Wednesday, February 22, 2017

गरल पीते हैं पर शिव नहीं बनते

Dr Sharad Singh
मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 22.02. 2017) .....My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper

 

चर्चा प्लस : 


गरल पीते हैं पर शिव नहीं बनते
- डॉ. शरद सिंह

प्रतिदिन अखबार का पन्ना खोलते ही या फिर रात को टीवी पर प्राईम टाईम समाचार देखते हुए हम सभी न जाने कितने घूंट गरल के पीते हैं। गरल यानी ज़हर। जी हां, यह ज़हर ही तो है जो अमानवीय घटनाओं के रूप में हमारे दिमाग़ी-शरीर में सदमें का नील डालता रहता है। हम जैसे शिव का नीलकंठ हों। शिव ने तो गरल पिया और जगत का कल्याण कर दिया लेकिन हम अपना, अपने परिवार या अपने समाज का भी कल्याण नहीं कर पाते हैं। क्यों कि हम गरल तो पीते हैं मगर स्वयं को शिव नहीं बना पाते हैं।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
भगवान शिव का पौराणिक देवताओं में एक विशेष स्थान है। माना जाता है कि शिव संहारक भी है, शिव पालक भी है। पौराणिक ग्रंथों में शिवरात्रि से जुडी अनेकों कथाएं है। ‘शिवपुराण’ की एक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया। क्षीर सागर के मंथन के लिए भगवान् विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर स्तम्भ को आधार दिया। वासुकी नाग को सागर मंथन की रस्सी बनाया गया और स्तम्भ के शीर्ष पर ब्रह्मा विराजमान हुए। नाग के एक छोर को देवताओं ने तो दुसरे छोर को असुरों ने पकड़ा और सागर का मंथन शुरू किया। जैसे जैसे सागर मंथन शुरू हुआ समुद्र से अलग अलग वस्तुएं बाहर आने लगी। देवता और दानव आपस में चीज़ें बांटने लगे। जब अमृत निकला तो दोनों में बहस होने लगी की कौन अमृत पिएगा। ऐसे में भगवन विष्णु ने छल से मोहिनी रूप धर असुरों को आसक्त कर दिया और देवताओं को अमृत पिला दिया। अमृत के बाद निकला ब्रह्मांड का सबसे तीव्र और खतरनाक विष हलाहल। अब हलाहल को ग्रहण करने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ ना देवता ना असुर। हलाहल इतना भीषण विष था कि जो कोई भी इसके सम्पर्क में आये उसकी मृत्यु सुनिश्चित थी। ऐसे में जब सबने हार मान ली तो भगवान् शिव ने हलाहल को ग्रहण करने का निर्णय लिया। शिव ने हलाहल पी लिया लेकिन उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। भीषण विष के प्रभाव से भगवान शिव का गला नीला पड़  गया। इसके बाद भगवान शंकर को नीलकंठ नाम दिया गया। भगवान शिव के हलाहल पीने से देवता और असुर दोनों की समस्या का निवारण हो गया और समुद्र मंथन में आई बाधा टल गयी। प्रतिवर्ष उत्साह से शिवरात्रि मनाने वाले हम लोग गरल पीना तो सीख गए लेकिन जगत का उद्धार करना नहीं सीख सके हैं। प्रतिदिन अखबार का पन्ना खोलते ही या फिर रात को टीवी पर प्राईम टाईम समाचार देखते हुए हम सभी न जाने कितने घूंट गरल के पीते हैं। गरल यानी ज़हर। जी हां, यह ज़हर ही तो है जो अमानवीय घटनाओं के रूप में हमारे दिमाग़ी-शरीर में सदमें का नील डालता रहता है। हम जैसे शिव का नीलकंठ हों। शिव ने तो गरल पिया और जगत का कल्याण कर दिया लेकिन हम अपना, अपने परिवार या अपने समाज का भी कल्याण नहीं कर पाते हैं। क्यों कि हम गरल तो पीते हैं मगर स्वयं को शिव नहीं बना पाते हैं।
महिलाओं के विरुद्ध अपराध, बुजुर्गों के विरुद्ध अपराध, साइको होता युवावर्ग ये सभी हमारी चिन्ता के विषय हैं। ये चिन्ता के विषय होने भी चाहिए। हताहत होने वाले व्यक्ति आखिर हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा होते हैं। फिर भी लगभग प्रतिदिन आधा दर्जन जघन्य वारदात पढ़ने को मिल जाती हैं। अपराध-समाचारों को प्रमुखता न देने वाले आख़बार में भी एक पन्ने पर कम से कम चार ऐसे समाचार पढ़ने को मिल जाते हैं जिनमें किसी युवती, किसी नाबालिग बच्ची अथवा किसी उम्रदराज़ महिला के शोषण किए जाने या फिर उसके साथ अमानवीय ढंग से मारपीट किए जाने की घटना दर्ज़ होती है। पिछले कुछ वर्षों में बलात्कार के मामले इतनी तेजी से बढ़े हैं कि उनके आंकड़े स्तब्ध कर देते हैं। हाल ही में एक युवती के रेल से कट कर मर जाने का समाचार अख़बारों में छपा। वह युवती शौच के लिए घर से बाहर निकली थी। रास्ते में उसे दो-तीन युवकों ने घेर लिया और उसके साथ बदसलूकी करने लगे। वह युवती घबरा कर भागी और रेलवे लाईन पर जा पहुंची। घबराहट में सामने से आती रेल पर उसका ध्यान नहीं गया और वह रेल से कट कर मर गई। क्या किसी युवती की ऐसी दर्दनाक मौत होनी चाहिए? क्या वह युवती किसी की बेटी, किसी की बहन या इस समाज का हिस्सा नहीं थी? लेकिन उसकी दर्दनाक मौत एक ऐसा समाचार बन कर रह गई जिसे हम लगभग रोज पढ़ते हैं और उससे नज़रें भी चुराते हैं। इस पर हम चटखारे ले कर चर्चा करते हैं कि किसने किसको ‘‘गधा’’ कहा और किसने किसको ‘‘संपत्ति’’ कहा लेकिन अपराध के बढ़ते दर और क्रूरता पर चिन्तन करने से हम कतराते हैं। क्यों कि हमें लगता है कि ऐसा करने से क्या फायदा? हम कौन अपराध रोक सकते हैं? मिथक में ही सही पर शिव भी तो ऐसा सोच सकते थे कि मैं दूसरों के लिए क्यां स्वयं कष्ट उठाऊं? वे भी समुद्र मंथन में निकले गरल को अपने कंठ में धारण करने से मना कर सकते थे। तब क्या इस संसार का अस्तित्व होता? कम से कम शिवारात्रि को धूम-धाम से मनाते समय नही ंतो मनाने के बाद हमें इस बारे में एक बार सोचना चाहिए।
राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की नवीनतम जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में भारत में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 327394 मामले दर्ज किए गए। महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा अपराध उत्तरप्रदेश में 35527 दर्ज हुए। इसके बाद पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश का स्थान आया है। बड़े राज्यों में तमिलनाडु में सबसे कम मामले 5847 मामले दर्ज हुए। देश में दहेज प्रताड़ना के 9894 मामले दर्ज हुए। उत्तरप्रदेश में 2766, बिहार में 1867, झारखंड में 1552 और कर्नाटक में 1541 मामले दर्ज हुए।
अपहरण के दर्ज मामलों की कुल संख्या 59277 रही है। महिलाओं के अपहरण के सबसे ज्यादा मामले उत्तरप्रदेश में 10135 दर्ज हुए है।् इसके बाद बिहार में 5158 महाराष्ट्र में 5096, असम में 5039 और मध्यप्रदेश में 4547 मामले दर्ज हुए। उल्लेखनीय है कि महिलाओं के अपहरण का सबसे बड़ा कारण उन्हें शादी के मजबूर करना पाया गया। अपहरण के 31715, 53.60 प्रतिशतद्ध मामलों में महिलाओं का अपहरण ही शादी के लिए किया गया। वर्ष 2014 में ऐसे मामलों की संख्या 30874 थी, यानी इस कारण से किए गए अपहरणों की संख्या में वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने जब 30 अगस्त 2016 को भारत में अपराधों के आकंड़े जारी किए तो मध्यप्रदेश का एक दुखदायी पक्ष उभरकर सामने आया कि यहां महिलाओं के साथ बलात्कार  के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए। एनसीआरबी के अनुसार भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 34651 मामले दर्ज हुए। यानी देश में हर घंटे बलात्कार के कहीं न कही चार मामले दर्ज होते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश 4391 में दर्ज हुए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, 4144 राजस्थान, 3644 और फिर उत्तरप्रदेश 3025 का स्थान आता है। ओडिशा में बलात्कार के 2251 मामले दर्ज हुए हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में अधिकांश वरिष्ठ नागरिक, जिन अपराधों के शिकार होते हैं उनमें लूटपाट के 145 मामले, ठगी के 123 मामले, हत्या के 14 मामले, गंभीर रूप से घायल करना के 9 मामले, जबरन वसूली के 3 मामले, गैर इरादतन हत्या के 2, और भारतीय दंड संहिता के अन्य धाराओं के तहत अधिकतम 950 मामले शामिल हैं। वर्ष 2014 में एनसीआरबी ने पहली बार वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ हुए अपराधों की गणना की थी, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में अपराध दर प्रति एक लाख 89 थी जो बढ़कर साल 2015 हो गई। अर्थात यह वृद्धि प्रति एक लाख 19.8 है। एनसीआरबी के आंकड़े गत 30 अगस्त को जारी किए गए। देखभाल और माता-पिता के कल्याण और वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 में 60 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों को वरिष्ठ नागरिक के रूप में पारिभाषित किया गया है। वरिष्ट नागरिकों पर हो रहे जुर्म के मामले को दर्ज कराने की मुहिम की शुरुआत 2014 से की गई है। एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार, साल 2015 में देशभर में वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ हुए विभिन्न अपराधों के कुल 20,532 मामले दर्ज किए गए, जबकि साल 2014 में यह संख्या 18,714 थी। लगातार दूसरे साल 2015 में भी दिल्ली वरिष्ठ नागरिकों के लिए सबसे असुरक्षित शहर के रूप में दर्ज की गई है। यह जानकारी ‘भारत में अपराध’ के आंकड़ों के आधार पर एनसीआरबी की रिपोर्ट में दी गई।
  हम आंकड़े बांचते हैं और पुलिस व्यवस्था तथा प्रशासन को कोसते हैं। यदि हमारा राजनीतिक दृष्टिकोण रहा तो उस राजनीतिक दल की नीतियों को कोस लेते हैं जिनसे हमारे विचार नहीं मिलते हैं। हम ठीक उसी तरह का आचरण अपनाते हैं जैसे कोई काग़ज़ी शेर हो, जो न अपना प्रभाव छोड़ सकता है और न कुछ कर सकता है। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि आज हम अपने ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ के सिद्धांत को भुला कर सिर्फ़ अपनी बेटियों, अपनी बहनों की सुरक्षा के लिए दुआएं करना जानते हैं, पराई बेटी या बहन के लिए नहीं। जिस दिन हम महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने में सफल हो जाएंगे, उस दिन सच्चे अर्थ में कल्याणकारी बन जाएंगे और शिवत्व को प्राप्त लेंगे।
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