Wednesday, June 21, 2017

चर्चा प्लस ... योग संवारता है जीवन को ... डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
International Yoga Day
 
विश्व योग दिवस (21 जून) पर विशेष :
"योग संवारता है जीवन को" ... मेरा कॉलम #चर्चा_प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 21.06. 2017) ..My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper....

 

चर्चा प्लस
विश्व योग दिवस (21 जून) पर विशेष :
योग संवारता है जीवन को

- डॉ. शरद सिंह 

योग जीवन को संवारने की एक व्यवहारिक शैली है जो आज वैश्विक रूप् ले चुकी है। योग किसी धर्म, जाति अथवा संप्रदाय से जुड़ी क्रिया नहीं है, यह तो जीवन को शारीरिक, आध्यात्मिक और संवेदनात्मक रूप से शांत एवं समृद्ध करने की कला है और यह तथ्य इस बात से साबित भी हो चुका है कि दुनिया के अनेक देश और उनके नागरिक योग की महत्ता को स्वीकार चुके है। योग को किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त हो कर अपना कर अपने तनावपूर्ण जीवन को तनाव से मुक्त किया जा सकता है। दरअसल, आज के कठिन युग में योग एक लाभकारी जीवनशैली है।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

इसमें कोई संदेह नहीं कि आज के उत्तरआधुनिक युग यानी इलेक्टॉनिक युग में विश्वपटल पर योग को स्थापित करने का श्रेय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को ही दिया जा सकता है और इस सच्चाई को स्वीकारने के लिए तमाम राजनीतिक चश्मों को परे रख कर भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों के वैश्विक प्रसार को ध्यान में रखना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 14 सिंतबर 2014 को पहली बार पेश किया गया यह प्रस्ताव तीन महीने से भी कम समय में संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में पास हो गया। भारतीय राजदूत अशोक मुखर्जी ने ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभा में रखा था, जिसे दुनिया के 175 देशों ने भी सह-प्रस्तावित किया था। संयुक्त राष्ट्रसंघ की जनरल असेंबली में किसी भी प्रस्ताव को इतनी बड़ी संख्या में मिला समर्थन भी अपने आप में एक रिकॉर्ड बन गया। इससे पहले किसी भी प्रस्ताव को इतने बड़े पैमाने पर इतने देशों का समर्थन नहीं मिला था। यह भी पहली बार हुआ था कि किसी देश ने संयुक्त राष्ट्रसंघ असेंबली में कोई इस तरह का प्रस्ताव मात्र 90 दिनों में पास हो गया हो।
प्रश्न उठता है कि 21 जून का दिन नही योग दिवस के लिए क्यों चुना गया? तो इसका उत्तर भारतीय खगोलगणना में विद्यमान है। 21 जून को इस दिन ग्रीष्म संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य पृथ्वी के परिप्रेक्ष्य में उत्तर से दक्षिण की ओर चलना शुरू करता है। योग के दृष्टि से यह समय संक्रमण काल माना जाता है, यानी रूपांतरण के लिए आदर्श समय। योगिक कथाओं के अनुसार योग का पहला प्रसार शिव द्वारा उनके सात शिष्यों के बीच किया गया। कहते हैं कि इन सप्त ऋषियों को ग्रीष्म संक्राति के बाद आने वाली पहली पूर्णिमा के दिन योग की दीक्षा दी गई थी, जिसे शिव के अवतरण के तौर पर भी मनाते हैं। इस प्रकृतिक घटना को दक्षिणायन के नाम से जाना जाता है।
योग एक प्राचीन कला है जिसकी उत्पत्ति भारत में लगभग 6000 साल पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्याता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्पात्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्थाय के जन्मत लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है। वैदिक कथाओं के अनुसार कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्तऋषि को प्रदान किया था। सप्तऋषियों ने योग के इस विशिष्ट ज्ञान को विश्व में प्रसारित किया। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक जीवाश्म, अवशेष एवं मुहरें भारत में योग की उपस्थिति को साबित करती हैं। देवी मां की मूर्तियों की मुहरें, लैंगिक प्रतीक तंत्र योग का सुझाव देते हैं। लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्येता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत, बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, ‘महाभारत’ एवं ‘रामायण’ महाकाव्यों, शैवों, वैष्णवों की आस्तिक परंपराओं एवं तांत्रिक परंपराओं में योग का उल्लेख है। वैदिक काल के दौरान सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया गया। सूर्य को प्रणाम करने की विशेष पद्धति से ’सूर्य नमस्कार’ का योगिक आसन विकसित हुआ। यद्यपि पूर्व वैदिक काल में भी योग किया जाता था, महान संत महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, उसकी क्रियाओं एवं उससे संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित किया। पतंजलि के बाद भी अनेक योगाचार्यों ने मनुष्य के जीवन को व्यवस्थित करने के लिए योग की महत्ता को सर्वोत्तम ठहराया। कई दशकों पहले पश्चिमी दुनिया का योग से भली-भांति परिचय कराया था स्वामी विवेकानंद ने, जब उन्होंने 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद को संबोधित किया था। उसके बाद से पूर्व के कई गुरुओं व योगियों ने दुनियाभर में योग का प्रसार किया और दुनिया ने योग को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया। योग पर कई अध्ययन और शोध हुए, जिन्होंने मानव कल्याण में योग के विस्तृत और दीर्घकालिक फायदों को साबित किया। किन्तु दुर्भाग्यवश अपने ही देश में योग उपेक्षित होता चला गया।
प्राचीनकाल में लोग स्वस्थ और तनावमुक्त बने रहने के लिए अपने दैनिक जीवन में योग और ध्यान के के अपनाते थे। किन्तु आज के भगमभाग और व्यस्त वातावरण में योग करना दिन प्रति दिन कम होता जा रहा है। जो व्यक्ति उत्साह के साथ योग आरम्भ कर भी देते हैं तो वे एक या दो सप्ताह में ही उससे ऊब कर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं। इस ऊब का सबसे बड़ा कारण यह है कि ऐसे लोग अपनी अंतःप्रेरणा से नहीं बल्कि ‘‘तथाकथित व्यवसायिक योगा’’ की चमक-दमक से प्रभावित हो कर योग को अपनाते हैं। भ्रमित हो कर आरम्भ किया गया कोई भी कार्य उसकी वास्तविक महत्ता को कभी सिद्ध नहीं कर पाता है। यदि योग की वास्तविक महत्ता को अच्छी तरह समझ लिया जाए तो पता चल जाएगा कि जीवन को बेहतर बनाने के लिए इससे अच्छा सस्ता, सुंदर और टिकाऊ उपाय औा कोई नहीं है। योग करने के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। न ही मंहगी व्यायामशालाओं (जिम) की फीस भरने की जरूरत होती है। देश में अनेक संस्थाएं हैं जो निःशुल्क योग की शिक्षा देती हैं तथा समय-समय पर शिविर लगा कर उन क्षेत्रों में भी योग के आसनों का ज्ञान देती हैं जहां कोई भी योग-केन्द्र नहीं होते हैं।
यदि योग के आसनों को अपने शरीर एवं अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के हिसाब से सीख, समझ लिया जाए तो योग एक बहुत ही सुरक्षित क्रिया है और किसी के भी द्वारा किसी भी समय की जा सकती है, यहां तक कि इससे बच्चे भी लाभ ले सकते हैं। योग वह क्रिया है, जिसके अन्तर्गत शरीर के विभिन्न भागों को एक साथ लाकर शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को सन्तुलित करने का एक अभ्यास है। बिना किसी समस्या के जीवन भर तंदरुस्त रहने का सबसे अच्छा, सुरक्षित, आसान और स्वस्थ तरीका योग है। इसके लिए केवल शरीर के क्रियाकलापों और श्वास लेने के सही तरीकों का नियमित अभ्यास करने की आवश्यकता है। यह शरीर के तीन मुख्य तत्वों; शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के बीच संपर्क को नियमित करना है। यह शरीर के सभी अंगों के कार्यकलाप को नियमित करता है और कुछ बुरी परिस्थितियों और अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली के कारण शरीर और मस्तिष्क को परेशानियों से बचाव करता है। यह स्वास्थ्य, ज्ञान और आन्तरिक शान्ति को बनाए रखने में मदद करता है। अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने के द्वारा यह हमारी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, ज्ञान के माध्यम से यह मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और आन्तरिक शान्ति के माध्यम से यह आत्मिक आवश्यकता को पूरा करता है, इस प्रकार यह हम सभी के बीच सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।
योग का नियमित अभ्यास हमें अनगिनत शारीरिक और मानसिक तत्वों से होने वाली परेशानियों को दूर रखने के द्वारा बाहरी और आन्तरिक राहत प्रदान करता है। योग के विभिन्न आसन मानसिक और शारीरिक मजबूती के साथ ही अच्छाई की भावना का निर्माण करते हैं। यह मानव मस्तिष्क को तेज करता है, बौद्धिक स्तर को सुधारता है और भावनाओं को स्थिर रखकर उच्च स्तर की एकाग्रता में मदद करता है। अच्छाई की भावना मनुष्य में सहायता की प्रकृति के निर्माण करती है और इस प्रकार, सामाजिक भलाई को बढ़ावा देती है। एकाग्रता के स्तर में सुधार ध्यान में मदद करता है और मस्तिष्क को आन्तरिक शान्ति प्रदान करता है। योग प्रयोग किया गया दर्शन है, जो नियमित अभ्यास के माध्यम से स्व-अनुशासन और आत्म जागरुकता को विकसित करता है। योग का अभ्यास किसी के भी द्वारा किया जा सकता है, क्योंकि आयु, धर्म या स्वस्थ परिस्थितियों परे है। यह अनुशासन और शक्ति की भावना में सुधार के साथ ही जीवन को बिना किसी शारीरिक और मानसिक समस्याओं के स्वस्थ जीवन का अवसर प्रदान करता है। योग्य शिक्षक से एक बार अच्छी तरह सीख लेने के बाद योग करने से स्वास्स्थ्य संबंधी अनेक कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। साथ ही इसके कोई साईड इफैक्ट भी नहीं होते हैं।
देखा जाए तो योग जीवन को संवारने की एक व्यवहारिक शैली है जो आज वैश्विक रूप ले चुकी है। योग किसी धर्म, जाति अथवा संप्रदाय से जुड़ी क्रिया नहीं है, यह तो जीवन को शारीरिक, आध्यात्मिक और संवेदनात्मक रूप से शांत एवं समृद्ध करने की कला है और यह तथ्य इस बात से साबित भी हो चुका है कि दुनिया के अनेक देश और उनके नागरिक योग की महत्ता को स्वीकार चुके है। योग को किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त हो कर अपना कर अपने तनावपूर्ण जीवन को तनाव से मुक्त किया जा सकता है। दरअसल, आज के कठिन युग में योग एक लाभकारी जीवनशैली है।
--------------------------


#InternationalYogaDay #Yoga #योग #अंतरराष्ट्रीय_योग_दिवस

No comments:

Post a Comment