Article of Dr Sharad Singh published in " Outlook " (Hindi) 11 April 2016 |
" Outlook " (Hindi) 11 April 2016 |
"आउटलुक" में प्रकाशित मेरा लेख
निशाने पर हर बार स्त्री ही
क्यों
- शरद सिंह
कई सरकारी योजनाएं हैं जो समाज में स्त्री के अस्तित्व एवं अधिकारों के लिए
कटिबद्ध दिखाई देती हैं, लेकिन यह भी सच है कि राजनीति की बिसात पर भी स्त्रियों के
अधिकारों के प्रश्न को गोटियों की भांति सुविधानुसार आगे और पीछे किया जाता हैं।
दुर्भाग्य है कि हिंसा और प्रतिशोध की बात आती है तब सबसे पहला शिकार बनती हैं
स्त्री। फिर कानून घटना बाद जांच और आयोग के रूप में दिखाई पड़ता है। एक ऐसी रक्तरंजित लकीर जिसे तथाकथित पुरुष
सदियों से खींचते चले आ रहे हैं, वह लकीर देश के बंटवारे के समय से ले कर ‘निर्भया कांड से होती हुई मुरथल तक आ
पहुंची है। बलात्कार अथवा सामूहिक बलात्कार की घटना घटी अथवा नहीं, यह जांच का विषय होता है
लेकिन इस बात की पड़ताल कभी नहीं की जाती है कि किसी राजनीतिक मसले की चैपड़ पर
स्त्री की अस्मिता को ही क्यों दांव पर लगाया जाता है।
देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 50
किलोमीटर दूर हरियाणा के मुरथल में हुआ कथित गैंगरेप इसका एक और दुर्भाग्यपूर्ण
उदाहरण है। इस मामले में मीडिया में समाचारों की बाढ़ आने के बाद एक महिला साहस कर
के सामने आई। उस महिला ने हरियाणा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि 22 फरवरी की रात
मुरथल में उसके साथ गैंगरेप हुआ। पुलिस में दर्ज शिकायत में इस महिला ने कहा कि कि
वो 22-23 फरवरी की रात को बस से जा रही थी और जब बस खराब हो गई तो वो और लोगों के
साथ एक वैन में सवार हो गई जब ये घटना हुई। उसने यह भी बताया कि 22 और 23 फरवरी की
दरमियानी रात को ‘हुड़दंगियों’ ने कई महिलाओं के साथ गैंगरेप किया।
जाट आंदोलन के दौरान सामूहिक बलात्कार की
इस अपुष्ट खबर को लेकर चश्मदीद गवाहों के परस्पर भिन्न बयान भी सामने आने लगे। एक
ट्रक ड्राइवर ने दावा किया कि उसने मुरथल के पास देखा कि कई महिलाओं को खेतों में
खींचकर ले जाया जा रहा था। यद्यपि ड्राइवर ने कहा कि वह निश्चित रूप से यह नहीं कह
सकता कि उनके साथ किसी तरह की बदसलूकी हुई थी।
सुखविंदर सिंह नाम के इस ड्राइवर के अनुसार 150 से भी ज्यादा लोग खेतों से
हाईवे की तरफ आए और औरतों को खींचते हुए ले गए। सुखविंदर ने कहा मैंने करीब 50 औरतों
को देखा था। उन्हें खेतों में ले जाया जा रहा था। मैंने यह नहीं देखा कि उनके साथ
क्या किया गया।
ट्रक ड्राइवर का उस वक्त वहां मौजूद होने
का दावा और मुरथल के पास हाईवे पर महिलाओं के बिखरे हुए आंतरिक वस्त्र इस बात की
तरफ इशारा करते हैं कि कुछ अनहोनी अवश्य हुई थी। हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान
नेशनल हाइवे संख्या-1 पर दिल्ली से सटे मुरथल
के नजदीक महिलाओं से कथित बलात्कार की रिपोर्टों की सत्यता की जांच के लिए हरियाणा
पुलिस ने तीन सदस्यीय समिति गठित की गई। इसमें डीआईजी रैंक की एक अधिकारी समेत तीन
महिला अधिकारी शामिल की गईं। इन्हें पीडि़त महिलाओं या घटना के बारे में जानकारी
रखने वाले लोगों से संपर्क करने के लिए कहा गया। साथ ही सड़कों पर बिखरे आंतरिक
वस्त्रों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया।
जाट आंदोलन के सदस्यों द्वारा कई महिलाओं
के बलात्कार और छेड़छाड़ की कथित घटनाओं पर गौर करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा
बनाई गई महिला पुलिस अधिकारियों की तीन सदस्यीय टीम की प्रमुख राजश्री ने कहा कि ‘‘पीडि़त अपराध के सटीक
स्थल को लेकर निश्चित नहीं है, लेकिन उसका दावा है कि हरिद्वार से एक वैन में दिल्ली के नरेला जाते
वक्त मुरथल के पास एक इमारत में उसका बलात्कार किया गया। हालांकि महिला ने कहा कि
उसके साथ मौजूद 15 साल की उसकी बेटी का बलात्कार नहीं किया गया, लेकिन उसके कपड़े फाड़े
गए।
यदि यह भी मान लिया जाए कि मुरथल-कांड के
पीछे आंदोलनकारियों को बदनाम करने का कोई षडयंत्र है, फिर भी यह तो तय है कि
स्त्री की अस्मिता को एक बार फिर तार-तार किया गया है। चाहे बलात्कार द्वारा अथवा
बलात्कार की घटना के आरोप द्वारा, स्त्री की अस्मिता को ही उन्माद और राजनीति की बलिवेदी पर चढ़ाया
गया है। घटना घटित हुई अथवा नहीं लेकिन निशाना तो बनी स्त्री की अस्मिता। इस
संदर्भ में कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग एक-सी दशा है।
अपने पौरुषेय अहम् भावना को संतुष्ट के
लिए स्त्रियों की अस्मत और उनके जीवन पर घात लगाने वालों की बात की जाए तो शोपिया
के जख़्म अभी पूरी तरह से सूखे नहीं हैं। विगत वर्ष भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के
शोपिया जि़ले से दो स्त्रियां लापता हो गई थीं। उन स्त्रियों की ढूंढ-खोज के बाद
पुलिस उनके शव प्राप्त करने में सफल रही। दोनों स्त्रियों की हत्या के कारणों का
पता लगाने के लिए जांच आयोग गठित की गई। जांच की प्रक्रिया में चालीस दिन लगे। इस
दौरान शोपिया जि़ले में हिंसा और प्रदर्शन जारी रहे। लोगों के मन में स्त्रियों के
मारे जाने पर रोष था। इसी मुद्दे को ले कर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के साथ संघर्ष
किया। जांच आयोग ने पाया कि दोनों के साथ बलात्कार किया गया था और फिर उनकी हत्या
कर दी गई थी। दुखद बात यह थी कि शोपिया मामले में ही बलात्कार और हत्या करने के
दोषियों के रुप में वर्दी पहने लोगों के होने की पुष्टि हुई। संबंधित दोषी पुलिस
अधिकारी के विरुद्ध एफ.आई.आर. लिखाए जाने के पर उन्हें मात्र निलंबित किया गया।
प्रकरण की जांच में यह तथ्य सामने आया कि कुछ वर्दीधारियों के मन में उन दोनों
औरतों के प्रति द्वेष भावना थी और वे उन्हें और उस क्षेत्र के लोगों को सबक सिखाना चाहते थे।
कभी भी कोई दंगे अथवा दुश्मनी की भावना हो, इस पुरुषप्रधान समाज में
द्वेष, हिंसा और प्रतिशोध की
पहली शिकार स्त्रियां ही होती हैं। अपना वर्चस्व अथवा अपने पौरुष का प्रभाव जताने
के लिए स्त्रियों के प्रति यौन हिंसा का घिनौना सहारा लिया जाता है। तथाकथित पुरुष
अपने पौरुष की धाक जमाने के लिए हर बार स्त्री को ही निशाने पर लेते हैं।
प्रकरण चाहे भोपाल में एक स्त्री के साथ
कार में किया गया सामूहिक बलात्कार हो, चाहे गुजरात दंगों के दौरान स्त्रियों की
अस्मत से खिलवाड़ का हो, चाहे मुंबई की लोकल ट्रेन में युवती के सम्मान का हनन हो, शोपिया मामले में दो
स्त्रियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार कर उनकी हत्या किए जाने का मामला हो या
फिर मुरथल का मामला हो, बार-बार यही तथ्य सामने आता है कि स्त्रियां असुरक्षित
हैं। यह भी कि समाज और कानून घटना घट जाने के बाद सामने आता है। सन् 1947 ई. से अब तक स्त्रियों
के पक्ष में अनेक कानून पारित हुए अनेक महिला संगठन बने लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति याद दिला
देती है कि देश में स्त्रियों की स्थिति अभी चिन्ताजनक है तथा इस दिशा में और कड़े
कानून बनाए जाने की आवश्यकता है जिससे इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका
जा सके। माया एंजलो की ये पंक्तियां कौंधती हैं -
तुम मुझे
अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ
इतिहास में शामिल कर सकते हो अपनी चाल से
मुझे गंदगी में धकेल सकते हो
लेकिन फिर भी
मैं धूल की तरह उड़ती आऊंगी
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बहुत बढीया
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