🚩16 मार्च 2025 की शाम एक बेहतरीन नाटक देखा... जिसकी समीक्षा आज दैनिक भास्कर में ...
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नाटक 'सन 2025' : सस्पेंस, थ्रिल और झकझोरने वाले सच की है बेहतरीन प्रस्तुति
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, कला समीक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार
सागर | किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि की भूख जब सिर चढ़कर बोलने लगे तो इंसान गलत रास्ते अपनाने से भी हिचकता नहीं है। इसी कटु यथार्थ को सामने रखता है नाटक 'सन् 2025'। यह प्रसिद्ध स्विस लेखक और नाटककार फ्रेडरिक ड्यूरेनमेट के नाटक "इंसीडेंट एट ट्वीलाइट" पर आधारित है जिसे भारतीय परिवेश में रूपांतर किया है "गैंग्स ऑफ वासेपुर" फेम चर्चित नाटककार एवं फिल्म अभिनेता पीयूष मिश्रा ने। दो शो में मंचित किए गए नाटक "सन 2025" में महत्वाकांक्षा की अति का जीवंतता के साथ नाट्य रूपांतरण किया गया। इसमें सस्पेंस, थ्रिल और झकझोरने वाले सच की बेहतरीन प्रस्तुति रही। किसी नाटक में पात्रों का सीमित होना एक चुनौती होती है। इस चुनौती को निर्देशक मनोज सोनी ने बड़ी कुशलता से साधा। नाटक दर्शकों को वर्तमान स्थितियों पर आत्ममंथन करने के लिए विवश करता है। इसमें दो राय नहीं कि रंग साधक थिएटर ग्रुप अपनी प्रस्तुति में पूरी तरह सफल रहा।
*पात्रों ने सच और झूठ का दिलचस्प तिलिस्म पेश किया*
सीमित पात्रों का यह नाटक एक लेखक के रहस्मय जीवन और उसके लेखन की विभिन्न परतों को उजागर करता है। गड़गड़ सूफी एक जासूस है और धीरज ब्रह्मात्मे प्रसिद्ध लेखक है। ब्रह्मात्मे बड़े-बड़े पुरस्कार प्राप्त कर चुका है और अब उसे और भी बड़ा पुरस्कार पाने के लिए एक नए कथानक की तलाश है, जिसके लिए वह कुछ भी कर गुजर सकता है। नाटक में दर्शकों के सामने सच और झूठ का दिलचस्प तिलस्म पेश किया गया। जासूस सूफी लेखक ब्रह्मात्मे के पास उसका प्रशंसक बनकर उसके साथ होटल के कमरे में जा टिकता है, जहां वह एक बॉलीवुड स्टार के साथ ठहरा है। नाटक में जासूस और लेखक के बीच हुए संवादों से उन हत्याओं से एक-एक कर पर्दा उठता है और हत्यारे का पता चलते ही दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं। एक अविश्वसनीय सच से उनका सामना होता है। जैसे-जैसे नाटक गंभीर होते हुए संवादों के माध्यम से आगे बढ़ता है, कटु यथार्थ का एक नया विद्रूप चेहरा दिखता है। संवेदना की आड़ में छिपा संवेदना का घिनौना चेहरा भी उभर कर सामने आता है जो आज का सच है।
*कलाजगत के बाजारवाद और बेस्ट सेलर कल्चर की कलई खोलता है नाटक*
"सन 2025" का उद्देश्य साहित्य और कलाजगत के बाजारवाद के साथ गठजोड़ और बेस्ट सेलर कल्चर की कलई खोलना है। यदि कथानक की बात की जाए तो उसमें अपने नाम के अनुरूप वर्तमान दशा का सशक्त चित्रण है। नाटक के निर्देशक मनोज सोनी ने लेखक ब्रह्मात्मे की भूमिका को कुशलता से निभाया। जासूस सूफी के किरदार में संदीप दीक्षित जितेन्द्र सोनी ने जान डाल दी। जमील की भूमिका में अभिषेक दुबे, बॉलीवुड स्टार बनी आयुषी चौरसिया तथा होटल मैनेजर बने जितेन्द्र सोनी/संदीप दीक्षित ने अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया। देखा जाए तो सभी पात्रों ने अपने अभिनय के द्वारा दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी।
*लाइट-संगीत का प्रयोग कम लेकिन प्रभावी*
नाटक में तकनीकी दृष्टि से सबसे प्रभावी तत्व प्रकाश व्यवस्था एवं पार्श्व संगीत थे। प्रकाश व्यवस्था संदीप बोहरे और ध्वनि प्रभाव का संचालन किया था प्रोडक्शन मैनेजर अभिषेक दुबे ने। इन दोनों को अपना काम भलीभांति पता था कि कब और कहां लाइट फोकस करनी है, कब डिम लाइट करनी है और कब संगीत के द्वारा सस्पेंस पैदा करना है, यद्यपि संगीत का प्रयोग कम किया गया किंतु जितना किया गया वह प्रभावी था। मेकअप आयुषी चौरसिया का रहा तथा स्टेज मैनेजर जितेन्द्र सोनी एवं संदीप दीक्षित थे।
दर्शकों की मौजूदगी से स्पष्ट सागर में बढ़ रहा थिएटर कल्चर रंग साधक थिएटर ग्रुप द्वारा मनोज सोनी के निर्देशन में स्थानीय रवीन्द्र भवन में मंचित 'सन् 2025' के प्रति दर्शकों का रुझान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सागर में थिएटर कल्चर अब तेजी से गति पकड़ता जा रहा है। दर्शकों ने नाटक को खूब सराहा। कभी पिन ड्रॉप साइलेंस हो जाना और कभी हॉल का अचानक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठना दर्शकों के नाटक से तादात्म्य को साफ दिखा रहा था। उल्लेखनीय है कि रंग साधक थिएटर ग्रुप इस नाटक को इससे पूर्व देश के विभिन्न शहरों में सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर चुका है।
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