति के अन्य तत्वों को उसमें स्थान क्यों देते? खजुराहो की मूर्तियों में सांप, बिच्छू जैसे विषैले जन्तुओं को भी स्थान दिया गया है क्यों कि वे भी जैवश्रृंखला के अभिन्न अंग हैं।
खजुराहो की मूर्तियों में पर्यावरणीय तत्वों अर्थात जैव विविधता के उत्खचन पर दृष्टि डाली जाए इससे पूर्व स्मरण करना होगा पर्यावरण को। ‘‘पर्यावरण’’ शब्द का निर्माण ‘‘परि-आवरण’’ से हुआ है जिस का सामान्य अर्थ है घेरने वाला। पर्यावरण के अंतर्गत वह सब कुछ आता है जो पृथ्वी पर और उसके चारों ओर दृश्य एवं अदृश्य रूप में विद्यमान है। हमारे चारों ओर का आवरण अर्थात हमारा भौतिक एवं सामाजिक परिवेश जिससे समस्त जैविक एवं अजैविक घटक प्रभावित होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पर्यावरण का निर्माण उन सभी जैविक एवं अजैविक घटकों से हुआ है जो इस पृथ्वी के पर और इसके चारों ओर उपलब्ध हैं। पर्यावरण के अंतर्गत पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु सम्मिलित है। पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियां, जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, खनिज पदार्थ आदि सभी कुछ पर्यावरण के अंग हैं। वस्तुतः पर्यावरण की अवधारणा अत्यंत व्यापक है, इसमें पृथ्वी और पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जैव एवं अजैव घटकों के पारस्परिक संबंध, उनकी उपस्थिति, सहजीवन संतुलन एवं संयोजन का समावेश रहता है। पर्यावरण वह है जिसका स्वस्थ एवं संतुलित स्वरूप पृथ्वी के अस्तित्व एवं पृथ्वी पर जैव विविधता का निर्धारण करता है। जहां संतुलित पर्यावरण नहीं है वहां जीवन अथवा जैव विविधता भी नहीं है। पृथ्वी पर जीवन का महत्वपूर्ण अंग है मनुष्य। पर्यावरण के संतुलन एवं संरक्षण में मनुष्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनुष्य सर्वाधिक क्रियाशील प्राणी है। उसकी क्रियाएं पर्यावरण पर सीधा प्रभाव डालती हैं। इसलिए पर्यावरण के अंतर्गत समस्त घटकों के साथ-साथ मानव क्रियाओं के समस्त रूपों का भी अध्ययन एवं आकलन आवश्यक होता है।
बुंदेलखंड में स्थित खजुराहो के चारों और सघन वन क्षेत्र होने के कारण चंदेल नागरिकों में पर्यावरण एवं जैव विविधता के प्रति जागरूकता होनी स्वाभाविक थी। चंदेल मूर्तिकारों ने पशु, पक्षी, जलचर, वनस्पतियां, वायु, सूर्य, चंद्र आदि के साथ-साथ दिशाओं को भी मानवकृत रूप देते हुए मानव जीवन के प्रति उनके महत्व एवं उनकी उपादेयता को स्थापित किया है। इसके साथ ही प्रकृति एवं विविध प्राणियों के साथ मानव के पारस्परिक संबंधों का भी सूक्ष्मता से प्रदर्शन किया है।
खजुराहो की मूर्तियों में प्रदर्शित जैव विविधता को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - 1.मौलिक रूप एवं 2. प्रतीक रूप।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों में जैव विविधता के मौलिक रूप का सर्वत्र चित्रण है। मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर वृक्ष की शाखाएं उकेरी गई हैं। यह शाखाएं भी तीन प्रकार की है त्रिशाखा, पंच शाखा और सप्त शाखा। इन शाखाओं में लताएं, पुष्प एवं बेलबूटों का अंकन है। इसी के साथ कल्पवृक्ष भी उकेरे गए हैं। कंदरिया महादेव मंदिर के गर्भगृह द्वार पर सप्त शाखाएं हैं। जबकि अधिकांश मंदिरों में पंच शाखाएं हैं। इन द्वारशाखाओं पर फूल, पत्तियां, मिथुन मूर्तियां तथा साधना में लीन तपस्वी बनाए गए हैं। इन द्वारशाखाओं के निचले सिरे पर एक और मकर वाहिनी गंगा तथा दूसरी ओर कूर्मवाहिनी यमुना की प्रतिमाएं हैं।
खजुराहो की मूर्तियों में फूलों का भी भरपूर प्रदर्शन है। लक्ष्मण मंदिर तथा दूल्हा देव मंदिर में चार पंखुड़ियों वाला फूल बनाया गया है तो चैसठ योगिनी मंदिर में पूर्ण विकसित त्रिचक्रीय शतदल पुष्प प्रदर्शित है। इसी मंदिर में चार और छह पंखुड़ियों वाले फूल भी बनाए गए हैं।
फूल, पत्तियों, लता, पेड़ों के अतिरिक्त वृक्षों को भी स्थान दिया गया है। लक्ष्मण मंदिर में एक स्त्री को आम्र वृक्ष की छाया में खड़े हुए दिखाया गया है। यह मानव और वनस्पति के पारस्परिक संबंध का द्योतक है। वामन मंदिर में चित्रकारी करती हुई स्त्री के पास में वृक्ष की शाखाएं अंकित हैं जो यह दर्शाती हंै कि वह स्त्री अपने कैनवास पर पेड़-पौधों और वृक्षों को चित्रित कर रही है।
खजुराहो की मूर्तियों में वनस्पतियों के साथ ही पशु, पक्षियों को भी स्थान दिया गया है। खजुराहो संग्रहालय में संग्रहीत नारी मूर्ति में र्दाइं हथेली पर एक पक्षी को दिखाया गया है। विश्वनाथ मंदिर में दो नारी मूर्तियां हैं जिनमें से एक में पक्षी को कलाई पर बैठे हुए तथा दूसरे में दाना चुगाते हुए दिखाया गया है। जगदंबा मंदिर में सारिका पक्षी, कंदरिया महादेव में तोता, वामन मंदिर में मैना तथा लक्ष्मण मंदिर में उलूक पालतू पक्षी के रूप में उकेरा गया है। मोर, हंस, और उल्लू आदि पक्षी वाहन प्रतीक के रूप में भी दर्शाए गए हैं।
पालतू पशु के रूप में गाय, बैल, वानर, घोड़ा, हाथी, कुत्ता, मेष आदि का प्रदर्शन किया गया है। वन्य पशुओं में शेर, हिरण, भालू, भेड़िया, वनशूकर को उत्कीर्ण किया गया है। इनके अतिरिक्त छोटे जानवर जैसे मूषक और नेवला को भी अंकित किया गया है। जलचर प्राणियों में मत्स्य, शंख, कूर्म और मकर को वाहन प्रतीक के रूप में उकेरा आ गया है।
पृथ्वी पर निवास करने वाले समस्त जीवधारी समस्त प्रकार के जीवित एवं अजैविक घटकों अर्थात प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित होते हैं। पर्यावरण ही प्राकृतिक संसाधनों जैसे ऊर्जा, वायु, जल, मृदा, खनिज तत्व आदि का स्रोत है। खजुराहो की मूर्ति शिल्प की एक विशेषता यह भी है कि जीवन और प्रकृति को मानव आकार प्रस्तुत किया गया है। जैसे नदी देवियां और जल देवता। ब्रह्मा मंदिर, जगदंबा मंदिर, कंदरिया महादेव मंदिर, विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना की मानव आकृति मूर्तियां बनाई गई हैं। यह मूर्तियां चंदेल कालीन जीवन में नदियों के महत्व की परिचायक है। वाराह मंदिर में वाराह प्रतिमा के विशालकाय शरीर पर गंगा तथा यमुना को मानवीय रूप में बनाया गया है। नदी देवियों के समान ही जल देवता को भी स्थान दिया गया है। वैदिक एवं पौराणिक कल्पना के अनुसार जल देवता वरुण की मूर्तियां वाराह के विशाल शरीर के अतिरिक्त लक्ष्मण मंदिर, जगदंबा मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, दूल्हा देव मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, वामन मंदिर ,पार्श्वनाथ मंदिर तथा खजुराहो संग्रहालय में मौजूद हैं।
खजुराहो की मूर्ति कला में जैव विविधता को जिस विशिष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है वह अद्भुत है। इन मूर्तियों में विषैले जीव जंतुओं को भी स्थान दिया गया है। विभिन्न प्रकार के सर्प तथा बिच्छू का अंकन इस बात को प्रमाणित करता है कि चंदेल समाज जीवों के सभी रूपों को समान रूप से महत्व देता था। जैवविविधता के प्रत्येक रूप को पाषाण शिल्प में ढालकर प्रस्तुत किया गया है, फिर चाहे जैव जगत हो अथवा अजैव जगत।
खजुराहो के मूर्ति शिल्प में अंकित जैव विविधता यह भी संदेश देती है कि यदि खजुराहो के शिल्प की तरह है वर्तमान जीवन को भी कालजयी बनाना है तो जीवन के लिए आवश्यक समस्त तत्वों का संरक्षण करना होगा और उन्हें समाप्त होने से बचाना होगा, चाहे वह वन हो या वन्य जीवन अथवा हर प्रकार के पशुपक्षी और वनस्पतियां, सभी को संरक्षित करना होगा। लुप्त होने से बचाना होगा। जैवविधता के महत्व को समझते हुए खजुराहो के शिल्प की भांति हमें अपने वर्तमान तथा भविष्य को बचाना होगा और इस दिशा में खजुराहो की मूर्तियों में मौजूद जैव विविधता का शिल्पांकन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है।
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पृथ्वी को अपनी माँ मानने वाले लोग भला उसकी संतानों से कैसे न प्रेम करते, हर जीव उनका सहोदर था
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