Dr (Miss) Sharad Singh |
मेरा कॉलम #चर्चा_प्लस "दैनिक सागर दिनकर" में (15. 06. 2016) .....
My Column #Charcha_Plus in "Dainik Sagar Dinkar" .....
चर्चा प्लस
‘उड़ता पंजाब’ से उठे सवाल
- डॉ. शरद सिंह
‘उड़ता पंजाब’ में आपत्तिजनक माने गए दृश्य एवं संवाद सचमुच आपत्तिजनक माने जा सकते हैं, उदाहरण के लिए कुत्ते का नाम जैकी चैन रखा जाना। किसी व्यक्ति और वह भी दुनिया भर में सम्मान की दृष्टि से देखे जाने वाले अभिनेता के नाम का यूं मज़ाक उड़ाना उचित नहीं है। फिर भी प्रश्न यह उठता है कि जब बॉलीवुड एडल्टकॉमेडी बनता है और अश्लील नृत्य और संवाद परोसता है तब सेंसर बोर्ड आपत्ति क्यों नहीं करता जबकि सभी जानते हैं कि वीडियो सीडी का पायरेसी बाज़ार इन फिल्मों और इन फिल्मों के आपत्तिजनक दृश्यों को घर-घर तक पहुंचाता रहता है। सेंसर बोर्ड की भूमिका क्या संतुलित नहीं होनी चाहिए?
फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ पर सेंसरशिप का मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पुहंच गया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सेंसर बोर्ड को नसीहत देते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड का काम फिल्मों को सर्टिफिकेट देना है। दर्शकों को अपनी चॉइस है और उन्हें फिल्म देखकर खुद तय करने देना चाहिए। फिल्म में कुछ अश्लील दृश्यों को आपत्तिजनक बताने पर कोर्ट ने कहा, आप क्यों परेशान हैं, मल्टिप्लेक्स के दर्शक काफी परिपक्व हैं । फिल्में सिर्फ ऐसे कॉन्टेन्ट से नहीं चलतीं, उनमें एक कहानी होनी चाहिए। चाहे यह टीवी हो या सिनेमा, लोगों को इसे देखने दीजिए। सबकी अपनी चॉइस है। सेंसर बोर्ड का काम सर्टिफिकेट देना है।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper |
सेंसर बोर्ड के वकील ने कोर्ट से कहा कि फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में इस्तेमाल
किए गए शब्द बेहद आपत्तिजनक हैं। ‘उड़ता पंजाब’ का डायलॉग ‘जमीन बंजर तो
औलाद कंजर’ तो कुछ ज्यादा ही आपत्तिजनक है। सेंसर बोर्ड के पक्ष के वकील ने
कहा, हमें फिल्म से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन ‘कंजर’ और बाकी दूसरे शब्द
फिल्म में फिट नहीं होते। दूसरी तरफ फिल्मनिर्माता के वकील ने कोर्ट में
कहा कि फिल्म में मनमाने तरीके से कट लगाए हैं। फिल्मनिर्माता के पक्ष के
वकील ने दलील दी कि फिल्म में ‘चित्ता वे’ शब्द पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति
दर्ज कराई है जबकि इसी शब्द के साथ फिल्म का ट्रेलर पास कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने नशीले पदार्थों की लत पर बनी ‘उड़ता पंजाब’ की
तुलना पूर्व में जारी एक अन्य फिल्म ‘गो, गोवा गॉन’ से करते हुआ कि फिल्म
में गोवा की स्थिति दर्शायी है जहां लोग पार्टी में मेलजोल बढ़ाने के लिए
जाते हैं तथा प्रतिबंधित ड्रग्स लेते हैं। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यदि गोवा को
उस फिल्म में ड्रग के दुरुपयोग के स्थल के रूप में दिखाया जा सकता है तो
‘उड़ता पंजाब’ में पंजाब को दिखाने में क्या बुराई है।’’ सेंसर बोर्ड के
वकील ने दलील दी कि फिल्म में 13 बदलाव करने का समीक्षा समिति का सुझाव
संबंधी आदेश मनमाना नहीं है तथा समिति ने यह सुझाव देते समय अपना दिमाग
लगाया है। वकील ने कहा, ‘‘हम पंजाब एवं उसके लोगों के सन्दर्भ तथा फिल्म
में इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर आपत्ति कर रहे हैं।’’ दलीलों को सुनते हुए
अदालत ने कहा कि वह सेंसर बोर्ड द्वारा दिये गये दो सुझावों से संतुष्ट
नहीं है। इन सुझावों में समिति ने चंडीगढ़, अमृतसर, तरनतारन, जशनपुरा, मोगा
एवं लुधियाना जैसे स्थानों का सन्दर्भ हटाने को कहा है। समीक्षा समिति के
अन्य सुझावों के बारे में सेंसर बोर्ड के वकील ने कहा कि वह इस बारे में
शुक्रवार को अपनी दलील देंगे। इसके बाद अदालत ने मामले को टाल दिया। अनुराग
कश्यप की प्रोडक्शन कंपनी फैंटम फिल्म्स के वकील रवि कदम ने कहा कि आदेश
बिना सोचे समझे जारी किया गया और यह मनमाना है। उन्होंने कहा, ‘‘पंजाब
अवधारणा का अभिन्न अंग है तथा इसे फिल्म से अलग नहीं किया जा सकता।’’ कश्यप
ने कहा कि पहले कभी भी बोर्ड या सरकार के साथ उनके झगड़ों में उन्होंने कभी
यह महसूस नहीं किया कि उन्हें चुप किया जा रहा है, लेकिन यह मामला अलग है।
सेंसर बोर्ड की आपत्तियां
सेंसर बोर्ड ने फिल्म की शुरुआत में दिखे पंजाब के साइन बोर्ड को हटाने के
लिए कहा गया है। दृश्यों और संवादों से पंजाब, जालंधर, चंडीगढ़, अमृतसर,
तरनतारन, जशनपुरा, अंबेसर, लुधियाना और मोगा के नाम हटाना। पहले गाने से
कुछ आपत्तजिनक शब्द हटाना। दूसरे गाने से आपत्तजिनक शब्दों को हटाना। कुछ
गालियों के अलावा चुसा हुआ आम, गश्ती जैसे शब्दों को हटाना। इलेक्शन, एमपी,
पार्टी, एमएलए, पंजाब और पार्लियामेंट जैसे शब्दों को हटाना। गाना नंबर 3
से सरदार के शरीर के पिछले हिस्से के खुजाने के दृश्य को हटाना। इंजेक्शन
द्वारा ड्रग्स लेने के क्लोजअप शॉट्स को हटाना। भीड़ पर टॉमी के पेशाब करने
के दृश्य को हटाना। ‘जमीन बंजर तो औलाद कंजर’ को हटाना। कुत्ते का नाम जैकी
चैन से बदलना। सेंसर बोर्ड के अनुसार पहला डिस्क्लेमर ऑडियो विजुअल होना
चाहिए और उसे बदलकर ऐसा करना होगा-यह फिल्म ड्रग्स के बढ़ते कुप्रभाव और
इसके खिलाफ जारी जंग पर केंद्रति है। फिल्म के जरिए आज के युवा और सामाजिक
तानेबाने पर ड्रग्स के बुरे असर को दिखाने की कोशिश की गई है। हम सरकार और
पुलिस के ड्रग्स के खिलाफ संघर्ष की सराहना करते हैं।
विवाद का राजनीतिकरण
पंजाब में विपक्षी दल जहां सत्तारूढ़ अकाली दल-भाजपा पर ‘उड़ता पंजाब’ पर
रोक लगाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं
पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि सरकार को फिल्म से कोई
लेना देना नहीं है और यह फिल्म निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच का मामला
है। बादल के विरोधी और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने कहा कि
उन्होंने ‘उड़ता पंजाब’ के निर्माताओं को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि 17
जून को इसे अमृतसर में रिलीज करने के लिए इसकी बिना सेंसर वाली सीडी उन्हें
मुहैया कराएं। कश्यप को बसपा अध्यक्ष मायावती का समर्थन मिला जिन्होंने
कहा कि ‘उड़ता पंजाब’ में कुछ गलत नहीं है और पार्टी इसका समर्थन करती है।
उधर अशोक पंडित के बाद सेंसर बोर्ड के एक और सदस्य चंद्रमुख शर्मा ने भी
इसके प्रमुख पहलाज निहलानी के कामकाज के खिलाफ सामने आते हुए कहा कि वह
उनसे अनुरोध करेंगे कि सरकार के पास जाएं और सीबीएफसी का नाम बदलकर ‘सरकार
का ‘पीआरओ’ करने के लिए कहें। पहलाज निहलानी भी पीछे नहीं रहे, उन्होंने
स्वयं को ‘पीएम का चमचा’ घोषित कर के प्रधानमंत्री को भी लपेट लिया जबकि
प्रधानमंत्री का इस प्रकरण से कोई लेनादेना नहीं है। लेकिन इस तरह से
प्रधानमंत्री का नाम लिए जाने से विपक्षी दलों को राजनीतिक रंग गहरा करने
का एक और आधार मिल गया।
सेंसर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं की भूमिका
केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक
संस्था है जो चलचित्र अधिनियम 1952 के अंतर्गत् फिल्मों के सार्वजनिक
प्रदर्शन का नियंत्रण करता है। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा
फिल्मों को प्रमाणित करने के बाद ही भारत में उसका सार्वजनिक प्रदर्शन कर
सकते है। बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष एवं गैर-सरकारी
सदस्यों को शामिल किया गया है। बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में स्थित है और
इसके नौ क्षेत्रीय कार्यालय है जो मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर,
तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में स्थित है।
क्षेत्रीय कार्यालयों में सलाहकार पैनलों की सहायता से फिल्मों का परीक्षण
करते है। चलचित्र अधिनियम 1952, चलचित्र (प्रमाणन) नियम 1983 तथा 5(ख) के
तहत केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए मार्गदर्शिका के अनुसरण करते हुए
प्रमाणन की कार्यवाही की जाती है। फिल्मों को चार वर्गों के अन्तर्गत
प्रमाणित किया जाता है।
फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के मामले में एक बार फिर सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठ खड़े हुए हैं। इससे पहले भी कई फिल्में ऐसी रही जिन्हें सेंसर बोर्ड ने किसी न किसी वजह से या तो रोक दिया या फिर उसमें कई सारे सीन कटवा दिए। सेंसर बोर्ड अभी तक 1952 में बने नियमों के हिसाब से चल रहा है। यह सारे नियम अंग्रेजों द्वारा ही बनाए गए थे। फिल्म निर्माता कई बार मांग कर चुके हैं कि इन नियमों को समय के हिसाब से बदला जाना चाहिए।
‘उड़ता पंजाब’ में आपत्तिजनक माने गए दृश्य एवं संवाद सचमुच आपत्तिजनक माने जा सकते हैं, उदाहरण के लिए कुत्ते का नाम जैकी चैन रखा जाना। किसी व्यक्ति और वह भी दुनिया भर में सम्मान की दृष्टि से देखे जाने वाले अभिनेता के नाम का यूं मज़ाक उड़ाना उचित नहीं है। फिर भी प्रश्न यह उठता है कि जब बॉलीवुड एडल्टकॉमेडी बनता है और अश्लील नृत्य और संवाद परोसता है तब सेंसर बोर्ड आपत्ति क्यों नहीं करता जबकि सभी जानते हैं कि वीडियो सीडी का पायरेसी बाज़ार इन फिल्मों और इन फिल्मों के आपत्तिजनक दृश्यों को घर-घर तक पहुंचाता रहता है। ‘देल्ही बेल्ली’ के गालियों से भरपूर संवाद ‘क्या कूल हैं हम’, मस्ती’, ‘ग्रांड मस्ती’, ‘मिर्च’ के वयस्क दृश्यों को न केवल सिनेमाघरों में बल्कि प्रचार-प्रसार के भी भरपूर मौके मिले। सेंसर बोर्ड को उत्तेजना भड़काऊ ‘आईटम सांग्स’ पर आपत्ति नहीं होती जिनकों स्वयं ख्यातिलब्ध अभिनेत्रियां करती हैं किन्तु किसी-किसी फिल्म पर अचानक गाज गिर जाती है। सेंसर बोर्ड की भूमिका क्या संतुलित नहीं होनी चाहिए? इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किए जाने और सेंसर बोर्ड के नियमों को एक बार फिर तय किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन क्या फिल्म निर्माताओं को कोई दायित्व नहीं है? फिल्म निर्माताओं को भी बॉलीवुड की प्रतिष्ठा को ध्यान में रख कर फिल्में बनानी चाहिए क्योंकि यही फिल्में दुनिया भर में भारतीय फिल्मों के रूप में देश का प्रतिनिधित्व करती हैं।
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फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के मामले में एक बार फिर सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठ खड़े हुए हैं। इससे पहले भी कई फिल्में ऐसी रही जिन्हें सेंसर बोर्ड ने किसी न किसी वजह से या तो रोक दिया या फिर उसमें कई सारे सीन कटवा दिए। सेंसर बोर्ड अभी तक 1952 में बने नियमों के हिसाब से चल रहा है। यह सारे नियम अंग्रेजों द्वारा ही बनाए गए थे। फिल्म निर्माता कई बार मांग कर चुके हैं कि इन नियमों को समय के हिसाब से बदला जाना चाहिए।
‘उड़ता पंजाब’ में आपत्तिजनक माने गए दृश्य एवं संवाद सचमुच आपत्तिजनक माने जा सकते हैं, उदाहरण के लिए कुत्ते का नाम जैकी चैन रखा जाना। किसी व्यक्ति और वह भी दुनिया भर में सम्मान की दृष्टि से देखे जाने वाले अभिनेता के नाम का यूं मज़ाक उड़ाना उचित नहीं है। फिर भी प्रश्न यह उठता है कि जब बॉलीवुड एडल्टकॉमेडी बनता है और अश्लील नृत्य और संवाद परोसता है तब सेंसर बोर्ड आपत्ति क्यों नहीं करता जबकि सभी जानते हैं कि वीडियो सीडी का पायरेसी बाज़ार इन फिल्मों और इन फिल्मों के आपत्तिजनक दृश्यों को घर-घर तक पहुंचाता रहता है। ‘देल्ही बेल्ली’ के गालियों से भरपूर संवाद ‘क्या कूल हैं हम’, मस्ती’, ‘ग्रांड मस्ती’, ‘मिर्च’ के वयस्क दृश्यों को न केवल सिनेमाघरों में बल्कि प्रचार-प्रसार के भी भरपूर मौके मिले। सेंसर बोर्ड को उत्तेजना भड़काऊ ‘आईटम सांग्स’ पर आपत्ति नहीं होती जिनकों स्वयं ख्यातिलब्ध अभिनेत्रियां करती हैं किन्तु किसी-किसी फिल्म पर अचानक गाज गिर जाती है। सेंसर बोर्ड की भूमिका क्या संतुलित नहीं होनी चाहिए? इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किए जाने और सेंसर बोर्ड के नियमों को एक बार फिर तय किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन क्या फिल्म निर्माताओं को कोई दायित्व नहीं है? फिल्म निर्माताओं को भी बॉलीवुड की प्रतिष्ठा को ध्यान में रख कर फिल्में बनानी चाहिए क्योंकि यही फिल्में दुनिया भर में भारतीय फिल्मों के रूप में देश का प्रतिनिधित्व करती हैं।
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