बर्ड फ्लू : मुसीबत में हैं हमारे नन्हें साथी
- डाॅ शरद सिंह
ऐसा लगता है कि आपदाओं ने हमारे देश की राह पकड़ ली है। कोरोना के चलते हज़ारों देशवासी अपनी प्राण गवां चुके हैं। अब जबकि कोरोना वैक्सीन की ख़ुशख़बरी ने तनिक राहत दी थी कि बर्ड फ्लू की आपदा ने दस्तक दे दी। राज्य-दर-राज्य इसकी चपेट में आते जा रहे हैं। यद्यपि सावधानी रखने पर यह मनुष्यों के लिए प्रत्यक्षतः संकट उत्पन्न करने वाली आपदा नहीं है लेकिन आर्थिक और पर्यावरण के लिए यह ज़रूर मुसीबतें खड़ी कर रही है। आखिर पक्षी मात्र पक्षी नहीं, हमारे नन्हें साथी हैं और आज उन्हें बर्ड फ्लू के संकट ने आ घेरा है।
चर्चा प्लस । बर्ड फ्लू : मुसीबत में हैं हमारे नन्हें साथी | डाॅ शरद सिंह | सागर दिनकर | 14.01.2021 |
हमारी भारतीय संस्कृति में पक्षियों का बहुत महत्व है। भारतीय दर्शन में परिवार और समाज की भांति प्रकृति को जीवन का अभिन्न अंग माना गया है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन वृक्ष, नदी आदि के साथ-साथ पशु और पक्षियों को भी विशेष स्थान दिया गया है। विभिन्न देवताओं के वाहन के रूप में उन्हें सम्मान मिलता रहा है। जैसे- विष्णु का वाहन गरूड़, ब्रह्मा और सरस्वती का हंस, लक्ष्मी के वाहन उल्लू, कामदेव का तोता, कार्तिकेय का मयूर आदि। लगभग 4,000 वर्ष ई.पू. रचे गए ऋग्वेद के मंत्र (1/164/20) में वृक्ष पर बैठे दो सुपर्णों के रूपक से जीव और आत्मा का अंतर बतलाया गया है। अथर्ववेद के मंत्र (14/2/64) में नवदंपति को चकवा दंपति के समान निष्ठावान रहने का आशीर्वाद दिया गया है। यजुर्वेद की एक संहिता - ‘‘तैत्तिरीय’’ का नाम तित्तर पक्षी के नाम पर है। पहाड़ी मैना तथा शुकों को उनकी वाक क्षमता के आधार पर वाग्देवी सरस्वती को समर्पित किया गया है। यहां ऋग्वेद में 20 पक्षियों का उल्लेख है, यजुर्वेद में 60 पक्षियों का है। दशहरे में नीलकंठ और श्राद्धपक्ष में कौवों के महत्व से सभी परिचित हैं। यह महत्व मनुष्य और पक्षियों के परस्पर संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए स्थापित किए गए।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मनुष्यों की गलतियों के कारण पक्षियों की अनेक प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। उदाहरण के लिए सन् 1850 में आस्ट्रेलिया का एमू पक्षी, 1876 में हिमालयन क्वैल, 1935 में भारत तथा म्यांमार में गुलाबी सिर वाली बत्तख, 1986 में ग्वाटेमाला का अटिटलान गेब्रे को लुप्त पक्षियों की श्रेणी में रखा जा चुका है। लुप्त पक्षी प्रजातियों की सूची प्रति दशक लम्बी होती जा रही है। छोटे-मोटे कीट-पतंगों को खा कर तथा परागण और बीजों के स्थानांतरण में मदद कर पक्षी पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हैं। पक्षियों की प्रजातियां कम होने अथवा उनकी संख्या कम होने से पर्यावरण असंतुलन बढ़ेगा। वहीं अंडे तथा पक्षी-मांस के पोल्ट्री व्यापार को गहरी चोट पहुंचना तय है। देखा जाए तो नन्हें पक्षी अपने प्राणों की आहुति दे कर हमारी अर्थव्यवस्था को संवारते हैं और अनेक मानव-परिवारों की आजीविका का साधन बनते हैं।
आज हमारे नन्हें साथी मुसीबत में हैं। अब तक बर्ड फ्लू देश के दस राज्यों में फैल चुका है। इनमें केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा उत्तर प्रदेश और गुजरात भी शामिल हैं। बर्ड फ्लू को फैलने से रोकने के लिए दिल्ली में जीवित पक्षियों के इंपोर्ट पर रोक लगा दी गई है। देश में बर्ड फ्लू के मामले को देखते हुए पर्यावरण और वन मंत्रालय ने सभी राज्यों के वन विभाग से इसे गंभीरता से लेने को कहा है। रिपोर्टों के मुताबिक राज्यों से कहा गया है कि अगर जंगली जीव मरे हुए पाए जाते हैं तो तत्काल इसकी जानकारी केंद्र को दे। मध्य प्रदेश के इंदौर में कौवों की मौत के बाद मंदसौर में भी ऐसे ही मामले सामने आए। मंदसौर, आगर मालवा इलाके में मृत कौवों में एच5 एन8 वायरस के स्ट्रेन की पुष्टि होने के बाद से राज्य सरकार की चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक था। आंकड़ों के अनुसार 23 दिसंबर से अब तक राज्य में 400 से अधिक पक्षियों की मौत हो चुकी है। भोपाल में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिसीज ने सैंपलों में एविएन फ्लू की पुष्टि की। इसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल निर्देश दिए कि मध्यप्रदेश में मुर्गियों में पाए जाने वाले संक्रामक रोग बर्ड फ्लू से बचाव, रोकथाम और नियंत्रण के पूरे प्रयास किए जाए। मुख्यमंत्री ने स्वयं वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की तथा राज्य में बर्ड फ्लू से बचाव, रोकथाम और नियंत्रण के प्रयासों की समीक्षा की।
जनवरी 2021 के प्रथम सप्ताह तक के आंकड़ों के अनुसार बर्ड फ्लू से देश में 1200 स्वतंत्र पक्षियों की मौत हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के पौंग डैम के पास 2700 से अधिक प्रवासी पक्षियों की मौत हुई। जबकि हरियाणा में 414 लाख पोल्ट्री पक्षियों की मौत हुई। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में गाजीपुर मंडी, कई पार्क व संजय झील बंद कर दी गई तथा वहां संक्रमित बत्तखों को मारने का काम शुरू कर दिया गया। विभिन्न राज्यों के आरंभिक आंकड़ों के अनुसार केरल में अब तक 1700 बतखों की मौत हो चुकी है। राजस्थान के झालावाड़, कोटा समेत 16 जिलों में अब तक 625 पक्षी जान गंवा चुके हैं। मध्य प्रदेश के मंदसौर में करीब 100, इंदौर में 142, मालवा में 112 और खरगोन जिले में 13 कौवों की मौत हो गई। वहीं, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पौंग झील अभयारण्य में अब तक 2739 प्रवासी और स्थानीय पक्षियों की मौत के बाद स्थानीय प्रशासन ने मुर्गिंयों, बतखों और अंडों की बिक्री पर रोक लगा दी है। केरल के अलपुझा और कोट्टायम जिलों में बड़े पैमाने पर मंगलवार को संक्रमित पक्षियों को मारने का अभियान शुरू हो गया है। यहां पर करीब 50 हजार पक्षियों को मारा जाएगा। वहीं, हरियाणा के पंचकूला जिले में 15 दिनों में दो लाख मुर्गियों की मौत हो चुकी है। इस बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्य मुख्य सचिवों और मुख्य वन्यजीव वार्डनों को चिट्ठी लिखकर उनसे एवियन इन्फ्लुएंजा के लिए राज्य स्तरीय निगरानी समितियों का गठन करने को कहा है। राज्यों को सलाह दी गई है कि प्रवासी पक्षियों की सभी मौतें, उनकी संख्या और कारण पर्यावरण मंत्रालय को बताया जाए। मंत्रालय ने कहा कि भेजे गए सैंपल और टेस्टिंग रिपोर्ट्स के कलेक्शन, डिस्पैच के लिए स्थानीय पशु चिकित्सा विभाग से संपर्क किया जाना चाहिए। पर्यावरण मंत्रालय की चिट्ठी में आगे लिखा गया कि किसी भी पक्षी के अनुचित व्यवहार या जंगली पक्षियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों की मौत की गहन निगरानी की जानी चाहिए। चिड़ियाघर में भी सतर्कता बरती जानी चाहिए। सभी राज्यों को महत्वपूर्ण पक्षी स्थलों की जानकारी के साथ-साथ वीकली रिपोर्ट मंत्रालय को भेजने के लिए कहा गया है। इसमें पक्षियों की संख्या और प्रजातियां, आने और रहने की अवधि, पिछले वर्षों की तुलना में प्रवासी पैटर्न में कोई भी परिवर्तन आदि का जिक्र करना होगा। केंद्र ने पक्षियों को मारने की कार्रवाई के लिए राज्यों को पर्याप्त संख्या में पीपीई किट और अन्य आवश्यक उपकरणों का भंडारण सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है। वहीं, केंद्र सरकार ने फ्लू की रोकथाम के लिए तमाम कदम उठाने के बीच राज्यों से मुर्गा मंडियों को बंद नहीं करने या कुक्कुट उत्पादों की बिक्री प्रतिबंधित नहीं करने को भी कहा, क्योंकि मानव में बर्ड फ्लू संचरण की कोई वैज्ञानिक रिपोर्ट सामने नहीं आई है। अधिकारियों ने कुक्कुट उत्पादों के उपभोक्ताओं का डर दूर करते हुए कहा कि अच्छी तरह से पके हुए चिकन और अच्छी तरह उबले और पकाए हुए अंडों का उपयोग करने से संक्रमण का ख़तरा नहीं है, क्योंकि वायरस ज्यादा तापमान में जीवित नहीं रह सकता। फिर भी पोल्ट्री व्यवसाय में गिरावट आना सुनिश्चित है। जिन व्यवसायियों को संक्रमण के कारण अपने कुक्कुट मारने पड़ रहे हैं, वे तो नुकसान की चपेट में आ ही गए हैं।
बर्ड फ्लू को एवियन एंफ्लुएंजा भी कहते हैं। ये एक तरह का वायरल इंफेक्शन है, जो पक्षियों से मनुष्यों को भी हो सकता है। ये जानलेवा भी हो सकता है। इसका सबसे आम रूप एच5 एन1 एवियन एंफ्लुएंजा कहलाता है। ये बेहद संक्रामक है। समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा हो सकता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार सबसे पहले एवियन एंफ्लुएंजा के मामले साल 1997 में दिखे। संक्रमित होने वाले लगभग 60 प्रतिशत लोगों की जान चली गई। एविएन इन्फ्लुएन्जा से बीमारी का पहला इंसानी मामला 1997 में उजागर हुआ था। किसी इंसान को संक्रमित पक्षियों या उनके संक्रमित पंख या मल के संपर्क में आने से बर्ड फ्लू हो सकता है। इंसानों से इंसानों में बीमारी फैलने के प्रकरण प्रमाणिक तौर पर सामने नहीं आए हैं। ये एंफ्लुएंजा वायरस के स्ट्रेन से प्रमुख रूप से पक्षियों को प्रभावित करनेवाली बीमारी है। 90 के दशक में बर्ड फ्लू की नई किस्म की पहचान सामने आई थी। बर्ड फ्लू का नया स्ट्रेन घरेलू पक्षियों जैसे बत्तख, मुर्गी, तीतर आदि में देखा गया था। उस स्ट्रेन को अत्यधिक रोगजनक यानी बहुत गंभीर और संक्रामक एविएन एंफ्लुएंजा कहा गया। बर्ड फ्लू बहुत सारी पक्षियों की प्रजातियों के बीच बहुत संक्रामक माना गया है।
यह माना जा रहा है कि प्रवासी पक्षियों के साथ बर्ड फ्लू के वायरस भारत आए। किस देश से आया यह जानना भी महत्वपूर्ण होगा। साथ ही पक्षियों पर आए इस संकट के दौर में हमें भी गाईड लाईन के अनुरूप पक्षियों की रक्षा के लिए सजग होना होगा और किसी भी मृत पक्षी के पाए जाने की सूचना प्रशासन को देकर उन पक्षियों की रक्षा करनी होगी जो संक्रमित नहीं हैं। यूं भी पर्यावरण और आर्थिक स्तर पर देखा जाए तो बर्ड फ्लू से सिर्फ़ पक्षियों का अहित नहीं है बल्कि हम मनुष्यों का भी अहित हो रहा है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 14.01.2021 को प्रकाशित)
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मीना भारद्वाज जी,
ReplyDeleteमेरे लेख को चर्चा मंच में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद !
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
आपका बहुत-बहुत आभार!!!
- डॉ. शरद सिंह
अत्यंत प्रभावी एवं चिंतनीय विमर्श किया है ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता तन्मय जी 🌹🙏🌹
Deleteचिंतनीय।
ReplyDeleteनिःसंदेह...
Deleteवे मूक प्राणी हैं और उन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है।
आपका हार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏
यह बेहद चिंता का विषय है। बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया
ReplyDeleteजी हां, उनकी पीड़ा का निदान हम मनुष्यों को ही ढूंढना होगा।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹
सार्थक पहल
ReplyDeleteसटीक जानकारी देता आलेख
बधाई
हार्दिक धन्यवाद ज्योति खरे जी 🌹🙏🌹
Deleteसार्थक आलेख
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹
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