Dr (Miss) Sharad Singh |
चर्चा प्लस
स्मार्ट सिटी की चुनौतियां
- डॉ. शरद सिंह
जितने भी शहर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की दौड़ में उत्तीर्ण हो गए उनके लिए खुशियां मनाने का समय नहीं बल्कि उन चुनौतियों पर चिन्तन करने का है जो उनके सामने खड़ी हैं। क्या ये चुनौतियां निर्धारित समय सीमा में पूरी हो सकती है? क्या इन शहरों में माद्दा है कि वास्तविक स्मार्ट सिटी बन कर दिखाएं? कहीं स्मार्टनेस का महल उस सीसी रोड की तरह हो कर न रह जाए जो पहली बरसात में ही बह जाती है। दरअसल, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है और इसमें नेता, अधिकारी, समाजसेवी, पत्रकार और आमजनता सभी के लिए अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।
जब स्मार्ट सिटी की चर्चा आती है तो पहला प्रश्न मन में कौंधता है कि यह ’स्मार्ट सिटी’ है क्या? स्मार्ट सिटी की संकल्पना, हर शहर और हर देश के लिए भिन्न होती है जो विकास के स्तर, परिवर्तन और सुधार की इच्छा, शहर के निवासियों के संसाधनों और उनकी आकांक्षाओं पर निर्भर करता है। ऐसे में, स्मार्ट सिटी का भारत में यूरोप से अलग अर्थ होगा। इतना ही नहीं, खुद भारत में प्रत्येक शहर की दशा के अनुसार स्मार्ट सिटी के मायने अलग होंगे। भारत में किसी भी शहर निवासी की कल्पना में, स्मार्ट शहर तस्वीर में ऐसे परिदृश्य और सेवाओं की सूची होती है जो उसकी आकांक्षा के अनुरूप हो। नागरिकों की आकांक्षाओं और जरूरतों को पूरा करने के लिए, शहरी योजनाकार को बुनियादीतौर पर पूरे शहरी पारिस्थितिकी तंत्र का इस प्रकार विकास करना होता है, जो व्यापक विकास के चार स्तंभों-संस्थागत, भौतिक, सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना में दिखाई देता है। किसी भी शहर की स्मार्टनेस उसकी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति पर निर्भर होती है। यदि शहर में सड़कें उखड़ी हुई हैं, ड्रेनेज की व्यवस्था चौपट है और हर साल बारिश में नागरिकों को सड़क पर बहती नालियों का समाना करना पड़ता है, यदि कचरा उठाने और कचरा प्रबंधन का काम लचर है या फिर शासकीय स्तर पर चिकित्सकीय सुविधाएं गड़बड़ी से भरी पड़ी हैं तो मान कर चलना होगा कि आसान नहीं है डगर स्मार्टसिटी की।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper |
उदाहरण के लिए सागर को ही लीजिए। भौगोलिक दृष्टि से एक अत्यंत सुंदर शहर है। यहां का विश्वविद्यालय डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र दुनिया के कोने-कोने में जा कर नाम कमा रहे हैं। शहर की अपनी एक झील है। एक पुराना शहर है जो चारो ओर से नई कॉलोनियों के रूप् में विस्तार पाता जा रहा है। इस शहर की अपनी एक बोली है, अपनी है संस्कृति है और अपनी एक पहचान है। इस तरह की खूबियां लगभग हर उस शहर की है जो स्मार्टसिटी की दौड़ में विजयी मुद्रा में खड़े हैं। इसलिए इन सभी चुनौतियां भी लगभग एक समान हैं। इसीलिए यहां मैं सागर शहर के संदर्भ में बात करूंगी।
निसंदेह सागर शहर के मध्य में एक पुराना शहर है। इस पुराने शहर के बसाने वालों ने शहर के लिए उत्तम कोटि की पेयजल व्यवस्था एवं जल निकासी व्यवस्था की थी। लेकिन धीरे-धीरे वे सारी व्यवस्थाएं सिकुड़ गईं। आज ड्रेनेज़ और सफाई की व्यवस्था चरमरा चुकी है। जब पुराना शहर बसाया गया था तब उसकी सड़कें चौड़ी हुआ करती थीं (जैसेकि साक्ष्य मिले हैं) लेकिन अब सड़कें अतिक्रमण की चपेट में हैं। नगरनिगम की सीमा में आने वाले शहर के अधिकांश हिस्से अतिक्रमण के शिकार हैं। सिकुड़ी हुई सड़कों के गड्ढे अपनी अलग ही कहानी कहते हैं। उस पर डेयरी विस्थापन का मुद्दा तो कई पंचवर्षीय योजनाएं पार कर चुका है और जस का तस है। शहर को एक अदद मेडिकल कॉलेज का गौरव प्राप्त हुआ लेकिन वहां भी अव्यवस्थाओं और मुन्ना भाइयों के कारण मरीज त्राहि-त्राहि करते दिखाई पड़ते हैं। शहर का पर्यावरण इस कदर दूषित हो चुका है कि उसे संवारने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
ऐसा पहली बार हुआ है, शहरी विकास मंत्रालय कार्यक्रम में निधियन के लिए शहरों के चयन करने के लिए ‘चुनौती’ अथवा प्रतिस्पर्धा विधि का उपयोग किया गया। राज्य और शहरी स्थानीय निकाय स्मार्ट शहरों के विकास में महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाएंगे। इस स्तर पर स्मार्ट नेतृत्व एवं दूरदृष्टि और निर्णायक कार्रवाई करने की क्षमता महत्वंपूर्ण कारक होंगे जो मिशन की सफलता निर्धारित करेंगे। स्मार्टसिटी के रास्ते में अनेकानेक चुनौतियां हैं जिनमें कुछ बुनियादी चुनौतियां हैं- आईटी, वाई-फाई, बिजली, जलजमाव, ठोस कचरा प्रबंधन, सीवरेज की सफाई, जलापूर्ति और यातायात आदि।
शहर के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों और संरचना दोनों में लगभग 50 प्रतिशत की कमी है। निजी अस्पताल और नर्सिंगहोम तो हैं, पर गरीब उसकी सुविधाएं प्राप्त नहीं कर सकते हैं। जबकि शहरी नियमानुसार 30 मिनट की इमरजेंसी सेवा के साथ सभी घरों तक पहुंच। लगभग 1500 की आबादी पर कम से कम एक डिस्पेंसरी और 1 लाख की आबादी पर 25 से 30 बेडों का नर्सिंग होम होना चाहिए। प्रति एक लाख की आबादी पर क्रमशः 80, 200 और 500 बेड का कैटेगरी ए, कैटेगरी बी और सामान्य हॉस्पिटल होना चाहिए।
आईटीके मामले में दूसरे शहरों की अपेक्षा हम पीछे हैं। नेट कनेक्टिविटी के चुस्त-दुरूस्त संजाल की जरूरत है। पूरे शहर में 100 एमबीपीएस की स्पीड के साथ वाई-फाई की सुविधा मिलनी चाहिए, ताकि लोग कभी भी नेट इस्तेमाल कर सकें। यूं भी दैनिक जीवन में हर काम के लिए इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। अतः इंटरनेट व्यवस्था सुचारू होना जरूरी है।
आवश्यकता के अनुरूप बिजली की उपलब्धता भी जरूरी है। इस दिशा पर भी ध्यान देना होगा। सभी घरों में बिजली का कनेक्शन और 24 घंटे बिजली आपूर्ति को सुनिश्चित करने और बिजली की बर्बादी से बचने के लिए टैरिफ स्लैब्स का निर्धारण करना होगा।
बरसाती पानी की निकासी के लिए सभी सड़कों तक का बेहतरीन नेटवर्क तैयार करना होगा। शत-प्रतिशत रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर देना होगा। जरा-सी बारिश हुई और निचली बस्तियों तथा कॉलोनियों में पानी भरने लगता है। शहर के पुराने नालों का रख-रखाव जरूरी है।
सभी घरों तक डोर-टू-डोर कचरा उठाने की व्यवस्था करनी होगी। ठोस कचरे की शत-प्रतिशत रिसाइक्लिंग करने से ही समस्या का समाधान होगा। सभी घरों में शौचालय, स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था। सीवरेज और गंदे पानी के प्रबंधन के लिए नेटवर्क का संपूर्ण विस्तार। पुरानी सीवरेज सिस्टम पूरी तहर से ध्वस्थ हो चुका है।
सभी घरों में कनेक्शन देकर 24 घंटे जलापूर्ति करनी होगी। प्रत्येक व्यक्ति पर लगभग 135 लीटर की आपूर्ति करनी होगी। जिससे लोगों को सहूलियत हो। वाटर ट्रीटमेंट पर ध्यान देना होगा।
400 मीटर की पैदल दूरी पर खुदरा दुकानें, पार्क, प्राथमिक विद्यालय जैसी 95 फीसदी दैनिक आवश्यकताओं की पहुंच घरों तक होनी चाहिए। कई इलाके ऐसे हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। मैपिंग के बिना स्थानिक नियोजन करना काफी मुश्किल है। शहर के एक से दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए अधिकतम 30 से 45 मिनट लगने चाहिए। सड़क के दोनों किनारे फुटपाथ और आवासीय क्षेत्र में 10-15 मिनट की पैदल दूरी पर यातायात का प्रबंध होना चाहिए।
स्मार्टसिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत कुछ व्यवस्थाएं अनिवार्यरूप से तय की गई हैं जैसे - सभी प्रोजेक्ट का ऑनलाइन और टाइमबाउंड निपटारा, जन सेवाओं की ऑनलाइन डिलीवरी, नागरिकों के साथ प्रभावी संचार व्यवस्था, गरीबों को रियायती दर पर सुविधाएं उपलब्ध कराना, ओपन डाटा प्लेटफॉर्म जहां नागरिकों को सूचनाएं मुफ्त मिलें, सभी जनोपयोगी सेवाओं के लिए एक नियंत्रक संस्था का गठन, सभी प्रोजेक्ट्स के लिए सबसे पहले प्राइवेट सेक्टर को आमंत्रण आदि।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्मार्ट सिटी बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना में ताज़ा-ताज़ा शामिल हुए सागर शहर सहित तमाम प्रतियोगी शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए नागरिकों के भी कुछ दायित्व हैं जैसे, शहर की स्वच्छता बनाए रखना, नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा पेयजल को व्यर्थ बहने से रोकना, रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अपनाना, सौदर्याकरण के लिए लगाए जाने वाले पेड़-पौधों की रक्षा करना क्यों कि ये न केवल सुन्दरता बढ़ाते हैं बल्कि पर्यावरण में संतुलन भी बनाए रखते हैं। इसके साथ ही पशुपालकों को डेयरी विस्थापन में सहयोगी बनना होगा। इन सबके अतिरिक्त सबसे बड़ा दायित्व जो नागरिकों को निभाना होगा, वह है ‘व्हिसिल ब्लोअर’’ बनने का। यदि किसी भी नागरिक को किसी भी स्तर पर कोई भी चूक होती दिखाई दे अथवा किसी गड़बड़ी का अंदेशा हो तो उसे तत्काल जागरूकता का परिचय देना होगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने ‘‘व्हिसिल ब्लोअर्स’’ के लिए यह प्रावधान रखा है कि यदि वे चाहें तो उनका नाम उजागर नहीं किया जाएगा ताकि उनकी सुरक्षा बनी रहे।
सच तो यह है कि हर नागरिक चाहता तो बहुत कुछ है लेकिन उसे पाने के लिए शासन अथवा राजनीतिक दलों का मुंह ताकता रहता है। बुनियादी जरूरतों को पूरा कराने में भी उसे हिचक होती है। इसलिए यह तय है कि यदि अपने शहर को सचमुच ‘स्मार्ट सिटी’ बनाना है तो नागरिक सहयोग एवं जागरूकता की अहम भूमिका को स्वीकार करना होगा। स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सरकार तो आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएगी ही किन्तु नगरनिगमों को भी अपनी आय बढ़ानी होगी जिसके अंतर्गत नागरिकों पर विभिन्न प्रकार के टैक्स बढ़ेंगे। राह कठिन है, इस अर्थ में भी कि किसी स्कैम पर चर्चा करना आसान होता है लेकिन समय रहते उस स्कैम को होने से ही रोकना साहस का काम होता है। लेकिन यदि आमजनता अधिक टैक्स चुकाते हुए अधिक सुविधाएं पाने की चाहत रखती है तो उसे ‘‘व्हिसिल ब्लोअर्स’’ बन कर अपने टैक्स के पैसों की निगरानी भी करनी होगी।
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