- डॉ. शरद सिंह
भारत जैसे देश में अधिकारों से बेख़बर महिलाओं के प्रमुख तीन वर्ग माने जा सकते हैं.
1. पहला वर्ग वह है जो ग़रीबीरेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा है और शिक्षा से कोसों दूर है। उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी ही नहीं है।
2. दूसरा वर्ग उन औरतों का है जो मध्यमवर्ग की हैं तथा परम्परागत पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव में जीवन जी रही हैं। ऐसी महिलाएं पारिवारिक बदनामी के भय से हर प्रकार की प्रताड़ना सहती रहती हैं। पति से मार खाने के बाद भी ‘बाथरूम में गिर गई’ कह कर प्रताड़ना सहन करती रहती हैं तथा कई बार परिवार की ‘नेकनामी’ के नाम पर अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठती हैं। दहेज को ले कर मायके और ससुराल के दो पाटों के बीच पिसती बहुओं के साथ प्रायः यही होता है।
3. महिलाओं का तीसरा वर्ग वह है जिनमें प्रताड़ना का विरोध करने का साहस ही नहीं होता है। इस प्रकार की मानसिकता में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के विचारों में जब तक परिवर्तन नहीं होगा तब तक महिलाओं से संबंधित किसी भी कानून के शतप्रतिशत गुणात्मक परिणाम आना संभव नहीं है।
भारत जैसे देश में अधिकारों से बेख़बर महिलाओं के प्रमुख तीन वर्ग माने जा सकते हैं.
1. पहला वर्ग वह है जो ग़रीबीरेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा है और शिक्षा से कोसों दूर है। उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी ही नहीं है।
2. दूसरा वर्ग उन औरतों का है जो मध्यमवर्ग की हैं तथा परम्परागत पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव में जीवन जी रही हैं। ऐसी महिलाएं पारिवारिक बदनामी के भय से हर प्रकार की प्रताड़ना सहती रहती हैं। पति से मार खाने के बाद भी ‘बाथरूम में गिर गई’ कह कर प्रताड़ना सहन करती रहती हैं तथा कई बार परिवार की ‘नेकनामी’ के नाम पर अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठती हैं। दहेज को ले कर मायके और ससुराल के दो पाटों के बीच पिसती बहुओं के साथ प्रायः यही होता है।
3. महिलाओं का तीसरा वर्ग वह है जिनमें प्रताड़ना का विरोध करने का साहस ही नहीं होता है। इस प्रकार की मानसिकता में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के विचारों में जब तक परिवर्तन नहीं होगा तब तक महिलाओं से संबंधित किसी भी कानून के शतप्रतिशत गुणात्मक परिणाम आना संभव नहीं है।
aadarniya sharadji,
ReplyDeletesaadar namaskaar,
sarvpratham blog par aane ke liye dhnyvaad,
aapse main sahmat hoon, vakai yahi sthiti hai aaj mahilaon ki ismen shikhit aur ashikshit donon varg shamil hain
हार्दिक धन्यवाद संजय कुमार चौरसिया जी! आपने मर्म सही समझा।
ReplyDeletebilkul sau takey ki sachchai ..
ReplyDeleteaapka vichar swagat yogy hai..
nissandeh bhart me aurt ki sthiti dayniy hai , lekin yah aankda 100% nhin hai . adikaron ke prti jagrook mahilan bhi hain . han inki sankhya bhut km hai .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी!
ReplyDeleteदिलबाग विर्क जी आपने सच कहा। हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेरक महिला व्यक्तित्व के उल्लेख के बिना यह सीमित, बल्कि अधूरा है, इसलिए असहमत.
ReplyDeleteराहुल सिंह जी, आपके विचारों के लिए आभारी हूं। मेरा यह लेख अधिकारों से बेख़बर महिलाओं पर है,भविष्य में प्रेरक महिला व्यक्तित्वों पर भी कोई लेख जरूर लिखूंगी।
ReplyDeletebahut khub ,aapne samaj ko aina dikhane ka jo safal prayas kiya hai ...kaash kisi ko samaj aaye ye baat ........
ReplyDeleteअमरेन्द्र ‘अमर’ जी, हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteअमरेन्द्र ‘अमर’ जी मेरे ब्लॉग में आपका हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteआपने सही लिखा है। मैंने एक आलेख में लिखा था कि आज घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम तो हैं, पर कितनी गृहिणियों को इसकी जानकारी है, और अगर जो थोड़ा बहुत है भी तो कितना इसके विभिन्न प्रावधानों को जानती हैं। फिर वही बात - जागरूकता, शिक्षा।
ReplyDeleteyeh sahee hai ki har kaal men naari pratadnaa ke jhule me hee jhooltee rahee hai. jiske chalte vh apne samay kee traasdi ko jhelne ke liya abhishapt ho jaati hai.apke is chhote se lekh ke liye apna abhaar vyakt kartaa hoon.
ReplyDelete"महिलाओं से संबंधित किसी भी कानून के शतप्रतिशत गुणात्मक परिणाम आना संभव नहीं है।"
ReplyDeleteआपकी बात से पूर्णतयः सहमत हैं
आभार
सही कहा आपने आज भारत कि महिलाओं कि यह ही स्थिति है| आभार|
ReplyDeleteur right mem
ReplyDeleteur right mem
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