Wednesday, February 3, 2021

चर्चा प्लस | समाज के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है इन्दौर की घटना | डाॅ शरद सिंह

Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily

चर्चा प्लस

समाज के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है इन्दौर की घटना

    - डाॅ शरद सिंह

                      

किसी भी घटना को राजनीतिक रंग देना आज एक फैशन हो गया है। इन्दौर में बुजुर्ग, लाचार भिखारियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार में भी राजनीतिक तड़का लगाया गया लेकिन किसी ने भी समाज के गिरेबान में झांक कर देखने की कोशिश नहीं की कि हमारे समाज से संवेदनशीलता क्यों गुम होती जा रही है? सड़कों पर ऐसे बेघर भिखारी तो हर सरकार के समय मौजूद रहे हैं। कभी किसी ने सोचा कि ये सड़कों पर क्यों है? दरअसल, इस मुद्दे का स्थाई हल ढूंढने के लिए इसे राजनीतिक नहीं अपितु सामाजिक मुद्दे की तरह देखे जाने की ज़रूरत है। इस मुद्दे पर ‘चर्चा प्लस’ में चर्चा की प्रथम कड़ी प्रस्तुत है।            

चर्चा प्लस |  समाज के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है इन्दौर की घटना | डाॅ शरद सिंह | सागर दिनकर

देश में स्वच्छता में नंबर एक का मुकाम रखने वाले इंदौर नगर निगम के कुछ कर्मचारियों की ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने सभी को हतप्रभ कर दिया। इंदौर नगर निगम कर्मचारियों का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें निगम के कुछ कर्मचारी सड़क किनारे रहने वाले बुजुर्गों और भिखारियों को एक डंपर में भरकर शहर के बाहर छोड़ने पंहुचे। उसके बाद स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से उन बुजुर्गों को दूसरी जगह ले जाया गया। जो चलने की स्थिति में भी नहीं थे और उस स्थिति में नगर निगम के कर्मचारी उन्हें और उनके सामान को उठाकर गाड़ी में रख दिया था। ये कर्मचारी बुजुर्ग भिखारियों को शहर की सीमा के पार शिप्रा नदी के निकट छोड़कर जाने वाले थे। स्थानीय लोगों ने जब देखा तो उन्होंने इस पर आपत्ति की जिसके बाद कर्मचारी उन्हें वहां से लेकर चले गए। इस कड़ाके की ठंड में जब तापमान 4-5 डिग्री सेल्शियस से भी नीचे जा रहा हो बेघर बुजुर्ग भिखारियों को इस तरह नदी के समीप कूड़ा-करकट की तरह छोड़ जाना अमानवीयता की सारी सीमाएं लांघ गया। वस्तुतः इन बुजुर्गों को रैन बसैरा लेकर जाना चाहिए था लेकिन निगम के अधिकारी के कहने पर इन्हें शहर से उठाकर शिप्रा नदी के पास ले जाया गया और उसके बाद उन्हें वहां छोड़ा जाना था। लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। उसके बाद उन्हें शहर भर में घुमाते रहे और अंत में उन्हें रैन बसैरा में छोड़ा गया। इन्हें इस तरह ले जाने का उद्देश्य था कि स्वच्छ इंदौर भिखारी विहीन रहे। लेकिन भिखारी विहीन करने का यह तरीका अत्यंत अमानवीय था। इस घटना से युवराज सिद्धार्थ के जीवन से जुड़ी घटना आद आ गई। कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के घर जन्मे सिद्धार्थ के लिए ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि वे छोटी आयु में सन्यासी हो जाएंगे। इसीलिए राजा शुद्धोधन ने यह व्यवस्था कर रखी थी कि जब युवराज सिद्धार्थ नगर भ्रमण को निकलें तो कोई भी अप्रिय दृश्य उनके सामने न आए कि जिससे उनके मन में वैराग्य पैदा हो। सारे भिखारी, अपाहिज, दुखीजन रास्ते से हटा दिए जाते थे। यह बात और है कि अंततः ऐसे दृश्य सिद्धार्थ ने देख ही लिए जिन्हें देख कर उनके मन में वैराग्य भाव आग उठे और उन्होंने सांसारिकता छोड़ दी तथा तपस्या कर के भगवान बुद्ध कहलाए। लेकिन इंदौर में किसी युवराज की सवारी नहीं निकलनी थी। यहां तो मसला स्वच्छता रैंकिंग बनाए रखने की होड़ का था। इस होड़ के चक्कर में नगर निगम के अधिकारी-कर्मचारी यह भी भूल गए कि वे जिस मुख्यमंत्री के शासनकाल में यह कदम उठा रहे हैं वे बुजुर्गों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। वे यह भी भूल गए कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3 सितम्बर 2012 को मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना आरम्भ की थी जिसका उद्देश्य है कि प्रदेश के 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिक राज्य सरकार की सहायता से निर्धारित तीर्थ-स्थानों में से किसी एक स्थान की तीर्थ यात्रा कर सकें। 

 

बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री का इंदौर प्रकरण पर तुरंत एक्शन में आना स्वाभाविेक था। जैसे ही यह समाचार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान तक पहुंचा, उन्होंने ने मामले को अपने संज्ञान में लेते हुए एक अधिकारी को सस्पेंड कर दिया और दो कर्मचारियों को बर्खास्त करने का आदेश दे दिया। साथ ही शिवराज सिंह चैहान ने ट्वीट किया, ‘‘आज इंदौर में नगर निगम कर्मचारियों द्वारा वृद्धजनों के साथ अमानवीय व्यवहार के संबंध में मुझे जानकारी मिली। इस मामले में जिम्मेदार नगर निगम उपायुक्त सहित दो कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने और कलेक्टर इंदौर को बुजुर्गों की समुचित देखभाल करने का निर्देश दिया है। बुजुर्गों के प्रति अमानवीय व्यवहार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मेरे लिये नर सेवा ही नारायण सेवा है। हर वृद्ध को आदर, प्रेम और सम्मान मिलना चाहिए, यही हमारी संस्कृति है और मानव धर्म भी।’’


नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘यह घटना अमानवीय है और इस पर फौरन कार्रवाई की गई है। हमारी कोशिश है कि इस तरह के मामले आगे न आये इसलिये विभाग जल्द ही दिशानिर्देश जारी कर रहा है।’’ इस मामले में सरकार ने जांच के आदेश भी दिए कि आखिर किस अधिकारी ने यह आदेश दिया था कि इन लोगों को शहर के बाहर कर दिया जाए ताकि शहर स्वच्छ रह सकें। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस वीडियो को लेकर सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस वीडियो को शेयर किया और लिखा, ‘‘इंदौर, मप्र की ये घटना मानवता पर एक कलंक है। सरकार और प्रशासन को इन बेसहारा लोगों से माफी मांगनी चाहिए और ऑर्डर लागू कर रहे छोटे कर्मचारियों पर नहीं बल्कि ऑर्डर देने वाले उच्चस्थ अधिकारियों पर एक्शन होना चाहिए।’’ कमलनाथ ने अपने ट्वीट में लिखा- ‘‘इंदौर नगर निगम की शर्मनाक हरकत, बुजुर्गों को निगम की गाड़ी में जानवरों की तरह भरा। शर्म करो शिवराज’’


कांग्रेस के राज में ऐसी घटना भले ही नहीं घटी लेकिन क्या उनके शासनकाल में एक भी वृद्ध भिखारी सड़कों पर भीख नहीं मांगते थे? यह कहने का मकसद किसी राजनीतिक दल को समर्थन देना या किसी का विरोध करना नहीं है। बल्कि आग्रह मात्र ये है कि इस घटना को राजनीतिक चश्में के बजाए सामाजिक अवमूल्यन स्तर की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। समस्या की जड़ को टटोलने की जरूरत है। जरूरत है यह जानने की वृद्धजन आखिर सड़कों पर क्यों हैं? वे भीख मांगने को मज़बूर क्यों हैं? उनके प्रति समाज का रवैया असंवेदनशील क्यों हो चला है? इन सारे प्रश्नों के उत्तर पाना सबसे जरूरी है क्योंकि यह घटना हमारे समाज के मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा है। 

 

इस तारतम्य में स्मरण किया जा सकता है कि फरवरी 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि भीख मांगने वालों को दंडित करने का प्रावधान असंवैधानिक है और यह रद्द किए जाने लायक है।’’ अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए सरकार से पूछा था कि ‘‘ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है।’’ दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि लोग इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि ये उनकी जरूरत है। भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है।’’


तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा था कि ‘‘भीख मांगने को अपराध बनाने वाले ‘बॉम्बे भीख रोकथाम कानून’ के प्रावधान संवैधानिक जांच में टिक नहीं सकते।’’

बॉम्बे भीख रोकथाम अधिनियम, 1959 के आधार पर ही सभी राज्यों में भिक्षा विरोधी लागू किया गया था। कई भिखारियों को राजधानी में इस कानून के तहत जेल में डाल दिया जाता था। बॉम्बे रोकथाम अधिनियम, 1959 को गैरजरूरी मानते हुए कोर्ट ने आगे कहा, ‘सरकार के पास जनादेश सभी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए होता है जिससे सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं मिलना सुनिश्चित हो सके। लेकिन, भीख मांगने वालों की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि राज्य इन सभी नागरिकों को ये जरुरी चीजें उपलब्ध कराने में कामयाब नहीं रहा है। भीख मांगने को अपराध बनाना हमारे समाज के कुछ सबसे कमजोर लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस स्तर के लोगों की भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच नहीं है। और ऊपर से  उन्हें अपराधी बताना उन्हें अपनी दुर्दशा से निपटने के मौलिक अधिकार से रोकता है।’


अपने 23 पृष्ठीय फैसले में पीठ ने कहा था कि इस फैसले का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि कथित रूप से भीख मांगने का अपराध करने वालों के खिलाफ कानून के तहत मुकदमा खारिज करने योग्य होगा। हाई कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने वालों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। याचिका में बॉम्बे भीख रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधानों को भी चुनौती दी गई थी। केंद्र सरकार ने इस पर कहा था कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं किया जा सकता है। अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। कानून का दायरा दिल्ली तक बढ़ाया गया था। इस याचिका की सुनवाई के आरम्भिक दौर में ही अदालत ने 16 मई 2015 को कहा था कि ‘‘ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है।’’ 


देश में भिखारियों, बेघर, बेसहारों का मुद्दा इतना वृहद है कि उस पर संक्षेप में चर्चा करना इस मुद्दे के साथ औपचारिकता बरतने जैसा होगा। इस पर लम्बी, विस्तृत चर्चा और गहन चिंतन-मनन एवं विमर्श की आवश्यकता है। अतः इस विषय पर आगे की चर्चा मैं अगले ‘‘चर्चा प्लस’’ में जारी रखूंगी। जिसमें भिखारियों और सामाजिक व्यवस्था के परस्पर संबंधों की विस्तार से चर्चा करूंगी। (क्रमशः)  

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(दैनिक सागर दिनकर 03.02.2021 को प्रकाशित)

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5 comments:

  1. बहुत सही मुद्दा उठाया है।
    मैं सहमत हूं इस बात से कि - "इन्दौर में बुजुर्ग, लाचार भिखारियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार में भी राजनीतिक तड़का लगाया गया लेकिन किसी ने भी समाज के गिरेबान में झांक कर देखने की कोशिश नहीं की कि हमारे समाज से संवेदनशीलता क्यों गुम होती जा रही है? "
    असंवेदनशीलता पर जीत हासिल करनी होगी, तभी मानवता सुरक्षित हो सकेगी।
    इस विचारोत्तेजक लेख हेतु बधाई
    एवं
    शुभकामनाएं 🙏🌹🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹

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  2. शरदजी,
    'भला किसी का कर ना सको तो बुरा किसी का मत करना' के सिद्धांत पर चलनेवाले भारत देश में ऐसी घटनाएँ होना झकझोर जाता है। समझ नहीं आता कि लोग इतने असंवेदनशील कैसे होते जा रहे हैं ?

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    1. सचमुच यह चिंताजनक है मीना जी।
      आपको हार्दिक धन्यवाद टिप्पणी करने के लिए🙏

      मेरे सभी ब्लॉग्स पर आपका हमेशा स्वागत है 🌹🙏🌹

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  3. जब कभी ऐसी घटनाएं हो जाती है तो लगा है हमारे समाज से संवेदनशीलता गुम होती जा रही है

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