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बतकाव बिन्ना की
रामधई, सब्जियन के दाम में लुघरिया छुबी धरी
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘का हो रओ भौजी? लिपाई-पुताई निपट गई?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘हऔ, निपट गई बिन्ना। सई में कम्मर पिरा गई। भौतई सल्ला होत आए जे काम में।’’ भौजी तनक चैन की संास लेत भई बोलीं।
‘‘औ भैयाजी कां गए? दिखा नहीं रए?’’ मैंने पूछी। काय से के जो भैयाजी घरे होते तो अबलौं निकर आउते।
‘‘बे तनक सब्जीमंडी लौं गए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘काय? कोनऊं मैमान आबे वारे का? काय से उते तो सब्जी थोक मिलत आए।’’ मैंने पूछी।
‘‘नईं, कोनऊं नई आ रओ। बा तो हमाई संकारे से तनक गिचड़ हो गई, सो बे ताव-ताव में निकर पड़े मंडी के लाने।’’ भौजी ने बताई।
‘काय की गिचड़?’’ मैंने पूछी। बो का आए के चाए अपने खों सामने वारे की गिचड़ से कछू लेबो देबो होय, चाए ने होय, मनो जो गिचड़ के बारे में ने पूछी जाए तो सामने वारो बुरौ मान जात आए। काय से के जो सामने वारे ने कई के हमाई गिचड़ हो गई रई, तो बा जा चात आए के ऊसे पूछो जाय के कैसी गिचड़? काय की गिचड़? सो जेई लाने मैंने सोई भौजी से पूछ लई के काय की गिचड़।
‘‘बो का भओ के संकारे तुमाए भैयाजी छत पे गए पौधन में पानी डारबे खों। उते एक भटा को पौधा लगो। ऊमें चार दिनां से एक भटा फलो रओ। हमने उनसे कई रई के अबे ने तोड़ियो। तनक बड़ो हो जाए, इत्तो बड़ो के अपन दोई के लाने आलू-प्याज डार के सब्जी बन सके। मगर उने कोन चैन परी। आज बे ऊ भटा पटा लाए। हमने कई के जब हमने मना करी रई तो आपने ईको काय तोरो? तो बे कैन लगे के चार दिनां से तो जा इत्तो को इत्तोई आए, अब का बढ़हे? कऊं खराब ने हो जाए, जेई सोच के हम ईको ले आए। सो हमने कई के तनक सोचो तो होतो के इत्तो सो भटा की का सब्जी बनहे? सो बे बोले के अभईं सब्जी को ठिलिया वारो आहे सो और भटा लेय देत आएं ओई में मिला के बना लइयो। हमने बी कै दई के सब्जियन के दाम में सो लुघरिया छुबी धरी औ तुमें कोनऊ फिकर नोईं? सो बे कैन लगे के हमाए फिकर करे से तो दाम कम ने हुइएं। बाकी अब तुमने बोल दई आए तो हम जा रए सब्जीमंडी, उते से थोक के दाम वारी सब्जियां ला रए, तुमाए लाने। औ इत्तो कै के गाड़ी उठाई औ निकर परे।’’ भौजी ने अपनी गिचड़ की पूरी किसां मोय सुना डारी।
‘‘आप बी सईं औ भैयाजी बी सई। काय से के एक भटा से का होतो? गमला में लगो भटां अब इत्तो बड़ो बी ने होतो के आप दोई के लाने सब्जी बन पाती। रई सब्जियन के दाम की, सो बा तो सई में प्रान लेय फिर रई। पुची-पुची होन वारी गिल्की औ भटां घांईं सब्जी बीस रुपइया औ पचीस रुपइया पाव मिल रई। औ अबे चार दिना पैले तो चालीस रुपैया पाव रई। मानुस का खाए औ का ने खाए?’’ मैंने कई।
‘‘सई में बिन्ना। जां देखो उतई सलाह दई जात आए के सेहत बनाबे के लाने रोजीना फल खाओ औ हरी सब्जियां खाओ! कां से खाओ? इत्ते तो मैंगे आएं। साजी बिही लौं दो सौ रुपैया किलो मिल रई, सेब औ पपीता की तो पूछोई नईं। औ जे सबरे फल में दवा डरी रैती आए बा ऊपरे से।’’ भौजी बोलीं।
‘‘औ का, दवा डार केई सो उने पकाओ जात आए। घनो कच्चो में तोर के ऊको बढ़ाबे औ पकाबे के लाने उनपे दवा डारी जाती आए। औ आजकाल तो चाए सेब होंय चाए बिही सबई में थ्री-डी चिट लगी रैत आए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, तुमाए भैया बता रए हते के बा चिंहारी होत आय के कोन में दवा डर गई और कोन में नईं डरी?’’भौजी बोलीं।
‘‘को जाने? हो सकत के भैयाजी की बात सई होय। मनो भौजी तनक सोचो के जो हरी सब्जियां मैंगी हो जात आएं तो आलू, प्याज से काम चलत आए। मनो आजकाल तो आलू, प्याज सोई मैंगे चल रए। इंसान का खाए औ का ने खाय। औ ऊपे त्योहार मूंड़ पे ठाड़ो।’’ मैंने कई।
मैं औ भौजी बतकाव करई रै हते के बाहरे से भैयाजी की आवाज सुनाई परी।
‘‘सुनो तनक बाहरे तो आओ!’’ भौजी ने पुकारो रओ।
‘‘हौ आ रए!’’ कैत भईं भौजी बाहरें खों गईं।
दोई मिनट में भैयाजी औ भौजी भीतरे आए। भैयाजी के हाथन में एक बोरी हती औ भौजी एक थैला धरी हतीं।
‘‘राम-राम भैयाजी! जे तो ऐसो लग रओ के आप पूरी मंडी उठा लाए हो।’’ मैंने भैयाजी से ठिठोली करी।
‘‘तुमाई भौजी की किरपा आए। ने जे संकारे से ठेन करतीं औ ने हम सब्जीमंडी जाते।’’ भैयाजी सोई हंस के बोले। फेर बे कैन लगे, ‘‘हम तुमाए लाने सोई ले आए।’’
‘‘अरे, मोय अकेली को का चाउने? कछू सब्जी सो धरी आएं।’’ मैंने कई।
‘‘जित्ती हम दुकेले को लगहे, ऊकी आधी तुम अकेली को लगहे। चलो देखत आएं के जे का-का ले आए?’’ भौजी सोई हंस के बोलीं।
‘‘अरे, कछू खास नोईं! उते बी कोनऊं खास सस्तो नइयां। बस, थोक औ फुटकर को अंतर आए। हमने तो भटा लए, लौकी लई, भिंडी लई औ आलू, प्याज लए। हऔ, औ दो ठईयां फूल गोभी सोई ले आए।’’ भैयाजी ने लाई भईं पूरी सब्जियां गिना दईं।
‘‘सो बिन्ना, तुम जा एक लौकी धरो, एक गोभी धरो औ ईमें से जित्ते भटा लेने होय सो ले लेओ।’’ भौजी लौकी औ गोभी मोरी तरफी बढ़ात भई बोलीं।
‘‘इत्ती सब्जी का करबी? जा लौकी सोई भौत बड़ी आए।’’ मैंने मना करी। काए से के मोय पतो के बे ओरें मोसे पइसा ने लैंहे।
‘‘सकांेच ने करो! सई में तुमाए लाने बी लाए हैं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जे दो भटा हम धरे दे रए। औ आलू,प्याज चाउने?’’भौजी ने पूछी।
‘‘तुम औ पूछ रईं! जे बिन्ना कभऊं कैहें का के चाऊने! तुम तो एक थैला में धर देओ, जो-जो देने होय।’’ भैयाजी भौजी से बोले।
मोय सई में सकोंच लग रओ हतो। जो बनी बनाई सब्जी होती तो मैं एक दार मंगा के खा लेती मनो ऐसे सब्जियां लेत भई मोय हिचक हो रई हती। काय से के एक तो जे सब्जियां इत्ती मैंगी औ ऊपे भैयाजी जे सब्जीमंडी से ले के आए हते। मनो दूसरी तरफी उन ओरन को प्रेम सोई दिखा रओ हतो।
‘‘काय, हम सोच रए के हम सोई सब्जी की ठिलिया लगान लगें। मंडी से सब्जी लाहें औ इते बेचहें। खूब कमाई हुइए।’’ भैयाजी उचकत भए बोले।
‘‘रैन देओ! आपके बस की कछू नइयां। हमने तो कई रई के एकाद एकड़ की जमीन ले लेओ। उते सब्जी उगाबी और उतई एक कमरा डार के रैबी। मगर आप खों कोन पोसाओ हमाओ जा प्लान।’’ भौजी मों बनात भई बोलीं।
‘‘तुम बी रैन देओ! तुमने एक भटा में तो इत्तो दोंदरा दे दओ औ पूरे बगीचा में का करहो।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘खैर, ऊपे बाद में गिचड़बी, पैले आप ओरन के लाने चाय-माय लाई जाए।’’ कैत भईं भौजी चाय बनाबे खों कढ़ गईं। औ मैं औ भैयाजी बतकाव करन लगे।
‘‘सई में बिन्ना, मैंगाई कोनऊं रोक नईं पा रओ। को जाने आगे का हुइए।’’ भैयाजी चिंता करत भए बोले।
‘‘हऔ, बाकी विज्ञापन देख लेओ तो ऐसो लगत आए के अपने इते सबई गाड़ी-घोड़ा औ सोना-चांदी खरीद रएं होएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो का? मुतके खरीद रए। कर्जा ले के। अब चाए साऊकार से लेबें, चाए बैंक से। कर्जा तो मनो कर्जा आए। सई कैं तो जे अच्छे दिन नोईं कर्जा वारे दिन आएं।’’भैयाजी बोले। तभई भौजी चाय ले आईं।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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