- डॅा. (सुश्री) शरद सिंह
(‘इंडिया इन साइड’ के October 2013 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......)
सन 2013 दाम्पत्य जीवन
और पति-पत्नी के पारस्परिक संबंधों के कानूनी पक्ष की दृष्टि से महत्वपूर्ण
कहा जाएगा। इस वर्ष के पूर्वार्द्ध पत्नी को पति के उस सम्पत्ति में से भी
हिस्सा दिए जाने का कानून पारित किया गया जो पति को विरासत के रूप में
मिली हो। इसी क्रम में सुप्रीमकोर्ट ने एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला दिया है
जिसके अनुसार जीवनसाथी में से किसी एक का सिर्फ़ मानसिक बीमारी से ग्रस्त
होना तलाक का आधार नहीं हो सकता है। दोनों में अलगाव की मंजूरी उसी स्थिति
में दी जा सकती है, जब उस बीमारी के कारण साथ रहना संभव न रह जाए। सुप्रीम
कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के डॉक्टर दंपती के मामले में यह फैसला सुनाते हुए
तलाक की अर्जी नामंजूर कर दी। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के
अनुसार मानसिक बीमारी होने के आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है। पति की
दलील थी कि उसकी पत्नी सिजोफ्रेनिया की मरीज है। इस आधार को अनुचित मानते
हुए हाईकोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले को
सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले
को सही ठहराया। खंडपीठ के अनुसार मानसिक बीमारी को साबित करने के लिए
हाईकोर्ट के सामने रखे गए दस्तावेजों में खामी पाई गई थी। उसकी बीमारी इतनी
गंभीर नहीं थी कि उसके आधार पर तलाक दिया जाए। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने
निचली अदालत द्वारा दिए गए तलाक के फैसले को निरस्त कर दिया था।
वह मानसिक स्थिति जब इंसान सही और ग़लत में भेद नहीं कर पाता है और अपने भ्रम पर ही अटूट विश्वास करने लगता है, उसी स्थिति में वह आत्मघात जैसे क़दम उठाता है। मनोवैज्ञानिक इस स्थिति को सीजोफ्रेनिया कहते हैं। यह भ्रम को सच मान लेने की चरम स्थिति है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सीजोफ्रेनिया का मनोरोग आत्मीयता और प्रेम पा कर ठीक होने लगता है। अतः पति और पत्नी के संबंध में जहां परस्पर प्रेम ही सबसे प्रमुख आधार होता है, सीजोफ्रेनिया की स्थिति उत्पन्न होनी ही नहीं चाहिए। यदि ऐसा होता है तो इसके लिए दूसरे पक्ष की जिम्मेदारी को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
भारतीय संविधान की धारा-14 के अंतर्गत महिलाओं एवं पुरुषों को आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक स्तर पर समान अवसर प्रदान किए जाने का प्रावधान है, धारा-15 में लिंग के आधार पर भेद-भाव को अमान्य किया गया है तथा धारा-16 एवं धारा 39 के अंतर्गत् सार्वजनिक नियुक्तियों के मामले में स्त्राी-पुरुषों को समान अवसर एवं जीविका के समान अधिकार प्रदान किए जाने का विधान है । समय-समय पर उच्चतम न्यायालय ने भी ऐसे कानूनों को बनाए जाने की आवश्यकता प्रकट की जिससे कि महिलाओं के अधिकारों को और अधिक सुरक्षा एवं संरक्षण मिल सके। इस दिशा में शाहबानो एवं प्रतिभारानी (1984 उ.न्या. 648) प्रकरणों के निर्णयों को रेखांकित किया जा सकता है। इसी प्रकार अनेक ऐसे अधिनियम पारित किए गए जो महिलओं के कल्याण तथा उनके विरूद्ध अपराध, अत्याचार एवं शोषण को रोकने की राह में मील का पत्थर साबित हुए। ठीक इसी प्रकार महत्वपूर्ण है घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानून जो 26 अक्टूबर 2006 से पूरे देश में समान रूप से लागू किया जा चुका है। इस कानून के कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। सबसे पहला महत्वपूर्ण पहलू तो ये है कि घरेलू हिंसा के विरुद्ध यह कानून सभी स्त्रिायों को सार्वभौमिक दृष्टि से देखने वाला है।
भारत में तलाक निश्चित रूप से एक आसान प्रक्रिया नहीं है। तलाक की पूरी प्रक्रिया है कि लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यहां विभिन्न धर्मों के अस्तित्व के कारण अलग-अलग विवाह अधिनियम बनाए गए हैं। मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 तलाक पर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए पारित किया गया था। अंतर जाति और अंतर - धर्म विवाह के लिए तलाक कानून विशेष विवाह अधिनियम, 1956 के अंतर्गत अनुमोदित कर रहे हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के अंतर्गत एक पति और पत्नी के आपसी तलाक केवल जब वे कम से कम एक वर्ष के लिए अलग रहता है, फाइल कर सकते हैं। कुछ संयुक्त रूप से उनके लिए कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण वैवाहिक संबंध जारी रखने की असमर्थता के बारे में उल्लेख करना होगा। दोनों पक्षों ने स्वेच्छा से शादी भंग करने के लिए सहमत होना होगा। सन् 2012 में केंद्रीय मंत्रीमंडल ने तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। संशोधित विधेयक के अनुसार पत्नी ‘वैवाहिक संबंध पूरी तरह से टूटने’ के आधार पर दायर किए गए तलाक के दावे को चुनौती दे सकती है लेकिन पति के पास ये अधिकार नहीं होगा। विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010 पत्नी को पति की जायदाद में हिस्से का भी अधिकार देता है। पत्नी को पति की जायदाद में हिस्सा देने के अलावा विधेयक में तलाक लेने की स्थिति में गोद लिए बच्चों को भी अन्य बच्चों के समान संपत्ति में अधिकार देना भी शामिल है।
सन् 2010 में एक महत्वपूर्ण किन्तु दिलचस्प निर्णय लिया गया जिसके अनुसार यदि पति-पत्नी आपस में बातचीत नहीं करते हैं तो ऐसा करने वाला अपने साथी पर क्रूरता करने का दोषी ठहराया जा सकता है और पीडित पक्षकार को केवल इसी आधार पर तलाक मिल सकती है। इसलिये ऐसे सभी पतियों और पत्नियों को सावधान होने की जरूरत है, जो बात-बात पर मुःह फुलाकर बैठ जाते हैं और महनों तक अपने साथी से बात नहीं करते हैं। वैसे तो मुंह फुलाना और मनमुटाव होना पति-पत्नी के रिश्ते में आम बात है, लेकिन यदि इसके कारण दूसरे साथी को सदमा लगे या वह सीजोफ्रेनिया की चरम स्थिति में पहुंच जाए तो तलाक हो सकता है। सम्भवतः इन्हीं मानसिक पीड़ाओं को कानूनी समर्थन प्रदान करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि चुप्पी क्रूरता का परिचायक है।
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सार्थक आलेख शरद जी .
ReplyDeleteशादी के बाद अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने वालों के लिए सही सन्देश...
ReplyDeleteMeri patni ko Shaadi ke pahlesehi mansik rog Tha aur ye bbat hamase chupakahamari Shaadi karai gai hai,Mai Meri patni ka elaj karake thank Gaya hu..vo bar bar susait Karne ki koshish karti hai hamare sat frod hua hai mereko mere sasuraral wale dahej kes me fasane ki baat karte hai aur bolte hai ese ishi condition me rakhalo warana tum to Gaye Maine unke khilap court me kes ki hai Kya muje talak migega please bataiye.
ReplyDeleteमुझे अवसाद है मेरी पत्नी मुझे अवसाद से बहार नही आने देती हमेसा किसी न किसी बात पर जागड़ा करती है क्या मुझे तलाक मिल सकता है
ReplyDeleteकभी कभी तो मन करता है या तो उसे मार दूँ या आत्महत्या कर लूं मैं अपनी पत्नी से तांग आगया हूँ
ReplyDeletePati ko bhi kaboon ki help milni chahiye
ReplyDeleteGlad to know that. Thank you so much for updating us with the same.
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Mam agar koi ladki sadi se pahle depression ka dawa khati ho aur ye proof ho to pati talak de degas
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