Dr (Miss) Sharad Singh |
आधी आबादी की सुरक्षा का प्रश्न
- डॉ. शरद सिंह
(मेरा कॉलम चर्चा प्लस दैनिक सागर दिनकर में, 27.09.2017)
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं ने विरोध किया छेड़छाड़ का तो बदले में उन्हे मिला पुलिस का लाठीचार्ज। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अथवा ‘सेल्फी विथ डॉटर’ के नारों के बीच यह घटना सोचने को मजबूर करती है कि देश की आधी आबादी यानी महिलाएं और बेटियां वास्तव में कितनी सुरक्षित हैं? यदि घर से निकलते हुए बेटियां डरें या फिर महिलाएं पराए शहर में काम से जाती हुई सिर छुपाने की जगह न पा सकें तो व्यर्थ है राष्ट्रवाद और आधी आबादी की सुरक्षा का दम भरना। आखिर कब तक हम प्रगति के झूठे आंकड़ों से स्वयं को भरमाते रहेंगे?
Charcha Plus Column by Dr Miss Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily News Paper |
24 सितम्बर 2017 को एक अग्रणी समाचारपत्र के सागर नगर संस्करण द्वारा ‘प्रजा मंडल’ की बैठक आयोजित की गई। जिसमें मैंने इस समस्या को उठाया कि संभागीय मुख्यालय में अपने काम के सिलसिले में बाहर से आने वाली महिलाओं के लिए प्रशासन द्वारा महिला गेस्टहाऊस या हॉस्टल बनाया जाए ताकि ग्रामीण अथवा छोटे शहरों से आने वाली अकेली महिलाएं निर्भय हो कर ठहर सकें। वर्तमान माहौल में कोई भी अकेली महिला के लिए किसी होटल में ठहरने में स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करती है। अतः अकेली महिलाओं के लिए गेस्टहाऊस बनाया जाना जरूरी है। मैं जब किसी दूसरे शहर किसी आयोजन के सिलसिले में जाती हूं तो मेरे मन में यही विचार आता है कि मेरे अथवा मेरी सहभागी महिलाओं के लिए तो आयोजकों द्वारा उत्तमकोटि की सुरक्षित व्यवस्था की जाती है लेकिन यदि कोई अकेली महिला निजी काम से भोपाल, इन्दौर या किसी अन्य शहर जाए तो वह कहां ठहरेगी? उसे रात बिताने के लिए कहां सुरक्षित जगह मिलेगी? नौकरीपेशा ही नहीं गैरनौकरी पेशा घरेलू महिलाओं को भी कई बार किसी क्लेम अथवा बच्चों की पढ़ाई के संबंध में दूसरे शहर जाने की आवश्यकता पड़ती है। उस समय उनके सामने समस्या होती है रात को ठहरने की। पहली बात तो यह कि हर तबके की महिला अच्छे और सुरक्षित होटल का व्यय नहीं उठा सकती है। और दूसरी बात कि सामान्य होटल में अकेली ठहरते हुए कोई भी महिला स्वयं को सुरक्षित अनुभव नहीं कर पाती है। इस स्थिति का दूसरा पक्ष देखें तो यदि वह महिला किसी परिचित का सहारा लेती है अथवा दूसरे शहर में पहुंच कर किसी परिचित के घर ठहरती है तो उसकी सुरक्षा का उस परिचित की नीयत पर निर्भर रहती है। यदि परिचित शरीफ है तो सब ठीक है अन्यथा समस्या और भी विकट रूप ले लेती है। यह विचार बहुत अरसे से मेरे मन में उमड़-घुमड़ रहा था। अतः जब ‘प्रजा मंडल’ की बैठक हुई जिसमें शहर के प्रत्येक वर्ग के बुद्धिजीवी शामिल हैं, तो मैंने अपने मन की बात सबके सामने रखते हुए महिलाओं के लिए कम से कम संभागीय मुख्यालय में एक गेस्टहाऊस अथवा हॉस्टल बनाने की मांग सामने रखी। यह गेस्टहाऊस किसी डोरमेट्री की तरह भी हो सकता है यानी एक बड़ा हॉल जिसमें बीस-पच्चीस बिस्तरों और आलमारियों की व्यवस्था हो। जहां टॉयलेट अटैच हो। जहां की सारी व्यवस्थाएं महिला कर्मचारियों के हाथों हों तथा जिसकी सुरक्षा का दायित्व भी महिला पुलिस के पास हो। ऐसे गेस्टहाऊस में न्यूनतम शुल्क में महिलाओं को ठहरने के लिए आसरा दिया जाए।
मैं नहीं जानती हूं कि मेरी यह तमन्ना कभी पूरी होगी भी या नहीं। या पूरी होगी तो किसी सीमा तक होगी? लेकिन वो कहते हैं कि यदि मनुष्य चांद पर पहुंचने की इच्छा नहीं करता तो वह कभी चांद पर नहीं पहुंच पाता। मुझे भी अपनी इच्छा चांद पर पहुंचे की इच्छा जैसी ही लग रही है-आसान हो कर भी कठिन। यह संदेह मेरे मन में इस लिए उपज रहा है क्यों कि इस बैठक के ठीक दो दिन पहले पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में जो घटना क्रम शुरू हुआ उसने मेरे मुझे सोचने पर विवश कर दिया कि इस इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी क्या हम इतना ही पाठ पढ़ पाए कि छेड़छाड़ का विरोध करने वाली छात्राओं पर लाठियां बरसाई जाएं। उस पर भी दुखद यह कि यह घटना उस पवित्र भूमि पर घटी जो विश्वनाथ की नगरी कहलाती है। दुखद इसलिए भी कि वे छात्राएं उस पवित्र विश्वविद्यालय की थीं जिसे स्थापित करने के लिए पं. मदन मोहन मालवीय ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। पं. मदन मोहन मालवीय बेटियों की शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान के अटूट पक्षधर थे और उन्हीं के विश्वविद्यालय की छात्राओं को जो कष्ट झेलना पड़ रहा है उसे देख कर उनकी आत्म भी रो पड़ी होगी।
घटनाक्रम इस प्रकार रहा कि 21 सितम्बर को विश्वविद्यालय परिसर में एक छात्रा के साथ दो बाइक सवारों ने छेड़खानी की थी जिसके बाद से ही छात्राओं में इस घटना को लेकर आक्रोश जाग उठा। आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग के लिए छात्राएं 22 सितम्बर को सुबह 6 बजे से ही बीएचयू के मेन गेट पर तीव्र विरोध प्रदर्शन कर रहीं थी। प्रदर्शनकारी छात्राओं का आरोप था कि कुछ लड़के उनके हॉस्टल की बाहर खड़े रहते हैं और गंदे गंदे इशारे करते हैं। छेड़छाड़ का विरोध करने पर धमकी दी जाती है।
23 सितम्बर रात करीब 12 बजे छात्राओं ने इस मामले पर कुलपति की चुप्पी और उनकी छात्राओं से नहीं मिलने की जिद के विरोध में उनके आवास पर घेराव किया। जहां पर छात्राओं पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के इशारे पर लाठीचार्ज किया गया। कुलपति आवास पर लाठीचार्ज के बाद सुरक्षाबलों ने बीएचयू के मेनगेट पर पहुंचकर वहां भी छात्राओं के ऊपर लाठीचार्ज किया और मेनगेट को छात्राओं से खाली करा लिया गया। इस घटना में घायल 1 छात्रा और 3 छात्रों को बीएचयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया। वाराणसी से लेकर दिल्ली तक बीएचयू में लड़कियों पर लाठीचार्ज को लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में आधी रात को छात्र-छात्राओं पर हुए लाठीचार्ज में पहली कार्रवाई हुई। बीएचयू के पास इलाके लंका के एसओ को लाइन हाजिर किया गया।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के कुलपति प्रोफ़ेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कहना है कि दिल्ली और इलाहाबाद के कुछ अराजक तत्व यहां आकर माहौल ख़राब कर रहे हैं। छात्राओं को यह शिकायत थी कि वीसी उनसे आकर क्यों नहीं मिल रहे हैं? इस बारे में प्रोफ़ेसर त्रिपाठी ने कहा कि, “मुझे मिलने में कोई दिक़्क़त नहीं है। मैं पहले भी कई छात्राओं से मिला और उन छात्राओं को अपने किए पर पछतावा भी था। शनिवार रात भी मैं उनसे मिलने ही जा रहा था, लेकिन तभी कुछ अराजक तत्वों ने माहौल को ख़राब करने की कोशिश की।“
उन्होंने जेएनयू और बीएचयू कीतुलना करते हुए यह कहा कि, “जेएनयू अपनी अकादमिक ख़ूबी के लिए कम जाना जाता है, लेकिन एक ऐसे समुदाय के कार्यों की वजह से ज़्यादा जाना जाता है जो राष्ट्र को सिर्फ़ एक भूभाग समझते हैं। लेकिन बीएचयू छात्रों के भीतर राष्ट्रवादी भावना को पोषित करने का काम करता रहा है और उसकी ये परंपरा हम किसी क़ीमत पर खंडित नहीं होने देंगे।“
राष्ट्रवाद और अकादमिक मूल्य बेटियों की सुरक्षा में निहित होती है उनके प्रति लापरवाह अथवा बर्बर रवैये में नहीं। जिस सिंहद्वार पर छात्राओं पर लाठियां बरसाई गईं उसी सिंहद्वार की यह घटना याद रखने योग्य है-‘‘ सन् 1931 में मालवीय जी ‘गोलमेज सम्मेलन’ में सम्मिलित होकर इंग्लैंड से वाराणसी आए थे। उनके स्वागत में विश्वविद्यालय के सिंहद्वार पर समस्त छात्रा-छात्राएं तथा अध्यापक उपस्थित थे। महामना स्टेशन से आकर प्रधान द्वार के पास अपनी कार से उतर गए और छात्रों के साथ पैदल ही चलने लगे। विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय की छात्राओं ने उनकी आरती उतारने का आयोजन किया था। इस अवसर पर बड़ी भीड़ थी। कुछ मनचले छात्रों ने ‘ऑफीशियल फोटोग्राफरों’ के साथ-साथ छात्राओं की फोटो उतारनी चाही परन्तु इसी बीच महामना की पैनी दृष्टि उन पर पड़ गई। उन्होंने अपनी तर्जनी उंगली से ऐसा करने के लिए निषेध किया। उनकी तर्जनी देखते ही छात्र सकपका गए और अपना कैमरा छिपा कर हट गए।’’ (मेरी पुस्तक ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व : महामना मदनमोहन मालवीय’’ से)
एक बार रात के एक बजे मालवीय जी बनारस स्टेशन पर उतरे थे तो उन्होंने देखा कि दो बदमाश एक स्त्री को परेशान कर रहे हैं। मालवीय जी के साथ कुछ छात्र भी थे। मालवीय जी ने उस महिला को जानकारी दिए बिना उस स्त्री के लिए तांगा करवाया और उसे घर भिजवा दिया। बाद में वे स्वयं भी छात्रों के साथ इस बात का पता लगाने पहुंचे कि वह स्त्री सुरक्षित घर पहुंच गई या नहीं। जबकि वह स्त्री उनके लिए नितान्त अपरिचित थी।
आधी आबादी की सुरक्षा के लिए आज फिर महामना जैसे विचारों की आवश्यकता है, राष्ट्रवाद पर बयानबाजी की नहीं। राष्ट्रवाद कोई नारा नहीं अपितु सभी के सम्मान की रक्षा करते हुए जीवन जीने की कला है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं ने विरोध किया छेड़छाड़ का तो बदले में उन्हे मिला पुलिस का लाठीचार्ज। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अथवा ‘सेल्फी विथ डॉटर’ के नारों के बीच यह घटना सोचने को मजबूर करती है कि देश की आधी आबादी यानी महिलाएं और बेटियां वास्तव में कितनी सुरक्षित हैं? यदि घर से निकलते हुए बेटियां डरें या फिर महिलाएं पराए शहर में काम से जाती हुई सिर छुपाने की जगह न पा सकें तो व्यर्थ है राष्ट्रवाद और आधी आबादी की सुरक्षा का दम भरना। आखिर कब तक हम प्रगति के झूठे आंकड़ों से स्वयं को भरमाते रहेंगे?
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