Dr (Miss) Sharad Singh |
रेप और गैंगरेप के विरुद्ध ऐतिहासिक क़दम
- डॉ.शरद सिंह
12 साल या उससे कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार तथा किसी महिला के साथ गैंगरेप के अपराधी को फांसी की सज़ा दिए जाने के ऐतिहासिक फैसले ने मध्यप्रदेश को महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सजग राज्य का पहला दर्जा दिला दिया है। यद्यपि इस प्रकार का कठोर दण्ड जहां एक ओर ऐसे जघन्य अपराध पर अंकुश लगाने का कार्य करेगा वहीं दूसरी ओर कानून और न्याय व्यवस्था से हर स्तर पर और अधिक सजगता, तत्परता और निष्पक्षता की मांग करेगा। तमाम साक्ष्यों के साथ यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक होगा कि अभियुक्त वास्तविक अपराधी है या नहीं। इसके लिए उन सभी लोगों को भी भावुकता का त्याग करना होगा जो अपराध की गंभीरता एवं अमानवीयता को देख कर अभियुक्त का मुद्दमा न लड़ने की घोषणा कर बैठते हैं। अपराधी माने जा रहे व्यक्ति का अपराध जब तक सिद्ध न हो जाए उसे कानून के प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना पक्ष सामने रखने का अधिकार होता है। यह अधिकार उसे इसीलिए दिया जाता है कि कहीं कोई निरपराध सजा का भागी न बन जाए। फांसी जैसी सजा के मामले में यह दायित्व और अधिक गंभीर हो जाता है। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बच्चियों एवं महिलाओं के प्रति किए जाने वाले अपराधों के विरुद्ध एक कठोर और मजबूत कदम सिद्ध होगा। वैसे, रेप एवं गैंगरेप के मामलों में जुवेनाईल धाराओं में भी अभी संशोधन की आवश्यकता है।
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आज देश में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि बलात्कार की घटनाओं पर कैसे अंकुश लगाया जाए? महिलाओं को यौन अपराध से कैसे सुरक्षित किया जाए? बलात्कारी को मृत्युदण्ड दिए जाने का प्रश्न भी एक ज्वलंत प्रश्न रहा है। इस प्रश्न पर सबसे बड़ी अड़चन यह आती रही है कहीं किसी निरपराधी को बलात्कारी का ठप्पा लगा कर सूली पर न चढ़ा दिया जाए। बहरहाल, मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने से एक दिन पहले कैबिनेट ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार या किसी भी उम्र की महिला से गैंगरेप के दोषी को फांसी की सज़ा देने को मंजूरी दे दी। कैबिनेट में अपने फैसले के लिये 376 ए ए और 376 डी ए के रूप में संशोधन किया गया। यह भी कहा गया है कि लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी. शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने का प्रस्ताव किया गया। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सज़ा देने के साथ महिलाओं का पीछा करने का अपराध दूसरी बार साबित होने पर न्यूनतम एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। कैबिनेट की बैठक के बाद वित्त मंत्री जयंत मलैया ने कहा, “मंत्रिमंडल ने 12 साल या उससे कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार के दोषी को मृत्युदंड की मंजूरी दे दी है, गैंगरेप के दोषियों को भी मृत्युदंड का प्रस्ताव पारित कर दिया गया है।’’
यद्यपि पिछले कैबिनेट की बैठक में मलैया और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने आशंका जताई थी कि बलात्कारियों के लिए मौत की सजा पीड़ितों के लिए एक बड़ा खतरा होगा क्योंकि अपराधी उन्हें मारने की कोशिश करेंगे। इसलिए कैबिनेट की मुहर लगाने से पहले इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिक विचार-विमर्श और कानूनी सलाह के लिये कुछ और समय लिया। मुख्यमंत्री चौहान ने भोपाल में 19 साल की युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद कहा था कि बलात्कार के दोषियों को फांसी की सज़ा देनी चाहिये और वो कानून बनाकर विधेयक को मंजूरी के लिए भारत सरकार को भेजेंगे।
महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा। हाल ही में राजधानी भोपाल में हुई गैंग रेप की घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हुए थे। यही नहीं, पीड़िता ने भी कहा था कि आरोपियों को चौराहे पर फांसी दी जाए।
सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है। इस तरह मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। साथ ही शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
निश्चित रूप से यह एक ऐतिहासिक और साहसिक फैसला है। आशा की जा सकती है कि इससे महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराध करने वालों में भय व्याप्त होगा तथा बलात्कार तथा अन्य प्रकार के यौनअपराधों में भी कमी आएगी। किन्तु इस फैसले का एक पक्ष और है जो अपनेआप में संवेदनशील है। यह पक्ष है कि कहीं किसी निर्दोष को दण्ड का भागी न बनना पड़े। इस बिन्दु पर दो बातों पर ध्यान दिया जाना अतिआवश्यक होगा- पहली बात तो यह कि पुलिस की पड़ताल और मेडिकल जांच में किसी तरह की कोताही न बरती जाए और वहीं पीड़िता स्वयं को अथवा उसके परिजन उसे मेडिकल जांच के लिए जल्दी से जल्दी प्रस्तुत कर दें। बलाकात्कार के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक डॉ. वाणी नायर का कहना है कि -‘‘पीड़िता के लिए यह एक सदमे का विषय होता है। यह सामान्य चोट लगने जैसी स्थिति नहीं होती है कि घर जा कर तुरन्त सबको बता सकें। पीड़िता सदमें के उबरने के बाद ही घटना का विस्तृत विवरण दे पाती है।’’
जहां तक पुलिस छानबीन का प्रश्न है तो भोपाल में हुए बलात्कार कांड में पीड़िता के स्वयं थाने पहुंचने पर भी तत्परता से रिपोर्ट न लिखा जाना एक ऐसा उदाहरण है जो पुलिस की कार्यवाही पर उंगली उठाती है। यद्यपि इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को विभागीय दण्ड दिया जा चुका है लेकिन प्रश्न उठता है कि इस प्रकार की ढीली-ढाली व्यवस्था में सही अपराधी के विरुद्ध दमदार साक्ष्य कैसे जुटाए जा सकेंगे। इस भोपाल बलात्कार कांड में पुलिस ने एक गलत आदमी को बलात्कार के संदेह में पकड़ ही लिया था और बाद में उसे छोड़ना पड़ा।
बलात्कार एक ऐसा जघन्य किन्तु संवेदनशील अपराध है जो पीड़िता के जीवन को तो प्रताड़ित करता ही है, साथ ही पूरे परिवार को प्रभावित करता है। न केवल पीड़िता और सके परिवार के पक्ष को अपितु उस हर व्यक्ति को चोट पहुंचाता है जिसे इस अपराध के संदेह में पकड़ा गया हो। भले ही वह व्यक्ति के बाद निर्दोष निकल आए किन्तु संदेह का दाग उसके दामन पर उम्र भर के लिए लग जाता है। फिर जब सज़ा का स्वरूप फांसी का हो तो आवेश, भावुकता अथवा लापरवाही कां छोड़ कर पुलिस की कार्यवाही में र्प्याप्त सजगता और तत्परता की दरकार होगी।
पिछले कुछ समय से भावुकतापूर्ण निर्णयों का चलन दिखाई देने लगा है। यह सच है कि गैंगरेप जैसे जधन्य अपराध की पीड़िता के प्रति सहानुभूति होना स्वाभाविक है। ऐसी घटनाएं प्रत्येक व्यक्ति को भावुकता से भर देती हैं और वह अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाना चाहता है। हरियाणा के स्कूल में एक बच्चे की हत्या के बाद वकीलों द्वारा भावुकता में आ कर अभियुक्त के पक्ष से मुकद्दमा नहीं लड़ने की घोषणा कर दी थी। जबकि सीबीआई की जांच से बाद इस बात के संकेत मिले कि दोषी माना जा रहा कंडक्टर वास्तव में दोषी नहीं था और उसने पुलिस की प्रताड़ना से घबरा कर अपराध स्वीकार कर लिया था जो कि उसने किया ही नहीं था। हाल ही में दूसरी बार भोपाल बलात्कार कांड में भी वकीलों ने अभियुक्तों की ओर से मुकद्दमा नहीं लड़ने की घोषणा कर दी थी। तमाम साक्ष्यों के साथ यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक होगा कि अभियुक्त वास्तविक अपराधी है या नहीं। इसके लिए उन सभी लोगों को भी भावुकता का त्याग करना होगा जो अपराध की गंभीरता एवं अमानवीयता को देख कर अभियुक्त का मुद्दमा न लड़ने की घोषणा कर बैठते हैं। अपराधी माने जा रहे व्यक्ति का अपराध जब तक सिद्ध न हो जाए उसे कानून के प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना पक्ष सामने रखने का अधिकार होता है। यह अधिकार उसे इसीलिए दिया जाता है कि कहीं कोई निरपराध सजा का भागी न बन जाए।
वैसे, रेप एवं गैंगरेप के मामलों में जुवेनाईल धाराओं में भी अभी संशोधन की आवश्यकता है। यदि कोई नाबालिग बलात्कार जैसा बालिग अपराध करता है तो उसे बालिगों की श्रेणी में माना जाना चाहिए। दिल्ली के निर्भया कांड के बाद यह मांग तेजी से उठी थी। तब सन् 2015 में जुवेनाइल बिल राज्य सभा में भी पास कर के राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए भेजा गया। इस बिल के में प्रावधान रखा गया कि अगर जुर्म ’जघन्य’ हो, यानी आईपीसी में उसकी सज़ा सात साल से अधिक हो तो, 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को वयस्क माना जाएगा। इस कानून के जरिए नाबालिग़ को अदालत में पेश करने के एक महीने के अंदर ’जुवेनाइल जस्टीस बोर्ड’ ये जांच करेगा कि उसे ’बच्चा’ माना जाए या ’वयस्क’ और वयस्क माने जाने पर किशोर को मुकदमे के दौरान भी सामान्य जेल में रखा जाएगा। हालांकि अगर नाबालिग को वयस्क मान भी लिया जाए तो मुक़दमा ’बाल अदालत’ में चले और आईपीसी के तहत सज़ा हो उम्र क़ैद या मौत की सजा नहीं दी जा सकती। एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार 2014 में किशोरों द्वारा किए गए अपराधों की संख्या में 132 फीसदी का इजाफा देखने के मिला है, जिसमें बलात्कार की घटनाओं में यह वृद्धि 60 फीसदी से अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार दर्ज किए गए मामलों में 66 फीसदी से अधिक बच्चों की उम्र 16-18 साल के बीच है। नाबालिगों में इस तरह के अपराधों की बढ़ती दर को देखते हुए कानूनन कठोर कदम उठाया जाना जरूरी है।
यह बात तय है कि यदि हमें रेप, गैंगरेप, सोशल मीडिया पर यौनअपराध की वीडियो अपलोडिंग आदि अपराधों से मुक्ति चाहिए तो कठोर कदमों का स्वागत करना ही होगा।
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