Wednesday, April 20, 2016

चर्चा प्लस ...... जल संकट पर हमें अब चेतना ही होगा ... - डाॅ. शरद सिंह

Charcha Plus - Column of  Dr Sharad Singh

My Column “ Charcha Plus” published in today's "Dainik Sagar Dinkar"

आज के "दैनिक सागर दिनकर" में प्रकाशित मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’
(20. 04. 2016) .....








Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

चर्चा प्लस 
जल संकट पर हमें अब चेतना ही होगा 
- डाॅ. शरद सिंह
गर्मी का मौसम आते ही पानी की किल्लत सिर चढ़कर बोलने लगती है। गिरते हुए जलस्तर वाले स्रोतों के पास महिलाओं और लड़कियों की भीड़ उस जल-कथा को कहते हैं जिसमें पीने के पानी के लिए अथक संघर्ष का दृश्य अपने चिन्ताजनक रूप में दिखाई देता है। जल ही तो जीवन हैं। यदि जल नही ंतो जीवन कहां? स्वतंत्र भारत में अनेक बांधों के निर्माण के बाद भी लापरवाही, अव्यवस्था और सजगता के अभाव के कारण जल-संकट निरन्तर बढ़ता गया है। पहले औरतों को अपने घर से कुछ मीटर की दूरी से पानी लाना पड़ता था, अब यह दूरी मीलों में फैल गई है। आज देश के नौ राज्य ओडि़शा, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हरियाणा, बुन्देलखण्ड, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और गुजरात भीषण जल संकट का सामना कर रहे हैं। भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण भूजल का स्तर निरन्तर तेजी से गिरता जा रहा है। जलस्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं।
क्या कभी किसी ने सोचा था कि एक दिन देश ऐसी भी स्थिति आएगी कि पानी के लिए धारा 144 लगाई जाएगी अथवा पेयजल के स्रोतों पर बंदूक ले कर चैबीसों घंटे का पहरा बिठाया जाएगा? किसी ने नहीं सोचा। पिछले दशकों में पानी की किल्लत पर गंभीरता से नहीं सोचे जाने का ही यह परिणाम है कि शहर, गांव, कस्बे सभी पानी की कमी से जूझते दिखाई पड़ रहे हैं। देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या अत्यंत भयावह है। महाराष्ट्र में कृषि के लिए पानी तो दूर, पीने के पानी के लाले पड़ गए हैं। जलस्रोत सूख गए हैं। जो हैं उन पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव है। सबसे शोचनीय स्थिति लातूर की है। पीने के पानी के लिए हिंसा और मार-पीट की इतनी अधिक घटनाएं सामने आने लगीं कि वहां के पांडुरंग पोल को इलाके में प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ी। कलेक्टर ने लातूर में 20 पानी की टंकियों के पास 5 से अधिक लोगों के एकसाथ जमा होने पर प्रतिबंध लगा दिया। यह आदेश 31 मई 2016 तक के लिए जारी किया गया तथा इसके अंतर्गत टैंकर भरने की जगह, सार्वजनिक कुएं, टैंकरों के आने-जाने का मार्ग और भंडारित टैंकों की जगह शामिल रखी गईं। लातूर के शेष क्षेत्रों में सार्वजनिक कुओं पर पानी भरने के लिए लोगों की बड़ी भीड़ जमा होती है। कुएं सूख जाने पर प्रशासन द्वारा टैंकरों से इनमें पानी भरवाया जाता है। महाराष्ट्र में ज्यादातर कुएं सूख गए हैं तथा जल संकट और भी गंभीर स्तर पर पहुंचता जा रहा है। औरंगाबाद, जालना, बीड़, उस्मानाबाद, और लातूर में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। मराठवाड़ा के 14 बड़े बांधों में जरूरत का पानी नहीं है। जयकवाडी, पूर्णा, मांजरा, पेनगंगा में भी पानी कम है। इन बांधों में जरूरत का सिर्फ 5 फीसदी पानी ही बचा है। अगर पूरे महाराष्ट्र राज्य की बात करें तो उसकी जरूरत का सिर्फ 24 फीसदी पानी ही बचा है। महाराष्ट्र के 16 जिलों में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है। महाराष्ट्र के 43000 गांवों में से 15000 सूखाग्रस्त हैं। राज्य की 125 तहसीलों में गंभीर जल संकट है। सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों का पलायन हो रहा है। जबकि लातूर, उस्मानाबाद, बीड़ में इंडस्ट्री ठप पड़ गई है। लातूर में पूरे गर्मी के मौसम में सभी कोचिंग संस्थाएं बंद रखे जाने का आदेश दिया गया है। वहां ट्रेन से पानी मुहैया कराने की व्यवस्था भी की गई।
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में सूखे पर केंद्र से जवाब-तलब किया। स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 9 राज्य सूखे की चपेट में हैं और केंद्र कुछ नहीं कर रहा। साथ ही कोर्ट ने मनरेगा फंड में देरी पर फटकार लगाई। मनरेगा पर सुप्रीम कोर्ट ने की केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा है कि मनरेगा के तहत 150 दिन की जगह सिर्फ 25 दिन रोजगार मिल रहा है। केंद्र की वजह से राज्यों को फंड में देरी हो रही है। आदालत का कहना है कि राहत में 6 से 7 महीने की देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। अतिरिक्त फंड की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है।
इधर मध्यप्रदेश में पानी का भीषण संकट मुंह बाए खड़ा है। मध्यप्रदेश में 32 हजार हैंडपम्प बंद हो चुके हैं। 12 हजार से अधिक नल-जल योजनाएं सीधे तौर पर बंद हो गई हैं। प्रदेश की करीब 200 तहसीलों सूखाग्रस्त और 82 नगरीय निकायों में भी गम्भीर पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में और भी अजीब स्थिति है। वहां की नगर पालिका के चेयरमैन के अनुसार किसान पानी न चुरा पाएं, इसलिए नगरपालिका की ओर से लाइसेंसी हथियार शुदा 10 गार्ड तैनात किए हैं।
पानी जैसे बुनियादी तत्व को ले कर हम कितने लापरवाह हैं, यह हाल ही के आईपीएल विवाद में सामने आ गया। हमारे लिए खेल जरूरी है या पानी? अपने-अपने ड्राइंगरूम और सोशलमीडिया पर भले ही सबने कहा हो कि खेलों से अधिक जरूरी है पानी, लेकिन इस उत्तर को ले कर कहीं कोई लामबंदी नहीं दिखी। आईपीएल के रूप में बाज़ार एक बार फिर पानी पर भारी पड़ गया। आईपीएल की टिकटें बिक चुकी हैं, यही विवशता बताई गई आयोजकों द्वारा। टिकट खरीदने वालों के लिए भी पानी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था आईपीएल का मैच। इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का भी भरपूर प्रयास किया गया जबकि होना चाहिए था कि सभी राजनीतिक दल इस जलसंकट के विषय पर एकजुट हो जाते।
आज शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र दोनों ही जलस्रोतों की कमी से जूझना रहे है। जो आर्थिक रूप से समर्थ होते हैं, वे टैंकरों से पानी प्राप्त कर लेते हैं। और अधिक समर्थ मिनरल वाटर की बोतलों से प्यास बुझाते हैं। यह कोई स्थायी विकल्प नहीं है। जब तक जलस्रोतों में पानी है तभ्ी तक टैंकर और मिनरल वाटर की बोतले हैं। इसके साथ ही उन लोगों की पीड़ा को भी समझना जरूरी है जिन्हें एक घड़ा या एक बाल्टी पानी के लिए लम्बी कतारों में खड़े रह कर घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती है या फिर जिन्हें पानी के लिए मीलों की दूरी तय करनी पड़ती है। समाचारपत्रों में आए दिन यह समाचार पढ़ने को मिल जाता है कि फलां जगह पानी भरने के लिए मार-पीट हुई। यह संघर्ष केवल पानी का संषर्घ नहीं बल्कि जि़न्दा रहने का संषर्घ है। भला पानी के बिना कोई जीवित रह सकता है? आज जब इस संघर्ष की चिंगारियां भड़कने लगी हैं तो अब हमारा चेतना जरूरी है।
अखबारों में जलप्रदाय में होने वाले लीकेज और अपव्यय के समाचार मुस्तैदी से छपते रहते हैं लेकिन न तो प्रशासन को होश आता है और न नागरिकों को। सड़क के किनारे से गई हुई पाईप लाईन की ‘चाबी’ से लगातार पानी बहता रहता है लेकिन सड़क से गुज़रने वाले उसकी ओर न तो स्वयं घ्यान देने हैं और न प्रशासन का ध्यान उस ओर खींचने को कोई प्रयत्न करते हैं। रहा सवाल प्रशासन का तो हर बार एक ही जवाब दोहराया जाता है कि,‘‘देखते हैं, किसकी गलती है। जल्दी ही उसे सुधार दिया जाएगा।’’ परिणाम यह कि उनकी ‘जल्दी’ की घड़ी आती ही नहीं है और गैलनों पानी व्यर्थ बह कर बर्बाद होता रहता है। लीकेज के कारण उपयोग से कहीं अधिक बर्बादी होती है पानी की।
आवास निर्माण के नाम पर न जाने कितने कुए, बावडि़यां और तालाब सुखा दिए गए। जो सूखाए जाने से बचे रहे उनके रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया। तालाबों और बावडि़यों में कचरा डाल-डाल कर हमने उन्हें सुखा दिया या उनका पानी गंदा कर दिया। नदियों में को भी गंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हैंण्डपंपों के पुर्जे निकालने अथवा सार्वजनिक नलों से टोंटियां चुराने कोई अंतरिक्षवासी नहीं आता है। जल की यह दुर्दशा हम नागरिकों की ही लापरवाहियों का दुष्परिणाम है। हमने जाने-अनजाने जल संकट को उस मोड़ तक पहुंचा दिया है ‘‘तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा’’ जैसे वाक्य उछलने लगे हैं। क्या हम अपनी अगली पीढ़ी को पानी के लिए युद्ध की सौगात दे कर छोड़ कर जाना चाहते हैं? यदि हमने अभी भी जल संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो अगली पीढ़ी क्या, इसी पीढ़ी में पानी को ले कर त्राहि-त्राहि करना होगा। यदि अभी भी एक व्यवस्थित जल-प्रबंधन को लागू नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब एक-एक बूंद के लिए तरसना होगा। इस जल-प्रबंधन में पानी की बेतहाशा हो रही बर्बादी को रोकना, जल संरक्षण, जलस्रोतों का विस्तार और जनजागरूकता को शामिल करना होगा। यदि आज हम जल की रक्षा करेंगे तो कल जल हमारे और हमारी आने वाली पीढि़यों के जीवन की रक्षा करेगा। हमें अपनी लापरवाहियों से सबक लेते हुए स्वीकार करना होगा कि जल और जलस्रोतों को बचाना सामूहिक जिम्मेदारी है।
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