Dr (Miss) Sharad Singh |
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बुनियादी विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
लोकसभा चुनाव सामने हैं और योद्धा इस समर को जीतने के लिए अपनी-अपनी योजनाएं बनाने में जुट गए हैं। मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश इन दो राज्यों में बंटा बुंदेलखंड राजनीतिज्ञों के लिए एक ऐसा इलाका है जहां समस्याएं ही समस्याएं हैं इसलिए यहां आश्वासन की पोटली आसानी से खोल दी जाती है। पिछले आमसभा चुनाव के दौरान भी अनेक ऐसे राष्ट्रीयस्तर के नेता बुंदेलखंड में पधारे जिन्हें बुंदेलखंड कहां है यह जानने के लिए गूगलसर्च करना पड़ा होगा। फिर चुनाव के दिन करीब आए तो फिर बुंदेलखंड याद आया। इस बार फिर कई राजनीतिक खिलाड़ी बुंदेलखंड के राजनीतिक गलियारों से गुज़रेंगे।
बुनियादी विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित An article of Dr (Miss) Sharad Singh in Navbharat newspaper |
बुंदेलखंड के राजनीतिक मंच पर दृश्य वही रहेगा- ढेर सारे मुद्दे और उससे भी अधिक आश्वासन। इस प्रसंग में बार-बार एक छोटी-सी कहानी याद आता है कि एक गांव में एक तालाब था जिसमें साफ़-स्वच्छ पानी था। हर मौसम में तालाब लबालब भरा रहता। एक बार एक शिकारी ने चुपके से एक मगरमच्छ का बच्चा तालाब में छोड़ दिया। कुछ दिन बाद जब मगरमच्छ बड़ा हुआ और लोगों के लिए खतरा बन गया तो गांववालों को उस शिकारी से निवेदन किया कि वह मगरमच्छ को मार दे। शिकारी ने मगरमच्छ मारने में इतने अधिक दिन लगाए कि तब तक उस मगरमच्छ की कई संतानें हो गईं। शिकारी ने उस मगरमच्छ को पकड़ा, गांववालों से अपना ईनाम लिया और वहां से चलता बना। कुछ समय बाद गांव वालों को पता चला कि तालाब में तो अभी भी मगरमच्छ है। उन्होंने फिर शिकारी को बुलाया। फिर वहीं किस्सा दोहराया गया। एक बार शिकारी के सहायक ने ही उससे पूछ लिया कि शिकारी साहब आप हर बार मगरमच्छ का एक न एक बच्चा तालाब में क्यों जीवित छोड़ देते हैं? इस पर शिकारी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया कि अगर मैं एक बार में सारे मगरमच्छ मार दूंगा और तालाब को समस्या-मुक्त कर दूंगा तो गांव वाले मुझे फिर क्यों बुलाएंगे? लगता है यही कहानी चरितार्थ होती रहती है बुंदेलखंड में।
बुंदेलखंड की कल-कल करती नदियां अब सूख चली हैं। वनपरिक्षेत्र का धनी बुंदेलखंड अंधाधुंध अवैध कटाई को दशकों से झेल रहा है। रसूख वाले बांधों से पानी चुराते हैं और रेतमाफिया नदियों से रेत चुरा रहे हैं। परिणामतः बुंदेलखंड में भी जलवायु परिवर्तन का कालासाया मंडराने लगा है। मौसम का असंतुलन सूखे का समीकरण रचने लगा है। जब पर्याप्त बारिश नहीं होगी तो किसान कैसे फसल उगाएंगे? पर्याप्त फसल नहीं होगी तो किसान कर्ज के बोझ तले दबता जाएगा और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में वहीं हो रहा है जो आए दिन अखबारों की सुर्खियों में पढ़ने को मिलता रहा है। कर्ज़माफी कोई ऐसा स्थाई हल नहीं है कि जिसके सहारे किसान कृषिकार्य से जुड़े रहें। किसानी से युवाओं के मोहभंग होने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है। बुंदेलखंड 2004 से ही सूखे की चपेट में रहा। जब बहुत शोर मचा तो पहली बार इलाके को 2007 में सूखाग्रस्त घोषित किया गया। 2014 में ओलावृष्टि की मार ने किसानों को तोड़ दिया। सूखा और ओलावृष्टि से यहां के किसान अब तक नहीं उबर पाए हैं। खेती घाटे का सौदा बन गई है और किसान तंगहाली में पहुंच चुके हैं। यहां के किसान लगातार कर्ज में डूबते जा रहे हैं। लगभग 80 प्रतिशत किसान साहूकारों और बैंको के कर्जे में डूबे हैं। ओलावृष्टि के दौरान तो सैकड़ों किसानों ने आत्महत्याएं तक कर लीं। इन आत्महत्याओं की वजह से ही बुंदेलखंड देश भर में चर्चा में रहा।
बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) आते हैं। नदियों, तालाबों, कुओं वाले इस क्षेत्र में जल का सही व्यवस्थापन नहीं होने के कारण लोग बूंद-बूद पानी के लिए तरसते रहते हैं। पिछले साल 2016 में बुंदेलखंड में पीने के पानी की ऐसी समस्या हुई कि केंद्र ने वाटर ट्रेन भी भेज दी, जिसपर खूब राजनीति हुई। कई गांव ऐसे हैं जहां 10 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है।
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(दैनिक ‘नवभारत’, 07.02.2019)
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