Wednesday, March 8, 2017

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष : स्त्री-सशक्तीकरण ही है चतुर्दिक विकास की चाबी- डॉ. शरद सिंह

Dr Sharad Singh
मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 08.03. 2017) .....My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper






#अंतर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस पर विशेष : " स्त्री-सशक्तीकरण ही है चतुर्दिक विकास की चाबी " - मेरे कॉलम #चर्चा_प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 08.03. 2017) .....My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper
चर्चा प्लस
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष :
स्त्री-सशक्तीकरण ही है चतुर्दिक विकास की चाबी
- डॉ. शरद सिंह
संयुक्तराष्ट्र संघ की 2015-2016 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि हमने जो लक्ष्य निर्धारित किए थे, उनमें हमारी उल्लेखनीय उपलब्धियां रहीं लेकिन अनेक लक्ष्य ऐसे हैं जो अभी पूरे नहीं हो पाए हैं और उन लक्ष्यों को पूरा करना हमारा प्राथमिक दायित्व रहेगा। संयुक्तराष्ट्र संघ ने दुनिया भर की स्त्रियों के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनमें समाज, राजनीति और अर्थजगत में स्त्रियों का नेतृत्व और भागीदारी बढ़ाने तथा स्त्रियों एवं बालिकाओं के प्रति हिंसा समाप्त करने को प्रमुखता दी है। इसे ‘ऐजेंडा-2030’ का नाम दिया गया है। इसके तहत भारत में भी कई योजनाएं चल रही हैं।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव बान की मून का मानना है कि ‘‘दुनिया अपने विकास लक्ष्यों को तब तक 100 प्रतिशत हासिल नहीं कर सकती है जब तक कि इसके 50 प्रतिशत लोगों अर्थात् महिलाओं के साथ सभी क्षेत्रों में पूर्ण और समान प्रतिभागियों के रूप में व्यवहार नहीं किया जाता है।’’
सन् 2016 ‘‘यूनाईटेड नेशन्स वूमेन’’ का छठां वर्ष था। संयुक्तराष्ट्र संघ की 2015-2016 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘हमने जो लक्ष्य निर्धारित किए थे, उनमें हमारी उल्लेखनीय उपलब्धियां रहीं लेकिन अनेक लक्ष्य ऐसे हैं जो अभी पूरे नहीं हो पाए हैं और उन लक्ष्यों को पूरा करना हमारा प्राथमिक दायित्व रहेगा।’’ संयुक्तराष्ट्र संघ की इस इकाई ने दुनिया भर की स्त्रियों के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनमें समाज, राजनीति और अर्थजगत में स्त्रियों का नेतृत्व और भागीदारी बढ़ाने तथा स्त्रियों एवं बालिकाओं के प्रति हिंसा समाप्त करने को प्रमुखता दी है। इसे ‘ऐजेंडा-2030’ का नाम दिया गया है। भारत में भी स्त्री के हित में कई योजनाएं चल रही हैं तथा इन योजनाओं के औचित्य और परिणामों का आकलन करने के लिए देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्त्री अध्ययन केन्द्र भी स्थापित किए गए हैं।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
 विकास के लिए वित्तीय प्रबंधन पर विगत जुलाई में अपनाए गए अदिस अबाबा एजेंडे और विगत सितम्बर में 2030 के सतत विकास के एजेंडे के निष्कर्ष में यह बात दृढ़ता से दिखाई देती है। अदीस अबाबा एजेंडे का पहले अनुच्छेद में ही घोषणा की गई है-‘‘हम लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण प्राप्त कर के रहेंगे।’’ 2030 के एजेंडे में इस बात को माना गया है कि लैंगिक असमानता सभी असमानताओं की जननी है जिसमें देशों के बीच और देशों के अंदर मौजूद असमानताएं शामिल हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार भारत सरकार लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल करने एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ उनके खिलाफ सभी तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। ‘कमिशन ऑन स्टेटस ऑफ वीमेन’ (सीएसडब्ल्यू) के 60वें सत्र के गोलमेज सत्र के दौरान मेनका ने कहा कि भारत ‘सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य’ हासिल करने को प्रतिबद्ध है और उसने पारदर्शी एवं जवाबदेह तंत्रों के जरिए महिलाओं एवं पुरूषों को बराबरी का मौका देते हुए उनके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के मकसद से आगे बढ़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
महिला-नीत विकास के महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि महिलाओं को प्रौद्योगिकी सम्पन्न और जनप्रतिनिधि के तौर पर और प्रभावी बनना चाहिए क्योंकि केवल व्यवस्था में बदलाव से काम नहीं चलेगा। वहीं, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने चौथे वैश्विक संसदीय स्पीकर सम्मेलन की आयोजन समिति की बैठक में कहा, ‘‘लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाना विकास के आदर्श के केंद्र में है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को विकास प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, खासकर ऐसे तरीकों से , जिनका गुणात्मक प्रभाव हो।’’
जहां तक स्त्री विमर्श का प्रश्न है तो स्त्री विमर्श, स्त्री मुक्ति, नारीवादी आंदोलन आदि - इन सभी के मूल में एक ही चिन्तन दृष्टिगत होता है, स्त्री के अस्तित्व को उसके मौलिक रूप में स्थापित करना। स्त्री विमर्श को लेकर कभी-कभी यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि इसमें पुरुष को पीछे छोड़ कर उससे आगे निकल जाने का प्रयास है किन्तु ‘विमर्श’ तो चिन्तन का ही एक रूप है जिसके अंतर्गत किसी भी विषय की गहन पड़ताल कर के उसकी अच्छाई और बुराई दोनों पक्ष उजागर किए जाते हैं जिससे विचारों को सही रूप ग्रहण करने में सुविधा हो सके। स्त्री विमर्श के अंतर्गत भी यही सब हो रहा है। समाज में स्त्री के स्थान पर चिन्तन, स्त्री के अधिकारों पर चिन्तन, स्त्री की आर्थिक अवस्थाओं पर चिन्तन तथा स्त्री की मानसिक एवं शारीरिक अवस्थाओं पर चिन्तन - इन तमाम चिन्तनों के द्वारा पुरुष के समकक्ष स्त्री को उसकी सम्पूर्ण गरिमा के साथ स्थायित्व प्रदान करने का विचार ही स्त्री विमर्श है।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा व भारतीय स्त्री अध्ययन संघ के संयुक्तच तत्वावधान में स्त्री अध्ययन के 13 वें राष्ट्रीय सम्मे्लन के अंतर्गत पांच दिवसीय सम्मेलन में ‘‘हाशिएकरण का प्रतिरोध, वर्चस्व को चुनौती : जेंडर राजनीति की पुनर्दृष्टि’’ पर गंभीर विमर्श करने के लिए गांधीजी की कर्मभूमि वर्धा में देशभर के 650 स्त्री अध्ययन अध्येताओं का सम्मेलन हुआ था। इससे पहले 11वां अधिवेशन गोवा में और 12 वां लखनऊ में आयोजित किया गया था। इस पांच दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में अधिवेशन पूर्व कार्यशाला में देशभर के 60 से अधिक विश्वमविद्यालयों के लगभग 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया था। स्त्री अध्ययन के विद्यार्थियों ने पहले सत्र के दौरान ‘‘स्त्री अध्ययन : शिक्षा शास्त्र और पाठ्यक्रम’’ पर विमर्श करते हुए कहा था कि-‘‘स्त्री अध्ययन महिला मुक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप निकला हुआ एक विषय है, जबकि स्त्री अध्ययन को लेकर केंद्रों, विभागों और स्नातकोत्तर व उच्च शिक्षा के स्तर पर बहुत सारे संघर्ष हुए हैं और किए जाने हैं।’’ विद्यार्थियों ने स्त्री अध्ययन के मुख्य अनुशासन के अभ्यासों और उससे पड़ने वाले प्रभावों के अनुभवों को साझा किया। शोधार्थियों ने विशेषकर इस विषय को पढ़ते समय परिवार द्वारा मिलनेवाली चुनौतियों को भी बताया कि किस तरह जब वह अपने विषय के तत्वों पर परिवार और समाज में बात करते हैं तो लोग उनका विरोध करते हैं। कुछ विद्यार्थियों ने यह अनुभव किया है कि यह मात्र समानता का सवाल नहीं है परंतु यह मानव की तरह व्यवहार किए जाने का सवाल है। विद्यार्थियों ने स्वीकार किया कि स्वयं शिक्षा व्यवस्था में जेंडर स्टडीज को एक पूर्ण विषय के तौर पर मान्यता नहीं मिल पायी है। यह मुद्दा भी उठाया गया कि स्त्री अध्ययन के अधिकांश केन्द्रों व विभागों के विभिन्न पद पर या तो दूसरे विषय के शिक्षकों को लाया जाता है या फिर वह पदरिक्त छोड दिया जाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल ने भी महिलाओें के उत्थान एवं जागरूकता की दृष्टि से जाबाला महिला अध्ययन केन्द्र की स्थापना हेतु कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए हैं, जैसे - परिवार व्यवस्था में महिला की भूमिका का अध्ययन करना, व्यापक सामाजिक जीवन में महिला की स्थिति एवं भूमिका का आकलन करना, भारतीय संस्कृति के संदर्भ में स्त्रीपुरुष सहअस्तित्व की संकल्पना को पुनर्स्थापित करना, समतामूलक समाज की पुनर्स्थापना के मध्य स्त्री की एक मानव के रूप में पहचान करना, स्त्री अपराध-मुक्त समाज की संकल्पना पर शोध करना, स्त्री सशक्तीकरण के मार्ग में आने वाले अवरोधों की पहचान कर उनके समाधानमूलक उपायों पर विचार करना, स्त्री क्रियाशीलता के प्रस्थान बिंदुओं की पहचान के साथ, राष्ट्र निर्माण में स्त्री की भूमिका को सुनिश्चित करना, महिला संबंधी भारतीय दृष्टिकोण या अवधारणा का अध्ययन तथा वैश्विक दृष्टिकोण की समीक्षा करना, वर्तमान समय में युवा महिलाओं के समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों (पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक) एवं समाधानों का अध्ययन करना तथा लिंगीय (जेण्डर) संवेदनशीलता पर अध्ययन एवं शोध आयोजित करना।
स्त्री अध्ययन के महत्व को देखते हुए यूजीसी ने स्त्री अध्ययन के लिए 7 क्षेत्रों को सूचीबद्ध किया है- 1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं पर शोध का विकास 2. मुख्यधारा के विकास में महिलाओं को शामिल किए जाने को बढ़ावा देना 3. भारतीय महिलाओं की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समावेशी समाज का विकास 4. महिला शिक्षकों की शैक्षिक नेतृत्व के लिए अनुकूल वातावरण एवं महिलाओं और आर्थिक विकास 5. साक्ष्य आधारित अनुसंधान 6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य स्त्रियों के लिए नए ज्ञान का निर्माण तथा 7. वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं पर नए ज्ञान का विकास करना।
अकसर यह देखने में आता है कि विश्वविद्यालयीन शोधकर्ता ज़मीनीतौर पर परिश्रम करने के बजाए सरकारी और गैरसरकारी अांकड़ों को आधार बना लेते हैं। जबकि कई बार ज़मीनी सच्चाई आंकड़ों से परे होती है। स्त्री-अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। यह विषय समाज की आधी आबादी की दशा और दिशा को तय करता है। आंकड़ों को खंगालने में कोई बुराई नहीं है किन्तु यह भी देखा जाना चाहिए कि किसी एक मुद्दे पर किसी एनजिओ और सरकारी आंकड़ों में अन्तर तो नहीं है? यदि अंतर है तो क्यों है? और यदि अंतर नहीं है तो क्यों नहीं है? इन दोनों पक्षों का स्वयं सत्यापन करना बेहद जरूरी होता है। स्त्री-अध्ययन के समय यदि ज़मीनी सच्चाई को ध्यान में रख कर शोध कार्य किया जाए तो एक ऐसी यथार्थपरक तस्वीर सामने आएगी जो भारतीय स्त्रियों के अधिकारों एवं सुखद भविष्य को सुनिश्चित कर सकती है। यूं भी स्त्री सशक्तीकरण ऐसा पहलू है, जिसकी उपेक्षा कर कोई देश तरक्की नहीं कर सकता, लेकिन यह केवल कागजों में नहीं हकीकत में होना चाहिए। शुरुआत घर से हो, लेकिन इच्छाशक्ति राजनीतिक स्तर पर हो। तभी स्त्री सशक्तीकरण की दिशा में सार्थक प्रयास किए जा सकते हैं क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण ही है चतुर्दिक विकास की चाबी।
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1 comment:

  1. बहुत अच्छी सार्थक व प्रेरक प्रस्तुति

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