Tuesday, February 23, 2021

आत्मनिर्भरता का संदेश देता सागर का माटी शिल्प | लेख| डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, 
प्रस्तुत है मेरा यह लेख, जिसे जनसंपर्क विभाग, मध्यप्रदेश शासन, सागर द्वारा अपने फेसबुक पेजों पर भी अपलोड किया गया है। 

https://www.facebook.com/556319881414962/posts/1339572243089718/

https://www.facebook.com/219261998639716/posts/860470224518887/

और, Twitter पर भी...

https://twitter.com/JansamparkMP/status/1364186917831462915?s=08

तथा,

https://twitter.com/sagarjdjs/status/1364250735039324171?s=08

लेख :

आत्मनिर्भरता का संदेश देता सागर का माटी शिल्प

   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह        

       जब मनुष्य ने आकृतियां बनाना आरंभ किया होगा तब सबसे पहले उसने मिट्टी का ही सहारा लिया होगा । खाने के उपयोग में लाए जाने वाले बर्तन, बच्चों के खिलौने,  महिलाओं के पहनने वाले आभूषण सभी वस्तुएं मिट्टी से ही बनाना शुरू किया होगा। मनुष्यों ने बुंदेलखंड में प्रागैतिहासिक काल से मनुष्यों का निवास स्थान रहा है। अनेक स्थानों से प्रागैतिहासिक कालीन खिलौने और आभूषण के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो यह साबित करते हैं बुंदेलखंड में मिट्टी से बनाई जाने वाली कलाकृतियों की परंपरा बहुत पुरानी है। यह आत्मनिर्भरता की ओर मज़बूत क़दम है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज की  मिट्टी से अनेक कलाकृतियां बनाई जाती हैं। जिनमें कुछ सजावटी होती हैं तो कुछ बच्चों के खेलने के लिए खिलौनों के रूप में, कुछ दैनिक जीवन में उपयोग में लाए जाने वाले बर्तनों के रूप में तथा कुछ आभूषण के रूप में।


         सागर ज़िले में बच्चों के खेलने के लिए हाथी, पक्षी,  गुड्डे-गुड़िया आदि खिलौने बनाए जाते हैं। कुछ खिलौने आमतौर पर कुछ विशेष त्योहारों के समय बनाए और बेंचे जाते हैं। जैसे संक्रांति के समय मिट्टी के घोड़े और हाथी बनाए जाते हैं, जिनमें  पाहिए लगे होते हैं। इनकी सुंदरता देखते ही बनती है। इनमें लगाम और महावत सहित सुंदर चित्रकारी भी होती है।  ये हाथी, घोड़े इस प्रकार के होते हैं कि जिनमें सुतली बांधकर बच्चे आसानी से दौड़ा सकते हैं। खिलौने  के रूप में बैलगाड़ी की बनाई जाती है। इसी प्रकार बालिकाओं को घरेलू कामकाज की शिक्षा देने वाले खिलौनों में गेहूं पीसने की चक्की  बनाई जाती है। इसमें बाक़ायदे  दो पाट होते हैं।  गेहूं अथवा अनाज डालने के लिए छेद भी बना होता है। साथ ही चक्की में  मूठ फंसाने  के लिए भी छेद होता है। बच्चों के खेलने के लिए गुड्डा और गुड़िया बनाई जाती हैं जिन्हें पुतरा- पुतरियां कहते हैं।  यह पुतरा- पुतरिया  खेलने के काम आती हैं और अक्षय तृतीया के समय इनका विवाह भी रचाया जाता है, जो सामाजिक संस्कारों की शिक्षा देने का एक बेहतरीन माध्यम बनता है।  मिट्टी की इन पुतरा- पुतरियों  को सुंदर कपड़े पहनाए जाते हैं तथा हाथ से बने सुंदर ज़ेवरों से सजाया जाता है। बच्चों के खेलने के लिए है पानी भरने के लिए छोटे-छोटे घड़े, रसोई घर के बर्तन, चूल्हा आदि बनाया जाता है। आजकल आधुनिक युग में  छोटे-छोटे गैस के सिलेंडर की बनाए जाते हैं,  जिन्हें बड़ी खूबसूरती से लाल रंग से रंगा जाता है जिससे वे देखने में असली कुकिंग गैस के सिलेंडर जैसे दिखाई देते हैं।


       धार्मिक आयोजनों के  लिए मिट्टी की बनी कलाकृतियां बनाई जाती हैं।  दीपावली के दिए तो सर्वविदित है और यह लगभग सभी जगह बनाए जाते हैं किंतु कुछ कलाकृतियां ऐसी हैं जो देवी-देवताओं की हैं और जिनका संबंध बुंदेलखंड से ही है। जैसे  महालक्ष्मी की पूजा के लिए महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाई जाती है। यह प्रतिमा गज पर सवार महालक्ष्मी की होती है। इसकी विशेषता यह होती है कि इसे पूर्ण पकाया नहीं जाता है अर्थात  इसमें कच्चा रहता है किंतु इसकी साज-सज्जा बहुत ही सुंदर ढंग से की जाती है।  चटक रंग का प्रयोग करते हुए साड़ी, कपड़े और सोने के रंग के आभूषण उकेरे जाते हैं।  हाथी को भी सजाया जाता है। ग्वालन की मूर्तियां बनाई जाती है जो पूजा के दौरान दीप स्तंभ यानी कैंडल स्टैंड का काम भी करती हैं। इनमें पांच या पांच से अधिक दिए बनाए जाते हैं जिनमें तेल भरकर बाती लगाकर प्रज्वलित किया जाता है। देश के अन्य प्रांतों की भांति सागर ज़िले में भी  मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। पूजा के उपयोग के लिए अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनाने में बुंदेलखंड के कलाकारों को महारत हासिल है।


        दैनिक जीवन में काम में आने वाली वस्तुओं में मिट्टी से बनाई जाने वाली अनेक वस्तुएं हैं जैसे घड़े, नांद और तसले आदि।  ये दो प्रकार के होते हैं-  लाल रंग के और काले रंग के।  लाल रंग के बर्तनों में अधिक छिद्र होते हैं और इन पर हल्की रंगों से अथवा सफेद रंग से चित्रकारी की जाती है।  वही काले रंग के बर्तन ग्लेज़्ड होते हैं।  इस प्रकार के बर्तनों का उपयोग आमतौर पर दही जमाने, भोजन पकाने, दूध-दही रखने  और अचार आदि  अधिक दिनों तक रखी जाने वाली खाद्य वस्तुओं  को रखने के लिए होता है।




          ज़िले के ग्रामीण अंचलों में मिट्टी की गुरियां बनाई जाती हैं। इन गुरियों से तरह-तरह की मालाएं बनाई जाती हैं।  आजकल इस तरह की माला तथा आभूषणों का चलन बढ़ गया है।  इनकी मांग  शहरों की दुकानों से लेकर एंपोरियम तक होती है।  ड्राइंग रूम को सजाने के लिए छोटे-छोटे घरों  की आकृतियां,  फेंगशुई में प्रचलित कछुए,  लाफिंग बुद्धा,  विंड चाइम्स, लैंपशेड आदि अनेक  वस्तुएं यहां के कलाकार बनाते हैं।  यह आमतौर पर बाजार हाट में अपनी छोटी-छोटी दुकानें लगाकर बेचते हैं।   मेलों में भी  इस प्रकार की वस्तुएं बेची जाती हैं।  सागर ज़िले का माटी शिल्प बुंदेली कला-संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है और सागर ज़िले को आत्मनिर्भर बनने में अपना योगदान देता है।

(माटीशिल्प की सभी फोटो : डॉ शरद सिंह)

              --------------------------------

------------------------------------

सागर, मध्यप्रदेश

#बुंदेलखंड #माटीशिल्प #आत्मनिर्भर  

#आत्मनिर्भरता



2 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी । सागर का यह माटी शिल्प निरंतर ऊँचाई छुए । यही कामना है ।

    ReplyDelete
  2. सार्थक लेखन, बुंदेली माटी कला की सुंदर जानकारी

    ReplyDelete