Dr ((Miss) Sharad Singh |
आज 'Patrika.com' में बच्चों की गुमशुदगी की चिंताजनक बढ़ती दर मेरे लेख को पोस्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है... 🙏मैं आभारी हूं 'Patrika.com' तथा 'पत्रिका' के सागर संस्करण की जिन्होंने मेरे विचारों को इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म दिया💐
इस लिंक पर जा कर आप मेरा लेख पढ़ सकते हैं.... https://m.patrika.com/…/kids-missing-every-year-from-bunde…/
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बुंदेलखंड से गायब हो रहे बच्चे और बेफिक्र हम - Dr Sharad Singh Patrika dot com, 04.02.2019 |
बुंदेलखंड से गायब हो रहे बच्चे और बेफिक्र हम - डॉ. शरद सिंह
ह्यूमन ट्रैफिकिंग की आशंका, भीख मंगवाने वाले गिरोह का भी शिकंजा
- डॉ. शरद सिंह
देश में प्रतिदिन औसतन चार
सौ महिलाएं और बच्चे लापता हो जाते हैं और इनमें से अधिकतर का कभी पता नहीं
चलता। हर साल घर से गायब होने वाले बच्चों में से 30 फीसदी वापस लौटकर
नहीं आते। नाबालिगों की गुमशुदगी का आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है।
बुंदेलखंड इससे अछूता नहीं है। बच्चों के गुम होने के आंकड़े बुंदेलखंड में
भी बढ़ते ही जा रहे हैं। सागर के अलावा टीकमगढ़, दमोह और छतरपुर जिलों से
भी कई बच्चे गुम हो चुके हैं। चंद माह पहले सागर जिले की खुरई तहसील में एक
किशोरी को उसके रिश्तेदार द्वारा उसे उत्तर प्रदेश में बेचे जाने का
प्रयास किया गया। वहीं बण्डा, सुरखी, देवरी, बीना क्षेत्र से लापता
किशोरियों का महीनों बाद भी अब तक कोई पता नहीं है। इन मामलों में ह्यूमन
ट्रैफिकिंग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
सागर, टीकमगढ़,
दमोह और छतरपुर जिलों से जनवरी 2018 से अगस्त 2018 के बीच 513 किशोर-किशोरी
लापता हुए हैं। इनमें से करीब 362 बच्चे या तो स्वयं लौट आए या पुलिस
द्वारा उन्हें विभिन्न स्थानों से दस्तयाब किया गया। लेकिन अब भी 151 से
ज्यादा बच्चों को कोई पता ही नहीं चला है। वर्ष 2018 में जिले में
किशोर-किशोरियों की गुमशुदगी के आंकड़ों में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक है।
कुल 178 गुमशुदगी दर्ज हुए मामलों में किशोरों की संख्या लगभग 55 थी और
किशोरियों 123 थी। वर्ष 2015 में गुमशुदगी का आंकड़ा 136 था जो 2016 में
167 और पिछले साल 2017 में 215 तक पहुंच गया था। इन आंकड़ों को देखते हुए
इस वर्ष 2018 के दिसम्बर तक यह संख्या ढाई सौ के आसपास पहुंच गई थी। लापता
होने वालों में सबसे ज्यादा 14 से 17 आयु वर्ग के किशोर-किशोरी होते हैं।
इनमें भी अधिकांश कक्षा 9 से 12 की कक्षाओं में पढऩे वाले स्कूली बच्चे
हैं।
आखिर महानगरों के चौराहों पर ट्रैफिक रेड लाइट होने के दौरान
सामान बेचने या भीख मांगने वाले बच्चे कहां से आते हैं? इन बच्चों की पहचान
क्या है? अलायंस फॉर पीपुल्स राइट्स (एपीआर) और गैर सरकारी संगठन चाइल्ड
राइट्स एंड यू (क्राई) द्वारा जब पड़ताल की गई तो पाया गया कि उनमें से
अनेक बच्चे ऐसे थे जो भीख मंगवाने वाले गिरोह के सदस्य थे। माता-पिता विहीन
उन बच्चों को यह भी याद नहीं था कि वे किस राज्य या किस शहर से महानगर
पहुंचे हैं। जिन्हें माता-पिता की याद थी, वे भी अपने शहर के बारे में नहीं
बता सके। पता नहीं उनमें से कितने बचचे बुंदेलखंड के हों। बचपन में यही कह
कर डराया जाता है कि कहना नहीं मानोगे तो बाबा पकड़ ले जाएगा। बच्चे अगवा
करने वाले कथित बाबाओं ने अब मानो अपने रूप बदल लिए हैं और वे हमारी
लापरवाही, मजबूरी और लाचारी का फायदा उठाने के लिए नाना रूपों में आते हैं
और हमारे समाज, परिवार के बच्चे को उठा ले जाते हैं और हम ठंडे भाव से
अख़बार के पन्ने पर एक गुमशुदा की तस्वीर को उचटती नजऱ से देख कर पन्ने पलट
देते हैं। यही कारण है कि बच्चों की गुमशुदगी की संख्या में दिनोंदिन
बढ़ोत्तरी होती जा रही है। बच्चों के प्रति हमारी चिन्ता सिर्फ अपने बच्चों
तक केन्द्रित हो कर रह गई है।
मध्यप्रदेश राज्य सीआईडी के किशोर सहायता ब्यूरो से प्राप्त आंकड़ों के
अनुसार हाल ही के वर्षों में बच्चों के लापता होने के जो आंकड़ें सामने आए
हैं वे दिल दहला देने वाले हैं। 2010 के बाद से राज्य में अब तक कुल 50
हजार से ज़्यादा बच्चे गायब हो चुके हैं। यानी मध्यप्रदेश हर दिन औसतन 22
बच्चे लापता हुए हैं। एक जनहित याचिका के उत्तर में यह खुलासा सामने आया।
2010-2014 के बीच गायब होने वाले कुल 45 हजार 391 बच्चों में से 11 हजार
847 बच्चों की खोज अब तक नहीं की जा सकी है, जिनमें से अधिकांश लड़कियां
थीं। सन् 2014 में ग्वालियर, बालाघाट और अनूपुर जि़लों में 90 फीसदी से
ज़्यादा गुमशुदा लड़कियों को खोजा ही नहीं जा सका। ध्यान देने वाली बात ये
है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के लापता होने की संख्या अपेक्षाकृत अधिक
है जो विशेषरूप से 12 से 18 आयु वर्ग की हैं। निजी सर्वेक्षकों के अनुसार
लापता होने वाली अधिकांश लड़कियों को जबरन घरेलू कामों और देह व्यापार में
धकेल दिया जाता है। पिछले कुछ सालों में एक कारण ये भी सामने आया है कि
उत्तर भारत की लड़कियों को अगवा कर उन्हें खाड़ी देशों में बेच दिया जाता
है। इन लड़कियों के लिए खाड़ी देशों के अमीर लोग खासे दाम चुकाते हैं।
बदलते वक्त में अरबों रुपए के टर्नओवर वाली ऑनलाइन पोर्न इंडस्ट्री में
भी गायब लड़कियों-लड़कों का उपयोग किया जाता है। इतने भयावह मामलों के बीच
भिक्षावृत्ति तो वह अपराध है जो ऊपरी तौर पर दिखाई देता है, मगर ये सारे
अपराध भी बच्चों से करवाए जाते हैं।
बच्चों के लापता होने के पीछे सबसे बड़ा हाथ होता है मानव तस्करों का जो
अपहरण के द्वारा, बहला-फुसला कर अथवा आर्थिक विपन्ना का लाभ उठा कर बच्चों
को ले जाते हैं और फिर उन बच्चों का कभी पता नहीं चल पाता है। इन बच्चों
के साथ गम्भीर और जघन्य अपराध किए जाते हैं जैसे- बलात्कार, वेश्यावृत्ति,
चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बंधुआ मजदूरी, भीख मांगना, देह या अंग व्यापार आदि।
इसके अलावा, बच्चों को गैर-कानूनी तौर पर गोद लेने के लिए भी बच्चों की
चोरी के मामले सामने आए हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे मानव
तस्करों के आसान निशाना होते हैं। वे ऐसे परिवारों के बच्चों को अच्छी
नौकरी देने के बहाने आसानी से अपने साथ ले जाते हैं। ये तस्कर या तो एक
मुश्त पैसे दे कर बच्चे को अपने साथ ले जाते हैं अथवा किश्तों में पैसे
देने का आश्वासन दे कर बाद में स्वयं भी संपर्क तोड़ लेते हैं। पीडि़त
परिवार अपने बच्चे की तलाश में भटकता रह जाता है।
सच तो यह है कि बच्चे सिर्फ पुलिस, कानून या शासन के ही नहीं प्रत्येक
नागरिक का दायित्व हैं और उन्हें सुरक्षित रखना भी हर व्यक्ति की
जिम्मेदारी है, चाहे वह बच्चा किसी भी धर्म, किसी भी जाति अथवा किसी भी
तबके का हो।
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