![]() |
Dr Sharad Singh |
"#जल_है_तो_कल_है" मेरे कॉलम #चर्चा_प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 22.03. 2017) ..My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper
चर्चा प्लस
22 मार्च : #विश्व_जल_दिवस पर विशेष
जल है तो कल है
- डॉ. शरद सिंह
विश्व के लोगों द्वारा हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा के द्वारा इस दिन को एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाने का निर्णय किया गया। जल का महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिये इसे पहली बार वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में “पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन” की अनुसूची 21 में आधिकारिक रुप से जोड़ा गया था और वर्ष 1993 से इस उत्सव को मनाना शुरु किया। वर्ष 2017 के लिए थीम है “अपशिष्ट जल प्रबंधन“ ।
गर्मी का मौसम आते ही पानी की किल्लत सिर चढ़कर बोलने लगती है। जल ही तो जीवन हैं। यदि जल नही ंतो जीवन कहां? स्वतंत्र भारत में अनेक बांधों के निर्माण के बाद भी लापरवाही, अव्यवस्था और सजगता के अभाव के कारण जल-संकट निरन्तर बढ़ता गया है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के स्रोत कम होते हैं तथा जल स्तर गिर जाता है, उन क्षेत्रों की औरतों को कई किलोमीटर पैदल चल कर अपने परिवार के लिए पीने का पानी जुटाना पड़ता है। छोटी बालिकाओं से लेकर प्रौढ़ाओं तक को पानी ढोते देखा जा सकता है। स्कूली आयु की अनेक बालिकाएं अपनी साइकिल के कैरियर तथा हैंडल पर प्लास्टिक के ‘कुप्पे’ (पानी भरने के लिए काम में लाए जाने वाले डिब्बे) की कई खेप जलास्रोत से अपने घर तक ढोती, पहुंचाती हैं। भारत में हर साल 1 लाख से भी ज्यादा लोगों की जलप्रसारित बीमारियों की वजह से मौत होती है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत के कुल रोगियों में 77 फीसदी हैजा, पीलिया, दस्त, मियादी बुखार (टाइफाइड) जैसी जलप्रसारित बीमारियों से पीड़ित होते हैं। जल प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि इससे देश के 70 फीसदी घरों पर असर होता है। योग्य शौचालयों और आरोग्य व्यवस्था का अभाव जल प्रदूषण की बड़ी वजह है। साफ न किया गया गंदा पानी जल स्रोत्रों में जाकर मिलता है, जिससे बीमारियां फैलती हैं। जलप्रसारित बीमारियों में सबसे गंभीर रोग दस्त है, जिससे सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक हर साल भारत में दस्त की वजह से 98,000 बच्चे जान गंवाते हैं। अगर इस स्थिति में सुधार लाना है तो शहरी विकास में अपशिष्ट जल प्रशोधन को प्राथमिकता देना जरूरी है।
![]() |
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper |
पूरे विश्व के लोगों द्वारा हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा के द्वारा इस दिन को एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाने का निर्णय किया गया। लोगों के बीच जल का महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिये हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने के लिये इस अभियान की घोषणा की गयी थी। इसे पहली बार वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में “पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन” की अनुसूची 21 में आधिकारिक रुप से जोड़ा गया था और पूरे दिन के लिये अपने नल के गलत उपयोग को रोकने के द्वारा जल संरक्षण में उनकी सहायता प्राप्त करने के साथ ही प्रोत्साहित करने के लिये वर्ष 1993 से इस उत्सव को मनाना शुरु किया। यह अभियान यूएन अनुशंसा को लागू करने के साथ ही वैश्विक जल संरक्षण के वास्तविक क्रियाकलापों को प्रोत्साहन देने के लिये सदस्य राष्ट्र सहित संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाता हैं। इस अभियान को प्रति वर्ष यूएन एजेंसी की एक इकाई के द्वारा विशेष तौर से बढ़ावा दिया जाता है जिसमें लोगों को जल मुद्दों के बारे में सुनने व समझाने के लिये प्रोत्साहित करने के साथ ही विश्व जल दिवस के लिये अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का समायोजन शामिल है। वर्ष 2017 के विश्व जल दिवस उत्सव के लिए विषय “अपशिष्ट जल“ रखा गया है।
क्या कभी किसी ने सोचा था कि एक दिन देश ऐसी भी स्थिति आएगी कि पानी के लिए धारा 144 लगाई जाएगी अथवा पेयजल के स्रोतों पर बंदूक ले कर चौबीसों घंटे का पहरा बिठाया जाएगा? किसी ने नहीं सोचा। लेकिन वर्ष 2016 की गर्मियों में ऐसा ही हुआ। पिछले दशकों में पानी की किल्लत पर गंभीरता से नहीं सोचे जाने का ही यह परिणाम है कि शहर, गांव, कस्बे सभी पानी की कमी से जूझते दिखाई पड़े। देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या अत्यंत भयावह रही। विगत वर्ष महाराष्ट्र में कृषि के लिए पानी तो दूर, पीने के पानी के लाले पड़ गए थे। जलस्रोत सूख गए थे। जो थे भी उन पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव था। सबसे शोचनीय स्थिति लातूर की थी। पीने के पानी के लिए हिंसा और मार-पीट की इतनी अधिक घटनाएं सामने आईं। कलेक्टर ने लातूर में 20 पानी की टंकियों के पास प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ी।
मध्यप्रदेश में भी पानी का भीषण संकट मुंह बाए खड़ा रहा। मध्यप्रदेश में 32 हजार हैंडपम्प बंद हो गए थे। 12 हजार से अधिक नल-जल योजनाएं सीधे तौर पर बंद हो गई थीं। प्रदेश की करीब 200 तहसीलों सूखाग्रस्त और 82 नगरीय निकायों में भी गम्भीर पेयजल संकट का सामना करते रहे। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में और भी अजीब स्थिति रही। वहां की नगर पालिका के चेयरमैन के अनुसार किसान पानी न चुरा पाएं, इसलिए नगरपालिका की ओर से लाइसेंसी हथियार शुदा 10 गार्ड तैनात किए। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में सूखे पर केंद्र से जवाब-तलब किया। स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 9 राज्य सूखे की चपेट में हैं और केंद्र कुछ नहीं कर रहा। साथ ही कोर्ट ने मनरेगा फंड में देरी पर फटकार लगाई थी। मनरेगा पर सुप्रीम कोर्ट ने की केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा था कि मनरेगा के तहत 150 दिन की जगह सिर्फ 25 दिन रोजगार मिल रहा है। केंद्र की वजह से राज्यों को फंड में देरी हो रही है। आदालत का कहना था कि राहत में 6 से 7 महीने की देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
हमें धरती पर स्वच्छ जल के महत्व को समझना होगा और अपनी पूरी कोशिश करनी होगी कि हम पानी की बर्बादी करने के बजाए उसे बचाएं। हमें अपने स्वच्छ जल को औद्योगिक कचरे, सीवेज़, खतरनाक रसायनों और दूसरे गंदगियों से गंदा होने और प्रदूषित होने से बचाना ही होगा। यह सच है कि पानी की कमी और जल प्रदूषण का मुख्य कारण हमेशा बढ़ती जनसंख्या और तेजी से बढ़ता औद्योगिकीकरण और शहरीकरण है। स्वच्छ जल की कमी के कारण, निकट भविष्य में लोग अपनी मूल जरुरतों को भी पूरा नहीं कर पाएंगे। हाल ही में हुए अध्ययनों के अनुसार, ऐसा पाया गया कि लगभग 25 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को साफ पानी मिल ही नहीं पाता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक भारत की कुल 445 नदियों में से आधी नदियों का पानी पीने के योग्य नहीं है। अपशिष्ट जल को साफ करके ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि गंदे पानी से जल स्रोत्र प्रदूषित नहीं होंगे। जल संसाधनों का प्रबंधन किसी भी देश के विकास का एक अहम संकेतक होता है। अगर इस मापदंड पर भारत खरा उतरना है तो देश को ताजा पानी पर निर्भरता घटानी होगी और अपशिष्ट जल के प्रशोधन को बढ़ावा देना होगा। भविष्य में जल की कमी की समस्या को सुलझाने के लिये जल संरक्षण ही जल बचाना है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों में जल की भारी कमी है जिसकी वजह से आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में अपने दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी लोग बर्बाद कर रहें हैं। हम सभी को जल के महत्व और भविष्य में जल की कमी से संबंधित समस्याओं को समझना ही होगा।
2011 की जनगणना के मुताबिक सिर्फ 32.7 फीसदी शहरी निवासी नाली व्यवस्था से जुड़े हैं और शहरी इलाकों में रहने वाले 12.6 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि सभी नागरिकों के लिए योग्य शौचायल व्यवस्था करना देश के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। शहरों में अवैध इमारतें और झुग्गियों के निर्माण से ये दिक्कत और भी बढ़ गई है। इन इमारतों और झुग्गियों से निकला गंदा पानी के उन जल स्रोत्रों में जाकर मिल जाता है जहां से नगरपालिकाएं पानी की आपूर्ति करती हैं। इसलिए जरूरी है कि अपशिष्ट जल को साफ किया जाए, ताकि प्रदूषण पर काबू पाया जा सके। पानी की किल्लत दूर करने और जलप्रसारित बीमारियों पर काबू पाने के लिए अपशिष्ट जल को सही तरीके से साफ करने की जरूरत है। अपशिष्ट जल के प्रशोधन के बाद उसे शहरों में सिंचाई, हीटिंग एंड वेंटलेशन, धुलाई और शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है। कई बड़े शहरों में कैंपस, रिहायशी प्रोजेक्ट ने अपने परिसर में ही साफ किए गए पानी का पुनर्प्रयोग करना शुरू भी कर दिया है। लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में पेयजल की कमी आज भी मुंहबाए खड़ी है।
चिंता की बात यह है कि जब हम स्वच्छ पानी के संरक्षण और संवर्द्धन के प्रति जागरूक नहीं हो पाए हैं तो अपशिष्ट जल का दोहन कैसे कर सकेंगे? हमें इस सच्चाई को हमेशा याद रखना होगा कि जल है तो कल है।
------------------------------
No comments:
Post a Comment