स्मृति शेष जाने-माने कला मर्मज्ञ मुन्ना शुक्ला नहीं रहे, श्रुति मुद्रा संस्था की स्थापना की
वे सागर को साहित्य-संस्कृति का राष्ट्रीय केंद्र बनाना चाहते थे
- डॉ. शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार
अभी तो नींद बाक़ी थी, अभी तो ख़्वाब बाक्री थे,
तुम्हीं जो चल दिए तो सुबह के आने से क्या होगा ?
जब एक हंसमुख, मिलनसार एवं इरादे का पक्का व्यक्ति हमारे बीच से हमेशा के लिए चला जाता है तो उसके न होने पर विश्वास करना सबसे कठिन होता है। सागर का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाज 1 दिसम्बर 2024 का दिन कभी नहीं भूलेगा क्योंकि यह दिन एक ऐसे मनीषी से चिरविदा का दिन साबित हुआ जिसने ताउम्र सागर के सांस्कृतिक विकास का स्वप्न देखा और अपने इस सपने को साकार करने का हरसंभव प्रयास किया। यूं तो उनका नाम था शिवचंद्र शुक्ला, किन्तु सभी के लिए वे थे 'मुन्ना भैया' और 'मुत्रा शुक्ला'। साहित्य पर मेरी उनसे लम्बी-लम्बी चर्चाएं हुआ करती थीं। अधिकतर मोबाइल पर। आधुनिक कविता पर चर्चा करना उन्हें बहुत प्रिय था। वैसे साहित्य की लगभग सभी विधाओं की उन्हें गहरी जानकारी थी। उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि 'मैं चाहता हूं कि सागर साहित्य और संस्कृति के केंद्र के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाए।
शिवचंद्र शुक्ला उर्फ मुत्रा भैया का जन्म 6 सितंबर 1957 को लखनऊ (उ.प्र.) में हुआ था। किन्तु सागर रक्त बन कर उनकी धमनियों में बहता था। सागर के सांस्कृतिक विकास के पक्ष में हमेशा उनका स्वर बुलंद रहा। उनके पिता पं. शिवकुमार शुक्ल धर्मशास्त्र, ज्योतिष, दर्शनशास्त्र, नाट्य संगीत एवं संगीत के प्रकाण्ड विद्वान थे। वस्तुतः सांस्कृतिक संस्कार उन्हें अपने पिता से मिले।
सागर में 1976-77 के दौरान डॉ अनिल वाजपेयी, डॉ दिनेश अत्री और डॉ. ओपी श्रीवास्तव द्वारा गठित साहित्यिक संस्था बुनियाद के वे सचिव रहे। उन्होंने 1994 में श्रुतिमुद्रा नामक संस्था का गठन किया जिसके वे सचिव रहे। श्रुति मुद्रा के अंतर्गत नृत्य आदि प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए सतत मंच उपलब्ध कराया तथा बुनियाद के अंतर्गत साहित्यिक विषय पर प्रतिवर्ष एक विशेष व्याख्यान आयोजित करते थे। वे वर्ष 2002 से आदर्श संगीत महाविद्यालय सागर की अध्यक्ष रहे। मुन्ना शुक्ला की पहचान एक कला समीक्षक के रूप में भी थी। संगीत, दर्शन एवं समाजशास्त्र जैसे विषयों पर तार्किक चर्चा एवं लेखन उनकी विशेषता थी। मुन्ना भैया ने अपने विचारों को अपने निजी जीवन में भी उतारा । उनके परिवार में साहित्य और संस्कृति की जो इन्द्रधनुषी छटा दिखती है मुन्ना वह भैया के विचारों का प्रतिफलन है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुन्ना शुक्ला का जाना सागर के कला, संगीत, संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसी रिक्तता का बोध करा रहा है, जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !
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हार्दिक आभार #दैनिकभास्कर 🙏
हार्दिक आभार अग्रज उमाकांत मिश्र जी🙏
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