Thursday, October 17, 2024

बतकाव बिन्ना की | बिकास को चेतक खुदई कुदद्दी ने मारहे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
बिकास को चेतक खुदई कुदद्दी ने मारहे
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        कुल्ल दिनां बाद भैयाजी और भौजी से बतकाव की फुरसत मिली। काए से के पैले करै दिन रये, फेर नवरातें आ गईं और फेर दसेरा पे रावन खों जलाओ-बराओ। मनो अबे बी उत्ती फुरसत नईयां जोन पैले हती, काय से के अभईं दिवारी आई जा रई। लिपाई, पुताई, सफाई घांईं मुतके काम डरे परे। अब आप बोलहो के आजकाल के पक्के मकानों में कोन कच्चो आंगन होत आए के जोन को लीपने परे। सो का भओ? घरे जो कच्चों आंगन नईयां, सो न होय, रोडें तो आएं। तनक चार फुट आगे लौं रोड पे गोबर की लिपाई करो, छुई से ढिग धरो औ बन गओ अपनो आंगन। ऊके बिगैर सूनो लगहे। सो मुतके लोग जेई करत आएं के घरे आंगन ने होय तो रोडके किनारे की, ने तो रोड की जमीन पे लिपाई करो औ अपने घरे में मिला लेओ। बन गओ अपनो आंगन। ऊपे सातिया सोई बनाओ जा सकत आए। रोडें सो होतईं आएं कब्जा करबे के लाने। मनो त्योहार में आंगन तो लीपोई जात आए।
भैयाजी के घरे सोई पुताई को काम लगो डरो। सो कल दुफैरी को मैंने सोची के उन ओरन के लाने तनक चाय-माय बना के ले जाओ जाए। सो मैंने अच्छी-नोनी चाय बनाई औ ऊको थरमस में भरो, ताकि बा ताती रई आए। कछू बेसन के चीले बना लए औ भैयाजी के इते पौंची। उते बरहमेस घांई भैयाजी औ भौजी की गिचड़ चल रई हती।
‘‘हमने आपसे कित्ती बार कई के काम के टेम पे जे अखबार ले के ने बैठो करो। बा पुतइया उते ऊपरे पोत रओ आए। जाओ, जा के तनक हेर आओ, के बा ठीक काम कर रओ के नईं?’’ भौजी भैयाजी खों हड़का रई हतीं।
‘‘अब हम का देख आएं? का बा अपनो काम नईं जानत? जा के ऊके मूंड़ पे ठाडे हो जाओ सो उन ओरन को मूंड़ सोई भिनकन लगत आए। तुम तो और!’’ भैयाजी खिसियात भए भौजी से बोले।
‘‘हऔ, आपके लाने तो उनके मूंड़ की परी आए, काम की नईं, के बे रंग को एक कोट लगा रये के दो कोट। जो पईसा गिनाबे की बेरा आहे सो ऊ टेम पे बी ओई की सुन के गिना दइयो, चाये ऊने सलीके से काम करो होये, चाए ने होय।’’ भौजी बमकत भई बोलीं।
‘‘का चल रओ भैयाजी? औ भौजी, आप ओरन ने चाय-माय नी के नईं?’’ मैंने दोई से पूछी।
‘‘अरे आओ बिन्ना! अबे कां चाय मिली? अबे तो तुमाई भौजी से डांट खा रये।’’ भैयाजी हंसत भये बोले।
‘‘चलो तो आप ओरें पैले बेसन के चीला खाओ औ चाय पियो। फेर डांट-मांट को काम कंटीन्यू राखियो।’’मैंने सोई हंस के कई।
‘‘अरे, काय हैरान भईं? किचेन में तो आखीरी में पुताई हुइए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘तो का भओ? आप अकेली का-का करहो?’’ मोसे कै आई।
‘‘जे कई ने तुमने सई बात। सच्ची बिन्ना, जे तो संकारे से अखबार ले के बैठ जात आएं औ हमई खों सब अकेले देखने पर रओ आए’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ! औ संकारे से बा पलका औ सोफा कोन ने हटाओ रओ? कुसका लग सकत्तो। बाकी बढ़ा-चढ़ा के बोलबे को तो चलन चल रओे आजकाल।’’ भैयाजी भौजी खों याद करात भये बोले।
‘‘चलन को का मतलब?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘मतलब जो कि काम चाए कछू ने भओ होए, मनो पब्लीसिटी ऐसई करी जात आए के ने केवल काम पूरो हों गओ होय, के वैसो काम कहूं और न भओ होय।’’भैयाजी बोले।
‘‘हमें समझ ने पर रई। कछू ढंग से बताओ आप।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ई में ने समझ परबे वारी का बात? तुमने अपने स्कूल टेम पे एक अलंकार तो पढ़ो हुइये जोन को नांव आए अतिशयोक्ति अलंकार। ऊमें जोई तो होत आए के सब कछू बढ़ा-चढ़ा के कओ जात आए। बा एक कबित्त रओ न के -
पड़ी अचानक नदी अपार,
घोड़ा उतरे कैसे पार?
राणा ने सोचा इस पार,
तब तक चेतक था उस पार।।
तुमने सोई जे कबिता याद करी हुइए ऊ टेम पे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ करी रई न!’’ मैंने मुंडी हिलाई।
‘‘सो जेई हाल तो चल रओ ई टेम पे। सरकार कै रई के ऊको राज अच्छो चल रओ और उनई के नेता, विधायक हरें कोऊ इस्तीफा दे रओ तो कोऊ लम्बोलेट हो रओ। मनो जो सरकारी विज्ञापन में देख लेओ तो राणा को चेतक कब को कुद्दी मार के ऊ पार ठाड़ो दिखाहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो आप सई कै रये। जो सरकार की अपने अधिकारियन पे कोऊ पकर ने रै जाए तो काए को बिकास औ काए को सुशासन? अखबार देखो तो दुश्शासनों की खबरन से भरो रैत आए। मनो कोनऊं खो कानून को डर नई रै गओ? चोरी-चकारी की सो बातई छोड़ो। आप सई कै रै के दिखाबो ज्यादा हो रओ औ काम कम हो रओ।’’ मैंने भैयाजी की बात पे हामी भरी।
‘‘औ का, चाए मंदिर के लिंगे होए चाए स्कूल के लिंगे दारू को अहातो खोल रखो आए। औ अब तो उनई के विधायक हरें कै रये के जा सब बंद करो। मनो कोनऊ उनकी लौं नई सुन रओ। औ कै रए के सब कछू भौतई अच्छो चल रओ।’’ भैयाजी बोले।
हम ओरें खात-पीयत बतकाव कर रये हते के भौजी बोलीं,‘‘तुम ओरन की चाय बढ़ा जाए सो ठाड़े हो जाओ।’’
‘‘काए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘काए का? आप ऊपरे जा के देखो के बा का कर रओ औ कैसो कर रओ। औ बिन्ना तुम तनक हमाओ हाथ बंटाओ। जे सरकारी काम नोईं, जे घर को काम आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, हमाई तो चाय खतम हो गई। बताओ आप के मोए का करने?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘जे हुन्ना लत्ता हम देत जा रये, इनें तुम ऊ पलका पे धरत जइयो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ देओ!’’ मैंने कई औ मैं ठाड़ी हो गई। मैंने तो पैलई सोची हती के उनको कछू हाथ बंटा देहों।
‘‘आप सोई उठो महाराज!’’ भौजी भैयाजी से बोलीं।
‘‘भैयाजी! इते चेतक अपनई से छलांग ने लगाहे, ऊके लाने पुल बनाबे परहे।’’ मैंने हंस के भैयाजी से कई।
भैयाजी सोई हंसन लगे। फेर बोले,‘‘सरकारी काम सरकारी घांई करो जात आएं तभई तो ने तो अच्छे से होत आएं औ ने टेम पे पूरे हो पात आएं। जो उन कामन खों बी अपनो समझ के, अपने घरे घांई करो जाए तो कित्तो अच्छो होय!’’
‘‘जागत को सपनों ने देखो आप! जा के बा पुतइयां खों देखो औ संगे ऊके लाने जे चाय सोई ले आओ।’’ भौजी चाय को मग्गा भैयाजी खों पकरात भईं बोलीं।
भैयाजी ऊपरे खों कढ़ गए औ मैं भौजी को हाथ बंटान लगी। बाकी भैयाजी ने बात सांची कई रई के जो सरकारी काम घरे घांईं ईमानदारी से करे जान लगें तो सब कछू साजो हो जाए। मनो अपन सबई खों तो अत्तों में जीने की आदत परी, का करो जाए। बस, जेई सोचत रैत आएं के बिना कछू करे-धरे विकास को चेतक खुदई से ई पार से ऊ पार कुद्दी लगा जाए।      
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। औ संगे अपने घरे की सफाई करो, पुताई करो, बाकी अपने घर को  कचड़ा दूसरे के दोरे पे ने मेंकियो, कचड़ागाड़ी वारों को ई दइयो। जै राम जी की!
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