बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
उन ओरन लाने तो अब नई पुंगरिया चाउने
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘कछू जने कभऊं नईं सुदरत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! सई कई। आप सोई उनमें से एक हो।’’ भौजी हंसत भईं बोली।
‘‘काय, अब इत्ती झूठी बी ने बोलो। ब्याओ के बाद हम नईं सुदर गए का?’’ भैयाजी भौजी से बोले।
‘‘मने, पैले आप बिगड़े भए हते।’’भौजी ने हंस के कई।
‘‘ब्याओ के बाद तुमने हमें सुदार दओ।’’ भैयाजी मुस्क्यात भए बोले।
‘‘जे आपने मान लओ।’’ भौजी ने फेर के चुटकी लई।
‘‘हऔ, मान लओ। औ जे बी सच्ची आए के ब्याओ के बाद अच्छे-अच्छे सुदर जात आएं, हम कां लगत आएं।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘सो आप जे कोन के लाने कै रए हते के कछू जने कभऊं नईं सुदरत?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘उनई के लाने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन के लाने?’’ मोए समझ ने परी।
‘‘अरे, देख नईं रईं? उन्ने कतल कराओ, उन्ने मिसाइलें दागीं औ अब बे भोले बाबा बन के फिर रए। बा तो अपन ओरन की बड़ाई ठैरी के उने छोड़ दओ। मने बे ठैरे कुत्ता की दुम। बारा बरस बी पुंगरिया में रखी जाए फेर बी सीधी ने हुइए। टेढ़ी की टेढ़ी रैहे। उन ओरन खों भलाई की बातें कोन समझ में आउंती आएं। बे तो कभऊं बी फेर के कछू करहें। देख नई रईं के बे अबे बी सबरे सांपन खों पाले बैठे औ दूद पिबा रए। एकऊ खों मारबे या सौंपबे की बात नई कर रए। औ अब तो उने संग देबे वारे सोई मिलत जा रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सई कै रए आप। पर भैयाजी, का आए के अपन ओरें ठैरे पब्लिक, अपने ओरें भावना से चलत आएं औ जोन खों करने परत आए, बे सब कछू सोच के चलत आएं। अपन ओरें नईं समझ सकत के ऐसो काय करो औ वैसो काय नईं करो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुम ठीक कै रईं बिन्ना! पर तनक सोचो के बा कुत्ता की दुम के लाने एक नई पुंगरिया तो चाउने ई परहे। सबरी पुरानी पुंगरिया तो ऊके लाने कछू नईं कर पा रई। बा औ उके पाले भए सबरे गुर्रान लगत आएं।’’ भैयाजी तनक दुखी होत भए बोले।
‘‘आप फिकर ने करो औ ने दुखी होओ! हो सकत के उनके लाने नई पुंगरिया बन रई होए। अपन खों का पता?’’ मैंने कई।
‘‘सई तो कै रई बिन्ना, जे बड़े राज-काज अपन ओरे नईं समझ सकत।’’ भौजी सोई बोलीं।
‘‘मनो जे सोसल मीडिया पे तो कित्तो उल्टो-सूदो चलन लगो।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘सोसल मीडिया की छोड़ो आप, बा तो सोसल कम, अनसोसल ज्यादा आए। औ बाकी उते बोलबे वारे गिरगिट घांईं रंग बदलत आएं। सुभै एक के धरे उरदा दर रए होंए सो संझा दूसरे के घरे मूंग दरत दिखाहें। औ तनक डर लगो तो अपनी पोस्ट-मोस्ट डिलीट कर के बढ़ा गए। कोऊं-कोऊं तो अपनो अकाउंट लौं बंद कर के बैठ जात आएं। फेर जब आयरे कछू ठंडो माहौल दिखानो तो चुप्पे से अपनो अकाउंट खोल के फेर आ ठाड़े भए। सोसल मीडिया की दुनिया खों इत्तो सीरियस लेबे की जरूरत नोईं। उते तो गांधीजी के तीन बंदरा घांई रओ चाइए- बुरौ मत देखो, बुरौ मत बोलों औ बुरौ मत सुनो। उते जो कछू अच्छो आए ऊको देखो सो सब अच्छो लगहे।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना! जे सोसल मीडिया सोई कभऊं-कभऊं टीवी चैनल घांईं काटन सो लगत आए। खैर, जे सब छोड़ो, औ बताओ के का चल रओ?’’ भैयाजी बात बदलत भए बोले।
‘‘सब कछू ठीक चल रओ। देखो भैयाजी, जो गलतियां निकारबे बैठो सो भगवान की बनाई चीजन में बी गलतियां दिखान लगत आएं फेर इंसान को का ठैरो?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो भगवान तो भगवान आए, ऊको कोऊ का कै सकत?’’ भैयाजी कुनमुनाए से बोले।
‘‘भगवान की गलतियन पे मोए एक नाटक याद आ रओ। बा शेक्सपियर ने एक नाटक लिखो रओ ‘‘काॅमेडी आफ एरर्स’’। आपने सोई कभऊं पढ़ो हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों याद दिलाई।
‘‘नईं हमने कभऊं नईं पढ़ो। हमाई पढ़ाई भई हिन्दी मीडियम से, सो हम कां से जा पढ़ते? बाकी ईको नांव जरूर सुनो आए। ईपे एक हिन्दी फिलम सोई बनी रई। शायत ‘अंगूर’ नांव रओ ऊको। संजीव कुमार औ देवेन वर्मा रओ। बड़े मजे की फिलम रई।’’ भैयाजी सोंचत भए बोले।
‘‘अरे वाह! आप खों फिलम की बड़ी याद आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘याद जे लाने आए बा फिलम, के हम तुमाई भौजी के संगे चोरी से गए रए औ लौटत में कऊं देर ने हो जाए, ई डर से जे चाट-फुल्की खाबे खों बी ने रुकी हतीं।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘तुम औ! अब का सब कछू बताबो जरूरी आए?’’ भौजी ने भैयाजी खों तनक झिरकत भई बोलीं।
‘‘भैयाजी, आपखों अब याद ने हुइए के बा ‘अंगूर’ फिलम को डायरेक्टर गुजार साब रए। लेकन हिरोईन तो आपको याद हुइए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बा हमें याद नईं।’’ भैयाजी साफ मेट गए।
‘‘लेओ, आपको मौसमी चटर्जी याद नईं? बोई तो हिरोईन रई फिलम की औ दूसरी वारी दीप्ती नवल हती।’’ मैंने भैयाजी से कई।
बे दोई हमें कां से याद रैतीं, हमाए संगे तो हमाई हिरोइन रई।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘बाकी बा नाटक को का कै रई? बा हमने सोई नई पढो।’’ भौजी ने बात बदलत भई मोसे पूछी।
‘‘बा किसां? ऊ किसां में का भओ के, एजियन नांव को एक ब्यौपारी रओ। ऊके दो जुड़वां बेटा भए। ऊने दोई को नांव एंटिफोलस रख दओ। ऊने फेर ओई टेम पे दो ओई टेम के जाए दो जुड़वा खरीद लए। अपने दोई बेटों की करबे के लाने। उन दोई खरीदे भए जुड़वों को नांव ड्रोमियो रख दओ। एक दिना बा अपने बेटों औ बेटों के नोकरन बच्चन के संगे पानी के जहाज पे कऊं जा रओ हतो के जहाज डूब गओ। ईसे भओ का के एजियन की लुगाई, ऊको एक बेटा औ एक नौकर बालक ड्रोमियो हिरा गए। एजियन को एक बालक औ एक नौकर बालक ऊके साथ रैत आए। ई टाईप से दोई जुड़वा अलग-अलग हो के बढ़त चलत आएं औ फेर मुतकी मजेदार घटनाएं सी घटत आएं। किसां की अखीर में दोई जुड़वां आपस में मिल जात आएं। सो जे हती किसां ‘‘काॅमेडी आफ एरर्स’’की। औ शेक्सपीयर ने जे बताबे की ईमें कोसिस करी रई के भगवान जू से बी गलती हो सकत आए। एक मां के जाए, एक घरे पैदा भए, जुड़वा रए, मनो अलग-अलग होतई सात उनकी हरकतें सोई अलग-अलग हो गईं। सो, भगवान ने जब उने बनाओ तो उने का पतो रओ के बे जुड़वा अलग हो के लड़त रैहें।’’ मैंने कई।
‘‘जा तो तुमने तनकई में सूंट दई। पूरी किसां ने सुनाई।’’ भौजी कुनमुनात भई बोलीं।
‘‘हऔ! औ ई किसां से जे अभई की लड़ाई को का ताल्लुक कहाओ?’’ भैयाजी सोई मों बनात भए बोले।
‘‘जे किसां लम्बी आए सो फेर कभऊं पूरी सुनाबी। रई बात किसां के अधूरी रैने की सो आपई ओरें सोचो के जो कोई किसां अधूरी-सी रै जात आए तो कैसो लगत आए। मनों बात बोई आए के किसां हती कुत्ता की दुम खों पुंगरिया में डार के सीदी करबे की, पर भओ का किसां अधूरी रै गई और कुत्ता की दुम टेढ़ी के टेढ़ी रै गई। औ बे तो झुंड बना के फिर रए। काय, सई कई के नईं?’’ मैं भैयाजी औ भौजी से पूछी।
बे दोई हंसन लगे। काए से दोई समझ गए के मैं का कै रई।
‘‘जेई से तो हम कै रए के उनके लाने तो अब नई पुंगरियां चाउने। अखीर उने पतो तो परन चाइए के कोऊ ऊकी पूंछ को सीदी कर सकत आए। बे तो अपनी पूंछ टेढ़ी करे-करे इतरा रए।’’ कैत भए भैयाजी सोई हंस परे।
‘‘कब लौं हंसहे, कोनऊं दिनां तो ऊनको पुंगरिया पैन्हाई जाहे।’’ मैंने कई।
‘‘को जाने कबे? अभई अच्छो मौका रओ।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘जे अपन ओरे सोचत आएं पर जोन खों सोचने, बे का सोचत आएं जे अपन नई समझ सकत। सो गम्म खाओ औ नई पुंगरिया बनबे को इंतजार करो।’’ मैंने कई।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के उन ओरन के लाने नई पुंगरिया चाउने के नईं?
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