Thursday, July 20, 2023

बतकाव बिन्ना की | खाओ ने पियो, गिलास फोड़ो बारा आनां | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"खाओ ने पियो, गिलास फोड़ो बारा आनां" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
खाओ ने पियो, गिलास फोड़ो बारा आनां      
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

         ‘‘भैयाजी, भौजी बता रईं हतीं के महेन्द्र को वीडियो काॅल आओ रओ मिनीसोटा से। का हाल आय ऊको? बा तो मजो कर रओ हुइए। उते इते घांईं गंदगी बगरी नईं रैत। उते तो सबई बड़ी साफ-सफाई से रैत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई। महेन्द्र उनको भतीजा आए। जेई कोनऊं पांचेक साल पैले अमेरिका चलो गओ रओ। उते मिनीसोटा में रैत आए।
‘‘हऔ, बिन्ना! सांची कई। उते सो स्वरग आए, स्वरग। औ जानत हो? ऊने मोय पिछली बेर फोन पे बताओ रओ के ऊने एक कुत्ता पालबे के लाने अरजी दई आए। सो हमें बड़ो अचम्भो भओ रओ के कहूं कुत्ता पालबे के लाने सोई परमीशन लेने परत आए? इते तो अच्छो वारो बिदेसी ब्रीड को चाउने तो खरीद ल्याओ औ जो देसी चाउने, सो कहूं पिल्ला दिखाय सो ‘कुर-कुर’ की आवाजें काढ़ो औ तनक औ कछू करने होय सो तनक बिस्कुट-मिस्कुट को टुकड़ा डारत जाओ, बा तो चलो आहे पांछू-पांछू। अपने इते कां परत कोनऊं जरूरत पमीशन-वरमीशन की।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! अपने इते आवारा कुत्तन की कोन कमीं! बाकी महेन्द्र को का भओ? मिल गई ऊको परमीशन?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
 ‘‘होने का रओ? हमने पूछी तो बतान लगो के दफ्तर वारों ने कई के हफ्ता-खांड कुत्ता घरे राख के देखो, जो कछू गड़बड़ ने हुई सो परमीशन दे दई जेहे। सो, अपने महेन्द्र बाबू ले आए एक ठो पिल्ला। हफ्ता भर बी ने हो पाए औ दफ्तर वारों ने एक कुत्ता गाड़ी भेज के कुत्ता उठवा लओ।’’ ’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘काय? काय उठवा लओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘उनको कैबो रओ के महेन्द्र ने अपने कुत्ता को ध्यान नई रखो। ने तो टेम पे घुमाबे ले गए औ ने ऊके खाबे-पीबे को ठीक से इंतिजाम करो। हमने सोई महेन्द्र से कई के, जो भओ ठीक भओ। जो ने सध रई सो जबरियर ने साधो।’’ भैया जी बोले।    
‘‘औ का! बाकी देखो तो भैयाजी, के उते एक कुत्ता के लाने इत्ती फिकर करी जात आए और अपने इते बा चीता ल्याए, मानो उनकी कछू फिकर ने करी गई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना। एक ठंइयां चीता औ मर गओ। ऊको तो कीड़ा पड़ गए रए। बा कीड़ा की फोटू सोई अखबार में छपी रई। कित्तो कष्ट भओ हुइए ऊको। सोच के तो मोरो जी सो खराब होन लगत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जी सो खराब ने हुइए तो का हुइए? बातई ऐसी आए। पैले तो दूसरी बड़ी जांगा से चीता ल्याए, फेर ऊको इते संकरी सी जांगा में पेल दओ। ऊपे ऊके गरा में पट्टा डारो, सो बोई गलत वारो डारो। अब कओ जा रओ के शेर के गरा को पट्टा चीता के गरा में डार दओ रओ, जेई से ऊके गला में घाव हो गए औ कीड़ा पड़ गए। भला जे कोन सी बात भई? जो तुमें चीता के बारे में कछू नईं पतो तो, पैले सो लाने नईं हतो, जो ले आए सो एक जानकार सोई बुला के राखते। अब देखो, एक-एक कर के मरत जा रए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, औ मंगाबे वारन खों चुनाव को टेम दिखा रओ, उन ओरन खों चीता की कोन ऊं चिंता नोईं।’’ भैया जी बोले।
‘‘ नईं भैयाजी, आपई तनक सोचो के ईमें दोई जने को कित्तों नुकसान भओ जा रओ। पैले चीता मंगाबे को खर्चा, ऊपे चीता के लाने जो कछू इंतिजाम करो गओ ऊको खर्चा। औ चीता बोल गओ टें, सो जे सगरे खर्चा गए चूला में। अब तनक चीता की सोचो। बा बिचारो अपने देस से इते आओ। ऊको हवा-पानी बदरो, ऊके संग-साथ वारे बिछड़ गए, इते बा एडजेस्ट ने कर सको। ऊपे जे पट्टा-मट्टा वारी लापरवाही ने उन बेचारन के प्रान ले लए। अरे, जे ऐसी मौत को पाप लगत आए, ऐसो कओ जात आए।’’ मैंने कई।
‘‘सही कई बिन्ना। बो कहनात आए ने के खाओ ने पियो औ गिलास फोड़ो बारा आना, जेई कर डारो इन ओरन ने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘खूब कई जे कहनात!’’ मैंने भैयाजी की तारीफ करी।
‘‘औ का, अब तुमई सोचो के अपन कोनऊं होटल में गए, उते कछू खाओ ने पियो के पइसा घलहें। मनो चलत बेरा गिलास फूट गओ सो घल गए बारा आना। जे कहनात ऊ टेम से चल रई हुइए जब गिलास बारा आना में आउत्ते। अब तो कोनऊं अच्छो होटल होय सो बारा सौ घल जेहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सही कई भैयाजी! चीता ल्याए से लाभ हो पातो ईके पैलईं नुकसान होन लगो। चीता हरें बेचारे मरत जा रए। बे सोई मरत बेरा सोचत हुइएं के हमें इते राखबे खों ल्याओ गओ रओ, के मारबे खों? औ जो उने अमेरिका के कुत्तन के बारे में पतो पर जाए, सो कओ जेई दुख में उनको हार्टफेल हो जाए। के हमसे सो बे अमेरिका के कुत्ता नोने, जोन के लाने उते की सरकार इत्ती चैकन्नी रैत आए। औ एक हम ओरें ठैरे के हमें इते ल्याओ गओ, मनो हमाई जिनगी के बारे में नई सोचो गओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘दुखी ने हो बिन्ना! उन ओरन की किस्मत में जेई लिखो रओ के उते से आके इते मरने। उन ओरन की भूल गईं का बिन्ना ! जो लाॅकडाउन में दिल्ली, मुंबई से अपने गांव लौट रए हते। थक-थुका के रेल की पटरी पे सो गए रए। उन्ने सोची रई के सो के उठबी सो रोटी खाबी। पर, सोत में उन ओरन पर से रेल कढ़ गई। बे सबरे कट के मर गए औ रोटियां लत्ता में बंधी के बंधी रै गईं। अब कोन खों याद है, बे ओंरे? कोनऊं खों नईं। कहबे के मतलब जे, के जब ई जमाने में इंसान को इंसान की नई परी, सो चीता की कोन खों चिन्ता?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सच्ची भैयाजी, जब कोनऊं हंस के बोलत आए के कोरानाकाल में हमने खूब मजो करो, जे लिखों, बो पढ़ो, सो मोय तो ऐसो लगत आए जैसे कोनऊं ने कोऊ की ठठरी पे अपनो महल खड़ो करो होय।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जेई सो बात आए बिन्ना! जेई सो हम कै रए के आज कोनऊं कों कोनऊं की फिकर नइयां। फेर जे तो बेजुबान चीता आएं। इनकी पीड़ा को सुन रओ? चार मर गए, सो चार औ मंगा लए जेहें। चीता की आपदा में अपनो अवसर ढूंढ लओ जेहे। ने तो तुमई बताओ बिन्ना, के जो चिता के लाने ठीक से इंतिजाम करो गओ होतो, तो का बे मरते? मनो कागज पे इंतिजाम को लम्बो-चैड़ो आंकड़ो मिल जेहे।’’ भैयाजी तनक गुस्सा होत भए बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! अब इते स्मार्ट सिटी को ई देख लेओ। करोड़ों लग गए, लग रए औ लग जेहें, मनो घरे भीतरे नरदा को पानी भरो जा रओ। सड़क पे गड्ढा दिखान लगे। आवारा जानवर सड़क पे मस्ती मार रए। ट्रेफिक की सो पैलई वाट लगी कहानी। उते सरकारी अस्पतालन में देखो, सो पइसा ने देओ सो कोनऊं हाथ ने लगेहे। फेर बी स्मार्टनेस के लाने दस में दस नंबर कऊं गए नइयां। जनता की आपदा में सबई जने अपने-अपने अवसर देखत रैत आएं। का कओ जाए!’’ मैंने कई।      
‘‘हऔ बिन्ना, उते अपनो राकेट चांद पे जा रओ, औ अपन ओरें इते के हाल पे टेंसुआं बहा रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय ने बाहाएं टेंसुआं, भैयाजी! बे ओरें चाए खाएं, चाए ने खांए, पर बारा आना सो अपन ओरन खों ई भरन परहे। काय से के टैक्स सो अपनई भर रए, जोन से जे जल्वा खीचों जात आए। बाकी अब मोरो जी भन्ना गओ आए, सो मोय कढ़न देओ।’’ कैत भई मैंने भैयाजी से बिदा लई।
काए से के मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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