Thursday, May 23, 2024

बतकाव बिन्ना की | अपनो बुंदेलखंड हेरीटेज़ को धनी आए, मनो... | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
अपनो बुंदेलखंड हेरीटेज़ को धनी आए, मनो... 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘का सोच रईं बिन्ना?’’ भैयाजी दोरे पे ठाड़े पूछ रए हते। मोय पतई नईं परो के भैयाजी कबे आए? काय से के मैं वाकई सोच में परी हती।
‘‘कछू खास नोंई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कछु तो खास हुइए, ने तो तुमें हमाए आने की पता ने पर जाती? तुम तो सोचबे में ऐसी मगन रईं के हमने घंटी बजाई, तुमने बोई ने सुनीं। तभई हम बाहरे को दरवाजो खोल के इते कढ़ आए।’’ भैयाजी अपनी सफाई-सी देत भए बोले।
‘‘सो का भओ भैयाजी! जो बी आप ई को घर आए। आपकी बिन्ना को घर मने आपको घर। काय सई कई ना?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘औ का! तुमाए भैयाजी को घर मने तुमाओ घर।’’भैयाजी बोल परे। फेर तनक ठैर के बोले,‘‘तुम हमें ने बिलमाओ। हमें तो जे बताओ के तुम का सोच रई हतीं?’’
‘‘एक बात होय सो बताई जाए। कभऊं-कभऊं ई मुड़िया में दो-चार बातें संगे घूमन लगत आएं। मनो जे सब तो चलत रैत आए। आप सुनाओ के का चल रओ।’’ मैंने कई।
‘‘आगी-सी बरत गर्मी के दिन आएं बिन्ना! सो गर्मी चल रई, फाग तो ने चलहे।’’ भैयाजी टीवी को एक विज्ञापन की याद दिलात भए हंस के बोले।
‘‘हऔ, कोनऊं-कोनऊं विज्ञापन कित्ते नोने होत आएं, के जबान पे चढ़े रैत आएं। जैसे वो वारो - ठंडा माने कोकाकोला। औ डर के आगे जीत है। ऐसे मुतके विज्ञापन आएं जोन भुलाए नईं भूलत। उनके प्रोडक्ट मनो काम में लाओ, चाए ने लाओ, पर उनके विज्ञापन याद रैत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हो गओ तुमाओ विज्ञापन पुराण? सो अब मुद्दे पे आ जाओ औ बताओ के का सोच रई हतीं?’’ भैयाजी जाने बिना मानबे वारे तो हते नईं।
‘‘मैंने कई ने, के एक नईं दो-चार बातें संगे रईं।’’ मैंने कई।
‘‘सो ऊमें से एकई बता देओ। हमाए कलेजे में ठंडक सो पर जाए। ऊंसई बड़ी गर्मी भई जा रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का है भैयाजी, के चार दिनां पैले मोरे संगे एक चुटकुला सो हो गओ।’’ मैंने कई।
‘‘कैसो चुटकुला? का हो गओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘भओ का, के मोय जाने रओ म्यूजियम। मगर उते तो सबरी सड़कें खुदी परीं। उते तो स्कूटी लौं खड़ी करबे की जांगा नइयां। सो मैंने सोची के आॅटो कर लई जाए। मैंने आॅटो वारे से कई के भैया, म्यूजियम चलने। ऊको कछु समझ में ने आई। आॅटो तो मनो ऊने स्टार्ट कर दई, फेर पूछन लगो के आपने कां जाने की बताई? मैंने कई म्यूजियम। सो बोलो के हम नईं समझे। सो मोय कह आई के म्यूजियम मने पुरातत्व संग्रहालय चलने। इत्तो सुन के ऊने आॅटो पे ब्रेक मार दओ। बा आॅटो रोक के पूछन लगो के कोन तरफी जाने। तब मोय समझ में आई के जे कछू नईं समझ पा रओ। तब मैंने ऊसे कई के भैया, पुरानी डफरिन अस्पताल चलने, उते तीन मढ़िया के लिंगे। तब कऊं जा के ऊके समझ में आई औ ऊने फेर के आॅटो चालू करी।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘जे तो सई में मजेदार किसां हो गई।’’ भैयाजी हंसन लगे।
‘‘अब आगे कि सुनो आप। का भओ के जो मैं उते म्यूजियम पौंची तो उते पैले तो मोंय छिड़ियां समझ में ने परीं। फेर जो समझ परी, सो छिड़ियां चढे में दम फूल गई। बोई टेम मोय खयाल आओ के जे पुरानी डफरिन अस्पताल को हिस्सा रओ। इते तो ज्यादातर प्रसूती वारी लुगाइयां आउत्तीं। बे ऐसी ऊंची छिड़ियां कैसे चढत्तीं? का उने रोड से ऊपरे लौं स्ट्रेचर पे लेजात्ते?’’मैंने कई।
‘‘हऔ! बात तो सई कै रईं, बिन्ना। हम तो एकई बार बा अस्पताले गए रए। उते हमाए एक दोस्त की घरवाली एडमिट रई। ऊकी डिलेवरी होने रई। ऊ टेम पे हमें सोई बे छिड़ियां ऊंची लगी रईं। मनो हमने उत्तो ध्यान ने दओ तो। खैर, अब तो डफरिन अस्पताल उते रई नई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! मनो अब उते म्यूजियम बन गओ आए। बिल्डिंग मनो अच्छी आए। पुरानी आए। लार्ड डफरिन के जमाने की आए। तभईं तो लेडी डफरिन के नांव पे अस्पताल को नांव रखो गओ रओ। मनो मोय खयाल आओ के जे छिड़ियां तो सीनियर सिटिजन के जोग नईयां। औ जो कोनऊं ज्वान बी तनक कमजोर पांव वारो होय तो कैसे उते चढ़हे। सो मैंने उते एडीएम साब से बोलई दई। सो बे बी समझ गए रए औ उन्ने फौरन ऊको समाधान सोई सोच लओ।’’मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘जो तो अच्छो भओ। जो प्रशासन तुरतई समाधान ढूंढ ले, सो काम होई जात आए, चाए दिन कित्तऊं लगें।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! दिन लगबे की ने पूछो। उतई नगर निगम के एक बड़े अधिकारी ठाड़े हते। बे बतान लगे के आप ओरे देखियो चार दिनां में पूरो लाखा बंजारा तला साफ दिखान लगहे। मोसो नई रओ गओ औ मोरे मों से निकर गओ के, सच्ची? बे अपनी पीठ सी ठोंकत भए बोले, औ का! आप सोई देख लइयो। ई पे मोय जी करो के तनक पूछूं के पानी के ऊपरे की जलकुंभी भर साफ करी जा रई के तला खों गहरो करने को बिचार सोई आए? काय से के तला को चार दिनां में तो गहरो करो नईं जा सकत। मनो, उते माहौल ने हतो, सो मैंने पूछी नईं।’’ मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘सई करी। का होतो पूछ के। उने जो करने, जब करने तभई करहें। पब्लिक चिंचियात रैत आए, अखबार वारे छाप-छाप के दूबरे होत रैत आएं, मनों बे ठैरे अपने मन के राजा। बाकी औ का भओ उते?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘उते यूनीवर्सिटी के विद्वान हरें आए रए, सो बतात रए के कां-कां खोज करी गई। का-का करो गओ। बाकी जे तो आए के अपनो बुंदेलखंड हेरीटेज को धनी आए। मनो कमी आए तो उते लौं पौंचबे की। एक तो रस्ता की दसा खराब ऊपे जो वां कोनऊं पौंच जाए तो उते कओ पीबे खों पानी लौं ने मिले। ऊपे मजे की बात जे के उते एक अधिकारी बोले के मैंने एरण जैसी वस्र्ट साईट ने देखी। उनकी बात सुन के मोरो जी करो के उनसे कई जाए के आप से पैले इते आपई घांई अधिकारी रै हते। अब उन्ने वस्र्ट बनो रैन दऔ सो ईको जिम्मेदार आप ओरन को शासनई आए। मनो संगे जे बी खयाल आओ के चलो इने उते की दीन दसा दिखानी तो।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।       ‘‘सई कई बिन्ना! जो कोनऊं अधिकारी सोचे सो भौत कछू कर सकत आए। ईमें कोनऊं शक नोंई के अपनो बुंदेलखंड में घूमबे जोग मने पर्यटन जोग कुल्ल जांगा आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का भैयाजी! इते ऊ टेम से इंसान आ के बसन लगे रए जब बे पथरा के हथियार बनाउत्ते। इते आबचंद की गुफाओं में उनकी बनाई पेंटिंग्स आज लौं मौजूद आएं। औ बा एरण, उते तो ध्रुवस्वामिनी की पूरी किसां भई रई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘ध्रुवस्वामिनी की किसां? जे कोन सी किसां आए?’’ भैयाजी ने कभऊं ढंग से ने तो इतिहास पढ़ो, औ ने जयशंकर प्रसाद को नाटक पढो, सो बे का जाने?
‘‘बा किसां मैं फेर कोऊं दिनां सुनाबी। आप तो जे सोचो के अपने इते के कालंजर के बारे में शिवपुराण लों में किसां मिलत आए। इत्तो पुरानो आए अपनो बुंदेलखंड। बुंदेलखंड पैले दशार्ण कहाउत्तो। इते के राजा हिरण्य की बिटिया राजा द्रुपद के इते ब्याही रई। जे महाभारत में मिलत आए। औ रामजी तो बनवास के लाने इतई से हो के गए रए। ऐसो अच्छो आए अपनो बुंदेलखंड। मनो, इते पर्यटन को सई तरीके से विकास हो जाए तो इते देखबे वारों की भीड़ लगन लगे। ईसे पइसा बी मिलहे औ नांव बी मिलहे। है के नई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘सई कई बिन्ना!’’ भैयाजी बोले। भैयाजी जान गए के मैं का सोच रई हती, सो बे जै रामजी की कर के चलत बने। अब आप ओरें सोचो अपने-अपने इलाके की ऐसी जांगा के बारे में जां पर्यटन को विकास करो जा सकत होय। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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