Thursday, December 28, 2017

डॉ. शरद सिंह को राज्यस्तरीय ‘‘रामेश्वर गुरु पुरस्कार’’

Dr (Miss) Sharad Singh
मुझे यानी डॉ. शरद सिंह को माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल ने वर्ष 2017 का राज्यस्तरीय ‘‘रामेश्वर गुरु पुरस्कार’’ दिल्ली से प्रकाशित होने वाली देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘‘सामयिक सरस्वती’’ की कार्यकारी संपादन के लिए प्रदान करने की घोषणा की है। 📰हार्दिक धन्यवाद एवं आभार माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल

Dainik Bhaskar, Sagar Edition, 28.12.2017

Patrika, Sagar Edition, 28.12.2017

Aacharan, Sagar Edition, 28.12.2017
Sagar Dinkar, Sagar Edition, 28.12.2017
Naidunia, Sagar Edition, 28.12.2017

Wednesday, December 27, 2017

चर्चा प्लस ... असली ‘पैडमैन’ को सलाम ! - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
असली ‘पैडमैन’ को सलाम!
- डॉ. शरद सिंह
( चर्चा प्लस, दैनिक सागर दिनकर, 27.12.2017 )
शीघ्र ही अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म आने वाली है ‘पैडमैन’। इस फिल्म के बड़े चर्चे हैं। लेकिन कौन है असली ‘पैडमैन’ इस बारे में फिलहाल कम ही लोगों को जानकारी है। जिस समस्या को ले कर यह फिल्म आ रही है उसके बारे में मैंने सन् 2010 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘पत्तों में क़ैद औरतें’ में भी एक केस स्टडी के रूप में उल्लेख किया था। बहरहाल, ‘पैडमैन’ एक ऐसा व्यक्ति है जो आमआदमी से अलग नहीं है लेकिन अपनी सोच और इरादों को ले कर सबसे अलग है और सबसे बड़ी बात यह कि ‘पैडमैन’ में महिलाओं की समस्या को समझने और उनका हल निकालने का हौसला है। उनका नाम है पद्मश्री अरुणाचलम मुरुगनाथम। 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily newspaper

अक्षय कुमार ने अपनी आने वाली फिल्म ‘पैडमैन’ की जब घोषणा की थी तब सभी लोक चौंके थे कि यह कैसा नाम है? कौन है पैडमैन? क्या यह कोई एक्शन फिल्म है? लेकिन धीरे-धीरे कहानी से पर्दा उठता गया और जो एक तस्वीर सामने आई उसे देख कर लगने लगा कि बॉलीवुड का फिक्शन फाईटर मैन अक्षय कुमार अब रीयल लाईफ फाईटर मैन बनते जा रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म ‘टॉयलेट : एक प्रेमकथा’ ने उनकी उस इमेज को सामने रखा जिसमें यह साबित हो गया कि वे सामाजिक सरोकार रखने वाली फिल्म करने के लिए कोई भी जोखिम उठा सकते हैं। अक्षय कुमार एक ऐसी ही और फिल्म के साथ सामने आने वाले हैं जिसका न तो विदेशी मार्केट बनने वाला है और न मल्टीप्लेक्स के पढ़े-लिखे या आर्थिक रूप से सम्पन्न तबके से इसका कोई सीधा सरोकार है। यह फिल्म भी उनके कैरियर के लिए एक रिस्क ही है। लेकिन अक्षय को उस व्यक्ति के जीवन के उसूलों और कार्यों पर विश्वास है जो इस फिल्म का आधार है। उस व्यक्ति का नाम है पद्मश्री अरुणाचलम मुरुगनाथम।
फिल्म ‘पैडमैन’ के 2018 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर यानी 26 जनवरी को रिलीज किए जाने की घोषणा की गई है। इस फिल्म को अक्षय की पत्नी ट्विंकल खन्ना ने गौरी शिंदे के साथ मिलकर प्रोड्यूस किया है। यह एक बायॉपिक फिल्म है जो रियल लाइफ हीरो अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर आधारित है। अरुणाचलम मुरुगनाथम वह व्यक्ति है जिसने महिलाओं के लिए पैड मेकिंग मशीन बनाई ताकि उन्हें सस्ते दाम पर सैनिटरी नैपकिन मिल सके। अरुणाचलम तमिलनाडु के कोयंबटूर के निवासी हैं। उन्होंने सैनेटरी नैपकिन बनाने के लिए दुनिया की सबसे सस्ती मशीन बनाई।
फिल्म में अक्षय के अलावा सोनम कपूर और राधिका आप्टे मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म में अमिताभ बच्चन का भी कैमियो रोल है। डायरेक्टर आर बाल्की की यह फिल्म अपने पहले पोस्टर से ही काफी आशाजनक लग रहा है। यह फिल्म माहवारी और महिलाओं के स्वास्थ्य पर फोकस करती है। महिलाओं की इस समस्या के बारे में मैंने सन् 2010 में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘पत्तों में क़ैद औरतें’ में भी एक केस स्टडी के रूप में उल्लेख किया है। मैंने अपनी पुस्तक के पहले अध्याय में ही इस बात का विवरण दिया है कि तेंदूपत्ता का संग्रहण करने के लिए जंगल जाने वाली महिलाओं को किस प्रकार माहवारी की समस्या से जूझना पड़ता है जो कि ग्रामीण की क्षेत्र की लगभग सभी महिलाओं में समान रूप से मौजूद है।
अरुणाचलम की वास्तविक कहानी किसी फिल्मी कहानी से कहीं अधिक रोचक है। मध्यमवर्गीय परिवार के अरुणाचलम का विवाह सन् 1998 में हुआ। बस, वहीं से उनके जीवन की विशेष कहानी का पहला चैप्टर आरम्भ हुआ। एक घटना के बारे में अरुणाचलम बताते हैं कि उन दिनों उनकी नई-नई शादी हुई थी और वे लोग कोयम्बटूर में रह रहे थे। एक दिन उनका ध्यान गया कि उनकी पत्नी बाथरूम से निकली और उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ कोई सामान अपनी पीठ पीछे छुपा रखा था। उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनकी पत्नी जो आमतौर पर उनसे कुछ भी नहीं छुपाती है, वह ऐसा क्या छुपा रही है? अरुणाचलम से नहीं रहा गया तो उन्होंने पूछ ही लिया कि तुम क्या छुपा रही हो? पत्नी से झिझकते हुए उत्तर दिया कि ‘यह तुम्हारे जानने लायक नहीं है।’ पत्नी के ऐसा कहने पर अरुणाचलम की उत्सुकता और बढ़ गई। वे उठ कर पत्नी के पास गए और उन्होंने उसका हाथ पकड़ कर सामने किया तो वे दंग रह गए कि उनकी पत्नी के हाथ में रक्तरंजित कपड़ा था और वही पत्नी उनसे छिपाना चाह रही थी। अरुणाचलम ने पत्नी से चर्चा की तो उन्हें पता चला कि देश की हज़ारो-लाखों महिलाएं उनकी पत्नी की तरह पुराने कपड़ों के टुकड़े माहवारी के दौरान इस्तेमाल करती हैं। ऐसे कपड़ों को बार-बार इस्तेमाल करना अस्वास्थ्यकर भी होता है और असुविधाजनक भी। इसके साथ ही उप्हें पता चला कि सेनेटरी पैड्स इतने मंहगे होते हैं कि ग़रीब घर की महिलाएं तो उसे काम में ला ही नहीं सकती हैं। यूं भी महिलाएं घर का बजट बनाते समय स्वयं के स्वास्थ्य के लिए सबसे कम राशि रखती हैं या फिर बिलकुल भी नहीं रखती हैं। सेनेटरी पैड्स खरीदने के प्रश्न पर स्वयं उनकी पत्नी ने कहा था कि ‘‘अगर मैं सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करुंगी तो घर का दूध खरीदने का जो बजट है सब उसी में लग जाएगा।’’ यह जान कर अरुणाचलम को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने सोचा कि यदि महिलाओं को सस्ते पैड उपलब्ध कराए जा सकें तो सभी महिलाएं इसे काम में ला सकेंगी।
अरुणाचलम उसी समय अपनी पत्नी के लिए सेनेटरी नैपकिन का एक पैकेट खरीद कर लाए। अरुणाचलम ने इसे पहली बार देखा। उत्सुकतावश इन्होंने देखना शुरू किया कि आखिर यह किस चीज से बनता है। इसी पड़ताल में उन्होंने पाया कि जिस कपड़े के इस्तेमाल से एक पैड तैयार होता है उसकी कीमत लगभग दस पैसे आती है। लेकिन इसी को बड़ी-बड़ी कंपनिया चालीस गुना दाम पर बेचती हैं। उस दिन अरुणाचलम ने यह तय किया कि वह अपनी पत्नी के लिए ऐसा ही पैड खुद से अपने घर में बनायेंगे। अरुणाचलम ने अपना प्रयास आरम्भ कर दिया। शुरू में उन्हें असफलताएं हाथ लगीं। उनके बनाए पैड्स में कभी लीक होने की समस्या तो कभी वे जल्दी खराब हो गए, पर अरुणाचलम ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी पत्नी और अपनी बहन से अनुरोध किया कि वे उनका बनाया पैड प्रयोग में लाएं जिससे उन्हें पैड्स की खामियों का पता चल सके। जल्दी ही उनकी पत्नी और बहन दोनों की उनके इन प्रयोगों से तंग आ गईं और उन्होंने सहयोग करने से मना कर दिया। अरुणाचलम हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने मेडिकल कॉलेज की लड़कियों से संपर्क किया। कुछ लड़कियां उनके प्रयोग में सहयोग करने के लिए मान गईं। मगर इसका अरुणाचलम के वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ा। उनकी पत्नी को लगा कि अरुणाचलम पैड बनाने के बहाने लड़कियों से संपर्क रखना चाहते हैं। पत्नी नाराज़ हो कर उन्हें छोड़ कर मायके चली गई। इतना ही नहीं, पत्नी ने तलाक की मांग भी कर दी। इससे लड़कियों के मन भी संदेह उपजा और उन्होंने भी सहयोग देने से मना कर दिया।
उस समय यही लगा कि अरुणाचलम अब हार गए हैं और उनका प्रयोग अब आगे नहीं बढ़ सकेगा। लेकिन अरुणाचलम तो मानो किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे। उन्होंने स्वयं पर प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके लिए वे पशुओं के रक्त की थैली अपने कपड़ों के भीतर बांध कर, उस पर अपना बनाया पैड पहन कर घूमते ताकि पैड की योग्यता की जांच कर सकें। स्वयं अरुणाचलम ने एक साक्षात्कार में बताया था कि “उन पांच छः दिनों में मुझे जो तकलीफ हुई उसका बयान करना मुश्किल है और मैं दुनिया की हर महिला को नमन करता हूं जो हर महीने इस तरह की परेशानी से गुजरती हैं।”
लगभग दो साल के अथक प्रयास के बाद अरुणाचलम को पता चला कि बड़ी कम्पनियां पैड में एक तरह के फाइबर का इस्तेमाल करती हैं। जिस मशीन से यह पैड बनाया जाता है वह लाखों की आती थी। इनके पास न पैसा था और न ही वे महिलाएं जो इतने महंगे पैड का प्रयोग कर सकें। इसको देखते हुए अरुणाचलम ने मुम्बई के एक व्यापारी की मदद से एक नई मशीन का आविष्कार किया जिसकी लागत लगभग 75,000 रुपये आई। अरुणाचलम ने 18 महीनों में लगभग 250 मशीन बनाई। एक मशीन से करीब 200 से 250 पैड रोजाना तैयार होते हैं और उनको करीब ढाई रुपये की दर से बेचा जाता है। अरुणाचलम के अधिकतर ग्राहक या तो एनजीओ हैं या महिलाओं के स्वसहायता समूह। सन् 2014 में उन्हें टाइम्स मैगजीन के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में चुना गया और सन् 2016 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया। आज अरुणाचलम जयश्री इंडस्ट्रीज नाम का नैपकिन बिजनेस चला रहे हैं। इसकी 2003 यूनिट्स पूरे भारत में हैं। जिसमें लगभग 21000 से अधिक महिलाएं रोजगार पा रही हैं।
ऐसे समय में अरुणाचलम के द्वारा अविष्कृत मशीनों से बने सेनेटरी पैड्स बहुत मायने रखते हैं जब आज भी देश की लगभग 75 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पैड्स की कीमत उनके बजट पर अतिरिक्त भार डालने वाली होने के कारण उनका प्रयोग नहीं कर पाती हैं। आर्थिक रूप से निम्नवर्ग की एवं निपट देहातों की महिलाएं पीरियड के दौरान अस्वास्थ्यकर तरीके अपनाती हैं। जिसमें पुराना कपड़ा, राख इत्यादि का प्रयोग शामिल है। अच्छा है कि रील लाईफ के ‘पैडमैन’ के जरिए असली पैडमैन का अविष्कार बड़े पैमाने पर सबके सामने आएगा और हर उस महिला तक सेनेटरी पैड्स पहुंचने का रास्ता निकल सकेगा जो आर्थिक कारणों से उससे वंचित हैं।
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Wednesday, December 20, 2017

चर्चा प्लस ... पहल करनी होगी भारत को रोहिंग्या मुसलमानों के लिए - डॉ. शरद सिंह




Dr (Miss) Sharad Singh

चर्चा प्लस 
दैनिक सागर दिनकर,
 20.12.2017
पहल करनी होगी भारत को रोहिंग्या मुसलमानों के लिए
 
  - डॉ. शरद सिंह
 
इस धरती पर लगभग 11 लाख मनुष्य भटक रहे हैं भूमि का वह टुकड़ा ढूंढते हुए जहां वे रह सकें और अपने परिवार सहित जी सकें। क्या इन 11 लाख मनुष्यों को धरती पर जीने का अधिकार मात्र इस लिए नहीं है कि वे किसी देश के नागरिक नहीं हैं? मगर वे परग्रहवासी भी तो नहीं हैं। रोहिंग्याके नाम से संचार माध्यमों को सुर्खियों में बने हुए ये लोग पशुओं से बदतर जीवन जीने को विवश हैं। म्यांमार से बलात् निकाले इन शरणार्थियों को कौन स्वीकारेगा? यह प्रश्न रोहिंग्याओं के जीने-मरने से जुड़ा हुआ है, फिर भी म्यांमार जिम्मेदारी स्वीकार को तैयार नहीं है। ऐसे में भारत का दायित्व बनता है कि वह दुनिया के राजनीतिक पटल पर अपनी बढ़ती हुई साख को काम में लाते हुए म्यांमार पर दबाव बनाए। 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily newspaper
   
म्यांमार के लगभग 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान पहले ग़रीबी झेल रहे थे और फिर राष्ट्रपति यू हतिन क्याव के सत्ता सम्हालने के बाद उन्हें जिस प्रकार की हिंसा का शिकार होना पड़ा उसे देख कर सारी दुनिया स्तब्ध रह गई। यद्यपि रोहिंग्या मुसलमानों का म्यांमार से पलायन पिछले कई वर्षों से चल रहा था। सेना और बौद्ध हिंसा का शिकार होकर उन्हें जब भी भागना पड़ा तो वे बंगाल की खाड़ी में नाव के ज़रिये भाग कर भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश पहुंचे। यह पलायन कभी आसान नहीं रहा। भूखे-प्यासे जंगलों में भागते हुए सीमा पर म्यांमार की सेना की गोलियों से बचते-बचाते किसी तरह वे दूसरे देशों में पहुंच पाते। इस दौरान उनके कई साथी और परिजन सेना की गोलियों का शिकार हो चुके होते। सेना द्वारा म्यांमार से बड़ी तादाद में खदेड़े जाने पर ये रोहिंग्या मुसलमान छोटी-छोटी नावों में भरकर समुद्र के निकटवर्ती दूसरे देशों में पहुंचने लगे। नाव नाव न मिलने पर गले तक पानी में चलकर दूसरे तट तक पहुंचना मानों इनकी नियति बन गया। छिले वर्ष तक लगभग तीन लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण लेने पहुंच चुके हैं। खाने के सामान और राहत सामग्री की कमी के कारण बच्चों, बूढ़ों और गर्भवती स्त्रियों को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है। बांग्लादेश के शामलापुर और कॉक्स बाज़ार में शरण लेने वाली गर्भवतियां शरणार्थी शिविरों में ही बच्चों को जन्म दे रही हैं। दरअसल, म्यांमार में बौद्ध बहुसंख्यक हैं और ये रोहिंग्या को अप्रवासी मानते हैं। साल 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या-बौद्धों के बीच भारी हिंसा हुई थी। साल 2015 में भी रोहिंग्या मुसलमानों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ। ज़ैद रायद अल हुसैन संयुक्त राष्ट्र के दुनियाभर में मनावाधिकारों के पक्षधर हैं और वे मानते हैं कि रोहिंग्याओं के साथ जो हुआ और जो हो रहा है, वह नहीं होना चाहिए। यह भी चर्चा है कि म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची की और सैन्य बलों के प्रमुख जेन आंग मिन हाइंग भी निकट भविष्य में नरसंहार के आरोपों में कटघरे में आ सकते हैं। लेकिन क्या इससे रोहिग्यांओं की किस्मत बदल सकेगी? आज एशिया का कोई भी देश इस आर्थिक दशा में नहीं है कि बड़ी संख्या में शरणार्थियों को जिम्मा उठा सके। भारत में अवैधानिक रूप से आ चुके राहिंग्याओं के बारे में कुछ महीने पहले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ‘‘मैं यह बात साफ कर दूं कि रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं और भारतीय नागरिक नहीं हैं। इसलिए वे किसी चीज के हकदार नहीं हैं, जिसका कि कोई आम भारतीय नागरिक हकदार है।’’ उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन पर संसद में दिए गए अपने बयान पर कहा था कि रोहिंग्या लोगों को निकालना पूरी तरह से कानूनी स्थिति पर आधारित है। उन्होंने कहा, “रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं और कानून के मुताबिक उन्हें निर्वासित होना है, इसलिए हमने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे रोहिंग्या मुस्लिमों की पहचान के लिए कार्यबल गठित करें और उनके निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करें।रिजिजू ने कहा, यह पूरी तरह से वैध प्रक्रिया है।साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहां लोकतांत्रिक परंपरा है। लिहाज़ा, हम उन्हें समुद्र में फेंकने या गोली मारने नहीं जा रहे हैं। प्रश्न उठता है कि कौन हैं ये रोहिंग्या? वस्तुतः रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया गया। सन् 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है। रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं। म्यांमार में जारी हिंसा और रोहिंग्या मुसलमानों के मारे जाने की ख़बरों के बीच नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़जई ने देश की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची से इस मुद्दे पर दख़ल की अपील की। उन्होंने ट्विटर पर अपना एक बयान जारी करके हिंसा की निंदा की और कहा, “म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जो हो रहा है उससे मैं दुखी हूं। बीते कई सालों में मैंने इस दुखद और शर्मनाक व्यवहार की निंदा की है। मैं इंतज़ार कर रही हूं कि नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची भी इसका विरोध करें। पूरी दुनिया और रोहिंग्या मुसलमान इंतज़ार कर रहे हैं। मलाला ने रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हो रही हिंसा रोकने की अपील करते हुए कुछ सवाल भी किए हैं। उन्होंने कहा, “हिंसा बंद करो। मैंने तस्वीरें देखीं जिनमें म्यांमार के सुरक्षाबल बच्चों की हत्या कर रहे हैं।ं इन बच्चों ने किसी पर हमला नहीं किया लेकिन फिर उनके घर जला दिए गए।मलाला ने सवाल किया, “अगर उनका घर म्यांमार में नहीं है तो उनकी पीढ़ियां कहां रह रही थीं? उनका मूल कहां है?“ उन्होंने कहा, “रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता दी जाए। वह देश जहां वे पैदा हुए हैं। नोबल पुरस्कार विजेता मलाला का कहना सही है। जो मनुष्य 12वीं सदी से किसी भू भाग में रह रहे हों उन्हें क्या वहां से बेदख कर देश से बाहर भगाया जाना मानवता है? पाकिस्तान का उल्लेख करते हुए मालाला ने अपील की थी कि, “दूसरे देशों, जिनमें मेरा अपना देश पाकिस्तान शामिल है, उन्हें बांग्लादेश का उदाहरण अपनाना चाहिए और हिंसा व आतंक से भाग रहे रोहिंग्या परिवारों को खाना, शरण और शिक्षा दें। दूसरी ओर, म्यांमार सरकार का कहना है कि रोहिंगया मुसलमान सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं।  सरकार के अनुसार अनेक पुलिस थानों को रोहिंग्या विद्रोहियों ने निशाना बनाया। जबकि म्यांमार की नस्लीय हिंसा के कारण रोहिंग्या मुसलमानों के अतिरिक्त हिंदू रोहिंग्याओं और कुछ जगहों से बौद्धों को भी पलायन करन पड़ा है। ह्यूमन राइट्स वॉच के डिप्टी एशिया डायरेक्टर फ़िल रॉबर्टसन के अनुसार, “25 अगस्त को हिंसा शुरू होने के बाद ही तोड़फोड़ शुरू हुई। उस गांव में लगभग 99 फ़ीसदी घरों को नष्ट कर दिया गया।अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों के अनुसार माह अगस्त 2017 में लगभग 20000 रोहिंग्या नाफ़ नदी के किनारे फंसे फंसे हुए थे, जहां से बांग्लादेश की सीमा शुरू होती है। म्यांमार की सबसे प्रभावशाली नेता आंग सान सू ची जो दुनिया भर में मानवाधिकारों की प्रबल समर्थक मानी जाती हैं, का रोहिंग्या मुसलमानों की इस दुर्दशा के प्रति प्रभावशाली कदम न उठाना सबसे बड़े दुर्भाग्य का विषय है। म्यांमार में 25 वर्ष बाद वर्ष 2016 में चुनाव हुआ था। इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। हालांकि संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाईं। फिर भी वे स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं और कहा जाता है कि म्यांमार के शासन की वास्तविक कमान सू ची के हाथों में ही है। बर्मा के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं जिनकी 1947 में हत्या कर दी गयी थी। सू की ने बर्मा में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए लम्बा संघर्ष किया। लोकतंत्र की स्थापना के लिए आंग सान ने बर्मा में लगभग 20 वर्ष में कैद में बिताए। आंग सान को 1990 में राफ्तो पुरस्कार व विचारों की स्वतंत्रता के लिए सखारोव पुरस्कार से और 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया है। सन् 1992 में सू ची को अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य के लिए भारत सरकार द्वारा जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रोहिंग्या मुसलमानों के भविष्य पर आंग सान सू ची द्वारा अनदेखा किए जाने के स्थिति में भारत का दायित्व बनता है कि वह दुनिया के राजनीतिक पटल पर अपनी बढ़ती हुई साख को काम में लाते हुए म्यांमार पर दबाव बनाए कि वह रोहिंग्याओं को अपनी मातृभूमि लौटने दे, उन्हें सुरक्षा प्रदान करे, उन्हें नागरिकता दे तथा उन सभी रोहिंग्याओं को जीवन की मूलभूत सुविधाएं दे जो उनकी आज की तथा भावी पीढ़ी के जीवन के लिए नितान्त आवश्यक है। यदि भारत सरकार पहल करे तो रोहिंग्याओं को नया जीवन मिल सकता है और भारत को भी शरणार्थी समस्या से मुक्ति मिल सकती है। इसके साथ ही मानवता की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम होगा क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने परिजनों को भूख से तड़प-तड़प कर मरते हुए, अवैधानिक रूप से सीमाएं मार करने की विवशता के दौरान गोलियों से भून दिए जाने का हकदार नहीं है। या सिर्फ़ इसलिए नृशंसता का शिकार नहीं बनाया जा सकता है कि वह किसी विशेष धर्म को मानता है या किसी विशेष जाति समुदाय से है। मनुष्यता के प्रति रोहिंग्याओं का विश्वास तभी लौटेगा जब उन्हें अपनी मातृभूमि पर सिर उठा कर जीने का अवसर मिले। 
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Tuesday, December 19, 2017

Dr ( Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar

 Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
डॉ हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय , सागर के आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी सभागार में दिनांक 15.12.2017 को पाठक मंच द्वारा आयोजित कौशलकिशोर की किताब " महर्षि अरविंद घोष" की समीक्षा गोष्ठी/ परिचर्चा / कविता पाठ में मैंने अपनी ग़ज़ल पढ़ी।
I have recited my Ghazal at Pathak Manch Samiksha Goshthi Held at Dr. Hari Singh Gour Central University , Sagar's Aacharya Nand Dulare Bajpai Sabhagaar, 15.12.2017 ...

Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr Varsha Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India 
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India 
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India 
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University,  Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India 


Naiduniya, Sagar Edition, 19.12.2017 - Dr Sharad Singh, News Pathak Manch University, Sagar, MP, India 19.12.2017
Sagar Dinkar, 19.12.2017 - Dr Sharad Singh, News Pathak Manch University, Sagar, MP, India 19.12.2017
Aacharan, Sagar Edition, 19.12.2017 - Dr Sharad Singh, News Pathak Manch University, Sagar, MP, India 19.12.2017
Dainik Bhaskar, Sagar Edition, 19.12.2017 - Dr Sharad Singh, News Pathak Manch University, Sagar, MP, India 19.12.2017

Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pathak Manch, Dr Hari Singh Gaur Central University, Sagar, MP, India