Dr (Miss) Sharad Singh |
चर्चा प्लस, दैनिक सागर दिनकर,13.12.2017
लड़कियों! डर कर नहीं, डट कर !
- डाॅ. शरद सिंह
हम भारतीय अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं क्यों कि हमारी संस्कृति में स्त्री को पूजा के योग्य माना गया है। तो फिर यह कौन-सी संस्कृति जी रहे हैं हम आजकल, जिसमें दुधमुंही बच्चियों से ले कर नब्बे साल की स्त्री और नितान्त सामान्य परिवार की लड़की से ले कर सेलीब्रिटी लड़की तक यौन-अपराध का शिकार बन रही है? कोई हाथ नहीं उठते शिकार बनती लड़की की रक्षा के लिए, कोई भृकुटी नहीं तनती अपराध होते देख कर। हाल ही में ‘दंगल गर्ल’ के साथ हुए हादसे ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं जिनके उत्तर स्वयं लड़कियों को ही ढूंढने होंगे यदि वे सुरक्षित जीना चाहती हैं तो।
लड़कियों! डर कर नहीं, डट कर !
- डाॅ. शरद सिंह
हम भारतीय अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं क्यों कि हमारी संस्कृति में स्त्री को पूजा के योग्य माना गया है। तो फिर यह कौन-सी संस्कृति जी रहे हैं हम आजकल, जिसमें दुधमुंही बच्चियों से ले कर नब्बे साल की स्त्री और नितान्त सामान्य परिवार की लड़की से ले कर सेलीब्रिटी लड़की तक यौन-अपराध का शिकार बन रही है? कोई हाथ नहीं उठते शिकार बनती लड़की की रक्षा के लिए, कोई भृकुटी नहीं तनती अपराध होते देख कर। हाल ही में ‘दंगल गर्ल’ के साथ हुए हादसे ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं जिनके उत्तर स्वयं लड़कियों को ही ढूंढने होंगे यदि वे सुरक्षित जीना चाहती हैं तो।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily newspaper |
‘दंगल गर्ल’ के नाम से प्रसिद्ध युवा अभिनेत्री जायरा वसीम के साथ हुई घटना ने सिद्ध कर दिया है कि किसी भी तबके की लड़की आज सुरक्षित नहीं है। स्वयं जायरा वसीम के शब्दों में -‘‘‘मैं फ्लाइट में दिल्ली से मुंबई जा रही थी। और मेरे ठीक पीछे एक अधेड़ शख्स था। उसने मेरे ढाई घंटे के सफर को भयानक बना दिया। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए मैं फोन पर रिकॉर्ड करना चाहती थी, लेकिन रोशनी कम थी और मैं ऐसा नहीं कर पाई। मैंने पहले सोचा कि यह ट्रबुलेंस की वजह से है। पर बाद में यकीन हो गया कि वह जानबूझकर पीठ पर पैर फिरा रहा है। रोशनी कम हो गई थी इसलिए बात बिगड़ गई। यह अगले 5-10 मिनट तक चलता रहा। वह मेरे कंधे पर पैर रगड़ता रहा। मेरी पीठ और गर्दन पर पैर फिराता रहा। यह नहीं होना चाहिए था। मैं बहुत परेशान हूं... विस्तारा एयरलाइंस के बेहतरीन क्रू सदस्यों के लिए तालियां। क्या इस तरीके से आप लड़कियों का ख्याल रखेंगे? किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए। यह बहुत खौफनाक है। अगर हम खुद अपनी मदद करने का फैसला नहीं करते हैं तो कोई भी हमारी मदद नहीं करेगा। और यह सबसे खराब बात है।’’
नेशनल अवॉर्ड विजेता अभिनेत्री जायरा वसीम के साथ हुए इस हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बेशक उन सवालों के उत्तर स्वयं लड़कियों को ही ढूंढने होंगे लेकिन इन सवालों पर गौर करना होगा सभी को। उन सवालों पर गौर करें इससे पहले दो ऐसे हादसे जिन्होंने पहला प्रश्न तो यही खड़ा कर दिया है कि हमारे सांस्कृतिक मूल्य कहां सो गए?
जायरा वसीम तो सिर्फ़ छेड़छाड़ की शिकार हुईं लेकिन दो बच्चियों के साथ तो नृशंसता की सारी सीमाएं तोड़ दी गईं। गुरुवार, 7 अक्टूबर 2017 की वह काली रात का साए से कभी मन मुक्त हो भी सकेगा या नहीं, कहना कठिन है। उस हृदय विदारक घटना ने हर व्यक्ति को न केवल भीतर से हिला दिया बल्कि निर्भया कांड की याद ताज़ा करा दिया। मध्यप्रदेश के बीना जंक्शन से 30 किमी दूर भानगढ़ थाना क्षेत्र के एक गांव में गुरुवार रात दो युवकों ने घर में अकेली सो रही 14 साल की लड़की से गैंगरेप किया और केरोसिन डालकर आग लगा दी। लगभग 80 फीसदी जल चुकी लड़की को सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया घटना गुरुवार रात 9 बजे की थी। पीड़ित लड़की अपने घर में अकेली सो रही थी। इसी दौरान आरोपी शुभम पिता रामेश्वर यादव अपने दोस्त रब्बू पिता रामप्रसाद सेन 25 वर्ष के साथ घर में घुस गया। दोनों आरोपियों ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया। पीड़ित ने इसका विरोध कर घटना की शिकायत करने बात की। कार्रवाई के डर से दोनों आरोपियों ने लड़की के ऊपर केरोसिन डालकर आग लगा दी। ग्रामीणों ने बताया कि आग की लपटों से घिरी लड़की घर के बाहर भागी और पड़ोसी के घर के सामने गिर गई। पड़ोसी ने पानी डालकर आग बुझाई और पुलिस को घटना की जानकारी दी। डायल 100 मौके पर पहुंची और आग से झुलसी लड़की को बीना के सिविल अस्पताल लाया गया।
यह घटना अभी ताज़ा ही थी कि शनिवार, 9 दिसम्बर 2017 को हिसार की जघन्य घटना ने एक और चोट की। हिसार में एक ऐसा मामला सामने आया, जो महिला सुरक्षा के दावों पर बड़ा-सा प्रश्नचिन्ह लगा दिया। हिसार के उकलाना गांव में एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई। नृशंसता यह कि शनिवार को हुई इस घटना में बच्ची के साथ रेप के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में आरोपी ने लकड़ी घुसा दी, जोकि बच्ची की मौत की वजह बनी। संचार माध्यमों के अनुसार, बच्ची अपनी मां और बहन के साथ सोई हुई थी। शनिवार सुबह उसका शव घर से करीब 250 मीटर दूर गली में नग्न हालत में खून से लथपथ मिला। डॉक्टरों के अनुसार, बच्ची के प्राइवेट पार्ट में दो फीट की लकड़ी डालने की वजह से गहरे जख्म हो गए थे। बच्ची के कंधे, माथे और पीठ पर खरोंचे पाई गईं. वहीं, जमीन पर पटके जाने की वजह से उसके नाक से खून भी बह रहा था। बच्ची के परिजनों के अनुसार, उनका परिवार यहां करीब 10-12 साल यहां रह रहा है। वे मेहनत-मजदूरी कर अपना गुजारा चलाते हैं। परिजनों के अनुसार, शुक्रवार रात करीब साढ़े नौ बजे बच्ची मां और बड़ी बहन के साथ झुग्गी में सोने गई थी। बच्ची की मां ने उन्होंने कोई आहट या शोर नहीं सुना। सुबह जब चाय के लिए बच्ची को आवाज लगाई गई तो वह नहीं आई और गायब मिली। इसके बाद उसकी तलाश शुरू की गई। तब उन्हीं पता चला कि पास की गली में बच्ची खून से लथपथ पड़ी है।
कोई एक नन्हीं बच्ची के प्रति इतना क्रूर कैसे हो सकता है? दुर्भाग्य से यह क्रूरता सचमुच घटित हुई है। वैसे यदि गहराई से सोचा जाए तो हम चूक पर चूक किए जा रहे हैं लड़कियों की सुरक्षा को ले कर। जब ऐसी किसी घटना की गूंज राष्ट्रीय पटल तक पहुंचती है तो उस समय तक वह पूरे राजनीतिक मुद्दे में ढल चुकी होती है और फिर शुरू होता है बेतुके शर्मसार करने वाली टीका-टिप्पणियों का दौर। इस शोरशराबे में मूल मुद्दा बहुत पीछे छूट जाता है। भीड़ की ओर से भी वैसी आवाज़ नहीं उठती जैसी कि राजनीतिक टीका-टिप्पणियों या फिर सिनेमा के मुद्दों पर उठती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह चुप्पी ही अपराधियों को बढ़ावा दे रही हो? अभिनेत्री जायरा वसीम के साथ की गई अपमानजनक हरकतों पर फोगाट बहनों ने सटीक टिप्पणी की। बबिता फोगाट ने जायरा को संदेश दिया कि -‘‘‘लड़कियां मजबूत बनें। ऐसी हरकत करने वालों को थप्पड़ जड़ें। दोबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा। जायरा, रियल लाइफ में धाकड़ बनो।’’
वहीं गीता फोगाट ने कहा कि -‘‘‘जायरा के साथ जो हुआ, वह बहुत शर्मनाक है। अगर मैं उसकी जगह होती तो रोना उसे पड़ता, जिसने ऐसी हरकत की है।’’
दोनों बहनों ने जायरा ही नहीं अपितु देश की हर लड़की को यह संदेश दिया है जिसे अपनी सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में लड़कियों को गांठ बांध लेना चाहिए। जहां तक जायरा वसीम के साथ हुई घटना कर सवाल है तो यही कहना होगा कि अपने साथ होने वाली आपत्तिजनक हरकतों पर कभी मौन न रहें। मोबाईल पर वीडियो बनाने के बजाए, उसी समय ऊंची आवाज़ में जोर से डपट दें या फिर शोर मना कर सबका ध्यान उस हरकत की ओर खींचे। जायरा वसीम पता नहीं कैसे इतना सब सहन करती रहीं वरना जब सिटी बस, लोकल ट्रेन या आॅटो, टेम्पो आदि में कोई भी लफंगा किसी लड़की को गलत इरादे से छूने का प्रयास करता है तो ‘अरे, ये क्या कर रहे हो?’ ‘तुमसे सीधे नहीं बैठा जाता है क्या?’ या ‘सीधे खड़े नहीं रह सकते हो क्या?’ जैसी डांट लगा कर उसे डरने को मज़बूर कर देती है। क्यों कि जब वह ऊंची आवाज़ में डांटती है तो उसके पास मौजूद अन्य लोग उसका ही पक्ष लेते हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पिंक’ में भी यही संदेश दिया गया था कि शारीरिक क्षमता से कहीं अधिक बुलंद आवाज़ रक्षा करती है। फिल्म का वह दृश्य जब साथ चल रही तापसी को लफंगों द्वारा छेड़े जाने पर उम्रदराज़ दो-दो हाथ करने में अक्षम वकील के रूप में अभिताभ पूरी ताकत से चींखते हैं, जिसे सुन कर वे लफंगे समझ जाते हैं कि अब लोग इकट्ठा हो जाएंगे और उनकी अब खैर नहीं, लिहाज़ा वे भाग खड़े होते हैं।
यह साहस जायरा क्यों नहीं जुटा सकी? क्या यह मौन उस तमाम लड़कियों के मौन का प्रतीक है जो अपनी बहनों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों के विरुद्ध डट कर विरोध प्रदर्शन करने के बजाए अपने चेहरे को कपड़े से ढांक कर स्वयं को सुरक्षित मानने का भ्रम पाले जा रही हैं। क्या सामूहिक बलात्कार के बाद ज़िंदा जला दी गई लड़की के प्रति देश की तमाम लड़कियों का इतना भी दायित्व नहीं बनता कि उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ के साथ एक मोमबत्ती जलाएं और साथ ही ऐसी घटनाओं का अहिंसात्मक किन्तु जोरदार विरोध करें। शासन कड़े कानून भले ही बना दे लेकिन उन कानूनों की ज़रूरत ही न पड़े और एक सुरक्षित वातावरण बना सके इसके लिए लड़कियों को स्वयं भी आगे आना होगा और परस्पर एक-दूसरे का संबल बनना होगा। इसके साथ ही समाज को भी समझना होगा कि मात्र सांस्कृतिक मूल्यों की दुहाई देने से यह समस्या समाप्त नहीं होगी। इन्टरनेट के इस युग में अपराध पांव पसार चुके हैं, ऐसे अपराधों के लिए लड़कियों की आजादी छीनने से भी कुछ नहीं होगा, यदि कुछ होगा तो सजगता और एकजुटता से।
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नेशनल अवॉर्ड विजेता अभिनेत्री जायरा वसीम के साथ हुए इस हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बेशक उन सवालों के उत्तर स्वयं लड़कियों को ही ढूंढने होंगे लेकिन इन सवालों पर गौर करना होगा सभी को। उन सवालों पर गौर करें इससे पहले दो ऐसे हादसे जिन्होंने पहला प्रश्न तो यही खड़ा कर दिया है कि हमारे सांस्कृतिक मूल्य कहां सो गए?
जायरा वसीम तो सिर्फ़ छेड़छाड़ की शिकार हुईं लेकिन दो बच्चियों के साथ तो नृशंसता की सारी सीमाएं तोड़ दी गईं। गुरुवार, 7 अक्टूबर 2017 की वह काली रात का साए से कभी मन मुक्त हो भी सकेगा या नहीं, कहना कठिन है। उस हृदय विदारक घटना ने हर व्यक्ति को न केवल भीतर से हिला दिया बल्कि निर्भया कांड की याद ताज़ा करा दिया। मध्यप्रदेश के बीना जंक्शन से 30 किमी दूर भानगढ़ थाना क्षेत्र के एक गांव में गुरुवार रात दो युवकों ने घर में अकेली सो रही 14 साल की लड़की से गैंगरेप किया और केरोसिन डालकर आग लगा दी। लगभग 80 फीसदी जल चुकी लड़की को सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया घटना गुरुवार रात 9 बजे की थी। पीड़ित लड़की अपने घर में अकेली सो रही थी। इसी दौरान आरोपी शुभम पिता रामेश्वर यादव अपने दोस्त रब्बू पिता रामप्रसाद सेन 25 वर्ष के साथ घर में घुस गया। दोनों आरोपियों ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया। पीड़ित ने इसका विरोध कर घटना की शिकायत करने बात की। कार्रवाई के डर से दोनों आरोपियों ने लड़की के ऊपर केरोसिन डालकर आग लगा दी। ग्रामीणों ने बताया कि आग की लपटों से घिरी लड़की घर के बाहर भागी और पड़ोसी के घर के सामने गिर गई। पड़ोसी ने पानी डालकर आग बुझाई और पुलिस को घटना की जानकारी दी। डायल 100 मौके पर पहुंची और आग से झुलसी लड़की को बीना के सिविल अस्पताल लाया गया।
यह घटना अभी ताज़ा ही थी कि शनिवार, 9 दिसम्बर 2017 को हिसार की जघन्य घटना ने एक और चोट की। हिसार में एक ऐसा मामला सामने आया, जो महिला सुरक्षा के दावों पर बड़ा-सा प्रश्नचिन्ह लगा दिया। हिसार के उकलाना गांव में एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई। नृशंसता यह कि शनिवार को हुई इस घटना में बच्ची के साथ रेप के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में आरोपी ने लकड़ी घुसा दी, जोकि बच्ची की मौत की वजह बनी। संचार माध्यमों के अनुसार, बच्ची अपनी मां और बहन के साथ सोई हुई थी। शनिवार सुबह उसका शव घर से करीब 250 मीटर दूर गली में नग्न हालत में खून से लथपथ मिला। डॉक्टरों के अनुसार, बच्ची के प्राइवेट पार्ट में दो फीट की लकड़ी डालने की वजह से गहरे जख्म हो गए थे। बच्ची के कंधे, माथे और पीठ पर खरोंचे पाई गईं. वहीं, जमीन पर पटके जाने की वजह से उसके नाक से खून भी बह रहा था। बच्ची के परिजनों के अनुसार, उनका परिवार यहां करीब 10-12 साल यहां रह रहा है। वे मेहनत-मजदूरी कर अपना गुजारा चलाते हैं। परिजनों के अनुसार, शुक्रवार रात करीब साढ़े नौ बजे बच्ची मां और बड़ी बहन के साथ झुग्गी में सोने गई थी। बच्ची की मां ने उन्होंने कोई आहट या शोर नहीं सुना। सुबह जब चाय के लिए बच्ची को आवाज लगाई गई तो वह नहीं आई और गायब मिली। इसके बाद उसकी तलाश शुरू की गई। तब उन्हीं पता चला कि पास की गली में बच्ची खून से लथपथ पड़ी है।
कोई एक नन्हीं बच्ची के प्रति इतना क्रूर कैसे हो सकता है? दुर्भाग्य से यह क्रूरता सचमुच घटित हुई है। वैसे यदि गहराई से सोचा जाए तो हम चूक पर चूक किए जा रहे हैं लड़कियों की सुरक्षा को ले कर। जब ऐसी किसी घटना की गूंज राष्ट्रीय पटल तक पहुंचती है तो उस समय तक वह पूरे राजनीतिक मुद्दे में ढल चुकी होती है और फिर शुरू होता है बेतुके शर्मसार करने वाली टीका-टिप्पणियों का दौर। इस शोरशराबे में मूल मुद्दा बहुत पीछे छूट जाता है। भीड़ की ओर से भी वैसी आवाज़ नहीं उठती जैसी कि राजनीतिक टीका-टिप्पणियों या फिर सिनेमा के मुद्दों पर उठती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह चुप्पी ही अपराधियों को बढ़ावा दे रही हो? अभिनेत्री जायरा वसीम के साथ की गई अपमानजनक हरकतों पर फोगाट बहनों ने सटीक टिप्पणी की। बबिता फोगाट ने जायरा को संदेश दिया कि -‘‘‘लड़कियां मजबूत बनें। ऐसी हरकत करने वालों को थप्पड़ जड़ें। दोबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा। जायरा, रियल लाइफ में धाकड़ बनो।’’
वहीं गीता फोगाट ने कहा कि -‘‘‘जायरा के साथ जो हुआ, वह बहुत शर्मनाक है। अगर मैं उसकी जगह होती तो रोना उसे पड़ता, जिसने ऐसी हरकत की है।’’
दोनों बहनों ने जायरा ही नहीं अपितु देश की हर लड़की को यह संदेश दिया है जिसे अपनी सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में लड़कियों को गांठ बांध लेना चाहिए। जहां तक जायरा वसीम के साथ हुई घटना कर सवाल है तो यही कहना होगा कि अपने साथ होने वाली आपत्तिजनक हरकतों पर कभी मौन न रहें। मोबाईल पर वीडियो बनाने के बजाए, उसी समय ऊंची आवाज़ में जोर से डपट दें या फिर शोर मना कर सबका ध्यान उस हरकत की ओर खींचे। जायरा वसीम पता नहीं कैसे इतना सब सहन करती रहीं वरना जब सिटी बस, लोकल ट्रेन या आॅटो, टेम्पो आदि में कोई भी लफंगा किसी लड़की को गलत इरादे से छूने का प्रयास करता है तो ‘अरे, ये क्या कर रहे हो?’ ‘तुमसे सीधे नहीं बैठा जाता है क्या?’ या ‘सीधे खड़े नहीं रह सकते हो क्या?’ जैसी डांट लगा कर उसे डरने को मज़बूर कर देती है। क्यों कि जब वह ऊंची आवाज़ में डांटती है तो उसके पास मौजूद अन्य लोग उसका ही पक्ष लेते हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पिंक’ में भी यही संदेश दिया गया था कि शारीरिक क्षमता से कहीं अधिक बुलंद आवाज़ रक्षा करती है। फिल्म का वह दृश्य जब साथ चल रही तापसी को लफंगों द्वारा छेड़े जाने पर उम्रदराज़ दो-दो हाथ करने में अक्षम वकील के रूप में अभिताभ पूरी ताकत से चींखते हैं, जिसे सुन कर वे लफंगे समझ जाते हैं कि अब लोग इकट्ठा हो जाएंगे और उनकी अब खैर नहीं, लिहाज़ा वे भाग खड़े होते हैं।
यह साहस जायरा क्यों नहीं जुटा सकी? क्या यह मौन उस तमाम लड़कियों के मौन का प्रतीक है जो अपनी बहनों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों के विरुद्ध डट कर विरोध प्रदर्शन करने के बजाए अपने चेहरे को कपड़े से ढांक कर स्वयं को सुरक्षित मानने का भ्रम पाले जा रही हैं। क्या सामूहिक बलात्कार के बाद ज़िंदा जला दी गई लड़की के प्रति देश की तमाम लड़कियों का इतना भी दायित्व नहीं बनता कि उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ के साथ एक मोमबत्ती जलाएं और साथ ही ऐसी घटनाओं का अहिंसात्मक किन्तु जोरदार विरोध करें। शासन कड़े कानून भले ही बना दे लेकिन उन कानूनों की ज़रूरत ही न पड़े और एक सुरक्षित वातावरण बना सके इसके लिए लड़कियों को स्वयं भी आगे आना होगा और परस्पर एक-दूसरे का संबल बनना होगा। इसके साथ ही समाज को भी समझना होगा कि मात्र सांस्कृतिक मूल्यों की दुहाई देने से यह समस्या समाप्त नहीं होगी। इन्टरनेट के इस युग में अपराध पांव पसार चुके हैं, ऐसे अपराधों के लिए लड़कियों की आजादी छीनने से भी कुछ नहीं होगा, यदि कुछ होगा तो सजगता और एकजुटता से।
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