Tuesday, July 9, 2024

पुस्तक समीक्षा | महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को सहेजता एक महत्वपूर्ण ग्रंथ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


आज 09.07.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई श्री पलाश सुरजन एवं सरिका ठाकुर द्वारा संपादित ग्रंथ "मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाएं" की समीक्षा।

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पुस्तक समीक्षा
महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को सहेजता एक महत्वपूर्ण ग्रंथ
     समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक -  मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाएं
संपादक - पलाश सुरजन एवं सारिका ठाकुर
प्रकाशक - मीडियाटेक कम्युनिकेशन प्रा.लि. 26-बी, इंदिरा प्रेस कॉपलेक्स, जोन-1. महाराणा प्रताप नगर, भोपाल 462011
मूल्य - 1499/-
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इतिहास पर हमेशा यह आरोप लगता रहा है कि वह पुरुषों के वर्चस्व से भरा हुआ है। यह आरोप किसी हद तक सही भी है क्योंकि इतिहास में पुरुषों के कारनामों अथवा उपलब्धियां को महिमा मंडित करके लेखबद्ध किया गया है किंतु वहीं महिलाओं की उपलब्धियों को गौण रखा गया है। इतिहास चाहे राजनीति का हो, साहित्य का हो, कला का हो या किसी भी अन्य क्षेत्र का महिलाओं की उपलब्धियों को कम ही सहेजा गया। विगत में इस संदर्भ में जो कुछ महत्वपूर्ण काम हुआ, उसमें भी महिलाओं के योगदान को विषयवार अलग-अलग संकलित किया गया। जैसे- हरिहरनिवास द्विवेदी ने सन 1959 में एक ग्रंथ संपादित किया था - ‘‘मध्य भारत का इतिहास’’। सूचना एवं प्रकाशन मध्यप्रदेश से यह चार खण्डों में प्रकाशित हुआ था और प्रत्येक खंड में संदर्भानुसार महिलाओं के योगदान का अत्यंत संक्षिप्त उल्लेख किया गया था। सन 1960 में ‘‘हिन्दी की महिला साहित्यकार’’ सत्यप्रकाश मिलिंद के संपादन में राजकमल प्रकाशन से आया। सन 1962 में ‘‘आधुनिक हिन्दी कवयित्रियों के प्रेम गीत’’ का सम्पादन क्षेमचन्द्र ‘‘सुमन’’ किया, जिसे राजपाल एण्ड संस ने छापा था। समय-समय पर इस दिशा में फुटकर कार्य होता रहा।
एक लंबे अंतराल के बाद पलाश सुरजन द्वारा एक बड़ा और ठोस काम किया गया ‘‘स्वयंसिद्धा: मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’’ के रूप में। यह ग्रंथ अपने आप में महत्वपूर्ण तो था ही साथ ही यह नींव का पत्थर बना ‘‘मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाएं’’ ग्रंथ का। जी हां, हाल ही में प्रकाशित ‘‘मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाएं’’ ग्रंथ का संपादन पलाश सुरजन तथा सरिका ठाकुर ने किया है। यह ग्रंथ विविध क्षेत्रों में महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को सहेजता एक ऐतिहासिक ग्रंथ है। निश्चित रूप से इस तरह के ग्रंथ का संपादन करना और इसके लिए सामग्री एकत्र करना अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है। ऐसा कार्य पर्याप्त समय और गहरी धैर्य की मांग करता है। ‘‘स्वयंसिद्धा: मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’’ के सफल संपादन से उत्साहित होकर पलाश सुरजन ने इससे आगे बढ़कर कार्य करने का साहस जुटा लिया। सारिका ठाकुर भी बतौर संपादक इस महायज्ञ में शामिल हो गईं। जिसका सुपरिणाम इस सद्यः प्रकाशित ग्रंथ के रूप में हुआ। संपादक द्वय को यह महसूस हुआ कि जो कार्य उन्होंने ‘‘स्वयंसिद्धा...’’ के रूप में संपादित किया, उसमें कहीं न कहीं कुछ छूट गया है जिसे सामने लाना जरूरी है। कोई और संपादक होता तो शायद वह अपने कार्य को पूर्ण मानकर वहीं ठहर जाता, किंतु इस संपादक द्वय को यह लगा कि जितनी संपूर्णता से महिलाओं के योगदान को प्रस्तुत किया जाए उतना ही उत्तम होगा। इस संबंध में संपादक सरिका ठाकुर ने पुस्तक के आरंभ में ‘‘अपनी बात’’ में लिखा है-‘‘सन् 2012 में जब पुस्तक ‘स्वयंसिद्धाः मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’ प्रकाशित हुई तो ऐसा लगा जैसे अतीत से लेकर वर्तमान तक मध्यप्रदेश की समस्त प्रमुख महिलाओं को हमने एक माला में पिरो लिया। उस समय ग्रंथ को भी वैसा ही सम्मान प्राप्त हुआ। समय व्यतीत हुआ और 2020 के कोरोना काल में हम श्स्वयंसिद्धाश् के डिजिटल संस्करण पर विचार करने लगे। इसके लिये 2012 की पुस्तक ‘स्वयंसिद्धा’ को अपडेट करने के साथ नये नामों को जोड़ने की जरूरत थी, क्योंकि विगत आठ वर्षों में प्रदेश की महिलाएं कई बड़े-बड़े कीर्तिमान रच चुकी थीं। इसी अपडेट करने की प्रक्रिया में वेबसाइट ‘स्वयंसिद्धा’ का जन्म हुआ, जिसमें एक झरोखे का नाम हमने ‘अतीत गाथा’ रखा। नाम से ही जाहिर है इसमें हम अतीत में जन्मी उन महिलाओं की जीवन गाथा संजो रहे थे, जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदेश के इतिहास को प्रभावित किया हो। शोध की प्रक्रिया तभी प्रारंभ हुई।’’
गहन शोध कार्य तथा लगभग हर स्रोत को खंगालते हुए मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाओं के योगदान को ठीक उसी प्रकार निकाला गया जैसे गहरे समुद्र में गोता लगाकर सीप और मोती निकल जाते हैं। पलाश सुरजन ने  अपनी परिकल्पना को साकार करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और सारिका ठाकुर ने संपादन का महत्वपूर्ण दायित्व पूरी गंभीरता से निभाया। वहीं उप संपादक सीमा चैबे ने व्हाट्सएप, फेसबुक आदि सोशल मीडिया के माध्यम से उल्लेखनीय महिलाओं के वंशजों से निरंतर संपर्क करते हुए सामग्री जुटाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सतत परिश्रम कर इस समुद्र मंथन से रत्न के रूप में जो ग्रंथ सामने आया वह मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को बखूबी रेखांकित करता है।
ग्रंथ के संपूर्ण कलेवर को आठ खण्डों में विभक्त किया गया है - खंड एक - आदिकाल, खंड 2 - स्वतंत्रता आंदोलन (1857 -1947), खंड 3 - भोपाल की नवाब बेगमें, खंड चार - समाज सेवा एवं राजनीति खंड 5 - साहित्य एवं पत्रकारिता खंड 6 - गायन, वादन एवं नृत्य खंड 7 - रंगमंच, सिनेमा, टीवी, चित्रकला एवं सिरेमिक एवं खंड 8 - विविध।
खण्ड-1 आदिकाल में रानी दमयंती, देवी, संघमित्रा, मृगनयनी, रानी गणेश कुंवरी, रानी दुर्गावती, रानी रूपमती, राय प्रवीण, मुमताज महल, हीरा बाई, लाल कुंवरी/रानी सारंधा, रानी गौतमा बाई, मस्तानी बाजीराव, रानी कमलापति, रानी अहिल्या बाई होलकर तथा गन्ना बेगम का व्यक्तित्व एवं कृतित्व दिया गया है। साथ ही एक लेख है - ‘‘कहानी तीन विद्रोही विधवाओं की’’, जिसमें महादजी की तीन विधवाओं भागीरथी बाई यमुनाबाई और लक्ष्मी बाई के संघर्ष का उल्लेख है।
खण्ड-2 स्वतंत्रता आन्दोलन (1857-1947) -रानी तुलसा बाई होलकर, राजमाता कृष्णा बाई, भीमा बाई, रानी बायजा बाई शिंदे, रानी लक्ष्मी बाई, रानी अवंती बाई, रानी राजो, वीरा नयनी, सुरसी बाई, जानकी देवी बजाज, सुभद्रा कुमारी चैहान, सहोदरा बाई, इंदु मेहता एवं रानी कंचन प्रभा। इस खंड के अंत में एक लेख है- ‘‘स्वातंत्र्य समर की गुमनाम नायिकाएं’’।
खंड-3 भोपाल की नवाब बेगमें- नवाब कुदसिया बेगम, नवाब सिकंदर जहां बेगम, नवाब शाहजहां बेगम, नवाब सुल्तान जहां बेगम, आबिदा सुलतान अम्मा सरकार एवं शहनाज। इसी खंड में लेख है - ‘‘भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन की वीरांगनाएं’’।
खण्ड-4 है समाज सेवा एवं राजनीति का। इसमें हैं- जयवंती हक्सर, यमुना ठाकुर, रानी चंद्रावती होल्कर, सीता परमानन्द, रत्नाकुमारी देवी, रतन देवी शास्त्री, मैत्रेयी पद्मनाभन, शालिनी ताई मोघे, अख्तर आपा, विजया राजे सिंधिया, विद्यावती चतुर्वेदी, चन्द्रप्रभा पटेरिया, यशोदा देवी, सरला ग्रेवाल, गायत्री देवी परमार, विमला शर्मा,  विमला वर्मा, जमुना देवी, पेरिन दाजी, कुसुम जैन, डॉ. नुसरत बानो ‘‘रूही’’, मृणालिनी देवी पंवार, मैमूना सुलतान, मोहिनी देवी, कृष्णा अग्रवाल, प्रभा राव, चम्पा बहन, उर्मिला सिंह, करुणा शुक्ल, सुषमा स्वराज, कल्पना पारुलेकर, कल्पना मेहता, डॉ. मेजर अनुराधा, साहित्य एवं पत्रकारिता, मध्य प्रदेश के हिन्दी साहित्य में महिला लेखन का इतिहास, हेमंत कुमारी देवी, उषा देवी मित्रा, तोरन देवी शुक्ल ‘‘लली’’,  दुर्गा भागवत, शकुन्त माथुर, पद्मा पटरथ,  डॉ. विद्यावती ‘‘मालविका’’ (मेरी स्वर्गीय माताजी), कमल शबनम कपूर, मन्नू भंडारी, क्रांति त्रिवेदी, मालती जोशी, डॉ. सुघरा मेहदी, अनुराधा जामदार, ज्योत्स्ना मिलन, इरफाना शरद, दविंदर कौर उप्पल एवं मुमताज सिद्दीकी।
खण्ड - 6 गायन, वादन एवं नृत्य में हैं- खालिदा बिलग्रामी, सुमति मुटाटकर, असगरी बाई, सुशीला पोहनकर, गायत्री नायक, जयमाला शिलेदार, अन्नपूर्णा देवी, वेणी कुंवर, लता मंगेशकर, वसुंधरा कोमकली, शकीला बानो श्भोपालीश्, बेगम खुर्शीद सिकंदर बख्त, विजय नरेश, सविता गोडबोले, शुभदा मराठे, रंजना टोणपे तथा डालिया दत्ता।
खण्ड -7 रंगमंच, सिनेमा, टीवी, चित्रकला एवं सिरेमिक में हैं - देवयानी कृष्णा, वनमाला,  गुलवर्धन, कृष्णा राजकपूर, पुष्पा जोशी, शिव कुमारी जोशी, रीता भादुड़ी, पुष्पनीर जैन एवं सीमा घुरैया।
खण्ड - 8 विविध में विविध क्षेत्र में अपने कार्यों से अपने नाम को स्थाई तो दिलाने वाली 17 महिलाओं का परिचय है।
आठों खंडों के उपरोक्त विवरण से ही सहज रूप से समझा जा सकता है की कितनी समग्रता से इस ग्रंथ में सामग्री जुटा कर प्रस्तुत की गई है। इनमें से कई नाम ऐसे हैं जो समय के साथ लगभग भुला दिए गए। जैसे भोपाल की बेगमों के योगदान को भी धीरे-धीरे हाशिए में समेट दिया गया। वस्तुतः बाजारवाद के इस दौर में ऐसा चलन आया कि यह माना जाने लगा कि ‘‘जो वर्तमान में भी समर्थ है’’ अथवा ‘‘जिसकी कथित मार्केट वैल्यू है’’, वही चर्चा में रहने योग्य है। इस सोच ने अतीत को यानी वर्तमान की नींव को ही उपेक्षित करने का दुखद कार्य किया है। मानवीय मूल्यों के गिरावट वाले एवं अपने इतिहास के प्रति उदासीनता ओढ़ने वाले ऐसे कठोर समय में  ‘‘मध्य प्रदेश के इतिहास में महिलाएं’’ जैसा ग्रंथ लाने के लिए संपादक द्वय पलाश सुरजन तथा सरिका ठाकुर को साधुवाद। यह ग्रंथ अतीत में सक्रिय सभी महिलाओं को पुनः सम्मानजनक स्थान दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक दस्तावेज की भांति है जो आने वाली पीढ़ी को अतीत के बारे में तथा अतीत में महिलाओं के ऐतिहासिक योगदान के बारे में पर्याप्त जानकारी दे सकेगा। निश्चित रूप से यह एक संग्रहणीय ग्रंथ है।  
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