Wednesday, July 31, 2019

प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष : प्रेमचंद की कहानियों में मौजूद है बुंदेलखंड - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ... नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh


(प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष : #नवभारत में प्रकाशित) 

31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद को हिन्दी साहित्य का ‘कथा सम्राट’ कहा जाता है। प्रेमचंद ने ‘‘नवाबराय’’ के नाम से उर्दू में साहित्य सृजन किया। यह नवाबराय नाम उन्हें अपने चाचा से मिला था जो उनके बचपन में उन्हें लाड़-प्यार में ‘‘नवाबराय’’ कह कर पुकारा करते थे। किन्तु अंग्रेज सरकार के कारण उन्हें अपना लेखकीय नाम ‘‘नवाबराय’’ से बदलकर ‘‘प्रेमचंद’’ करना पड़ा। हुआ यह कि उनकी ’सोज़े वतन’ (1909, ज़माना प्रेस, कानपुर) कहानी-संग्रह की सभी प्रतियां तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने ज़ब्त कर लीं। उर्दू अखबार “ज़माना“ के संपादक मुंशी दयानरायण निगम ने उन्हें सलाह दी कि वे सरकार के कोपभाजन बनने से बचाने के लिए ‘‘नबावराय’’ के स्थान पर ’प्रेमचंद’ लिखने लगें। इसके बाद वे ‘‘प्रेमचंद’’ के नाम से लेखनकार्य करने लगे। 
Premchand Ki Kahaniyon Me Maujud Hai Bundelkhand - Dr Sharad Singh.. Published in Navbharat

प्रेमचंद ने भारतीय समाज की विशेषताओं और अन्तर्विरोधों को एक कुशल समाजशास्त्री की भांति गहराई से समझा। इसलिए उनके साहित्य में भारतीय समाज की वास्तविकता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। स्त्रियों, दलितों सहित सभी शोषितों के प्रति प्रेमचंद ने अपनी लेखनी चलाई। प्रेमचंद मात्र एक कथाकार नहीं वरन् एक समाजशास्त्री भी थे। उनकी समाजशास्त्री दृष्टि सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यवहारिक थी। इसीलिए वे उस सच्चाई को भी देख लेते थे जो अकादमिक समाजशास्त्री देख नहीं पाते हैं। उन्होंने जहां एक ओर कर्ज में डूबे किसान की मनोदशा को परखा वहीं समाज के दोहरेपन की शिकार स्त्रियों की दशा का विश्लेषण किया। उन्होंने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की कहानियां भी लिखीं और उनके लिए प्रेमचंद ने बुंदेलखंड के कथानकों को चुना। बुंदेलखंड पर आधारित उनकी दो कहानियां हैं- -‘राजा हरदौल’ और ‘रानी सारंधा’।
‘राजा हरदौल’ बुंदेलखंड की लोकप्रिय कथा है। इस बहुचर्चित कथा का बुंदेलखड के सामाजिक जीवन में भी बहुत महत्व है। यह कथा ओरछा के राजा जुझार सिंह की अपने छोटे भाई हरदौल सिंह के प्रति प्रेम और संदेह की कथा है जिसने ओरछा के इतिहास को प्रभावित किया। जुझार सिंह मुगल शासक शाहजहां के समकालीन थे। वे साहसी थे, वीर थे किन्तु उनकी संदेही प्रवृत्ति उनके इन गुणों को लांछित कर गई। इस वास्तविक घटना का सारांश यह है कि जब जुझार सिंह अपने दक्षिण भारत के अभियान पर गए तब उनका छोटा भाई हरदौल अपनी भाभी रानी कुलीना के साथ राज्य सम्हाल रहा था। दोनों का रिश्ता माता-पुत्र जैसा था। किन्तु कुछ ईर्ष्यालुओं ने जुझार सिंह के वापस आते ही रानी और हरदौल के मध्य अनैतिक संबंधों की चर्चा कर के जुझार सिंह को भ्रमित कर दिया। संदेही जुझार सिंह अपने भाई और अपनी पत्नी की पवित्रता को नहीं देख सका और उसने अपनी पत्नी रानी कुलीना को आदेश दिया कि वह अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए हरदौर को विष खिला दे। रानी स्तब्ध रह गई। अपने पुत्र समान देवर को जहर देना उसके लिए कठिन था। तब हरदौल ने अपनी भाभी को समझाया की सम्मान से बड़ा जीवन नहीं होता है, वे विष मिला भोजन परोस दें। अंततः रानी के द्वारा विष मिले भोजन को खा कर हरदौल ने अपना बलिदान दे दिया। यह भी कथा है कि जुझार सिंह ने रानी द्वारा भोजन में विष न दे पाने के कारण रानी से ही विष मिला पान का बीड़ा बनवा कर हरदौल को खिला दिया था जिससे हरदौल की मृत्यु हो गई थी। ओरछा में लाला हरदौल की समाधि आज भी मौजूद है और यह परम्परा है कि बुंदेलखंड में विवाह का पहला कार्ड लाला हरदौल का नाम लिख कर उनकी समाधि पर पहुंचाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से लाला हरदौल वधूपक्ष के घर वधू के मामा के रूप में आते हैं और विवाह निर्विघ्न सम्पन्न होता है।
प्रेमचंद ने पान में विष मिला कर देने की कथा को अपनी कहानी में पिरोया है। उन्होंने ‘राजा हरदौल’ कहानी इन पंक्तियों से आरम्भ की है, ‘‘बुंदेलखंड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है।’’ वे बुंदेलों के चरित्र की विशेषताओं को सामने रखते हुए हरदौल की ओर से यह संवाद लिखते हैं कि ‘खबरदार, बुंदेलों की लाज रहे या न रहे; पर उनकी प्रतिष्ठा में बल न पड़ने पाए- यदि किसी ने औरों को यह कहने का अवसर दिया कि ओरछे वाले तलवार से न जीत सके तो धांधली कर बैठे, वह अपने को जाति का शत्रु समझे।’ वहीं जुझार सिंह युद्ध के लिए विदा लेते समय अपनी रानी से कहता है, ‘प्यारी, यह रोने का समय नहीं है। बुंदेलों की स्त्रियां ऐसे अवसर पर रोया नहीं करतीं।’
बुंदेलखंड पर आधारित दूसरी कहानी ‘रानी सारन्धा’ बुंदेलखंड गौरव कहे जाने वाले महाराज छत्रसाल की मां रानी सारंधा की कथा है। रानी सारंधा ओरछा के राजा चम्पतराय की पत्नी थीं। चम्पतराय के संबंध में प्रेमचंद ने अपनी कहानी में लिखा है कि ‘राजा चम्पतराय बड़े प्रतिभाशाली पुरुष थे। सारी बुन्देला जाति उनके नाम पर जान देती थी और उनके प्रभुत्व को मानती थी। गद्दी पर बैठते ही उन्होंने मुगल बादशाहों को कर देना बन्द कर दिया और वे अपने बाहुबल से राज्य-विस्तार करने लगे। मुसलमानों की सेनाएं बार-बार उन पर हमले करती थीं पर हार कर लौट जाती थीं।’
‘रानी सारंधा कहानी के आरम्भ में वे बुंदेलखंड उस रियासत का वर्णन करते हैं जहां रानी सारंधा का जन्म हुआ था। वे लिखते हैं-‘शताब्दियां व्यतीत हो गयीं बुंदेलखंड में कितने ही राज्यों का उदय और अस्त हुआ मुसलमान आए और बुंदेला राजा उठे और गिरे-कोई गांव कोई इलाका ऐसा न था जो इन दुरवस्थाओं से पीड़ित न हो मगर इस दुर्ग पर किसी शत्रु की विजय-पताका न लहरायी और इस गांव में किसी विद्रोह का भी पदार्पण न हुआ। यह उसका सौभाग्य था।’ यह कथा रानी सारंधा के जीवन के साथ ही बुंदेलखंड के परिवेश से परिचित कराती है।
प्रेमचंद ने जहां अपनी कहानियों में दुखी, दलित, शोषित और दुर्बल चरित्रों को महत्व दिया, वहीं बुंदेलखंड के इतिहास के तथ्यों और चरित्रों को भी अपनी कहानियों में स्थान दिया। कथा सम्राट प्रेमचंद के कथा साहित्य में बुंदेलखंड के कथानकों का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि वे बुंदेली संस्कृति, परम्पराओं एवं इसके गौरवशाली इतिहास से प्रभावित थे।
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नवभारत, 31.07.2019
🙏🌷 हार्दिक धन्यवाद नवभारत🌷🙏 #बुंदेलखंड #प्रेमचंद #कथासम्राट #कथाकार #राजा_हरदौल #रानी_सारंधा

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