Wednesday, May 14, 2025

चर्चा प्लस | हर युद्ध पर्यावरण पर एकतरफा हमला होता है | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस | हर युद्ध पर्यावरण पर एकतरफा हमला होता है  | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस
हर युद्ध पर्यावरण पर एकतरफा हमला होता है 
      - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
युद्ध कौन चाहता है? आम जनता, घास, पेड़, फूल, पत्ते, घोड़ा, बिल्ली, कुत्ता? ये सभी जैव विविधता का निर्माण करते हैं, लेकिन वे भी कभी युद्ध नहीं चाहते। तो युद्ध कौन चाहता है? मिसाइलों और बमों से पर्यावरण को प्रदूषित न करें। युद्ध में सिर्फ इंसान ही नहीं मारे जाते, रॉकेट और मिसाइलों से कई पेड़, जानवर, पक्षी भी मारे जाते हैं। क्या किसी के पास इस बात के आंकड़े है कि युद्ध के कारण हर दिन कितने पौधे, कितने पक्षी, कितने जानवर, कितने कीड़े मारे जाते हैं? और कितना ध्वनि प्रदूषण होता है? इराक, यूक्रेन और दुनिया के वे सारे देश जो छोटे-बड़े युद्धों की आग में झुलस रहे हैं,वहां का पर्यावरण लगभग नष्ट हो चला है। इस संबंध में मैंने एक लेख अपनी पुस्तक ‘‘क्लाईमेट चेंज: वी केन स्लो द स्पीड’’ में भी रखा है जिसका शीर्षक है-‘‘एवरी वार इज़ वन साईडेड अटैक आॅन द इनवायरमेंट’’।  


हमने प्रथम विश्व युद्ध नहीं देखा, 1945 के बाद पैदा हुए लोगों ने द्वितीय विश्व युद्ध भी नहीं देखा, लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों के प्रभाव के रूप में इसकी भयावहता देखी है, जिसे न केवल उस समय की बल्कि बाद की पीढ़ी ने भी झेला। आज भी नागासाकी और हीरोशिमा में रेडिएशन के भयानक परिणाम देखे जा सकते हैं। हमारी आज की पीढ़ी ने ईरान-इराक युद्ध देखा है, अफगानिस्तान मिसाइलों से घायल हुआ है और इसका ताजा उदाहरण यूक्रेन में हमारे सामने है। दुख की बात है कि हमारे पड़ोसी देश के कारण हमें भी युद्ध के द्वार तक पहुंचना पड़ा। कश्मीर तथा पाकिसतान से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में मिसाइलों से हुए हमलों को भारतीय सेना ने बहादुरी से भले ही नाकाम किया किन्तु इसके बावजूद जो हमले गंावों और शहरों पर हुए उनमें हताहतों के मानवीय आंकड़ें हमें देर-सबेर मिल जाएंगे लेकिन उन जीव-जन्तुओं की संख्या हमें कभी पता नहीं चलेगी जो इस दौरान बेमौत मारे गए। निःसंदेह सैनिकों और नागरिकों के हताहत होने के आंकड़े हमारी आंखों के सामने से गुज़रते हैं, पर जैव श्रृंखला की टूटी हुई कड़ियों के आंकड़े हम जान नहीं पाते हैं। युद्ध कौन चाहता है? आम जनता, घास, पेड़, फूल, पत्ते, घोड़ा, बिल्ली, कुत्ता? ये सभी एक जैव श्रृंखला का निर्माण करते हैं लेकिन वे भी कभी युद्ध नहीं चाहते। तो युद्ध कौन चाहता है? कौन चाहता है मिसाइलों और बम से होने वाले घातक प्रदूषण को? युद्ध में सिर्फ इंसान ही नहीं मारे जाते, रॉकेट और मिसाइलों से कई पेड़, जानवर, पक्षी भी मारे जाते हैं। 
अनुमान है कि अकेले ब्रिटेन में ही द्वितीय विश्व युद्ध के पहले सप्ताह में 750,000 से अधिक पालतू बिल्लियाँ और कुत्ते मारे गए थे। हिल्डा कीन द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘द ब्रिटिश कैट एंड डॉग मैसेकर: द रियल स्टोरी ऑफ वल्र्ड वॉर टूज अननोन ट्रेजडी’’ हमें यह भयानक सच्चाई बताती है। यह ब्रिटिश पालतू जानवरों के नरसंहार की कहानी बताती है, द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के समय सितंबर 1939 की अवधि, जब हवाई हमलों और संसाधनों की कमी की आशंका में सैकड़ों हजार ब्रिटिश परिवार के पालतू जानवरों को पहले ही मार दिया गया था। चिंता उचित थी कि मालिकों के मारे जाने पर उन पालतू पशुओं को खाना-पानी कौन देगा? वे बुरी मौत मारे जाएंगे। इसलिए उन्हें पहले ही मौत के घाट उतार दिया गया। पालतू पशुओं पर यह भीषण क्रूरता थी। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि पशुओं पर यह क्रूरता उनके अपने मालिकों की इच्छा थी नहीं थी, विवशता थी। उन पालतू जानवरों ने तो ऐसी मौत के बारे में कभी सोचा भी नहीं होगा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंसान परस्पर युद्ध लड़ रहे थे, लेकिन मासूम पालतू जानवरों बेमौत मारे जा रहे थे।
वे पालतू जानवर थे जिन्हें सीधे मार दिया जाता था। लेकिन कई जानवर ऐसे थे जिनका इस्तेमाल युद्ध में किया जाता था। अमेरिकी सेना ने युद्ध के प्रयास के लिए 10,000 से अधिक कुत्तों को प्रशिक्षित किया और लगभग 2,000 को युद्ध में सेवा देने के लिए विदेश भेजा। चूहों को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए बिल्लियों का इस्तेमाल जहाजों, बैरकों और सैन्य क्षेत्र के कार्यालयों में किया जाता था। इंसानों के साथ कई बिल्लियों को भी मार दिया गया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के युद्ध-संबंधी कार्यों के लिए खच्चरों, घोड़ों और यहाँ तक कि कबूतरों का भी व्यापक उपयोग किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, घुड़सवार सेना की भूमिका निभाने के लिए घोड़ों की जरूरत थी, लेकिन आपूर्ति, उपकरण, बंदूकें और गोला-बारूद ले जाने के लिए भी वे महत्वपूर्ण थे। परिवहन के लिए इन जानवरों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध में आठ मिलियन घोड़े, गधे और खच्चर मारे गए, उनमें से तीन-चैथाई उन चरम स्थितियों में मारे गए जिनमें वे काम करते थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कुत्तों ने कई तरह के कार्यों में सेवा करते हुए अधिकांश यूरोपीय सेनाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य भूमिका निभाई। कुत्ते मशीन गन और आपूर्ति गाड़ियाँ खींचते थे। वे संदेशवाहक के रूप में भी काम करते थे, अक्सर गोलाबारी के बीच अपने संदेश पहुँचाते थे। हिल्डा कीन ने अपनी पुस्तक ‘‘द ब्रिटिश कैट एंड डॉग मैसेकर: द रियल स्टोरी ऑफ वल्र्ड वॉर टूज अननोन ट्रेजडी’’ में लिखा है कि 1914 और 1918 के बीच केवल 484,143 ब्रिटिश घोड़े, खच्चर, ऊँट और बैल मारे गए। कबूतरों ने प्रथम विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि वे संदेश भेजने का एक अत्यंत विश्वसनीय तरीका साबित हुए। कबूतरों का महत्व इतना था कि युद्ध में 100,000 से अधिक कबूतरों का इस्तेमाल किया गया और 95ः की आश्चर्यजनक सफलता दर के साथ अपने संदेश को अपने गंतव्य तक पहुँचाया। दुर्भाग्य से, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ड्यूटी के दौरान बड़ी संख्या में कबूतर मारे गए।
द्वितीय विश्व युद्ध में नौसेना द्वारा दक्षिण प्रशांत में जहाजों की रखवाली और बारूदी सुरंगों की खोज के लिए डॉल्फिन का इस्तेमाल किया गया था। बेशक आज, डॉल्फिन को अमेरिका की नौसेना से नए रूप में जोड़ा गया है, उन्हें जहाजों की रखवाली और बारूदी सुरंगों की खोज में महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में रखा जाता है। लेकिन इस तरह से मनुष्यों की सेवा करना डॉल्फिन का स्वाभाविक कार्य नहीं है। यानी जल, थल और वायु के जीवों का मनुष्यों ने युद्ध में इस्तेमाल किया। यह उन जानवरों का इस्तेमाल था, जिनका युद्ध से कोई सरोकार नहीं था। उन्हें भू-सीमाओं या राजनीतिक लालच के बारे में नहीं पता था। विश्व युद्धों का हवा और पानी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। द्वितीय विश्व युद्ध के जहाजों के कारण अटलांटिक महासागर में तेल संदूषण 15 मिलियन टन से अधिक होने का अनुमान है। तेल रिसाव को साफ करना मुश्किल होता है निस्संदेह, यह प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, वियतनाम युद्ध, रवांडा गृह युद्ध, कोसोवो युद्ध और खाड़ी युद्ध जैसे युद्धों का दुखद पर्यावरणीय प्रभाव है कि विध्वंसक हथियारों से जल और वायु प्रदूषित हो गए।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शहरों पर बमबारी और जंगलों, खेतों, परिवहन प्रणालियों और सिंचाई नेटवर्क के विनाश ने विनाशकारी पर्यावरणीय परिणाम उत्पन्न किए। 1991 में खाड़ी युद्ध के पर्यावरणीय परिणामों ने हवा, समुद्री पर्यावरण और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया। युद्ध के 43 दिनों के दौरान लगभग 4,000 वर्ग मील के क्षेत्र में कुल 84,000 टन से अधिक बम गिराए गए। इसलिए प्रभावित तट के किनारे आर्द्रभूमि में अधिकांश मैंग्रोव और दलदल तेल से नष्ट हो गए। इन क्षेत्रों के पचास से 90 प्रतिशत जीव, मुख्य रूप से केकड़े, उभयचर और मोलस्क भी तेल रिसाव से मारे गए।
युद्ध से भूमि की सीमाएँ बदली जा सकती हैं। युद्ध में कोई जीत सकता है तो कोई हार सकता है। लेकिन युद्ध से जो पर्यावरण नष्ट होता है, उसे फिर से बनाना बहुत मुश्किल होता है। बमबारी और मिसाइलों के कारण कई साल पुराने पेड़ झुलस जाते हैं, जल जाते हैं, गिर जाते हैं। जबकि नए पेड़ों को बढ़ने और परिपक्व होने में सालों लग जाते हैं। हवा प्रदूषित हो जाती है। नदियाँ, तालाब और समुद्र का पानी प्रदूषित हो जाता है। दरअसल, युद्ध इंसानों के बीच नहीं बल्कि पर्यावरण पर एकतरफा हमला है। बेहतर है कि हम अपने राजनीतिक लालच पर काबू रखें और युद्ध न होने दें। लेकिन दुर्भाग्य से यूक्रेन में युद्ध की भयावहता से हमें पर्यावरण का नुकसान उठाना पड़ा है। आजकल के युद्धों की चर्चा के दौरान परमाणु हथियारों के प्रयोग किए जाने की शंका निरंतर बनी रहती है। ऐसे घातक परिणामों को प्रयोग में लाने के बारे में सोचने वालों को रूस के चेर्नोबल पर एक बार दृष्टिपात कर लेना चाहिए जो आज एक रेडिएशन प्रभावित निषिद्ध क्षेत्र है। बेशक वहां भी वनस्पितियों ने अपने जीवन को एक बार फिर आगे बढ़ाया है किन्तु वे वनस्पतियां कितनी रेडिएशन प्रभावित हैं, यह अभी पूरी तरह से पता नहीं है। मनुष्य तो वहां रह ही नहीं सकता है। 
युद्ध कृषि भूमि को लील जाते हैं। उन्हीं कृषि भूमि को जो हमें पेट भरने और जीवित रहने के लिए अनाज देते हैं। कृषि भूमि की मिट्टी मिसाइलों से प्रदूषित हो जाती है और उसे पुरानी अवस्था में लौटने में वर्षों लग जाते हैं। एक पक्षी जो बीजों का प्रसार करता है तथा वनस्पतियों का विस्तार करता है, उसके मारे जाने से अनेक बीजों के प्रसारण का क्रम थम जाता है। छोटे पक्षी और तितलियां परागण करती हैं, उनके मरने से सुंदर पौधों का जीवन अपनी अगली पीढ़ी तक नहीं पहुच पाता है। जो पालतू पशु हम पर निर्भर हैं, उन्हें मौत के मुंह में धकेलना हमारा जघन्य अपराध है। यदि वास्तविकता टटोली जाए तो इन स्थितियों के लिए सीधे-सीधे वे दोषी हैं जो युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं। यदि एक देश दूसरे देश को युद्ध के लिए विवश करे तो उसे विश्व न्यायालय के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए क्योंकि वह सिर्फ युद्ध का नहीं पर्यावरण को घातक क्षति पहुंचाने का भी दोषी है। 
अब और युद्ध विश्व की पर्यावरण व्यवस्था को जो नुकसान पहुंचाएगा, उससे उबरना शायद हमारे लिए संभव नहीं हो सकेगा। इस लिए युद्ध छेड़ने वालों या युद्ध की स्थिति उत्पन्न करने वालों को यह सोचना चाहिए कि वे जिस पृथ्वी पर रह रहे हैं, उसी के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर वे अपनी आने वाली पीढ़ी को भयावह अंधकार की ओर धकेल रहे हैं और वे उन सभी वनस्पितियों एवं प्रणियों के की अकाल मुत्य के भी जिम्मेदार हैं जो युद्ध के दौरान मारे जाते हैं।
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1 comment:

  1. हार तरह से युद्ध निंदनीय है पर मानव समाज इसके बिना रह नहीं सकता

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