(‘इंडिया इन साइड’ के February 2014 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......)
वामा (प्रकाशित लेख...Article Text....)...
यूं तो नया साल यानी सन् 2014 चुनावी वर्ष है। अतः वाद, विवाद, प्रतिवाद तो होंगे ही। राजनीतिक ‘पोल-खोल’ प्रतियोगिताएं होती रहेंगी। फिर भी हर नया साल अपने साथ कुछ नए मुद्दे ले कर आता है। वहीं हर बीता साल अपने साथ कुछ सुख तो कुछ दुख ले जाता है। वर्ष 2013 सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से बड़े उतार-चढ़ावों का साल रहा। वर्ष भर महिला सुरक्षा का मुद्दा छाया रहा। पत्रकारिता, राजनीति और न्याय.... कोई भी क्षेत्र ऐसा रहा जिसमें से नारी के अपमान का उदारहण सामने न आया हो। सन् 2012 के अंत में घटित हुए ‘दामिनी कांड’ के अभियुक्तों को दण्ड देने की प्रक्रिया चली और ‘जुवेनाईल’ के आधार पर जघन्य अपराधी को कम सजा का असंतोष छोड़ गई। जाहिर है कि 2014 में ‘जुवेनाईल’ यानी किशोर अपराधियों की आयु सीमा के नीवीनीकरण का मुद्दा गरमाएगा। लेकिन इससे भी अधिक गंभीर प्रश्न की तरह उठेगा महिला सुरक्षा का मुद्दा।
यूं तो नया साल यानी सन् 2014 चुनावी वर्ष है। अतः वाद, विवाद, प्रतिवाद तो होंगे ही। राजनीतिक ‘पोल-खोल’ प्रतियोगिताएं होती रहेंगी। फिर भी हर नया साल अपने साथ कुछ नए मुद्दे ले कर आता है। वहीं हर बीता साल अपने साथ कुछ सुख तो कुछ दुख ले जाता है। वर्ष 2013 सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से बड़े उतार-चढ़ावों का साल रहा। वर्ष भर महिला सुरक्षा का मुद्दा छाया रहा। पत्रकारिता, राजनीति और न्याय.... कोई भी क्षेत्र ऐसा रहा जिसमें से नारी के अपमान का उदारहण सामने न आया हो। सन् 2012 के अंत में घटित हुए ‘दामिनी कांड’ के अभियुक्तों को दण्ड देने की प्रक्रिया चली और ‘जुवेनाईल’ के आधार पर जघन्य अपराधी को कम सजा का असंतोष छोड़ गई। जाहिर है कि 2014 में ‘जुवेनाईल’ यानी किशोर अपराधियों की आयु सीमा के नीवीनीकरण का मुद्दा गरमाएगा। लेकिन इससे भी अधिक गंभीर प्रश्न की तरह उठेगा महिला सुरक्षा का मुद्दा।
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समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दिए जाने के विषय में
अपने कथन के अनुरुप फौरी कदम न तो कपिल सिब्बल की ओर से उठाए गए और न पी
चिदंबरम की ओर से। कई पश्चिमी देशों में समलैगिकता को वैधानिक दर्जा दिया
गया है। इस आधार पर भारतीय समलैंगिकों के द्वारा उनके संबंधों को सामाजिक
प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कानूनी रूप से वैध माने जाने की मंाग फिर से
उठेगी, यह तय है।
सामाजिक मुद्दों के साथ ही कषशमीर को ‘विशेष राज्य’ के अधिकारों पर भी बहसें होंगी। मंहगाई पर भी प्रष्न किए जाएंगे। डीजल-पेट्रोल की रोज बढ़ती कीमतें और तैल-कंपनियों के हित की दुहाई के तले पिसती आम जनता की कराह भी उभर सकती है। इन सबके साथ होगा भारतीय राजनीति के भावी स्वरूप मुद्दा जो कम से कम चुनाव तक तो सिर चढ़ कर बोलेगा ही। कौन-सा राजनीतिक दल केन्द्र में सत्तासीन होगा और किसे अपना वर्चस्व गंवाना पड़ेगा, यह ‘आप’, भजपा और कांग्रेस के त्रिकोणीय संघर्ष से निकल कर बाहर आएगा। क्षेत्रीय दल कितने प्रभावी साबित होंगे, यह भी सामने आएगा। मुजफ्फरपुर के दंगों और रेलों में होने वाले अग्निकाण्डों पर भी सुगबुगाहट होती रहेगी।
अगर छोटे-बड़े सभी मुद्दों की संख्या पर गौर किया जाए तो लगता है कि वर्ष 2014 के 365 दिन में 365 मुद्दे गरमाए रहेंगे और आमजनता अपनी परेशानियों का हल ढूंढती रहेगी।
सामाजिक मुद्दों के साथ ही कषशमीर को ‘विशेष राज्य’ के अधिकारों पर भी बहसें होंगी। मंहगाई पर भी प्रष्न किए जाएंगे। डीजल-पेट्रोल की रोज बढ़ती कीमतें और तैल-कंपनियों के हित की दुहाई के तले पिसती आम जनता की कराह भी उभर सकती है। इन सबके साथ होगा भारतीय राजनीति के भावी स्वरूप मुद्दा जो कम से कम चुनाव तक तो सिर चढ़ कर बोलेगा ही। कौन-सा राजनीतिक दल केन्द्र में सत्तासीन होगा और किसे अपना वर्चस्व गंवाना पड़ेगा, यह ‘आप’, भजपा और कांग्रेस के त्रिकोणीय संघर्ष से निकल कर बाहर आएगा। क्षेत्रीय दल कितने प्रभावी साबित होंगे, यह भी सामने आएगा। मुजफ्फरपुर के दंगों और रेलों में होने वाले अग्निकाण्डों पर भी सुगबुगाहट होती रहेगी।
अगर छोटे-बड़े सभी मुद्दों की संख्या पर गौर किया जाए तो लगता है कि वर्ष 2014 के 365 दिन में 365 मुद्दे गरमाए रहेंगे और आमजनता अपनी परेशानियों का हल ढूंढती रहेगी।
समस्याएं सामाजिक कम हमारी व्यक्तिगत ज्यादा हैं. कानून बनाने से ज्यादा जरुरत लोगों को सही शिक्षा देने की है .
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक लेख...
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