Thursday, February 7, 2019

चर्चा प्लस... चुनाव आते ही पिटारे से निकलते हैं मुद्दों के सांप - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
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चुनाव आते ही पिटारे से निकलते हैं मुद्दों के सांप
     - डॉ. शरद सिंह

       चुनाव का समय आते ही कुछ मुद्दे ऐसे उठ खड़े होते हैं मानो इस बार तो उनका निपटारा हो ही जाएगा। पिटारे में बंद मुद्दों के सांप को राजनीतिक दल अपनी-अपनी उंगली से कोंचने लगते हैं और वह फुंफकारते हुए बाहर निकल आता है। राम मंदिर मुद्दा या शारदा चिटफंड घोटाला इससे अलग नहीं है। ऐसा नहीं है कि इन मुद्दों को ठंडे बस्तों में डाल दिया गया हो लेकिन इनके प्रति जिस तरह की सजगता चुनाव आते ही दिखाई देने लगती है, उसे देख कर लगता है कि यदि यही सजगता शुरु से बनी रहती तो मुद्दे कब के निपट गए होते।                                              
चर्चा प्लस... चुनाव आते ही पिटारे से निकलते हैं मुद्दों के सांप - डॉ. शरद सिंह , Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Newspaper
    मुद्दों की भी अपनी वैरायटी होती है। कुछ मुद्दे समय सीमा वाले होते हैं, जैसे- दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक या फिर पंचवर्षीय। पंचवर्षीय मुद्दे उठ खड़े होते हैं हर पांच साल में चुनाव का समय आते ही। राममंदिर मुद्दा और शारदा चिटफंड घोटाला भी पंचवर्षीय मुद्दे हो चले हैं। चुनाव आते ही इनको ले कर हाय-तौबा शुरू हो जाती है। शारदा चिटफंड घोटाले की आंच हर बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के के दामन तक जा पहुंचती है। इस बार भी चुनाव की सरगर्मियों के बीच जांच की अांच ममता बनर्जी को परेशान करने लगी है। चुनाव दर चुनाव खिंचने वाले मामलों की तरह इस मामले में भी चुस्ती-फुर्ती का नजारा सभी ने देखा। 

ऐसा माना जाता है कि शारदा चिटफंड घोटाला पश्चिम बंगाल के एक बड़ा आर्थिक घोटाला है, जिसमें कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का हाथ होने का आरोप है। दरअसल पश्चिम बंगाल की चिटफंड कंपनी शारदा ग्रुप ने आम लोगों के ठगने के लिए कई लुभावन ऑफर दिए थे। इस कंपनी की ओर से 34 गुना रकम करने का वादा किया गया था और लोगों से पैसे ठग लिए। इस घोटाले में करीब 40 हजार करोड़ रुपये का हेर-फेर हुआ है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई को जांच का आदेश दिया था। साथ ही पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम पुलिस को आदेश दिया था कि वे सीबीआई के साथ जांच में सहयोग करें। दरअसल, इस कंपनी की स्थापना जुलाई 2008 में की गई थी। आरोप लगाया जाता है कि इस कंपनी के मालिक सुदिप्तो सेन ने ’सियासी प्रतिष्ठा और ताक़त’ हासिल करने के लिए मीडिया में खूब पैसे लगाए और हर पार्टी के नेताओं से जान पहचान बढ़ाई। शारदा चिटफंड घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई जांच के घेरे में हैं। दरअसल राजीव कुमार ने ही चिटफंड घोटालों की जांच करने वाली एसआईटी टीम की अगुवाई की थी। साथ ही कहा गया था कि इस जांच के दौरान घोटाला हुआ था। इस कमेटी की स्थापना साल 2013 में की गई थी। दरअसल पश्चिम बंगाल में सीबीआई की एंट्री पर बैन है, इसलिए सीबीआई प्रदेश में बिना अनुमति के कार्रवाई नहीं कर सकती है। शारदा चिटफंड घोटाले की जांच को लेकर सीबीआई कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए पहुंची थी लेकिन पुलिस ने यहां न सिर्फ सीबीआई को रोक दिया बल्कि सीबीआई के पांच अफसरों को भी गिरफ्तार करके थाने ले गई। इस मामले में सीएम ममता बनर्जी ने भी सीबीआई का विरोध करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा। घटना के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री धरने पर भी बैठ गईं।

केंद्र पर तीखा हमला बोलते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर आरोप लगाया कि वे राज्य में तख्ता पलट का प्रयास कर रहे हैं। सीबीआई कार्रवाई “राजनीतिक रूप से प्रतिशोध वाली“ और संवैधानिक मानदंडों पर हमला है। उन्होंने कहा, ’’मुझे ऐसे प्रधानमंत्री से बात करने में शर्म महसूस होती है जिनके हाथों में खून लगा है।“ ममता ने कहा, ’’नरेंद्र मोदी और अमित शाह राज्य में तख्तापलट का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि हमने 19 जनवरी को विपक्ष की रैली आयोजित की थी। हम जानते थे कि रैली आयोजित करने के बाद सीबीआई हम पर हमला बोलेगी। वह ब्रिगेड रैली का जिक्र कर रही थीं जिसमें करीब 20 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए थे। सीबीआई की कार्रवाई राजनीतिक प्रतिशोध वाली है।’’ ममता बनर्जी ने पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के आवास के बाहर जल्दबाजी में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में कहा, ’’हमारी सरकार ने सत्ता में आने के बाद चिट फंड मालिकों को गिरफ्तार किया। हमने ही मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया।’’ कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार, पश्चिम बंगाल के डीजी वीरेंद्र और एडीजी (कानून व्यवस्था) अनुज शर्मा भी धरना स्थल पर मौजूद थे। एक तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा, “हम ममता बनर्जी के नेतृत्व में संविधान की रक्षा के लिए यहां आए हैं।“ 

लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही एक ओर जहां अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग तेज हो रही है, वहीं आरएसएस का मानना है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का काम 2025 तक ही पूरा हो पाएगा। प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान एक कार्यक्रम में संघ में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि अगर आज से राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होता है तो पांच साल में यह पूरा हो जाएगा।  वहीं, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर कांग्रेस की ओर से भी बड़ा बयान आया है. कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि कांग्रेस जब सत्ता में आएगी तभी राम मंदिर बनेगा। इससे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  नेता इंद्रेश कुमार ने अयोध्या मामले में देरी के लिए कांग्रेस, वाम दल औरसुप्रीम कोर्ट के दो तीन जजों को जिम्मेदारी ठहराया था। आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस , वाम और ‘दो तीन जज’ उन गुनहगारों में हैं जो न्याय में देरी कर अयोध्या मेंराम मंदिर के निर्माण में अड़चन डाल रहे हैं। उन्होंने दोहराया कि आरएसएस की मांग है कि मंदिर के निर्माण के लिए सरकार अध्यादेश लाए।
केंद्र ने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिये न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार की यह कोशिश एक चुनावी दांव के तौर पर देखा जा रहा है। बीजेपी महासचिव राम माधव ने मोदी सरकार के इस कदम को ’बहुप्रतीक्षित’ बताया। वहीं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया। विहिप ने कहा था कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में बार-बार सुनवाई टलने के मुद्दे पर केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि अयोध्या ममाला जो करीब 70 सालों से लंबित है, उसकी जल्द सुनवाई होनी चाहिए क्योंकि देश के लोग वहां एक भव्य राम मंदिर का निर्माण होने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां कभी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी। उन्होंने यह भी कहा था कि “अयोध्या मामला पिछले 70 सालों से लंबित है। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश मंदिर के पक्ष में था, लेकिन अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। इस मामले का जल्द निपटारा होना चाहिए।“ 

ऐसा ही एक मुद्दा है रार्बट वाड्रा का। जमीन घोटाले का आरोप और जांच पड़ताल, कोट्र-कचहरी आदि सभी कुछ चल रहा है। शिकोहपुर जमीन घोटाला मामले में इसी साल सितंबर में रॉबर्ट वाड्रा और हुड्डा के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। यह मामला नूंह के रहने वाले सुरेंद्र शर्मा नाम ने खेड़कीदौला थाने में दर्ज करवाया था। क्योंकि इस एफआईआर में हरियाणा के पूर्व सीएम का नाम भी शामिल था, इसीलिए पुलिस ने सरकार से इजाजत मांगी थी। शिकायत दर्ज करने वाले सुरेंद्र शर्मा ने आरोप लगाया था कि वाड्रा की कंपनी ने नियमों को ताक पर रखकर घोटाला किया और वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटेलिटी ने शिकोहपुर में करीब साढ़े सात करोड़ में जमीन खरीदी थी। कमर्शियल लाइसेंस मिलने के बाद इस जमीन की कीमत काफी हद तक बढ़ गई और बाद में इसे डीएलएफ यूनिवर्सल को 58 करोड़ रुपये में बेचा गया। इसमें शिकायत थी कि नियमों को ताक पर रखकर यह जमीन सौदा हुआ है। इसके अलावा कमर्शियल लाइसेंस देने में भी तत्कालीन हुड्डा सरकार ने नियमों का पालन नहीं किया गया।
इस मामले को लेकर शुरू से ही राजनीतिक हलचल भी देखी जा रही थी। बीजेपी जहां कांग्रेस और सोनिया गांधी पर इस मामले में तंज कसती आती रही, वहीं कांग्रेस इसे राजनीतिक साजिश बताती रही है। पिछले चुनाव के समय लगने लगा था कि चुनाव होते ही कुछ ही महीनों में निर्णय हो कर रहेगा लेकिन हुआ ऐसा नहीं। अब फिर चुनाव का समय आया तो अनेक राजनीतिज्ञों को रार्बट वाड्रा याद आने लगे। 

सवाल यह उठता है कि ‘‘जल्दी निर्णय’’ की मांग चुनाव करीब आते ही क्यों सुगबुगाती है? पांच साल किस बात की प्रतीक्षा? जनता अब इतनी नासमझ भी नहीं हैकि इन दोनों प्रश्नों का उत्तर न समझे। मीडिया से जुड़ी जनता भले ही प्रत्यक्षतः कुछ न कर सके लेकिन समझती सब कुछ है। दुख तो इस बात का है कि इन बड़े-बड़े मुद्दों के बीच जल, जमीन, जंगल जैसे बुनियादी मुद्दे सिर्फ़ जुमलेबाजी बन कर रह जाते हैं और राजनीतिक दलों की जागरूकता का ड्रामा चुनाव के मंच पर चलता रहता है। 
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 07.02.2019)
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